Saturday, May 28, 2011

कुंडली के किस घर में हो शनि तो क्या उपाय करें?



कुंडली के किस घर में हो शनि तो क्या उपाय करें?


1 जून को शनि जयंती महापर्व है। इस दिन शनि देव से संबंधित उपाय करने से  कुंडली में स्थित अशुभ शनि बुरा असर नही डालेगा। शनि जयंती पर शनि देव से संबंधित छोटे से छोटा उपाय भी बड़ा फल देने वाला होता है। इसलिए हम आपको बता रहें हैं,




कुंडली के पहले घर में शनि हो तो-

जिस व्यक्ति की कुंडली में शनि पहले भाव में हो वह व्यक्ति राजा के समान जीवन जीने वाला होता है। शनि अशुभ है तो व्यक्ति रोगी, गरीब और बुरे काम करने वाला होता है। इसलिए ये उपाय करें

- किसी जरूरतमंद को या ब्राह्मण या साधु-संत को तवा दान करें।

- नशा आदि से दूर रहें।

- बंदरों को चने आदि खिलाएं।

दूसरे भाव में शनि हो तो-

ऐसा व्यक्ति बिगड़े मुंह वाला, लालची, विदेश में धन कमाने वाला होता है। ऐसे लोग ये उपाय करें

- दूध या दही का तिलक करें।

- सांप को दूध पिलाएं।

- भैंस को रोज घास खिलाएं।

तीसरे भाव में शनि हो तो-

व्यक्ति संस्कारवान, आलसी और चतुर होता है। इसके लिए ये उपाय करें-

- घर में किसी अंधेरी जगह पर धन, सोना, रुपए आदि रखें।

- नशा, मांस से दूर रहें।

- बहते पानी में चावल बहाएं।

चतुर्थ भाव में शनि हो तो-

चतुर्थ भाव में  शनि होने से व्यक्ति रोगी, दुखी और धन हीन होने लगता है। इसलिए ये उपाय करने चाहिए

- सांप को दूध पिलाएं

- शनि का दान तेल, उड़द, काले कपड़े का दान करें।

- मछली को चावल खिलाएं।

पांचवें भाव में शनि हो तो-

पांचवे भाव का शनि व्यक्ति को दुखी, पुत्र हीन, मित्र हीन और कम बुद्धि वाला बनाता है। इसलिए ये उपाय करने चाहिए।

- घर के अंधेरे कमरे में हरे मूंग रखें।

- 48 वर्ष की उम्र तक मकान न बनाएं।

- मांस-मदिरा या बादाम का सेवन बिल्कुल ना करें।

छठें भाव में शनि हो तो-

कुंडली के छठे भाव में हो तो वह कामी, अधिक खाने वाला और कुटिल होता है। इसलिए ये उपाय करें-

- एक बर्तन में तेल भरकर उसमें अपना मुंह देखें और पानी में बहा दें।

- सांप को दूध पिलाएं।

- नारियल या बादाम नदी में बहाएं।
कुंडली के सातवें भाव में शनि हो तो-

सातवें भाव का शनि होने पर व्यक्ति रोगी, गरीब, कामी, खराब वेशभूषा वाला होता है।  इसलिए ये उपाय करने चाहिए।

- काली गाय को घास खिलाएं, उसकी सेवा करें।

- बुराइयों एवं अधार्मिक कार्य से बचें।

- किसी बर्तन में शहद भरकर घर में रखें।

आंठवे भाव में शनि हो तो-

व्यक्ति कुष्ट या भगंदर रोग से पीडि़त, दुखी और कम उम्र वाला होता है। इसलिए ऐसे उपाय करने चाहिए

- चांदी पहनें।

- 8 बादाम नदी में बहाएं।

- राहु और शनि की विशेष पूजा कराएं।

कुंडली के नवें भाव में शनि हो तो-

ऐसा व्यक्ति जिसकी कुंडली में नवम भाव में शनि हो वह अधार्मिक, गरीब, पुत्रहीन, दुखी होता है।

- पिली वस्तुओं का दान दें।

- अपने चांदी रखें।

- घर की छत पर घास या लकड़ी बिल्कुल ना रखें।

दसवें भाव में शनि हो तो-

दशम भाव का शनि होने पर व्यक्ति धनी, धार्मिक, राज्यमंत्री या उच्चपद पर आसीन होता है। शनि के इन शुभ प्रभाव बढ़ाने के लिए ऐसे उपाय करें-

- रोज चने की दाल पानी में प्रवाहित करें।

- घर छत पर फालतु वस्तुएं बिल्कुल ना रखें।

- अंधों को रोज खाना खिलाएं।

ग्यारहवें भाव में शनि हो तो-

जिस व्यक्ति की कुंडली में ग्याहरवें भाव में शनि हो वह लंबी आयु वाला, धनी, कल्पनाशील, निरोग, सभी सुख प्राप्त करने वाला होता है। इन शुभ प्रभावों को बढ़ाने के लिए शनि के ये उपाय करें-

- घर के अंधेरे हिस्से में 12 बादाम काले कपड़े में बांधकर रखें।

- मांस-मदिरा से दूर रहे।

- शुभ कार्य से पहले पानी का कलश भरकर घर में रखें।

बारहवें भाव में शनि हो तो-

बाहरवें भाव में शनि होने पर व्यक्ति अशांत मन वाला, पतित, बकवादी, कुटिल दृष्टि, निर्दय, निर्लज, खर्च करने वाला होता है। शनि देव के इन अशुभ प्रभावों से बचने के लिए निचे बताए गए उपाय करें-

- भैरव महाराज की पूजा करें।

- मछली को चावल खिलाएं।

- शनिवार को भैरव मंदिर में सरसो का तेल का दीपक लगाएं।


Thursday, May 26, 2011

ऐसे लोगों को सहना पड़ता महिलाओं से अपमान...

ऐसे लोगों को सहना पड़ता महिलाओं से अपमान...

आधुनिकता के साथ ही हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ती जा रही है। हर क्षेत्र में कई बड़े पदों पर महिलाएं पदस्थ होती हैं। ऐसे में उनके अधिन कार्य करने वाले पुरुषों को कई बार उनसे डांट सुनना पड़ती है, अपमानित होना पड़ता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य निर्धारित करता है कि आपको जीवन में मान-सम्मान मिलेगा या अपमान।
सूर्य और चंद्र यदि एक साथ, एक ही भाव में स्थित हो तो व्यक्ति को जीवन में कई बार अपमान झेलना पड़ता है।

- यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के प्रथम भाव में सूर्य और चंद्र स्थित हो तो उसे माता और पिता से दुख मिलता है। वह पुत्र से दुखी और निर्धन होता है।

- चंद्रमा और सूर्य चतुर्थ भाव में हो तो व्यक्ति को पुत्र और सुख से वंचित रहता है। ऐसा व्यक्ति मूर्ख और गरीब होता है।

- कुंडली के सप्तम भाव में सूर्य और चंद्रमा स्थित हो तो व्यक्ति जीवनभर पुत्र और स्त्रियों से अपमानित होता रहता है। ऐसे व्यक्ति के पास धन की भी कमी रहती है।

- सूर्य और चंद्रमा किसी व्यक्ति की कुंडली के दशम भाव में स्थित हो तो वह सुंदर शरीर वाला, नेतृत्व क्षमता का धनी, कुटिल स्वभाव का और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला होता है।


स्त्रियों से अपमानित होने से बचने के उपाय

- प्रति दिन सूर्य को ब्रह्म मुहूर्त में जल चढ़ाएं।

- अधिक से अधिक हल्के और सफेद रंगों के कपड़ें पहनें। गहरे रंग के कपड़ों से बचें।

- सफेद रंग का रुमाल हमेशा अपने साथ रखें।

- प्रतिदिन केशर या चंदन का तिलक लगाएं।

- सूर्य एवं चंद्रमा से संबंधित वस्तुओं का दान करें।

- चंद्रमा से शुभ फल प्राप्त करने के लिए शिवजी और श्रीगणेश की आराधना करें।

शादी में क्यों निभाई जाती है संगीत की रस्म?


शादी में मंगलगीत गाए जाते हैं संगीत की रस्म निभाई जाती है जिसमें घर के सभी सदस्य आनंद और उल्लास के साथ भाग लेते हैं। दरअसल इसका कारण यह है कि संगीत आंनद आपस में गहरा ताल्लुक है। संगीत के बगैर किसी भी प्रकार के सेलीबे्रशन की सफलता अधूरी ही मानी जाती है। ढ़ोल, नगाड़े और शह

इसके अंतर्गत पहले घर की महिलाएं मंगलगीत गाती थी और इस कार्यक्रम में ही ढोल बजाकर गीत गाती थी। सतीजी व शिव की शादी हो राम सीताजी का स्वयंवर सभी में महिलाओं द्वारा मंगलगीत गाए जाने का वर्णन मिलता है धीरे-धीरे इस क्रिया को परंपरा के रूप में शामिल कर लिया गया। हम देखते हैं कि भगवान शिव के पास भी अपना डमरु था, जो कि तांडव करते समय वे स्वयं ही बजाते भी थे।

जीवन युद्ध और ढ़ोल- संगीत के अन्य वाद्य यंत्रों की बजाय ढ़ोल की अपनी अलग ही खासियतें होती हैं। मन में उत्साह, साहस और जोश जगाने में ढ़ोल का बड़ा ही आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ता है। तभी तो पुराने समय में युद्ध का प्रारंभ भी ढ़ोल-नगाड़ों से ही होता था। ढ़ोल से निकलने वाली ध्वनि तरंगें योद्धओं को जोश और साहस से भर देती थीं।

Wednesday, May 25, 2011

ऐसे चेहरे वाली महिलाएं होती हैं व्यवहारकुशल

हर रोज में कई लोगों से मिलते हैं, कई लोगों का स्वभाव समझ आ जाता है तो कुछ लोगों को समझने में मुश्किल होती है। अन्य लोगों के स्वभाव को समझने की उत्सुकता सामान्यत: सभी में रहती है। सभी जानना चाहते है कि उनके आसपास रहने वाले लोग कैसे हैं? अन्य लोगों को समझने के लिए ज्योतिष में कई प्रकार की विद्याएं बताई गई हैं। जिन्हें अपनाने पर किसी भी व्यक्ति को समझना काफी आसान हो जाता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति का केवल चेहरा देखकर भी उसके मन की बात और उसका स्वभाव मालुम किया जा सकता है। यदि आपके आसपास कोई चौकोर चेहरे वाला इंसान हो तो जानिए कैसा होता है उसका स्वभाव...

वर्गाकार या चौकोर चेहरे वाले लोग स्वस्थ्य, सुन्दर और बलवान होते हैं। ऐसे लोगों का दिमाग व्यवसाय में काफी तेज चलता है, इसी वजह से यह बड़े व्यवसायी बन सकते हैं। ये लोग व्यवहारिक और भौतिक साधनों से संपन्न, सुखी, समृद्ध होते हैं। बहुत सिद्धांतवादी होते हैं लेकिन स्वभाव से थोड़े आलसी होते है। आलस्य के कारण ही कई बार कार्यों को टालते रहते हैं। चौकोर चेहरे वाले लोगों का शरीर स्थूल होता है। चौकोर चेहरे वाली महिलाएं बहुत व्यवहारकुशल होती हैं। ऐसी महिलाएं बहुत जल्द किसी को भी प्रभावित कर लेती हैं। इसी वजह से इनके मित्रों की संख्या अधिक होती है।

सिर्फ अच्छा ही नही बुरा भी हो सकता दान देने से ..

अगर आप सोच रहे है कि दान देने से आपका बुरा समय खत्म हो जाएगा, आपके सितारे आपका साथ देने लगेंगे तो दान देने से पहले ये जान लें कि, आपके लिए कौन सी वस्तु का दान शुभ फल देगा और किस वस्तु के दान देने से आपको नुकसान होगा।

सूर्य- जिस कुंडली में सूर्य मेष रा


चंद्रमा- अगर आपकी जन्मकुण्डली में चन्द्र वृष राशि में (2 नंबर के साथ) हो तो पानी का दान नही करना चाहिए।

मंगल- अगर जन्मकुण्डली में मंगल मकर राशि में (10 नंबर के साथ) हो तो उस व्यक्ति को भूमि, संपत्ति या तांबे की वस्तुओं का दान नहीं देना चाहिए।

बुध- जन्मकुंडली में यदि बुध कन्या राशि में (6 नंबर के साथ) हो तो आपको हरे  वस्त्र या हरी वस्तुओं का दान नहीं देना चाहिए।

बृहस्पति- अगर आपकी जन्मकुण्डली में गुरु कर्क राशि में (4 नंबर के साथ) है तो आपको पीले वस्त्र, पीली वस्तुएं और धार्मिक कार्यों में दान नही देना चाहिए।

शुक्र- जिसकी जन्मकुण्डली में शुक्र ग्रह मीन राशि में (12 नंबर के साथ) होता है उन्हे एश्वर्य पूर्ण वस्तुएं, मनोरंजक एवं सौंदर्य से सम्बंधित वस्तुएं किसी को दान या गिफ्ट नहीं करनी चाहिए।

शनि- यदि शनि देव की स्थिति जन्मकुण्डली में उच्च हो यानी तुला राशि में (७ नंबर के साथ) शनि हो तो, उसे व्यर्थ परिश्रम और भ्रमण नहीं करना चाहिए। और लोहा, वाहन आदि का दान नहीं देना चाहिए।

मछलियां दूर कर देती हैं जीवन की हर परेशानी

मछलियां दूर कर देती हैं जीवन की हर परेशानी


जीवन के दो पहलु बताए गए हैं सुख और दुख। हर व्यक्ति को इन दोनों पहलुओं से रुबरु होना पड़ता है। किसी के जीवन में दुख अधिक होते हैं तो किसी के जीवन में सुख। शास्त्रों के अनुसार कर्मों के अनुसार ही हमें सुख या दुख प्राप्त होते हैं।

ऐसा माना जाता है कि पिछले जन्मों में किए गए कर्मों के आधार पर ही व्यक्ति को नया जन्म मिलता है। यदि किसी व्यक्ति को जीवन में काफी अधिक कष्ट भोगने पड़ रहे हैं तो उसे पुण्य कर्म करने चाहिए। जिससे कि पुराने पापों का नाश होता है और पुण्य की बढ़ोतरी होती है। ऐसा करने पर दुख के प्रभाव में कमी आती है तो सुख प्राप्त होने लगते हैं।

शास्त्रों के अनुसार सभी के कष्टों को दूर करने का एक सटीक उपाय बताया गया है मछलियों को आटे की छोटी-छोटी गोलियां बनाकर खिलाना। यदि आपकी कुंडली में कोई दोष या ग्रह बाधा हो तो इस उपाय काफी कारगर सिद्ध होता है। मछलियों को खाना खिलाने बहुत शुभ कर्म माना जाता है। इससे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था इससे मछलियों का महत्व काफी अधिक बढ़ जाता है। इसके अलावा सभी देवी-देवताओं और ग्रहों की कृपा प्राप्ति के लिए भी यह श्रेष्ठ उपाय है। प्रतिदिन मछलियों को आटे की छोटी-छोटी गोलियां खिलाने पर मन को असीम शांति की प्राप्ति होती है। हमेशा खुश और शांत रहने के लिए भी यह उपाय करना चाहिए।

नवांश के उपयोगीता

नवांश के उपयोगीता 
सभी वर्ग कुंडलियों में नवांश सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं. विम्शोपक बल में भी जन्म कुंडली के बाद सबसे महत्वपूर्ण नवांश ही हैं.विम्शोपक बल में लग्न कुंडली के बाद सबसे अधिक अंक नवांश को दिए गए हैं. जन्म कुंडली और नवांश को देख कर ही आप ग्रह किस नक्षत्र और चरण में हैं ज्ञात कर सकते हैं. ज्योतिषीय ग्रन्थ जैसे बृहत् पराशर होरा शास्त्र, जातक पारिजात, चंद्र नाडी कला, बृहत् जातक इत्यादि में नवांश के उपयोग कई स्थानों पर वर्णित हैं. मेरी सक्षमता के आधार पर मैं जितना समझ पाया वो आप सभी ज्योतिष प्रेमियों से बाँटना चाहूँगा.
नवांश के उपयोग :-
१) यदि ग्रह जन्म कुंडली में निर्बल अर्थात पाप ग्रहों से दृष्ट नीच का हो, अस्त हो परन्तु नवांश में बली हो तो ग्रह के पास बल होता हैं.
२) अस्त ग्रह यदि नवांश में सूर्य से २ भाव से अधिक दूरी पर हो तो अस्त ग्रह भी फल देने में सक्षम होता हैं.
३) कोई भी ग्रह यदि मित्र तथा सौम्य ग्रह के नवांश में हो तो उस ग्रह का फल अवश्य और शुभ मिलता हैं.
४) शुभ राशि में वर्गोत्तम ग्रह शुभ फल देता हैं.
५) क्रूर राशि में वर्गोत्तम ग्रह संघर्षो के बाद परिणाम देता हैं.
पर इस लेख में मैं नवांश पर नहीं नवांश के स्वामी पर चर्चा करना चाहता हूँ.
सारावली के अनुसार , चंद्र राशि हमारे स्वभाव को दर्शाती हैं परन्तु यदि जिस नवांश में चंद्र हैं उसका स्वामी अधिक बली हो तो स्वभाव नवांश के अनुसार होगा.
सर्वार्थ चिंतामणि के अनुसार, यदि चतुर्थ भाव का स्वामी जिस नवांश में हैं उसका स्वामी लग्न कुंडली में केन्द्र गत हो तो ऐसे जातक को घर-सम्पदा का सुख अवश्य प्राप्त होता हैं.
परन्तु यदि वह त्रिक भाव (६-८-१२) में हो तो ऐसे जातक को घर-सम्पदा के सुख की हानि होती हैं.
ऐसे श्लोक हमे बाध्य करते हैं की हम नवांश के स्वामी की स्थिति फल कथन से पहले अवश्य विचार लें.
जब सर्वार्थ चिंतामणी के श्लोक पर ध्यान देते हुए कुछ जानी पहचानी कुण्डलियाँ देखी तो परिणाम अद्भुत था. यदि भावेश का नवांश अधिपति लग्न कुंडली मे केंद्र अथवा त्रिकोण में बली हो तो उस भाव के फल अवश्य मिलते हैं.
और यदि भावेश का नवांश अधिपति निर्बल होकर त्रिक भावो में हो तो निश्चय ही उस भाव के फल में कमी आएगी

गर्भस्थ शिशु पुत्र या पुत्री ....................


गर्भस्थ शिशु पुत्र या पुत्री ....................

गर्भस्थ शिशु के लिंग पर आधारित प्रश्न कई बार पूछे जाते हैं, इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर देने से बचना चाहिए क्योंकि कहीं इस कारण से आप भ्रूण हत्या के दोषी न बन जाएँ| यदि आप आश्वस्त हैं की आपके उत्तर से शिशु पर कोई प्रभाव नही पड़ेगा तभी आप ज्योतिषीय ज्ञान से उत्तर देने का प्रयास करें| लिंग आधारित प्रश्नों के उत्तरों पर कई प्रकार से विचार होता है| उनमे जो प्रमुख हैं वे इस प्रकार हैं :
राशि और ग्रह के योग :- प्रश्न कर्ता यदि प्रथम संतान पर विश्लेषण चाहता हैं तो पंचम भाव में स्थित ग्रह से विचार करें, यदि भाव रिक्त हो तो पंचम भाव पर दृष्टि और तदुपरांत राशि पर ध्यान दें|
इसी प्रकार पंचम भाव का स्वामी की युति, फिर उस पर दृष्टि और अंत में राशि जिस में पंचमेश स्थित है उस पर विचार करें| दोनों में जिस की अधिकता हो उसके अनुसार फल कहें|


उपरोक्त कुंडली में पंचम भाव में केतु स्थित हैं, उस पर शनि (स्त्री/नपुंसक) ग्रह की दृष्टि हैं| पंचम भाव में कुम्भ राशि (पुरुष) है| पंचमेश शनि राहू के साथ सिंह राशि(पुरुष) राशि में हैं और मंगल (पुरुष) से दृष्ट है| राहू और केतु लिंग रहित ग्रह हैं| यहाँ हमने देखा की पंचम-पंचमेश दोनों ओज विषम राशि में हैं| पंचमेश पर मंगल के रूप में एक पुरुषकारक ग्रह की दृष्टि हैं| इस जातक की पहली संतान पुत्र हैं |
पहली संतान पंचम से और दूसरी क्योंकि उसकी अनुज होगी इसलिए दूसरी का विचार पंचम से तीसरे अर्थात सप्तम से होता हैं| नियम उपरोक्त ही रहेंगे परन्तु भाव सप्तम हो जायेगा |दूसरी संतान पर भी इसी तरह विचार करें, सप्तम भाव में कोई ग्रह नही हैं और न ही किसी ग्रह की उसपर दृष्टि है| सप्तम भाव में मेष एक विषम राशि हैं जो पुत्र की सूचक हैं, सप्तमेश मंगल सम(कन्या) राशि में हैं, उस पर शनि की दसवी दृष्टि हैं, जो पुत्री दर्शाती हैं अब यदि निचोड़ देखा जाएँ तो दो प्रभाव पुत्री और केवल एक प्रभाव पुत्र को दर्शाता हैं| जातक की दूसरी संतान पुत्री हैं|


उपरोक्त कुंडली में पंचम भाव में मीन राशि में शुक्र चन्द्र की युति हैं और किसी ग्रह की दृष्टि नहीं हैं| पंचमेश गुरु मेष राशि में हैं और मंगल और शनि दोनों से दृष्ट हैं | अब यदि हम सार देखें तो मीन राशि +शुक्र +चन्द्र +शनि यहाँ ४ प्रभाव पुत्री दर्शाते हैं और (मेष राशि + मंगल की दृष्टि) दो प्रभाव पुत्र के लिए हैं जातक की पहली संतान पुत्री हैं|

इस जातक के पंचम भाव में धनु राशि, ग्रह और दृष्टि दोनों से विहीन हैं, पंचमेश गुरु वृषभ राशि में मंगल से दृष्ट हैं|
सार :- धनु राशि (पुत्र)+ वृषभ राशि(कन्या )+मंगल की दृष्टि (पुत्र)
पुत्र होने की संभावना अधिक आ रही हैं, इस जातक की पहली संतान पुत्र ही हैं|
और दूसरी संतान भी पुत्र ही हैं |
यहाँ संतान पर विचार करते समय हमें यह अवश्य जान लेना चाहिए की कभी गर्भ पात हुआ हैं या नहीं क्योंकि यदि गर्भपात कभी हुआ हैं तो उस भाव को छोड़ कर अगले तीसरे भाव पर जाना चाहिए| उदहारण के लिए प्रथम संतान के बाद गर्भ पात हुआ है तो दूसरी संतान का विचार सप्तम से नही अपितु नवम से करना चाहिए |यदि कुंडली उपलब्ध न हो तो एक और कारगर उपाय हैं जो की ज्योतिष के प्रकांड ज्ञाता स्वर्गीय बी वी रमण की एक पुस्तक में निहित हैं उसके अनुसार जिस समय जातक यह प्रश्न कर रहा हो उस समय की तिथि, वार और गर्भिणी के नामाक्षर का योग कर लें और उस संख्या में २५ और जोड़ कर ९ से भाग दें यदि शेष विषम आयें तो पुत्र और सम आयें तो कन्या होने की सम्भावना हैं |

गंड नक्षत्र पद

गंड नक्षत्र पद
 
बुध और केतु के नक्षत्र गंड मूल नक्षत्र कहलाते हैं, परन्तु इसके साथ साथ कुछ नक्षत्रो के पद अशुभ होते हैं, और उसका प्रभाव अन्य संबंधियो पर भी होता हैं इसकी जानकारी निम्नलिखित है :-
१)       अश्विनी प्रथम पद :- पिता के लिए ३ महीने तक भारी, उपाय :- सोना दान दें |
२)     भरणी :- बालक के लिए भारी २७ दिन तक
३)     रोहिणी :-१) मामा पर भारी २)पिता पर भारी ३) माता पर भारी
४)     पुष्य नक्षत्र लड़के का जन्म दिन में हो हो और कर्क लग्न हो :- पिता पर भारी
५)     पुष्य नक्षत्र कन्या का जन्म रात्रि में हो और कर्क लग्न हो :- माता पर भारी
६)      पुष्य नक्षत्र प्रथम पद :- मामा पर भारी
७)     आश्लेषा  २ पद जातक पर भारी, ३ पद माता पर भारी, ४ पद पिता पर भारी, उपाय :-भोजन का दान देना|
८)     मघा का १ पद पिता पर ५ महीने के लिए भारी, उपाय : घोडा दान दें|
९)      उत्तर फाल्गुनी १ और ४ पद माता पिता और भाई-बहन पर ३ महीने तक भारी|
१०)   चित्रा का १,२ और ३ पद माता पिता और भाई-बहन पर ६ महीने तक भारी| उपाय: वस्त्र दान
११)    विशाखा ४ पद देवर पर भारी |

नीच बुरा नहीं और वक्री उल्टा नहीं

नीच बुरा नहीं और वक्री उल्टा नहीं
मैं वक्री, नीच और अस्‍त ग्रहों के बारे में पहले भी कुछ कुछ लिख चुका हूं, लेकिन इस बार शब्‍दावली के तौर पर एक साथ तीनों बिंदुओं पर यह देना जरूरी समझा। देखिएगा...  
केस – 1
एक जातक ज्‍योतिषी के पास पहुंचता है और अपनी कुण्‍डली दिखाता है। ज्‍योतिषी जातक से कहता है कि आपकी कुण्‍डली कन्‍या लग्‍न की है, लेकिन बुध अस्‍त होने के कारण आप कुछ कर नहीं पा रहे हैं। लग्‍न में बुधादित्‍य (सूर्य और बुध के साथ होने का योग) के बावजूद आपकी कुण्‍डली असरदार नहीं रह गई है। जातक ज्‍योतिषी से इसका उपाय पूछता है। कुण्‍डली के कारक ग्रहों का उपचार बताने के बजाय ज्‍योतिषी जातक को बुध के उपाय बताकर भेज देता है।

केस – 2
पुस्‍तक में पढ़कर अपनी कुण्‍डली का विश्‍लेषण कर रहे व्‍यक्ति को पता चलता है कि शनि के वक्री होने के कारण उसके सारे काम उल्‍टे हो रहे हैं और आने वाली महादशा भी शनि की ही है। इससे परेशान हुआ व्‍यक्ति ज्‍योतिषियों के चक्‍कर निकालने लगता है। वह हर ज्‍योतिषी से यही पूछता है कि वक्री शनि का उपचार क्‍या है। जबकि वास्‍तव में उसकी कुण्‍डली में शनि अकारक है। यानि उसकी जिंदगी में शनि की बजाय अन्‍य ग्रहों का रोल अधिक है।


ऐसे ही कई उद्धरण ज्‍योतिषियों के पास आते हैं और आम लोग भी ग्रहों के अस्‍त या वक्री होने से परेशान नजर आते हैं। ज्‍योतिष की मूल रूप से दो शाखाएं हैं। सिद्धांत और फलित। सिद्धांत शाखा में जहां ज्‍योतिषीय गणनाओं के बारे में विस्‍तार से दिया गया है वहीं फलित ज्‍योतिष में ग्रहों, राशियों और नक्षत्रों का मनुष्‍य के जीवन पर प्रभाव के बारे में विशद वर्णन है। समय के साथ सिद्धांत और फलित शाखाओं में समय के साथ दूरी बनती जा रही है। एक ओर जहां फलित की पुस्‍तकों के ढेर लग रहे हैं वहीं सिद्धांत ज्‍योतिष उपेक्षित होती जा रही है। इसी का नतीजा है कि सिद्धांत में दिए गए शब्‍दों को फलित ज्‍योतिष में भली भांति समझे जाने के बजाय उनके सामान्‍य शब्‍दों के अनुरूप ही अर्थ निकाले जाने लगे हैं। पहले पहल नौसिखिए ज्‍योतिषियों ने इन शब्‍दों के शाब्दिक अर्थों का प्रयोग किया, बाद में तो कई पुस्‍तकों तक में इन शब्‍दों के गलत अर्थ आ गए। इससे आम लोगों में भी ज्‍योतिषीय शब्‍दों को लेकर भ्रांतियां बढ़ती जा रही हैं। वास्‍तव में शब्‍दों के अर्थ समझना विषय को समझने से पहले जरूरी है।

वक्री और मार्गी का असर

सिद्धांत ज्‍योतिष में स्‍पष्‍ट किया गया है कि वक्री क्‍या होता है। हम सामान्‍य विज्ञान के दृष्टिकोण से देखें तो पता चलेगा कि सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर दीर्धवृत्ताकार कक्षा में चक्‍कर लगा रहे हैं। चूंकि पृथ्‍वी भी सूर्य के चारों ओर चक्‍कर लगा रही है, अत: सापेक्ष गति के कारण ऐसा दिखाई देता है। अगर सौर मण्‍डल में ग्रहों का मार्ग पूर्णत: वृत्ताकार होता तो कभी कोई ग्रह वक्री या मार्गी नहीं होता, लेकिन दीर्धवृत्ताकार चक्‍कर निकालने के कारण पृथ्‍वी से देखे जाने पर ये ग्रह कभी अधिक तेज गति से चलते हुए तो कभी धीमी रफ्तार से चलते हुए दिखाई देते हैं। वास्‍तव में कोई भी ग्रह उल्‍टी चाल से नहीं चलता है। सिद्धांत ज्‍योतिष ने यह तो स्‍पष्‍ट कर दिया कि कब ग्रह की मार्गी गति होती, कब अतिचाल होगी और कब वक्री गति होगी, लेकिन फलित ज्‍योतिष में इसके असर के बारे में स्‍पष्‍ट नहीं किया गया है कि ग्रहों की इस चाल का से क्‍या और क्‍यों असर में बदलाव आता है। इसका एक सिद्धांत यह भी बताया जाता है कि ग्रह के वक्री होने पर वह किसी राशि विशेष में अधिक समय तक ठहरकर सूर्य और अन्‍य नक्षत्रों से मिली राशियों को पृथ्‍वी की ओर भेजता है। इससे वक्री ग्रह का प्रभाव सामान्‍य के बजाय उच्‍च की भांति हो जाता है। वहीं दूसरी ओर अतिचाल के कारण ग्रह कम समय के लिए राशि में ठहरता है और नक्षत्रों से मिली रश्मियों को अपेक्षाकृत कम समय के लिए जातक की ओर भेजता है। ऐसे में उसका प्रभाव नीच की भांति हो जाता है।

प्रकृति में नहीं होता बदलाव

फलित ज्‍योतिष में हर ग्रह और राशि (नक्षत्रों के समूह) की प्रकृति के बारे में विस्‍तार से जानकारी दी गई है। ग्रहों के रंग, दिशा, स्‍त्री-पुरुष भेद, तत्‍व और धातु के अलावा राशियों के गुणों के बारे में भी बताया गया है। ग्रहों और राशियों की प्रकृति स्‍थाई होती है। इनके प्रभाव में कमी या बढ़ोतरी हो सकती है, लेकिन मूल प्रकृति में कभी बदलाव नहीं होता। जब कोई ग्रह अपनी नीच राशि में जाता है तो यह माना जाता है कि इस राशि में ग्रह का प्रभाव अपेक्षाकृत कम होता है और उच्‍च राशि में अपना सर्वाधिक प्रभाव देता है। सूर्य मेष राशि में, चंद्रमा वृष में, बुध कन्‍या में, शनि तुला में, मंगल मकर में, गुरु कर्क में और शुक्र मीन राशि में उच्‍च का होता है। इसका तात्‍पर्य यह हुआ कि इन राशियों में ग्रहों का प्रभाव अधिक होगा। दूसरी ओर सूर्य तुला में, चंद्रमा वृश्चिक में, बुध मीन में, शनि मेष में, मंगल कर्क में, गुरु मकर में और शुक्र कन्‍या राशि में नीच का प्रभाव देते हैं। यहां इन ग्रहों का प्रभाव सबसे कम होता है। अब प्रभावों में बढ़ोतरी हो या कमी, न तो ग्रह की और न ही राशि की प्रकृति में कोई बदलाव आता है। ऐसे में किसी ग्रह के नीच या उच्‍च होने पर उसके प्रभाव को नीच या उच्‍च नहीं कहा जा सकता है।

ग्रहों की बत्ती नहीं बुझती

ज्‍योतिष में सौरमण्‍डल के अन्‍य ग्रहों के साथ सूर्य को भी एक ग्रह मान लिया गया है, लेकिन वास्‍तव में सूर्य ग्रह न होकर एक तारा है। ग्रह जहां सूर्य की रोशनी से चमकते हैं वहीं सूर्य खुद की रोशनी से दमकता है। पृथ्‍वी से परीक्षण के दौरान हम देखते हैं कि कई बार ग्रह सूर्य के बहुत करीब आ जाते हैं। किसी भी ग्रह के सूर्य के करीब आने पर ज्‍योतिष में उसे अस्‍त मान लिया जाता है। आमतौर पर दस डिग्री से घेरे में सभी ग्रह अस्‍त रहते हैं। सिद्धांत ज्‍योतिष के अस्‍त के कथन को भी फलित ज्‍योतिष में गलत तरीके से लिया जाने लगा है। अस्‍त ग्रह के लिए यह मान लिया जाता है कि अमुक ग्रह ने अपना प्रभाव खो दिया, लेकिन वास्‍तव में ऐसा नहीं होता। ग्रह खुद की किरणें भेजने के बजाय नक्षत्रों से मिली किरणें जातकों तक भेजते हैं। बुध और शुक्र सूर्य के सबसे करीबी ग्रह हैं। छोटे कक्ष में लगातार चक्‍कर लगा रहे ये ग्रह सर्वाधिक अस्‍त होते हैं। अन्‍य ग्रह भी समय समय पर अस्‍त और उदय होते रहते हैं। फलित ज्‍योतिष के अनुसार इन ग्रहों के अस्‍त होने का वास्‍तविक अर्थ यह है कि नक्षत्रों (तारों के समूह) से मिल रहे किरणों के प्रभाव को अब ग्रह सीधा भेजने के बजाय सूर्य के प्रभाव के साथ मिलाकर भेज रहे हैं। ऐसे में ग्रह का प्रभाव यथावत तो रहेगा ही उसमें सूर्य का प्रभाव भी आ मिलेगा। इसी वजह से तो बुधादित्‍य के योग को हमेशा बेहतरीन माना गया है।    - एस. जोशी

Friday, May 20, 2011

किस करियर में मिलगी सक्सेस, जानें कुंडली से

किस करियर में मिलगी सक्सेस, जानें कुंडली से

वर्तमान समय में युवाओं के सामने सबसे बड़ी समस्या करियर बनाने की होती है। युवाओं के सामने इतने विकल्प होते हैं कि वह यह समझ ही नहीं पाते कौन से क्षेत्र में अपना करियर संवारें। ऐसे में जन्मकुंडली देखकर यह जाना जा सकता है कि कौन सा क्षेत्र उसके करियर के लिए उपयुक्त है। जन्मकुंडली का नवम भाव त्रिकोण स्थान है, जिसके कारक देवगुरु बृहस्पति हैं। यह भाव शिक्षा में महत्वकांक्षा और उच्चशिक्षा को दर्शाता है।

गणित- गणित के कारक ग्रह बुध का संबंध यदि जातक के लग्न, लग्नेश अथवा लग्न नक्षत्र से होता है तो जातक गणित विषय में सफल होता है जैसे- बैंक, अकाउंट्स व सीए आदि।


जीवविज्ञान- सूर्य का जलीय तत्व की राशि में स्थित होना, षष्ट और दशम भाव-भावेश के बीच संबंध, सूर्य और मंगल का संबंध आदि चिकित्सा क्षेत्र में पढ़ाई के कारक होते हैं। लग्न-लग्नेश और दशम-दशमेश का संबंध अश्विनी, मघा अथवा मूल नक्षत्र से हो तो चिकित्सा क्षेत्र में सफलता मिलती है।


कला- पंचम-पंचमेश और इस भाव के कारक गुरु का पीडि़त होना कला के क्षेत्र में पढ़ाई में बाधक होता है। इन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पढ़ाई पूरी करवाने में सक्षम होती है।


वाणिज्य- कुंडली में लग्न-लग्नेश का संबंध बुध के साथ-साथ गुरु से भी हो तो जातक वाणिज्य विषय की पढ़ाई सफलतापूर्वक करता है।


इंजीनियरिंग- जन्म, नवांश अथवा चंद्रलग्न से मंगल चतुर्थ स्थान में हो अथवा चतुर्थेश मंगल की राशि में स्थित हो तो जातक इंजीनियर की पढ़ाई करता है। साथ ही यदि मंगल की चतुर्थ भाव अथवा चतुर्थेश पर दृष्टि हो अथवा चतुर्थेश के साथ युति हो तो भी जातक इसी क्षेत्र में अपना करियर बना
ता है।

किस दिशा में चमकेगी आपकी किस्मत?

किस दिशा में चमकेगी आपकी किस्मत?


कई बार हम देखते है कि कुछ लोग दिन रात मेहनत करते हैं फिर भी उन्हे अपनी मेहनत के अनुसार किए गए काम के परिणाम नही मिलते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उनकी किस्मत साथ नही देती। लेकिन जब वो अपने बिजनेस या नौकरी दिशा बदलकर या स्थान बदलकर काम करने लगते हैं तो उनकी किस्मत बदल जाती है उन्हे आसनी से सफलता मिलने लगती है। अगर आप भी चाहते हैं कि आपकी किस्मत आपके साथ हो तो अपने मूलांक के अनुसार अपने काम की दिशा चुनें।



मूलांक 1- अगर आपकी जन्म दिनांक 1, 10, 19 और 28 है तो आपको दक्षिण-पूर्व दिशा में सफलता मिलेगी।

मूलांक 2- 2, 11, 20 और 29 तारीख को जन्म लेने वाले लोगों को उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम दिशा में सफलता मिलने के योग बनते हैं।

मूलांक 3- 3, 12, 21 और 30 तारीख वाले लोगों को दक्षिण पश्चिम और दक्षिण-पूर्व दिशा में सफलता मिलती है।

मूलांक 4- 4 ,13, 22, 31 तारीख वाले जातकों की सफलता की दिशा दक्षिण और दक्षिण पूर्व होती है।

मूलांक 5- उत्तर-पूर्व अथवा दक्षिण पश्चिम दिशा 5,14,और 23 तारीख वाले जातकों को सफलता देने वाली होती है।

मूलांक6- जिनका जन्म 6,15,24, तारीख को हुआ है उनकी किस्मत पश्चिम या उत्तर पश्चिम दिशा में चमक सकती है।

मूलांक 7- 7,16,25, तारीख को जन्में जातकों की सफलता की दिशा पश्चिम, दक्षिण-पश्चिम या पूर्व होती है।

मूलांक 8- पश्चिम और दक्षिण पश्चिम दिशा 8,17,26, तारिख को जन्म लेने वाले लोगों के लिए सफलता देने वाली दिशा होती है।

मूलांक 9- ऐसे लोग जिनका जन्म किसी भी महीने की 9,18 या 27 तारिख को हुआ है उन लोगों के लिए पूर्व या दक्षिण दिशा अनुकूल होती है।

एक्सीडेंट और अनहोनी से बचाते हैं ऐसे गाड़ी नंबर

 एक्सीडेंट और अनहोनी से बचाते हैं ऐसे गाड़ी नंबर
अगर आप एक्सीडेंट और अनहोनी से बचना चाहते हैं तो आपको अपने व्हीकल के नंबर पर ध्यान जरूर देना चाहिए। ऐसा देखने में आता है कि कई लोग जो सावधानी से ड्राइव करते हैं फिर भी दूसरे की गलती और असावधानी के कारण एक्सीडेंट हो जाता है। ऐसा भी होता है कि आप अपने व्हीकल पर बहुत खर्चा कर देते हैं फिर भी आपका वाहन साथ नही देता, उसमें कुछ न कुछ खराबी जरूर आ जाती है।

अगर आप अपनी गाड़ी का नंबर अंक ज्योतिष के अनुसार रखें तो ऐसी परेशानियों से बच जाएंगे और भविष्य में होने वाली दुर्घटनाएं भी टल जाएगी। जानिए अंकज्यातिष के अनुसार कैसा होना चाहिए आपका गाड़ी नंबर.. 



अंक- 1 अगर आपकी जन्म दिनांक 1,10,19,और 28 है तो इस अंक वालों को अपने व्हिकल के नंबर ऐसे रखना चाहिए जिनका का कुल योग 1, 2, 4 या 7 आता हो।

अंक- 2 2,11,20, और 29 तारीख को जन्म लेने वाले लोगों के लिए वो वाहन अनुकूल है जिनके नंबर का कुल योग 1, 2, 4 या 7 हो।

अंक-3 जिन नंबर का कुल योग 3,6, या 9 होता है ऐसे नंबर 3,12,21 और 30 तारीख को जन्में लोगों के लिए भाग्यशाली होते हैं।

अंक-4 4,13,22, 31 तारीख वाले जातकों  इस अंक वालों की गाड़ी नंबर का कुल योग 1, 2, 4 या 7 होना चाहिए।

अंक-5 5,14,और 23 तारीख वाले जातकों को अपना गाड़ी नंबर ऐसा रखना चाहिए जिसका कुल योग 5 हो।

अंक-6  जिनका जन्म 6,15,24, तारीख को हुआ है उन्हे अपने मूलांक 6 के अनुसार ऐसा गाड़ी नंबर रखना चाहिए जिसका का कुल योग 3, 6, या 9 आता हो।

अंक -7 7,16,25, तारीख को जन्में लोग अपनी गाड़ी नंबर ऐसा रखें जिसका कुल योग 1, 2, 4 या 7 हो।

अंक-8 8,17,26, तारिख को जन्म लेने वाले लोग अपना गाड़ी नंबर का कुल योग 8 रखें ।

अंक-9  ऐसे लोग जिनका जन्म किसी भी महीने की 9,18 या 27 तारिख को हुआ है वो लोग मूलांक 9 के अनुसार अपनी गाड़ी के नंबर का कुल योग 9, 3, या 6 रखें तो उन्हे अच्छा लाभ मिलता है।

Saturday, May 7, 2011

ग्रहों का उपाय और इलाज

ग्रहों का उपाय और इलाज 
पहले घर मे़ बृ्हस्पति शुभ फल देने वाला माना गया है परन्तु सातवां घर खाली होने के कारण बृ्हस्पति शुभ होते हुए भी निष्फल होगा अब ऎसे में शादी होने पर सातवें घर में शुक्र कायम होगा और उसके बाद यह ग्रह अपना शुभ फल देने लगेगा.
बृ्हस्पति के सामने घर में शुक्र को स्थापित करके बृ्हस्पति शुक्र दो ग्रहों को मिलाकर बृ्हस्पति का उत्तम फल लेने के लिए कर्म करने की विधि बतलाई गई तो, बृ्ह्स्पति के दसवें घर मे़ होने पर जातक को शनि की तरह चौकन्ना रहने और काम करने की सलाह दी गई है. आठवें और बारहवें घर के मन्दे ग्रहों को अलग अलग रखने के लिए मन्दिर में न जाने की सलाह दी गई हो या सुझाव दिया गया हो तो इसी को उपाय कहा जाएगा और जो दो ग्रह मिलकर मन्दा प्रभाव देते हो उनका कर्म द्वारा अलग करने या अलग अलग रखने का नाम भी उपाय है
दो ग्रहों की आपसी मिलाप से शुभ या अशुभ फल सामने आते है. इसलिए दो ग्रहों को मिलन से रोककर या दो या दो ग्रहों को आपस में मिलाकर ग्रहों के मन्दे प्रभाव से बचने का उपाय अनुष्ठान या ईलाज कुछ भी कहा जा सकता है.
ग्रहों को अनुकूल बनाने के उपाय
ज्योतिष शास्त्र के सिद्दान्त के अनुसार ग्रह अपने फल देते है. उनके लए कोई उपाय शास्त्र में नहीं बताए गये है किन्तु यदि ग्रह -राशि की संदेहास्पद स्थिति हो तो उनके उपाय करने के विधान शास्त्र सम्मत माने जाते है. यहां ग्रहों को अनुकूल बनाकर उनसे सहयोग लेने के उपाय बताए जा रहे है- - राहु केतु  एवं शनि पापी ग्रह है जो प्राय: विश्वासघात करते है. इनके विश्वासघत का कारण इनके ही पाप माने जाते हैं. राहु के अशुभ प्रभाब को केतु के उपाय से दूर किया जा सकता है, जबकी केतु की अनिष्ठता राहु के उपाय से दूर की जा सकती है.- पापी ग्रहो़ से सम्बन्धित वस्तुओं या प्राणिओं को पास रखने पालने एवं उनके आशीर्वाद से या उनसे क्षमा मांगने से अनुकूलता प्राप्त होती है.- आर्थिक नुकासन से बचने एवं शनि की अनिष्टता को दूर करने के लिए रोज कौओं को रोटी खिलाएं.- यदि सन्तान बाधा हो तो कुत्तों को रोटी खिलाने से और सोना दुध में बुझाकर पीने से सन्तान उत्पन्न होगी.-हर ग्रह की अशुभता के पीछे दो ग्रहो का हाथ रहता है. इन दो ग्रहों में से किसी एक ग्रह की अशुभता दूर करने पर शुभ फल प्राप्त होता है. जो ग्रह पापी ग्रह  की अशुभता दूर करने में सक्षम हो, उसका प्रभाव बढाना चाहिए. शनि अशुभ हो तो उसकी अशुभता की पीछे शुक्र और बृ्हस्पति का हाथ रहता है. इनमें से बृ्हस्पति को अलग करने के लिए बुध के प्रभाब को बढाना होगा. शुक्र-बुध के एक होने से शनि शुभ फल प्रदान करेगा.- अशुभ मंगल  का प्रभाव मृ्ग चर्म के उपयोग से कम होता है. बडे़ तवे पर गुड की रोटी बनाकर लोगों को खिलाने से अशुभ मंगल का प्रभाव कम होता है.- बुध, शुक्र एवं शनि के अशुभ प्रभावों को दूर करने का आसान उपाय है- गौ ग्रास. रोज भोजन करते समय परोसी गयी थाली में से एक हिस्सा गाय को, एक हिस्सा कुत्ते को एवं एक हिस्सा कौए को खिलाएं.-राहु का अशुभ प्रभाब दूर करने के लिए घास या किसी अनाज-बाजरा, ज्वार या गेहुं को जमीन पर रखकर उस पर वजनी चीज रखें. जौ को दुध से धोकर बहते पानी मे़ प्रवाहित करे.- यदि तपेदिक जैसी जानलेवा बीमारी के कारण ज्वर च़ढ जाए तो जौ को गाय के मूत्र मे़ भिगोकर नए कपडे़ में बांध कर घर में ऊंची जगह पर टांग दें. रोगी रोज गौ- मूत्र से अपने दांत साफ करे.ग्रहों से सम्बन्धित चीजें घर में अधिक रखने से संबन्धित ग्रह का दुष्प्रभाव दूर हो जाता है. - अगर पुत्री के कारण पिता को कष्ट होता है तो पुत्री के गले मे़ तांबे का चौरस टुकडा़ बांधे.- अगर मंगल 1, 2, 3, 8 घर मे बैठा हो तो मंगल का उपाय न करके बुध का उपाय करना चाहिए. 
आजमाए हुए उपाय
यदि उपरोक्त उपाय कारगर न हो तो निम्न उपाय करने से तुरंत अनुकूल फल प्राप्त होता है, ये उपाय आजमाए हुए है. कोई भी उपाय कम से कम 40 दिन और अधिक-से-अधिक 43 दिन तक करें अगर ये उपाय रोज न हो सके तो प्रत्यक आठवें दिन अवश्य करना चाहिए. उपाय पूर्ण होने से पहले यदि कोई व्यवधान या विघ्न आ जाए तो नए सिरे से पुन: करे. अगर अपरिहार्य कारणो से उपायों का क्रम टूट जाए तो चावल दुध में और केसर पान में रखे. इससे पू्र्व समय में किए गए उपाय व्यर्थ नहीं जाते. उपाय किसी भी दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक ही करने चाहिए. ग्रहों के अनुसार ये उपाय निम्न है -सूर्य  - बहते पानी में गुड़ प्रवाहित करे.चन्द्र - दूध या पानी से भरा बर्तन रात को सिरहाने रखें. सुबह उस दुध या पानी से बबुल के पेड़ की जड़ सींचे.मंगल - मंगल शुभ हो तो मिठाई या मीठा भोजन दान करे. बतासे बहते पानी में प्रवाहित करे. मंगल अशुभ हो तो बहते पानी में तिल और गुड़ से बनी रेवाडि़यां प्रवाहित करे. बुध  - तांबे के पत्तर मे़ छेद करके उसे बहते पानी में प्रवाहित करें.बृ्हस्पति  - केसर का सेवन करें. उसे नाभि या जीभ पर लगाएं.शुक्र  - गो - दान करें. ज्वारा या चने का चारा दान करे.शनि  - किसी बर्तन में तेल लेकर उसमे अपना प्रतिबिम्ब देखें और बर्तन तेल के साथ दान करे. बर्तन कांसे का हो तो शीघ्र फलदायी होता है.राहु  - मूली की तरकारी का दान करें. मूली के पत्ते निकाल लें.केतु  - कुत्ते को मीठा रोटी खिलाएं.
विवाह के समय / पूर्व अशुभ ग्रहों के उपाय 
विवाह के समय या विवाह के पूर्व अशुभ ग्रहों का उपाय (Remedies for malefic planets before and after marriage) कर लेना अनिवार्य होता है. खासकर पुरुषों को तो ये उपाय अवश्य ही करने चाहिए, क्योंकि विवाह के बाद पुरुष के ग्रहों का सम्पूर्ण प्रभाव स्त्री पर पड़ता है. अशुभ ग्रह से मुक्ति पाने और संन्तान प्राप्ति के लिए सम्बन्धित ग्रहों से बचाव करना चाहिए. ग्रहों की अनुसार ये उपाय निम्न है:- - सूर्य के लिए गेहूँ और तांबे का बर्तन दान करें.- चन्द्र के लिए चावल, दुध एवं चान्दी के वस्तुएं दान करें.- मंगल के लिए साबुत, मसूर की दाल दान करें- बुध के लिए साबुत मूंग का दान करें.- बृ्हस्पति के लिए चने की दाल एवं सोने की वस्तु दान करें.- शुक्र के लिए दही, घी, कपूर या मोती में से किसी एक बस्तु दान करें. - शनि के लिए काले साबुत उड़द एवं लोहे की वस्तु का दान करें.- राहु के लिए सरसों एबं गोमेद का दान करें.- केतु के लिए तिल का दान करें. 
उपाय करने के बिशेष नियम
1) सभी उपाय दिन के समय करें.2) आमतौर पर एक उपाय 40 या 43 दिन तक करना चाहिए.3) एक दिन में केवल एक ही उपाय करें.4) किसी के लिए उसका खून का रिश्तेदार भी उसका उपाय कर सकता है.

अगर शनि नाराज है आपसे....


अगर शनि नाराज है आपसे....


हर दिन हमसे कई लोग मिलते हैं, कुछ लोगों से अच्छे से बात होती है तो कुछ से वाद-विवाद भी हो जाता है। यह एक सामान्य सी बात है लेकिन यदि कोई काला व्यक्ति (जिस व्यक्ति का रंग काला हो) आपको बार-बार परेशान करता है, उसकी वजह से अक्सर कोई न कोई समस्या झेलनी पड़ती है तो समझ लें कि शनिदेव आपसे नाराज हैं।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नौ ग्रह बताए गए हैं जो कि हमारी कुंडली में अलग-अलग स्थितियों के अनुसार जीवन प्रभावित करते हैं। इन्हीं ग्रहों में से एक है शनि। शनि को न्याय का देवता माना जाता है कि जो कि हमें हमारे कर्मों के अनुसार शुभ-अशुभ फल प्रदान करता है। बुरे कर्मों का बुर फल यानि परेशानियां, असफलता, बीमारी आदि झेलना पड़ता है। वहीं अच्छे कर्मों का अच्छा फल प्राप्त होता

है। यदि किसी व्यक्ति से जाने-अनजाने कोई बुरा कर्म हो गया है, किसी निर्दोष गरीब व्यक्ति को आपकी वजह से कोई परेशानी उठानी पड़ी है या कोई नुकसान हुआ है, उसने कोई अधार्मिक कृत्य कर दिया है या माता-पिता को कष्ट दिए है तो शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या में शनिदेव का प्रकोप झेलना पड़ेगा। यदि किसी को कोई काला व्यक्ति परेशान कर रहा है या उसकी वजह से किसी प्रकार का नुकसान हो रहा है तो इसका मतलब यही है कि शनि देव का प्रकोप झेलना पड़ रहा है। शनि को श्याम वर्ण माना जाता है अर्थात् शनि देव स्वयं काले रंग के हैं और वे काले रंग के लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसी वजह से वे साढ़ेसाती या ढैय्या में इसी तरह से शुभ-अशुभ फल प्रदान करते हैं।

कैसे दूर करें शनि के कुप्रभाव

- प्रति शनिवार तेल में अपना चेहरा देखकर किसी गरीब को तेल दान करें।

- हर शनिवार को काली वस्तुओं का दान करें। जैसे काले तिल, काले वस्त्र, काला कंबल, काला कपड़ा, काली छतरी का दान करें।

- प्रतिदिन हनुमान चालिसा का पाठ करें।

- हनुमानजी को सिंदूर और चमेली का तेल अर्पित करें।

- शनिदेव को तेल चढ़ाएं।

ग्लैमर, सुख और सुविधाएं चाहिए तो ऐसे मनाएं शुक्र को...

शुक्र का कुंङली में अच्छे स्थान पर होना ग्लैमर, वैभव और सुख देता है। शुक्र अगर अच्छे स्थान पर न हो तो आदमी को इन सभी का सुख नहीं मिलता। आज सभी अपनी जिंदगी में सारे सुख-साधन और सुविधाएं चाहते हैं।

शुक्र ऐसा ग्रह है जिसको सब अपनी पत्रिका में अनुकूल चाहते हैं। शुक्र वैभव, पत्नी, अच्छी संतान, ग्लैमर, सुख का दाता है लेकिन यदि शुक्र जन्म पत्रिका में असामान्य हो तो जातक इन सब से वंचित हो जाता है।

शुक्र यदि शुक्र के साथ युति करता हो तो उसको केवल अपनी ही स्त्री से लाभ होता हैं। अन्य स्त्री चाहे वह स्वच्छंद स्वभाव की क्यों न हो, उस पर नजर डालने से जातक को मानहानि का सामना करना पडता हैं।

केवल सदाचरण ही उसे सम्मान दिलाता हैं। शुक्र शत्रु या नीच राशि में स्थित हो जाए तो जातक को सम्मान की प्राप्ति नहीं होती। उसके किए कार्यो को भी रिस्पांस नहीं मिलता चाहे वह कितना भी अच्छा हो या मेहनत से किया गया हो।

शुक्र की अनुकूलता के लिए क्या करें?

- सबसे सामान्य व्यवहार करें।

- सदाचार का पालन करें।

- शुक्र का दान करें।

- सफेद वस्त्रों का ज्यादा उपयोग करें।

- गाय छोड़कर कोई जानवर घर में न पालें।

वास्तुदोष दूर करें और हो जाएगी शादी

वास्तुदोष दूर करें और हो जाएगी शादी


क्या विवाह योग्य युवाओं का विवाह नहीं हो रहा है? यदि उनका ज्योतिष और व्यवहारिक पक्ष दोनों उत्तम है फिर भी विवाह में अड़चन आ रही है तो कहीं वास्तुदोष तो कारण नहीं है?

यहां वास्तु संबंधी कुछ उपाय बताए जा रहे हैं जिनका प्रयोग करने पर शीघ्र विवाह के योग बन सकते हैं-

- विवाह योग्य युवाओं का कमरा उत्तर दिशा या उत्तर-पूर्व दिशा या उत्तर पश्चिम दिशा में होना चाहिए।

- सोते समय युवाओं को पैर उत्तर की ओर तथा सिर दक्षिण की ओर रखना चाहिए।

- अविवाहितों के कमरे का रंग गुलाबी, पीला या सफेद होना चाहिए।

- युवाओं के कमरे में एक से अधिक दरवाजे होने चाहिए।

- विवाह योग्य लड़के-लड़कियां अधूरे बने कमरे में बिलकुल ना रहें।

- लड़के-लड़कियों के कमरे में काले रंग की कोई वस्तु ना रखें।

- कमरे में बीम लटका हुआ दिखाई नहीं देना चाहिए।

- कमरे की पूर्व-उत्तर दिशा में पानी का फव्वारा रखें।

- कक्ष की उत्तर दिशा में क्रिस्टल बॉल, कांच की प्लेट रखें।

- मांगलिक व्यक्ति को अपने कक्ष के दरवाजे का रंग लाल या गुलाबी रखना चाहिए। क्योंकि लाल रंग मंगलदेव का पसंदीदा रंग है।

- विवाह योग्य व्यक्ति का कमरा दक्षिण या दक्षिण पश्चिम दिशा में नहीं होना चाहिए।

- कमरे में कोई भी खाली बर्तन ना रखे।

- अविवाहित व्यक्ति के पलंग के नीचे कोई भी भारी वस्तु या लोहे की वस्तु कतई ना रखें।

वास्तु संबंधी अन्य जिज्ञाओं को शांत करने के लिए यहां दिए गए रिलेटेट आर्टिकल्स, पाठकों की पसंद वाले  आर्टिकल्स या अभी-अभी वाले टेग पर क्लिक करें।

गर्दन भी खोलती है व्यक्तित्व के गहरे राज...


गर्दन भी खोलती है व्यक्तित्व के गहरे राज...

शरीर का हर हिस्सा वास्तव में हमारे व्यक्तित्व का आईना होता है। कोई लाख अपनी पहचान छिपाने की कोशिश करे लेकिन शरीर की बनावट से उसके बारे में वो सब जाना जा सकता है जो हम जानना चाहते हैं।गर्दन शरीर का वह हिस्सा है जिस पर मनुष्य का सिर टिका होता है और मस्तिष्क से निकलकर सभी अंगों में पहुंचने वाली नसें और नाडिय़ां इसी से होकर गुजरती हैं। प्राय: निम्न प्रकार की गर्दन होती हैं-

सीधी गर्दन- सीधी गर्दन वाले जातक स्वाभिमानी, समय के पाबंद, वचनबद्ध एवं सिद्धांतप्रिय होते हैं।

लंबी गर्दन- अगर गर्दन सामान्य से अधिक बड़ी हो तो ऐसे जातक बातूनी, मंदबुद्धि, अस्थिर, निराश और चापलूस होता है। यह अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने की आदत से लाचार भी होता है।

छोटी गर्दन- अगर गर्दन सामान्य आकार से छोटी होती है तो ऐसे जातक कम बोलने वाले, मेहनती, हितसाधक मगर धूर्त, कंजूस, अविश्वसनीय व घमण्डी होते हैं।

मोटी गर्दन- ऐसे जातक भ्रष्ट चरित्र, व्यसनी, शराबी, दु:स्साहसी, क्रोधी, अहंकारी, उन्मादी तथा अधिक आक्रामक होते हैं।

सूखी गर्दन- ऐसी गर्दन में मांस कम होता है तथा नसें स्पष्ट दिखाई देती हैं। ऐसे जातक सुस्त, कम महत्वाकांक्षी, सदैव रोगी रहने वाला, आलसी, क्रोधी, विवेकहीन और हर कार्य में असफल होते हैं।

ऊंट जैसी गर्दन- ऐसी गर्दन पतली व ऊंची होती है। ऐसे जातक आमतौर पर सहनशील, अदूरदर्शी व परिश्रमप्रिय होते हैं। कुछ लोग धूर्त भी होते हैं।

आदर्श गर्दन- ऐसी गर्दन पारदर्शी व सुराहीदार होती है, जो आमतौर पर महिलाओं में पाई जाती है। ऐसी गर्दन कलाप्रिय, कोमल, ऐश्वर्य और भोग की परिचायक होती है। ऐसे जातक सुख व वैभव का जीवन जीते हैं।