Wednesday, September 25, 2013

सुख-समृद्धि

सुख-समृद्धि॰

यदि परिश्रम के पश्चात् भी कारोबार ठप्प हो, या धन आकर खर्च हो जाता हो तो यह टोटका काम में लें। किसी गुरू पुष्य योग और शुभ चन्द्रमा के दिन प्रात: हरे रंग के कपड़े की छोटी थैली तैयार करें। श्री गणेश के चित्र अथवा मूर्ति के आगे “संकटनाशन गणेश स्तोत्र´´ के 11 पाठ करें। तत्पश्चात् इस थैली में 7 मूंग, 10 ग्राम साबुत धनिया, एक पंचमुखी रूद्राक्ष, एक चांदी का रूपया या 2 सुपारी, 2 हल्दी की गांठ रख कर दाहिने मुख के गणेश जी को शुद्ध घी के मोदक का भोग लगाएं। फिर यह थैली तिजोरी या कैश बॉक्स में रख दें। गरीबों और ब्राह्मणों को दान करते रहे। आर्थिक स्थिति में शीघ्र सुधार आएगा। 1 साल बाद नयी थैली बना कर बदलते रहें।
2॰ किसी के प्रत्येक शुभ कार्य में बाधा आती हो या विलम्ब होता हो तो रविवार को भैरों जी के मंदिर में सिंदूर का चोला चढ़ा कर “बटुक भैरव स्तोत्र´´ का एक पाठ कर के गौ, कौओं और काले कुत्तों को उनकी रूचि का पदार्थ खिलाना चाहिए। ऐसा वर्ष में 4-5 बार करने से कार्य बाधाएं नष्ट हो जाएंगी।
3॰ रूके हुए कार्यों की सिद्धि के लिए यह प्रयोग बहुत ही लाभदायक है। गणेश चतुर्थी को गणेश जी का ऐसा चित्र घर या दुकान पर लगाएं, जिसमें उनकी सूंड दायीं ओर मुड़ी हुई हो। इसकी आराधना करें। इसके आगे लौंग तथा सुपारी रखें। जब भी कहीं काम पर जाना हो, तो एक लौंग तथा सुपारी को साथ ले कर जाएं, तो काम सिद्ध होगा। लौंग को चूसें तथा सुपारी को वापस ला कर गणेश जी के आगे रख दें तथा जाते हुए कहें `जय गणेश काटो कलेश´।
4॰ सरकारी या निजी रोजगार क्षेत्र में परिश्रम के उपरांत भी सफलता नहीं मिल रही हो, तो नियमपूर्वक किये गये विष्णु यज्ञ की विभूति ले कर, अपने पितरों की `कुशा´ की मूर्ति बना कर, गंगाजल से स्नान करायें तथा यज्ञ विभूति लगा कर, कुछ भोग लगा दें और उनसे कार्य की सफलता हेतु कृपा करने की प्रार्थना करें। किसी धार्मिक ग्रंथ का एक अध्याय पढ़ कर, उस कुशा की मूर्ति को पवित्र नदी या सरोवर में प्रवाहित कर दें। सफलता अवश्य मिलेगी। सफलता के पश्चात् किसी शुभ कार्य में दानादि दें।
7॰ किसी शनिवार को, यदि उस दिन `सर्वार्थ सिद्धि योग’ हो तो अति उत्तम सांयकाल अपनी लम्बाई के बराबर लाल रेशमी सूत नाप लें। फिर एक पत्ता बरगद का तोड़ें। उसे स्वच्छ जल से धोकर पोंछ लें। तब पत्ते पर अपनी कामना रुपी नापा हुआ लाल रेशमी सूत लपेट दें और पत्ते को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। इस प्रयोग से सभी प्रकार की बाधाएँ दूर होती हैं और कामनाओं की पूर्ति होती है।
८॰ रविवार पुष्य नक्षत्र में एक कौआ अथवा काला कुत्ता पकड़े। उसके दाएँ पैर का नाखून काटें। इस नाखून को ताबीज में भरकर, धूपदीपादि से पूजन कर धारण करें। इससे आर्थिक बाधा दूर होती है। कौए या काले कुत्ते दोनों में से किसी एक का नाखून लें। दोनों का एक साथ प्रयोग न करें।
9॰ प्रत्येक प्रकार के संकट निवारण के लिये भगवान गणेश की मूर्ति पर कम से कम 21 दिन तक थोड़ी-थोड़ी जावित्री चढ़ावे और रात को सोते समय थोड़ी जावित्री खाकर सोवे। यह प्रयोग 21, 42, 64 या 84 दिनों तक करें।
10॰ अक्सर सुनने में आता है कि घर में कमाई तो बहुत है, किन्तु पैसा नहीं टिकता, तो यह प्रयोग करें। जब आटा पिसवाने जाते हैं तो उससे पहले थोड़े से गेंहू में 11 पत्ते तुलसी तथा 2 दाने केसर के डाल कर मिला लें तथा अब इसको बाकी गेंहू में मिला कर पिसवा लें। यह क्रिया सोमवार और शनिवार को करें। फिर घर में धन की कमी नहीं रहेगी।
11॰ आटा पिसते समय उसमें 100 ग्राम काले चने भी पिसने के लियें डाल दिया करें तथा केवल शनिवार को ही आटा पिसवाने का नियम बना लें।
12॰ शनिवार को खाने में किसी भी रूप में काला चना अवश्य ले लिया करें।
13॰ अगर पर्याप्त धर्नाजन के पश्चात् भी धन संचय नहीं हो रहा हो, तो काले कुत्ते को प्रत्येक शनिवार को कड़वे तेल (सरसों के तेल) से चुपड़ी रोटी खिलाएँ।
14॰ संध्या समय सोना, पढ़ना और भोजन करना निषिद्ध है। सोने से पूर्व पैरों को ठंडे पानी से धोना चाहिए, किन्तु गीले पैर नहीं सोना चाहिए। इससे धन का क्षय होता है।
15॰ रात्रि में चावल, दही और सत्तू का सेवन करने से लक्ष्मी का निरादर होता है। अत: समृद्धि चाहने वालों को तथा जिन व्यक्तियों को आर्थिक कष्ट रहते हों, उन्हें इनका सेवन रात्रि भोज में नहीं करना चाहिये।
16॰ भोजन सदैव पूर्व या उत्तर की ओर मुख कर के करना चाहिए। संभव हो तो रसोईघर में ही बैठकर भोजन करें इससे राहु शांत होता है। जूते पहने हुए कभी भोजन नहीं करना चाहिए।
17॰ सुबह कुल्ला किए बिना पानी या चाय न पीएं। जूठे हाथों से या पैरों से कभी गौ, ब्राह्मण तथा अग्नि का स्पर्श न करें।
18॰ घर में देवी-देवताओं पर चढ़ाये गये फूल या हार के सूख जाने पर भी उन्हें घर में रखना अलाभकारी होता है।
19॰ अपने घर में पवित्र नदियों का जल संग्रह कर के रखना चाहिए। इसे घर के ईशान कोण में रखने से अधिक लाभ होता है।
20॰ रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र हो, तब गूलर के वृक्ष की जड़ प्राप्त कर के घर लाएं। इसे धूप, दीप करके धन स्थान पर रख दें। यदि इसे धारण करना चाहें तो स्वर्ण ताबीज में भर कर धारण कर लें। जब तक यह ताबीज आपके पास रहेगी, तब तक कोई कमी नहीं आयेगी। घर में संतान सुख उत्तम रहेगा। यश की प्राप्ति होती रहेगी। धन संपदा भरपूर होंगे। सुख शांति और संतुष्टि की प्राप्ति होगी।
21॰ `देव सखा´ आदि 18 पुत्रवर्ग भगवती लक्ष्मी के कहे गये हैं। इनके नाम के आदि में और अन्त में `नम:´ लगाकर जप करने से अभीष्ट धन की प्राप्ति होती है। यथा - ॐ देवसखाय नम:, चिक्लीताय, आनन्दाय, कर्दमाय, श्रीप्रदाय, जातवेदाय, अनुरागाय, सम्वादाय, विजयाय, वल्लभाय, मदाय, हर्षाय, बलाय, तेजसे, दमकाय, सलिलाय, गुग्गुलाय, ॐ कुरूण्टकाय नम:।
धन लाभ के लिए :
9. शनिवार की शाम को माह (उड़द) की दाल के दाने पर थोड़ी सी दही और सिंदूर डालकर पीपल के नीचे रख आएं। वापस आते समय पीछे मुड़कर नहीं देखें। यह क्रिया शनिवार को ही शुरू करें और ७ शनिवार को नियमित रूप से किया करें, धन की प्राप्ति होने लगेगी।

जानिए पूर्व जन्म में आपने कौन सा काम किया है

जानिए पूर्व जन्म में आपने कौन सा काम किया है
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कहते हैं जीवन में जो भी सुख और दुःख मिलता है उसका संबंध पूर्व जन्म के कर्मों से होता है। इसलिए जीवन में परेशानी आने पर हम सोचने लगते हैं कि आखिर पूर्व जन्म में हमने ऐसी कौन सी गलतियां की है जिसकी सजा हमे भगवान दे रहा है। अगर आपको यह जानने की चाहत है कि पूर्व जन्म में आपने कौन सी गलतियां की हैं तो इसमें लाल किताब आपकी मदद कर सकता है।

सरकारी कार्यों में बेईमानी का परिणाम
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लाल किताब में बताया गया है कि पूर्व जन्म के कर्मों को कुण्डली के आठवें घर से जाना जा सकता है। अगर आपकी कुण्डली में आठवें घर में सूर्य बैठा है और आपको जन्म स्थान से दूर संघर्ष पूर्ण जीवन बिताना पड़ रहा है।

इसका मतलब है कि पूर्व जन्म में आपने किसी बेकसूर व्यक्ति को सताया है। पूर्व जन्म में सरकारी क्षेत्र से जुड़े कार्यों में रहकर बेईमानी करने वाले को वर्तमान जीवन में सरकारी दंड एवं सरकारी क्षेत्र से जुड़े कार्यों में बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

बार-बार असफलता का कारण
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जिनकी कुण्डली में गुरू आठवें घर में अशुभ स्थिति में होता है उन्हें बार-बार अपने प्रयास में असफलताओं का सामना करना पड़ता है। परिश्रम करने पर भी इनके हिस्से का यश और सम्मान किसी और को मिल जाता है। संतान सुख के मामले में इन्हें कष्ट का सामना करना पड़ता है।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जो लोग पूर्व जन्म में अपने माता-पिता, गुरूजन एवं आश्रितों का अनादर करते हैं। शरण में आए व्यक्ति के साथ धोखा करते हैं उनकी कुण्डली में गुरू आठवें घर में बैठकर उन्हें पूर्व जन्म में किए कर्मों की सजा देता है।

तब दूसरों के किए गलती की सजा मिलती है
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ज्योतिषशास्त्र में शनि को न्यायकर्ता कहा गया है। जिनकी कुण्डली में शनि आठवें घर में हो और दूसरों के किए गलतियों की सजा भुगतनी पड़े तो समझ लीजिए कि आपने पूर्व जन्म में किसी लाचार व्यक्ति को सताया है। जो लोग मदिरा का सेवन करते हैं और परस्त्री से संबंध के कारण अपनी जिम्मेदारियों को नहीं निभाते हैं।

उनकी कुण्डली शनि आठवें घर में बैठकर पूर्व जन्म में किए पाप का दंड देता है। ऐसे व्यक्तियों को अधिकारियों से दंड मिलता है। बार-बार अपमानित होते हैं तथा संपत्ति विवाद में उलझते हैं। परिश्रम से प्राप्त सफलता भी अधिक समय तक कायम नहीं रह पाती है।

पूर्वजन्म में जीवनसाथी को सताने वाले
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शुक्र वैवाहिक जीवन एवं भौतिक सुख का कारण होता है। यह कुण्डली में शुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति का दांपत्य जीवन सुखद होता है और धन वैभव की प्राप्ति होती है। लेकिन जो लोग पूर्व जन्म में जीवनसाथी को सताते हैं और परस्त्री अथवा पुरूष से संबंध रखते हैं उनकी कुण्डली में शुक्र अशुभ होकर आठवें घर में बैठता है। ऐसे व्यक्ति को धन की लालच के कारण समाज में अपमानित होना पड़ता है। इनका दांपत्य जीवन कष्टमय होता है। प्रेम में इन्हें असफलता मिलती है।

बांझपन दूर करने के लिए इन्हें आजमायें !

बांझपन दूर करने के लिए इन्हें आजमायें !

सुबह के समय 5 कली लहसुन की चबाकर ऊपर से दूध पीयें। यह प्रयोग पूरी सर्दी के मौसम में रोज करने से स्त्रियों का बांझपन दूर हो जाता है।

मासिक-धर्म ठीक होने पर भी यदि संतान न होती हो तो रूई के फाये में फिटकरी लपेटकर पानी में भिगोकर रात को सोते समय योनि में रखें। सुबह निकालने पर रूई में दूध की खुर्चन सी जमा होगी। फोया तब तक रखें, जब तक खुर्चन आता रहे। जब खुर्चन आना बंद हो जाए तो समझना चाहिए कि बांझपन रोग समाप्त हो गया है।

यदि किसी स्त्री को मासिक-धर्म नियमित रूप से सही मात्रा में होता होता हो, परन्तु गर्भ नहीं ठहरता हो तो उन स्त्रियों को मासिक-धर्म के दिनों में तुलसी के बीज चबाने से या पानी में पीसकर लेने अथवा काढ़ा बनाकर सेवन करने से गर्भधारण हो जाता है। यदि गर्भ स्थापित न हो तो इस प्रयोग को 1 वर्ष तक लगातार करें। इस प्रयोग से गर्भाशय निरोग, सबल बनकर गर्भधारण के योग्य बनता है।

छाया में सूखी सफेद आक की जड़ को महीन पीसकर, एक-दो ग्राम की मात्रा में 250 मिलीलीटर गाय के दूध के साथ स्त्री को सेवन करायें। शीतल पदार्थो का पथ्य देवें। इससे बंद ट्यूब व नाड़ियां खुलती हैं, व मासिक-धर्म व गर्भाशय की गांठों में भी लाभ होता है।

बृहस्पति और शुक्र

बृहस्पति और शुक्र दो ग्रह हैं जो पुरूष और स्त्री का प्रतिनिधित्व करते हैं.मुख्य रूप ये दो ग्रह वैवाहिक जीवन में सुख दु:ख, संयोग और वियोग का फल देते हैं.

बृहस्पति और शुक्र दोनों ही शुभ ग्रह हैं (Venus and Jupiter are benefic planets).सप्तम भाव जीवन साथी का घर होता है (7th House is of the spouse).इस घर में इन दोनों ग्रहों की स्थिति एवं प्रभाव के अनुसार विवाह एवं दाम्पत्य सुख का सुखद अथवा दुखद फल मिलता है.पुरूष की कुण्डली में शुक्र ग्रह पत्नी एवं वैवाहिक सुख का कारक होता है और स्त्री की कुण्डली में बृहस्पति.ये दोनों ग्रह स्त्री एवं पुरूष की कुण्डली में जहां स्थित होते हैं और जिन स्थानों को देखते हैं उनके अनुसार जीवनसाथी मिलता है और वैवाहिक सुख प्राप्त होता है.

ज्योतिषशास्त्र का नियम है कि बृहस्पति जिस भाव में होता हैं उस भाव के फल को दूषित करता है (Jupiter has bad effect on the house it is in) और जिस भाव पर इनकी दृष्टि होती है उस भाव से सम्बन्धित शुभ फल प्रदान करते हैं.जिस स्त्री अथवा पुरूष की कुण्डली में गुरू सप्तम भाव में विराजमान होता हैं उनका विवाह या तो विलम्ब से होता है अथवा दाम्पत्य जीवन के सुख में कमी आती है.पति पत्नी में अनबन और क्लेश के कारण गृहस्थी में उथल पुथल मची रहती है.

दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने में बृहस्पति और शुक्र का सप्तम भाव और सप्तमेश से सम्बन्ध महत्वपूर्ण होता है (Jupiter & Venus relationship with seventh house).जिस पुरूष की कुण्डली में सप्तम भाव, सप्तमेश और विवाह कारक ग्रह शुक बृहस्पति से युत या दृष्ट होता है उसे सुन्दर गुणों वाली अच्छी जीवनसंगिनी मिलती है.इसी प्रकार जिस स्त्री की कुण्डली में सप्तम भाव, सप्तमेश और विवाह कारक ग्रह बृहस्पति शुक्र से युत या दृष्ट होता है उसे सुन्दर और अच्छे संस्कारों वाला पति मिलता है.

शुक्र भी बृहस्पति के समान सप्तम भाव में सफल वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है.सप्तम भाव का शुक्र व्यक्ति को अधिक कामुक बनाता है जिससे विवाहेत्तर सम्बन्ध की संभावना प्रबल रहती है.विवाहेत्तर सम्बन्ध के कारण वैवाहिक जीवन में क्लेश के कारण गृहस्थ जीवन का सुख नष्ट होता है.बृहस्पति और शुक्र जब सप्तम भाव को देखते हैं अथवा सप्तमेश पर दृष्टि डालते हैं (Jupiter & Venus aspect the seventh lord) तो इस स्थिति में वैवाहिक जीवन सफल और सुखद होता है.लग्न में बृहस्पति अगर पापकर्तरी योग (Papkartari Yoga) से पीड़ित होता है तो सप्तम भाव पर इसकी दृष्टि का शुभ प्रभाव नहीं होता है ऐसे में सप्तमेश कमज़ोर हो या शुक्र के साथ हो तो दाम्पत्य जीवन सुखद और सफल रहने की संभावना कम रहती है.