Sunday, July 22, 2012

टोटका ही नहीं वास्‍तु दोष कम करने में भी इस्‍तेमाल होता है नींबू

Lemon Vastu Shastra Aid0191नींबू एक ऐसा वृक्ष, जो लगभग हर जगह आसानी से मिल जाता है। नींबू विटामिन सी का प्रमुख स्रोत है। यह अम्लीय होने पर भी पित्तनाशक होता है। अन्य फल पकने पर मीठे हो जाते हैं, परन्तु नींबू अपनी प्रत्येक अवस्था में अम्लीय ही रहता है। यह एक औषधीय फल है, जिसका प्रयोग अधिकतर लोग अपने भोजन को रूचिकर बनाने में करते है।
धार्मिक कार्यो के रूप में प्रायः नींबू का प्रयोग नजर दोष तथा किसी के द्वारा टोने-टोटके से बचाने के लिए भी किया जाता है। नींबू का विभिन्न प्रकार से प्रयोग करके बुरी नजर एंव बुरी हवाओं से बचा जा सकता है।
1- नींबू का पौधा घर में होने से बुरी हवायें घर में प्रवेश नहीं कर पाती है एंव वास्तु दोष का प्रभाव भी कम हो जाता है।
2- जब कभी किसी छोटे बच्चों को नजर लग जाती है तो, वह दूध उलटने लगता है और दूध पीना बन्द कर देता है, ऐसे में परिवार के लोग चिंतित और परेशान हो जाते है। ऐसी स्थिति में एक बेदाग नींबू लें और उसको बीच में आधा काट दें तथा कटे वाले भाग में थोड़े काले तिल के कुछ दाने दबा दें। और फिर उपर से काला धागा लपेट दें। अब उसी नींबू को बालक पर उल्टी तरफ से 7 बार उतारें। इसके पश्चात उसी नींबू को घर से दूर किसी निर्जन स्थान पर फेंक दें। इस उपाय से शीघ्र ही लाभ मिलेगा।
3- यदि एक स्वस्थ्य व्यक्ति अचानक अस्वस्थ्य हो जायें और उस पर चिकित्सा का प्रभाव नहीं हो रहा है तो समझना चाहिए कि उक्त व्यक्ति नजरदोष से ग्रसित है। ऐसी स्थिति में एक साबूत नींबू के उपर काली स्याही से 307 लिख दें और उस व्यक्ति के उपर उल्टी तरफ से 7 बार उतारें। इसके पश्चात उसी नींबू को चार भागों में इस प्रकार से काटें कि वह नीचें से जुड़े रहें। और फिर उसी नींबू को घर से बाहर किसी निर्जन स्थान पा फेंक दें। यह उपाय करने से पीडि़त व्यक्ति शीघ्र ही स्वस्थ्य हो जायेगा।
4- मोटापा दूर करने के लिए- प्रातः काल खाली पेट 250 मिली हल्के गर्म जल में एक नींबू का रस व दो चम्मच शहद मिलाकर नित्य सेवन करने से लाभ मिलेगा।
5- यदि किसी मनुष्य को रात में अक्सर डारवने सपने आते है, जिसके कारण वह डर जाता और ठीक से नींद नहीं आती है। ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति की तकिये के नीचे एक हरा नींबू रख दें, और सूख जाने पर वह नींबू हटाकर दूसरा हरा नींबू रख दें। यह क्रिया लगातार 5 बार करने से दुःस्वपन आना बन्द हो जायेंगे और ठीक से नींद भी आने लगेगी।

ग्रह नक्षत्रों के विकार को दूर करता है सूरज मुखी

वैसे तो लगभग हर व्यक्ति सूरजमुखी के पौधे से परिचित होगा, परन्तु यह शायद कम लोगों को ही मालूम हो कि इसके प्रयोग से निर्बल गुरू ग्रह को बलवान किया जा सकता है। आइये बताते हैं कि किस प्रकार से इसका प्रयोग करके गुरू ग्रह को बलनाव किया जाये।
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1- यदि किसी जातक का गुरू ग्रह पीडि़त होकर अशुभ फल दे रहा। वह व्यक्ति शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरूवार के दिन दोपहर में 12 बजे के आस-पास किसी नवग्रह मन्दिर में जाकर गुरू ग्रह को सूरजमुखी के पुष्प अर्पित करना चाहिए। यह उपाय कम से कम 9 गुरूवार लगातार करने से लाभ मिलेगा। जिन कन्याओं के विवाह में बाधा आ रही है, यह उपाय करने से उनका विवाह शीघ्र ही हो जायेगा।
2- शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरूवार के दिन शुभ मुहूर्त में पूर्व निमंत्रित करके इसकी जड़ को निकाल लें। जड़ के इस टुकड़े को प्रति गुरूवार स्नान जल में डालकर उसी जल स्नान करें। ऐसा प्रयोग कम से कम 9 गुरूवार लगातार करने से गुरू ग्रह शुभ फल देने लगता है।
3- सूरजमुखी के बीजों कोलेस्ट्राल कम करने का अद्भुत औषधीय गुण होता है। यदि प्रातः काल 1 चम्मच सूरजमुखी के अंकुरित बीजों का नित्य सेंवन किया जाये तो शरीर में कोलेस्ट्राल की मात्रा कुछ ही समय में कम हो जायेगी।
4- सूरजमुखी का पौधा मकान की सीमा में होने से सकारात्मक उर्जा का संचरण करता है जिससे परिवार के सदस्यों में आपसी प्रेम व सौहार्द बनाता रहता है।

वास्तु और रोग

वास्तु दोष और रोग( कारण एवं उपाय/निवारण)
वास्तुशास्त्रअर्थात गृहनिर्माण की वह कला जो भवन में निवास कर्ताओं की विघ्नों, प्राकृतिक उत्पातों एवं उपद्रवों से रक्षा करती है. देवशिल्पी विश्वकर्मा द्वारा रचित इस भारतीय वास्तु शास्त्र का एकमात्र उदेश्य यही है कि गृहस्वामी को भवन शुभफल दे, से पुत्र-पौत्रादि, सुख-समृद्धि प्रदान कर लक्ष्मी एवं वैभव को बढाने वाला हो.

इस विलक्षण भारतीय वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करने से घर में स्वास्थय, खुशहाली एवं समृद्धि को पूर्णत: सुनिश्चित किया जा सकता है. एक इन्जीनियर आपके लिए सुन्दर तथा मजबूत भवन का निर्माण तो कर सकता है, परन्तु उसमें निवास करने वालों के सुख और समृद्धि की गारंटी नहीं दे सकता. लेकिन भारतीय वास्तुशास्त्र आपको इसकी पूरी गारंटी देता है.

यहाँ हम अपने पाठकों को जानकारी दे रहे हैं कि वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करने से पारिवारिक सदस्यों को किस तरह से नाना प्रकार के रोगों का सामना करना पड सकता है.
पूर्व दिशा में दोष:-
* यदि भवन में पूर्व दिशा का स्थान ऊँचा हो, तो व्यक्ति का सारा जीवन आर्थिक अभावों, परेशानियों में ही व्यतीत होता रहेगा और उसकी सन्तान अस्वस्थ, कमजोर स्मरणशक्ति वाली, पढाई-लिखाई में जी चुराने तथा पेट और यकृत के रोगों से पीडित रहेगी.

* यदि पूर्व दिशा में रिक्त स्थान हो और बरामदे की ढलान पश्चिम दिशा की ओर हो, तो परिवार के मुखिया को आँखों की बीमारी, स्नायु अथवा ह्रदय रोग की स्मस्या का सामना करना पडता है.
* घर के पूर्वी भाग में कूडा-कर्कट, गन्दगी एवं पत्थर, मिट्टी इत्यादि के ढेर हों, तो गृहस्वामिनी में गर्भहानि का सामना करना पडता है.
* भवन के पश्चिम में नीचा या रिक्त स्थान हो, तो गृहस्वामी यकृत, गले, गाल ब्लैडर इत्यादि किसी बीमारी से परिवार को मंझधार में ही छोडकर अल्पावस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है.
* यदि पूर्व की दिवार पश्चिम दिशा की दिवार से अधिक ऊँची हो, तो संतान हानि का सामना करना पडता है.
* अगर पूर्व दिशा में शौचालय का निर्माण किया जाए, तो घर की बहू-बेटियाँ अवश्य अस्वस्थ रहेंगीं.
बचाव के उपाय:-
* पूर्व दिशा में पानी, पानी की टंकी, नल, हैंडापम्प इत्यादि लगवाना शुभ रहेगा.
* पूर्व दिशा का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य है, जो कि कालपुरूष के मुख का प्रतीक है. इसके लिए पूर्वी दिवार परसूर्य यन्त्रस्थापित करें और छत पर इस दिशा में लाल रंग का ध्वज(झंडा) लगायें.
* पूर्वी भाग को नीचा और साफ-सुथरा खाली रखने से घर के लोग स्वस्थ रहेंगें. धन और वंश की वृद्धि होगी तथा समाज में मान-प्रतिष्ठा बढेगी.
पश्चिम दिशा में दोष:-
पश्चिम दिशा का प्रतिनिधि ग्रह शनि है. यह स्थान कालपुरूष का पेट, गुप्ताँग एवं प्रजनन अंग है.
* यदि पश्चिम भाग के चबूतरे नीचे हों, तो परिवार में फेफडे, मुख, छाती और चमडी इत्यादि के रोगों का सामना करना पडता है.
* यदि भवन का पश्चिमी भाग नीचा होगा, तो पुरूष संतान की रोग बीमारी पर व्यर्थ धन का व्यय होता रहेगा.
* यदि घर के पश्चिम भाग का जल या वर्षा का जल पश्चिम से बहकर, बाहर जाए तो परिवार के पुरूष सदस्यों को लम्बी बीमारियों का शिकार होना पडेगा.
* यदि भवन का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा की ओर हो, तो अकारण व्यर्थ में धन का अपव्यय होता रहेगा.
* यदि पश्चिम दिशा की दिवार में दरारें जायें, तो गृहस्वामी के गुप्ताँग में अवश्य कोई बीमारी होगी.
* यदि पश्चिम दिशा में रसोईघर अथवा अन्य किसी प्रकार से अग्नि का स्थान हो, तो पारिवारिक सदस्यों को गर्मी, पित्त और फोडे-फिन्सी, मस्से इत्यादि की शिकायत रहेगी.
बचाव के उपाय:-
* ऎसी स्थिति में पश्चिमी दिवार परवरूण यन्त्रस्थापित करें.
* परिवार का मुखिया न्यूनतम 11 शनिवार लगातार उपवास रखें और गरीबों में काले चने वितरित करे.
* पश्चिम की दिवार को थोडा ऊँचा रखें और इस दिशा में ढाल रखें.
* पश्चिम दिशा में अशोक का एक वृक्ष लगायें.
उत्तर दिशा में दोष-
उत्तर दिशा का प्रतिनिधि ग्रह बुध है और भारतीय वास्तुशास्त्र में इस दिशा को कालपुरूष का ह्रदय स्थल माना जाता है. जन्मकुंडली का चतुर्थ सुख भाव इसका कारक स्थान है.
* यदि उत्तर दिशा ऊँची हो और उसमें चबूतरे बने हों, तो घर में गुर्दे का रोग, कान का रोग, रक्त संबंधी बीमारियाँ, थकावट, आलस, घुटने इत्यादि की बीमारियाँ बनी रहेंगीं.
* यदि उत्तर दिशा अधिक उन्नत हो, तो परिवार की स्त्रियों को रूग्णता का शिकार होना पडता है.
बचाव के उपाय :-
यदि उत्तर दिशा की ओर बरामदे की ढाल रखी जाये, तो पारिवारिक सदस्यों विशेषतय: स्त्रियों का स्वास्थय उत्तम रहेगा. रोग-बीमारी पर अनावश्यक व्यय से बचे रहेंगें और उस परिवार में किसी को भी अकाल मृत्यु का सामना नहीं करना पडेगा.
* इस दिशा में दोष होने पर घर के पूजास्थल मेंबुध यन्त्रस्थापित करें.
* परिवार का मुखिया 21 बुधवार लगातार उपवास रखे.
* भवन के प्रवेशद्वार पर संगीतमय घंटियाँ लगायें.
* उत्तर दिशा की दिवार पर हल्का हरा(Parrot Green) रंग करवायें.
दक्षिण दिशा में दोष:-
दक्षिण दिशा का प्रतिनिधि ग्रह मंगल है, जो कि कालपुरूष के बायें सीने, फेफडे और गुर्दे का प्रतिनिधित्व करता है. जन्मकुंडली का दशम भाव इस दिशा का कारक स्थान होता है.
* यदि घर की दक्षिण दिशा में कुआँ, दरार, कचरा, कूडादान, कोई पुराना सामान इत्यादि हो, तो गृहस्वामी को ह्रदय रोग, जोडों का दर्द, खून की कमी, पीलिया, आँखों की बीमारी, कोलेस्ट्राल बढ जाना अथवा हाजमे की खराबीजन्य विभिन्न प्रकार के रोगों का सामना करना पडता है.
* दक्षिण दिशा में उत्तरी दिशा से कम ऊँचा चबूतरा बनाया गया हो, तो परिवार की स्त्रियों को घबराहट, बेचैनी, ब्लडप्रैशर, मूर्च्छाजन्य रोगों से पीडा का कष्ट भोगना पडता है.
* यदि दक्षिणी भाग नीचा हो, ओर उत्तर से अधिक रिक्त स्थान हो, तो परिवार के वृद्धजन सदैव अस्वस्थ रहेंगें. उन्हे उच्चरक्तचाप, पाचनक्रिया की गडबडी, खून की कमी, अचानक मृत्यु अथवा दुर्घटना का शिकार होना पडेगा. दक्षिण पिशाच का निवास है, इसलिए इस तरफ थोडी जगह खाली छोडकर ही भवन का निर्माण करवाना चाहिए.
* यदि किसी का घर दक्षिणमुखी हो ओर प्रवेश द्वार नैऋत्याभिमुख बनवा लिया जाए, तो ऎसा भवन दीर्घ व्याधियाँ एवं किसी पारिवारिक सदस्य को अकाल मृत्यु देने वाला होता है.
बचाव के उपाय:-
* यदि दक्षिणी भाग ऊँचा हो, तो घर-परिवार के सभी सदस्य पूर्णत: स्वस्थ एवं संपन्नता प्राप्त करेंगें. इस दिशा में किसी प्रकार का वास्तुजन्य दोष होने की स्थिति में छत पर लाल रक्तिम रंग का एक ध्वज अवश्य लगायें.
* घर के पूजनस्थल मेंश्री हनुमंतयन्त्रस्थापित करें.
* दक्षिणमुखी द्वार पर एक ताम्र धातु कामंगलयन्त्रलगायें.
* प्रवेशद्वार के अन्दर-बाहर दोनों तरफ दक्षिणावर्ती सूँड वाले गणपति जी की लघु प्रतिमा लगायें.