Thursday, May 26, 2011

ऐसे लोगों को सहना पड़ता महिलाओं से अपमान...

ऐसे लोगों को सहना पड़ता महिलाओं से अपमान...

आधुनिकता के साथ ही हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ती जा रही है। हर क्षेत्र में कई बड़े पदों पर महिलाएं पदस्थ होती हैं। ऐसे में उनके अधिन कार्य करने वाले पुरुषों को कई बार उनसे डांट सुनना पड़ती है, अपमानित होना पड़ता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य निर्धारित करता है कि आपको जीवन में मान-सम्मान मिलेगा या अपमान।
सूर्य और चंद्र यदि एक साथ, एक ही भाव में स्थित हो तो व्यक्ति को जीवन में कई बार अपमान झेलना पड़ता है।

- यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के प्रथम भाव में सूर्य और चंद्र स्थित हो तो उसे माता और पिता से दुख मिलता है। वह पुत्र से दुखी और निर्धन होता है।

- चंद्रमा और सूर्य चतुर्थ भाव में हो तो व्यक्ति को पुत्र और सुख से वंचित रहता है। ऐसा व्यक्ति मूर्ख और गरीब होता है।

- कुंडली के सप्तम भाव में सूर्य और चंद्रमा स्थित हो तो व्यक्ति जीवनभर पुत्र और स्त्रियों से अपमानित होता रहता है। ऐसे व्यक्ति के पास धन की भी कमी रहती है।

- सूर्य और चंद्रमा किसी व्यक्ति की कुंडली के दशम भाव में स्थित हो तो वह सुंदर शरीर वाला, नेतृत्व क्षमता का धनी, कुटिल स्वभाव का और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला होता है।


स्त्रियों से अपमानित होने से बचने के उपाय

- प्रति दिन सूर्य को ब्रह्म मुहूर्त में जल चढ़ाएं।

- अधिक से अधिक हल्के और सफेद रंगों के कपड़ें पहनें। गहरे रंग के कपड़ों से बचें।

- सफेद रंग का रुमाल हमेशा अपने साथ रखें।

- प्रतिदिन केशर या चंदन का तिलक लगाएं।

- सूर्य एवं चंद्रमा से संबंधित वस्तुओं का दान करें।

- चंद्रमा से शुभ फल प्राप्त करने के लिए शिवजी और श्रीगणेश की आराधना करें।

शादी में क्यों निभाई जाती है संगीत की रस्म?


शादी में मंगलगीत गाए जाते हैं संगीत की रस्म निभाई जाती है जिसमें घर के सभी सदस्य आनंद और उल्लास के साथ भाग लेते हैं। दरअसल इसका कारण यह है कि संगीत आंनद आपस में गहरा ताल्लुक है। संगीत के बगैर किसी भी प्रकार के सेलीबे्रशन की सफलता अधूरी ही मानी जाती है। ढ़ोल, नगाड़े और शह

इसके अंतर्गत पहले घर की महिलाएं मंगलगीत गाती थी और इस कार्यक्रम में ही ढोल बजाकर गीत गाती थी। सतीजी व शिव की शादी हो राम सीताजी का स्वयंवर सभी में महिलाओं द्वारा मंगलगीत गाए जाने का वर्णन मिलता है धीरे-धीरे इस क्रिया को परंपरा के रूप में शामिल कर लिया गया। हम देखते हैं कि भगवान शिव के पास भी अपना डमरु था, जो कि तांडव करते समय वे स्वयं ही बजाते भी थे।

जीवन युद्ध और ढ़ोल- संगीत के अन्य वाद्य यंत्रों की बजाय ढ़ोल की अपनी अलग ही खासियतें होती हैं। मन में उत्साह, साहस और जोश जगाने में ढ़ोल का बड़ा ही आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ता है। तभी तो पुराने समय में युद्ध का प्रारंभ भी ढ़ोल-नगाड़ों से ही होता था। ढ़ोल से निकलने वाली ध्वनि तरंगें योद्धओं को जोश और साहस से भर देती थीं।