Sunday, July 10, 2016

खराब किस्मत की दस्तक

शास्त्रों के अनुसार खराब किस्मत दस्तक देती है इन चीजों के गुमने से...

ज्योतिष के अनुसार सोने पर गुरु ग्रह का अधिपत्य माना जाता है। सोना मंहगी धातु है जिसे पावन और पूजनीय भी माना जाता है। अधिकतर लोग सोना खरीदने से पहले शुभ मुर्हूत देखते हैं फिर उसे खरीदते हैं क्योंकि मान्यता है की सोने में देवी लक्ष्मी का वास होता है। तभी तो शादी के समय घर में लक्ष्मी रूपी बहू को लाना हो या लक्ष्मी रूपी बेटी को विदा करना हो, दोनों पक्ष सोने के गहनों से अपनी बहू और बेटी को सजाते हैं। यह भी माना जाता है की सोना केवल अपनी कमाई का रखना शुभ होता है। सोने का मिलना अथवा गुमना दोनों अशुभ माने जाते हैं। जब किसी महिला का कोई गहना गुम हो जाए तो समझ जाएं भविष्य में कुछ बुरा होने वाला है...

- कानों में डालने वाला कोई गहना गुम हो जाए तो किसी बुरे और दुखद समाचार प्राप्त होता है।
- नाक का आभूषण खो जाने का अर्थ है भविष्य में बदनामी अथवा अपमान होगा।
- सिर का कोई गहना खो जाए तो आने वाले समय में टेंशन-परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।
- गले का हार गुम हो जाए तो वैभव में कमी आती है।
- बाजू बंद के गुमने से आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
- कंगन का खोना प्रतिष्ठा में कमी लाता है।
- अंगूठी के गुमने से सेहत संबंधित परेशानियां होती हैं।
- कमर बंद खो जाना भयंकर संकट का आंदेशा देता है।
- दाएं पैर की पायल गुमने से सामाज में बदनामी सहनी पड़ती है।
- बाएं पैर की पायल गुमना ऐक्सीडेंट अथवा महाविपदा का संकेत है।
- बिछुआ गुम हो जाए तो पति की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

वास्तु में पंचतत्व का महत्व

🌺🌹   वास्तु में  पंचतत्व का महत्व ।🌹🌺            भवन-निमाँण  में  भी  पंचतत्व का  बहोत  महत्व  है  । और  वो  है  पुथ्वी , जल , वायू ,अग्नि ,आकाश  🌼🍀     भवन -निमाँण  में उन्ही  पंचतत्वों  का  ऊचित  समावेश  ही  ऊसमें  निवास  करनेवाले  मनष्य के  जिवन  में  सुख  एवं  मानसिक  शान्ति  की  वृध्दी  करता  है  ।  अगर   ए  पंचतत्व  का  समावेश  ऊचित  पकार     भवन में  नही  किया  तो  भवन में  रहनेवाले  मनुष्य के  जिवनमें  अशान्त  एंव  ऊथल-पाथल  जरूर  से  होता  है । और  वास्तु का  शिकार  हो  जाता  है  ।  🍁🌼     हमारा  शरीर पंचतत्व का  बना  हूआ  है  ।  अगर   हमारे  शरीर  का   संतुलन   पंचतत्व  से  बिगड   गया  तो   मनुष्य   रोगगस्त  ( बिमारी ) से  भरपूर  हो  जाता  है  ।  जैसे   भवन में    अग्नितत्व  का  संतुलन  बीगड  जाता  है  तो  रोगगस्त  बीमार   हो  जाता  है  ।  जैसे  एसिडिटी  , हाई बल्ड  पेशर   जैसे  रोग  होता  है 🇧🇴  पृथ्वीतत्व  में  पथरी  जैसा  रोग  होता  है  ईसलिए  भवन में  निवास  करते  पहेले  ए  सोचना  जरूरि  है  के  इस  भवन में  पंचतत्व  सही  है  ।अगर   सही  है  तो  ठीक  है । नही  है  तो  वास्तु दोष  भवन में  दूर  करके  रहना   चाहिए  ।  अगर   वास्तु का  पालन  नही  करोगे  तो  कल  भवनमें  रहने वाले मनुष्य    बिमारी  का  शिकार  हो  जाता  है  ।

देवाकर्षण मन्त्र

देवाकर्षण मन्त्र

मन्त्र : 

ॐ नमो रुद्राय नमः. अनाथाय बल-वीर्य-पराक्रम प्रभव कपट-कपाट-कीट मार-मार हन-हन पथ स्वाहा.

विधि : 

कभी-कभी ऐसा होता है कि पूजा-पाठ, भक्ति-योग से देवी-देवता साधक से सन्तुष्ट नहीं होते अथवा साधक बहुत कुछ करने पर भी अपेक्षित सुख-शान्ति नहीं पाता. इसके लिए यह ‘प्रयोग’ सिद्धि-दायक है.
उक्त मन्त्र का 41 दिनों में एक या सवा लाख जप ‘विधिवत’ करें. मन्त्र को भोज-पत्र या कागज पर लिख कर पूजन-स्थान में स्थापित करें. सुगन्धित धूप, शुद्ध घृत के दीप और नैवेद्य से देवता को प्रसन्न करने का संकल्प करे. यम-नियम से रहे. 
41 दिन में मन्त्र चैतन्य हो जायेगा. बाद में मन्त्र का स्मरण कर कार्य करें. प्रारब्ध की हताशा को छोड़कर, पुरुषार्थ करें और देवता उचित सहायता करेगें ही, ऐसा संकल्प बनाए रखें  ।

सुकृति अस्त्रो वास्तु रिसर्च सेंटर, करनाल।

सूर्यकवचस्तोत्रम्

सूर्यकवचस्तोत्रम्

| श्रीगणेशाय नमः ।

याज्ञवल्क्य उवाच । श्रृणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम् । शरीरारोग्यदं दिव्यं सर्वसौभाग्यदायकम् ॥ १॥

देदीप्यमानमुकुटं स्फुरन्मकरकुण्डलम् । ध्यात्वा सहस्रकिरणं स्तोत्रमेतदुदीरयेत् ॥ २॥

शिरो मे भास्करः पातु ललाटं मेऽमितद्युतिः । नेत्रे दिनमणिः पातु श्रवणे वासरेश्वरः ॥ ३॥ घ्राणं घर्मघृणिः पातु वदनं वेदवाहनः । जिह्वां मे मानदः पातु कण्ठं मे सुरवन्दितः ॥ ४॥

स्कन्धौ प्रभाकरः पातु वक्षः पातु जनप्रियः । पातु पादौ द्वादशात्मा सर्वाङ्गं सकलेश्वरः ॥ ५॥

सूर्यरक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भूर्जपत्रके । दधाति यः करे तस्य वशगाः सर्वसिद्धयः ॥ ६॥

सुस्‍नातो यो जपेत्सम्यग्योऽधीते स्वस्थमानसः । स रोगमुक्तो दीर्घायुः सुखं पुष्टिं च विन्दति ॥ ७॥

||इति श्रीमद्याज्ञवल्क्यमुनिविरचितं सूर्यकवचस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥