विवाह एवं वैवाहिक जीवन...आइये जाने तलाक के योग,कारण और उपचार---
कुंडली और जीवनसाथी---
युवक/वर की कुंडली---
यदि वर की कुंडली के सप्तम भाव में वृषभ या तुला राशि होती है तो उसे
सुंदर पत्नी मिलती है। यदि कन्या की कुंडली में चन्द्र से सप्तम स्थान पर
शुभ ग्रह बुध, गुरु, शुक्र में से कोई भी हो तो उसका पति राज्य में उच्च पद
प्राप्त करता है तथा धनवान होता है।
जब सप्तमेश सौम्य ग्रह होता है
तथा स्वग्रही होकर सप्तम भाव में ही उपस्थित होता है तो जातक को सुंदर,
आकर्षक, प्रभामंडल से युक्त एवं सौभाग्यशाली पत्नी प्राप्त होती है। जब
सप्तमेश सौम्य ग्रह होकर भाग्य भाव में उपस्थित होता है तो जातक को
शीलयुक्त, रमणी एवं सुंदर पत्नी प्राप्त होती है तथा विवाह के पश्चात जातक
का निश्चित भाग्योदय होता है।
जब सप्तमेश एकादश भाव में उपस्थित हो तो
जातक की पत्नी रूपवती, संस्कारयुक्त, मृदुभाषी व सुंदर होती है तथा विवाह
के पश्चात जातक की आर्थिक आय में वृद्धि होती है या पत्नी के माध्यम से भी
उसे आर्थिक लाभ प्राप्त होते हैं।
यदि जातक की जन्मकुंडली के सप्तम भाव
में वृषभ या तुला राशि होती है तो जातक को चतुर, मृदुभाषी, सुंदर,
सुशिक्षित, संस्कारवान, तीखे नाक-नक्श वाली, गौरवर्ण, संगीत, कला आदि में
दक्ष, भावुक एवं चुंबकीय आकर्षण वाली, कामकला में प्रवीण पत्नी प्राप्त
होती है।
यदि जातक की जन्मकुंडली में सप्तम भाव में मिथुन या कन्या
राशि उपस्थित हो तो जातक को कोमलाङ्गी, आकर्षक व्यक्तित्व वाली,
सौभाग्यशाली, मृदुभाषी, सत्य बोलने वाली, नीति एवं मर्यादाओं से युक्त बात
करने वाली, श्रृंगारप्रिय, कठिन समय में पति का साथ देने वाली तथा सदैव
मुस्कुराती रहने वाली पत्नी प्राप्त होती है। उन्हें वस्त्र एवं आभूषण बहुत
प्रिय होते हैं।
जिस जातक के सप्तम भाव में कर्क राशि स्थित होती है,
उसे अत्यंत सुंदर, भावुक, कल्पनाप्रिय, मधुरभाषी, लंबे कद वाली, छरहरी तथा
तीखे नाक-नक्श वाली, सौभाग्यशाली तथा वस्त्र एवं आभूषणों से प्रेम करने
वाली पत्नी प्राप्त होती है।
यदि किसी जातक की जन्मकुंडली के सप्तम भाव
में कुंभ राशि स्थित हो तो ऐसे जातक की पत्नी गुणों से युक्त धार्मिक,
आध्यात्मिक कार्यो में गहरी अभिरुचि रखने वाली एवं दूसरों की सेवा और सहयोग
करने वाली होती है।
सप्तम भाव में धनु या मीन राशि होने पर जातक को
धार्मिक, आध्यात्मिक एवं पुण्य के कार्यो में रुचि रखने वाली, सुंदर, न्याय
एवं नीति से युक्त बातें करने वाली, वाक्पटु, पति के भाग्य में वृद्धि
करने वाली, सत्य का आचरण करने वाली और शास्त्र एवं पुराणों का अध्ययन करने
वाली पत्नी प्राप्त होती है।
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कन्या/युवती की कुंडली-जिस कन्या की जन्मकुंडली के लग्न में चन्द्र, बुध,
गुरु या शुक्र उपस्थित होता है, उसे धनवान पति प्राप्त होता है।
जिस
कन्या की जन्मकुंडली के लग्न में गुरु उपस्थित हो तो उसे सुंदर, धनवान,
बुद्धिमान पति व श्रेष्ठ संतान मिलती है।भाग्य भाव में या सप्तम, अष्टम और
नवम भाव में शुभ ग्रह होने से ससुराल धनाढच्य एवं वैभवपूर्ण होती है।
कन्या की जन्मकुंडली में चन्द्र से सप्तम स्थान पर शुभ ग्रह बुध, गुरु,
शुक्र आदि में से कोई उपस्थित हो तो उसका पति राज्य में उच्च पद प्राप्त
करता है तथा उसे सुख व वैभव प्राप्त होता है। कुंडली के लग्न में चंद्र हो
तो ऐसी कन्या पति को प्रिय होती है और चंद्र व शुक्र की युति हो तो कन्या
ससुराल में अपार संपत्ति एवं समस्त भौतिक सुख-सुविधाएं प्राप्त करती है।
कन्या की कुंडली में वृषभ, कन्या, तुला लग्न हो तो वह प्रशंसा पाकर पति
एवं धनवान ससुराल में प्रतिष्ठा प्राप्त करती है।कन्या की कुंडली में जितने
अधिक शुभ ग्रह गुरु, शुक्र, बुध या चन्द्र लग्न को देखते हैं या सप्तम भाव
को देखते हैं, उसे उतना धनवान एवं प्रतिष्ठित परिवार एवं पति प्राप्त होता
है।
कन्या की जन्मकुंडली में लग्न एवं ग्रहों की स्थिति की गणनानुसार
त्रिशांश कुंडली का निर्माण करना चाहिए तथा देखना चाहिए कि यदि कन्या का
जन्म मिथुन या कन्या लग्न में हुआ है तथा लग्नेश गुरु या शुक्र के त्रिशांश
में है तो उसके पति के पास अटूट संपत्ति होती है तथा कन्या सदैव ही सुंदर
वस्त्र एवं आभूषण धारण करने वाली होती है।
कुंडली के सप्तम भाव में
शुक्र उपस्थित होकर अपने नवांश अर्थात वृषभ या तुला के नवांश में हो तो पति
धनाढच्य होता है।सप्तम भाव में बुध होने से पति विद्वान, गुणवान, धनवान
होता है, गुरु होने से दीर्घायु, राजा के संपत्ति वाला एवं गुणी तथा शुक्र
या चंद्र हो तो ससुराल धनवान एवं वैभवशाली होता है। एकादश भाव में वृष,
तुला राशि हो या इस भाव में चन्द्र, बुध या शुक्र हो तो ससुराल धनाढच्य और
पति सौम्य व विद्वान होता है।हर पुरुष सुंदर पत्नी और स्त्री धनवान पति की
कामना करती है।
यदि जातक की जन्मकुंडली के सप्तम भाव में सूर्य हो तो
उसकी पत्नी शिक्षित, सुशील, सुंदर एवं कार्यो में दक्ष होती है, किंतु ऐसी
स्थिति में सप्तम भाव पर यदि किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो दाम्पत्य
जीवन में कलह और सुखों का अभाव होता है।
जातक की जन्मकुंडली में
स्वग्रही, उच्च या मित्र क्षेत्री चंद्र हो तो जातक का दाम्पत्य जीवन सुखी
रहता है तथा उसे सुंदर, सुशील, भावुक, गौरवर्ण एवं सघन केश राशि वाली रमणी
पत्नी प्राप्त होती है। सप्तम भाव में क्षीण चंद्र दाम्पत्य जीवन में
न्यूनता उत्पन्न करता है।
जातक की कुंडली में सप्तमेश केंद्र में
उपस्थित हो तथा उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि होती है, तभी जातक को गुणवान,
सुंदर एवं सुशील पत्नी प्राप्त होती है।पुरुष जातक की जन्मकुंडली के सप्तम
भाव में शुभ ग्रह बुध, गुरु या शुक्र उपस्थित हो तो ऐसा जातक सौभाग्यशाली
होता है तथा उसकी पत्नी सुंदर, सुशिक्षित होती है और कला, नाटच्य, संगीत,
लेखन, संपादन में प्रसिद्धि प्राप्त करती है। ऐसी पत्नी सलाहकार, दयालु,
धार्मिक-आध्यात्मिक क्षेत्र में रुचि रखती है।
दाम्पत्य सुख के उपाय----
१॰ यदि जन्म कुण्डली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, द्वादश स्थान स्थित मंगल
होने से जातक को मंगली योग होता है इस योग के होने से जातक के विवाह में
विलम्ब, विवाहोपरान्त पति-पत्नी में कलह, पति या पत्नी के स्वास्थ्य में
क्षीणता, तलाक एवं क्रूर मंगली होने पर जीवन साथी की मृत्यु तक हो सकती है।
अतः जातक मंगल व्रत। मंगल मंत्र का जप, घट विवाह आदि करें।
२॰ सप्तम
गत शनि स्थित होने से विवाह बाधक होते है। अतः “ॐ शं शनैश्चराय नमः” मन्त्र
का जप ७६००० एवं ७६०० हवन शमी की लकड़ी, घृत, मधु एवं मिश्री से करवा दें।
३॰ राहु या केतु होने से विवाह में बाधा या विवाहोपरान्त कलह होता है। यदि
राहु के सप्तम स्थान में हो, तो राहु मन्त्र “ॐ रां राहवे नमः” का ७२०००
जप तथा दूर्वा, घृत, मधु व मिश्री से दशांश हवन करवा दें। केतु स्थित हो,
तो केतु मन्त्र “ॐ कें केतवे नमः” का २८००० जप तथा कुश, घृत, मधु व मिश्री
से दशांश हवन करवा दें।
४॰ सप्तम भावगत सूर्य स्थित होने से पति-पत्नी
में अलगाव एवं तलाक पैदा करता है। अतः जातक आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ
रविवार से प्रारम्भ करके प्रत्येक दिन करे तथा रविवार कप नमक रहित भोजन
करें। सूर्य को प्रतिदिन जल में लाल चन्दन, लाल फूल, अक्षत मिलाकर तीन बार
अर्ध्य दें।
५॰ जिस जातक को किसी भी कारणवश विवाह में विलम्ब हो रहा
हो, तो नवरात्री में प्रतिपदा से लेकर नवमी तक ४४००० जप निम्न मन्त्र का
दुर्गा जी की मूर्ति या चित्र के सम्मुख करें।
“ॐ पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्ग संसार सागरस्य कुलोद्भवाम्।।”
६॰ किसी स्त्री जातिका को अगर किसी कारणवश विवाह में विलम्ब हो रहा हो, तो
श्रावण कृष्ण सोमवार से या नवरात्री में गौरी-पूजन करके निम्न मन्त्र का
२१००० जप करना चाहिए-
“हे गौरि शंकरार्धांगि यथा त्वं शंकर प्रिया।
तथा मां कुरु कल्याणी कान्त कान्तां सुदुर्लभाम।।”
७॰ किसी लड़की के विवाह मे विलम्ब होता है तो नवरात्री के प्रथम दिन शुद्ध
प्रतिष्ठित कात्यायनि यन्त्र एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर स्थापित करें
एवं यन्त्र का पंचोपचार से पूजन करके निम्न मन्त्र का २१००० जइ लड़की स्वयं
या किसी सुयोग्य पंडित से करवा सकते हैं।
“कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
नन्दगोप सुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः।।”
८॰ जन्म कुण्डली में सूर्य, शनि, मंगल, राहु एवं केतु आदि पाप ग्रहों के
कारण विवाह में विलम्ब हो रहा हो, तो गौरी-शंकर रुद्राक्ष शुद्ध एवं
प्राण-प्रतिष्ठित करवा कर निम्न मन्त्र का १००८ बार जप करके पीले धागे के
साथ धारण करना चाहिए। गौरी-शंकर रुद्राक्ष सिर्फ जल्द विवाह ही नहीं करता
बल्कि विवाहोपरान्त पति-पत्नी के बीच सुखमय स्थिति भी प्रदान करता है।
“ॐ सुभगामै च विद्महे काममालायै धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात्।।”
९॰ “ॐ गौरी आवे शिव जी व्याहवे (अपना नाम) को विवाह तुरन्त सिद्ध करे, देर
न करै, देर होय तो शिव जी का त्रिशूल पड़े। गुरु गोरखनाथ की दुहाई।।”
उक्त मन्त्र की ११ दिन तक लगातार १ माला रोज जप करें। दीपक और धूप जलाकर
११वें दिन एक मिट्टी के कुल्हड़ का मुंह लाल कपड़े में बांध दें। उस
कुल्हड़ पर बाहर की तरफ ७ रोली की बिंदी बनाकर अपने आगे रखें और ऊपर दिये
गये मन्त्र की ५ माला जप करें। चुपचाप कुल्हड़ को रात के समय किसी चौराहे
पर रख आवें। पीछे मुड़कर न देखें। सारी रुकावट दूर होकर शीघ्र विवाह हो
जाता है।
१०॰ जिस लड़की के विवाह में बाधा हो उसे मकान के वायव्य दिशा में सोना चाहिए।
११॰ लड़की के पिता जब जब लड़के वाले के यहाँ विवाह वार्ता के लिए जायें तो
लड़की अपनी चोटी खुली रखे। जब तक पिता लौटकर घर न आ जाए तब तक चोटी नहीं
बाँधनी चाहिए।
१२॰ लड़की गुरुवार को अपने तकिए के नीचे हल्दी की गांठ पीले वस्त्र में लपेट कर रखे।
१३॰ पीपल की जड़ में लगातार १३ दिन लड़की या लड़का जल चढ़ाए तो शादी की रुकावट दूर हो जाती है।
१४॰ विवाह में अप्रत्याशित विलम्ब हो और जातिकाएँ अपने अहं के कारण अनेल
युवकों की स्वीकृति के बाद भी उन्हें अस्वीकार करती रहें तो उसे निम्न
मन्त्र का १०८ बार जप प्रत्येक दिन किसी शुभ मुहूर्त्त से प्रारम्भ करके
करना चाहिए।
“सिन्दूरपत्रं रजिकामदेहं दिव्ताम्बरं सिन्धुसमोहितांगम्
सान्ध्यारुणं धनुः पंकजपुष्पबाणं पंचायुधं भुवन मोहन मोक्षणार्थम क्लैं
मन्यथाम।
महाविष्णुस्वरुपाय महाविष्णु पुत्राय महापुरुषाय पतिसुखं मे शीघ्रं देहि देहि।।”
१५॰ किसी भी लड़के या लड़की को विवाह में बाधा आ रही हो यो विघ्नकर्ता
गणेशजी की उपासना किसी भी चतुर्थी से प्रारम्भ करके अगले चतुर्थी तक एक मास
करना चाहिए। इसके लिए स्फटिक, पारद या पीतल से बने गणेशजी की मूर्ति
प्राण-प्रतिष्टित, कांसा की थाली में पश्चिमाभिमुख स्थापित करके स्वयं
पूर्व की ओर मुँह करके जल, चन्दन, अक्षत, फूल, दूर्वा, धूप, दीप, नैवेद्य
से पूजा करके १०८ बार “ॐ गं गणेशाय नमः” मन्त्र पढ़ते हुए गणेश जी पर १०८
दूर्वा चढ़ायें एवं नैवेद्य में मोतीचूर के दो लड्डू चढ़ायें। पूजा के बाद
लड्डू बच्चों में बांट दें।
यह प्रयोग एक मास करना चाहिए। गणेशजी पर
चढ़ये गये दूर्वा लड़की के पिता अपने जेब में दायीं तरफ लेकर लड़के के यहाँ
विवाह वार्ता के लिए जायें।
१६॰ तुलसी के पौधे की १२ परिक्रमायें तथा
अनन्तर दाहिने हाथ से दुग्ध और बायें हाथ से जलधारा तथा सूर्य को बारह बार
इस मन्त्र से अर्ध्य दें- “ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्त्र किरणाय मम वांछित
देहि-देहि स्वाहा।”
फिर इस मन्त्र का १०८ बार जप करें-
“ॐ देवेन्द्राणि नमस्तुभ्यं देवेन्द्र प्रिय यामिनि। विवाहं भाग्यमारोग्यं शीघ्रलाभं च देहि मे।”
१७॰ गुरुवार का व्रत करें एवं बृहस्पति मन्त्र के पाठ की एक माला आवृत्ति केला के पेड़ के नीचे बैठकर करें।
१८॰ कन्या का विवाह हो चुका हो और वह विदा हो रही हो तो एक लोटे में
गंगाजल, थोड़ी-सी हल्दी, एक सिक्का डाल कर लड़की के सिर के ऊपर ७ बार
घुमाकर उसके आगे फेंक दें। उसका वैवाहिक जीवन सुखी रहेगा।
१९॰ जो
माता-पिता यह सोचते हैं कि उनकी पुत्रवधु सुन्दर, सुशील एवं होशियार हो तो
उसके लिए वीरवार एवं रविवार के दिन अपने पुत्र के नाखून काटकर रसोई की आग
में जला दें।
२०॰ विवाह में बाधाएँ आ रही हो तो गुरुवार से प्रारम्भ कर २१ दिन तक प्रतिदिन निम्न मन्त्र का जप १०८ बार करें-
“मरवानो हाथी जर्द अम्बारी। उस पर बैठी कमाल खां की सवारी। कमाल खां मुगल
पठान। बैठ चबूतरे पढ़े कुरान। हजार काम दुनिया का करे एक काम मेरा कर। न
करे तो तीन लाख पैंतीस हजार पैगम्बरों की दुहाई।”
२१॰ किसी भी शुक्रवार की रात्रि में स्नान के बाद १०८ बार स्फटिक माला से निम्न मन्त्र का जप करें-
“ॐ ऐं ऐ विवाह बाधा निवारणाय क्रीं क्रीं ॐ फट्।”
२२॰ लड़के के शीघ्र विवाह के लिए शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को ७० ग्राम अरवा
चावल, ७० सेमी॰ सफेद वस्त्र, ७ मिश्री के टुकड़े, ७ सफेद फूल, ७ छोटी
इलायची, ७ सिक्के, ७ श्रीखंड चंदन की टुकड़ी, ७ जनेऊ। इन सबको सफेद वस्त्र
में बांधकर विवाहेच्छु व्यक्ति घर के किसी सुरक्षित स्थान में शुक्रवार
प्रातः स्नान करके इष्टदेव का ध्यान करके तथा मनोकामना कहकर पोटली को ऐसे
स्थान पर रखें जहाँ किसी की दृष्टि न पड़े। यह पोटली ९० दिन तक रखें।
२३॰ लड़की के शीघ्र विवाह के लिए ७० ग्राम चने की दाल, ७० से॰मी॰ पीला
वस्त्र, ७ पीले रंग में रंगा सिक्का, ७ सुपारी पीला रंग में रंगी, ७ गुड़
की डली, ७ पीले फूल, ७ हल्दी गांठ, ७ पीला जनेऊ- इन सबको पीले वस्त्र में
बांधकर विवाहेच्छु जातिका घर के किसी सुरक्षित स्थान में गुरुवार प्रातः
स्नान करके इष्टदेव का ध्यान करके तथा मनोकामना कहकर पोटली को ऐसे स्थान पर
रखें जहाँ किसी की दृष्टि न पड़े। यह पोटली ९० दिन तक रखें।
२४॰ श्रेष्ठ वर की प्राप्ति के लिए बालकाण्ड का पाठ करे।
मंगली दोष का ज्योतिषीय आधार (Astrological analysis of Manglik Dosha)----
मंगल उष्ण प्रकृति का ग्रह है.इसे पाप ग्रह माना जाता है. विवाह और
वैवाहिक जीवन में मंगल का अशुभ प्रभाव सबसे अधिक दिखाई देता है. मंगल दोष
जिसे मंगली के नाम से जाना जाता है इसके कारण कई स्त्री और पुरूष आजीवन
अविवाहित ही रह जाते हैं.इस दोष को गहराई से समझना आवश्यक है ताकि इसका भय
दूर हो सके.
वैदिक ज्योतिष में मंगल को लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम,
अष्टम और द्वादश भाव में दोष पूर्ण माना जाता है.इन भावो में उपस्थित मंगल
वैवाहिक जीवन के लिए अनिष्टकारक कहा गया है.जन्म कुण्डली में इन पांचों
भावों में मंगल के साथ जितने क्रूर ग्रह बैठे हों मंगल उतना ही दोषपूर्ण
होता है जैसे दो क्रूर होने पर दोगुना, चार हों तो चार चार गुणा.मंगल का
पाप प्रभाव अलग अलग तरीके से पांचों भाव में दृष्टिगत होता है
जैसे: लग्न भाव में मंगल (Mangal in Ascendant ) लग्न भाव से व्यक्ति का
शरीर, स्वास्थ्य, व्यक्तित्व का विचार किया जाता है.लग्न भाव में मंगल होने
से व्यक्ति उग्र एवं क्रोधी होता है.यह मंगल हठी और आक्रमक भी बनाता है.इस
भाव में उपस्थित मंगल की चतुर्थ दृष्टि सुख सुख स्थान पर होने से गृहस्थ
सुख में कमी आती है.सप्तम दृष्टि जीवन साथी के स्थान पर होने से पति पत्नी
में विरोधाभास एवं दूरी बनी रहती है.अष्टम भाव पर मंगल की पूर्ण दृष्टि
जीवनसाथी के लिए संकट कारक होता है.
द्वितीय भाव में मंगल (Mangal in
Second Bhava) भवदीपिका नामक ग्रंथ में द्वितीय भावस्थ मंगल को भी मंगली
दोष से पीड़ित बताया गया है.यह भाव कुटुम्ब और धन का स्थान होता है.यह मंगल
परिवार और सगे सम्बन्धियों से विरोध पैदा करता है.परिवार में तनाव के कारण
पति पत्नी में दूरियां लाता है.इस भाव का मंगल पंचम भाव, अष्टम भाव एवं
नवम भाव को देखता है.मंगल की इन भावों में दृष्टि से संतान पक्ष पर विपरीत
प्रभाव होता है.भाग्य का फल मंदा होता है.
चतुर्थ भाव में मंगल
(Mangal in Fourth Bhava) चतुर्थ स्थान में बैठा मंगल सप्तम, दशम एवं एकादश
भाव को देखता है.यह मंगल स्थायी सम्पत्ति देता है परंतु गृहस्थ जीवन को
कष्टमय बना देता है.मंगल की दृष्टि जीवनसाथी के गृह में होने से वैचारिक
मतभेद बना रहता है.मतभेद एवं आपसी प्रेम का अभाव होने के कारण जीवनसाथी के
सुख में कमी लाता है.मंगली दोष के कारण पति पत्नी के बीच दूरियां बढ़ जाती
है और दोष निवारण नहीं होने पर अलगाव भी हो सकता है.यह मंगल जीवनसाथी को
संकट में नहीं डालता है.
सप्तम भाव में मंगल (Mangal in Seventh
Bhava) सप्तम भाव जीवनसाथी का घर होता है.इस भाव में बैठा मंगल वैवाहिक
जीवन के लिए सर्वाधिक दोषपूर्ण माना जाता है.इस भाव में मंगली दोष होने से
जीवनसाथी के स्वास्थ्य में उतार चढ़ाव बना रहता है.जीवनसाथी उग्र एवं
क्रोधी स्वभाव का होता है.यह मंगल लग्न स्थान, धन स्थान एवं कर्म स्थान पर
पूर्ण दृष्टि डालता है.मंगल की दृष्टि के कारण आर्थिक संकट, व्यवसाय एवं
रोजगार में हानि एवं दुर्घटना की संभावना बनती है.यह मंगल चारित्रिक दोष
उत्पन्न करता है एवं विवाहेत्तर सम्बन्ध भी बनाता है.संतान के संदर्भ में
भी यह कष्टकारी होता है.मंगल के अशुभ प्रभाव के कारण पति पत्नी में दूरियां
बढ़ती है जिसके कारण रिश्ते बिखरने लगते हैं.जन्मांग में अगर मंगल इस भाव
में मंगली दोष से पीड़ित है तो इसका उपचार कर लेना चाहिए.
अष्टम
भाव में मंगल (Mangal in Eigth Bhava) अष्टम स्थान दुख, कष्ट, संकट एवं आयु
का घर होता है.इस भाव में मंगल वैवाहिक जीवन के सुख को निगल लेता
है.अष्टमस्थ मंगल मानसिक पीड़ा एवं कष्ट प्रदान करने वाला होता है.जीवनसाथी
के सुख में बाधक होता है.धन भाव में इसकी दृष्टि होने से धन की हानि और
आर्थिक कष्ट होता है.रोग के कारण दाम्पत्य सुख का अभाव होता है.ज्योतिष
विधान के अनुसार इस भाव में बैठा अमंलकारी मंगल शुभ ग्रहों को भी शुभत्व
देने से रोकता है.इस भाव में मंगल अगर वृष, कन्या अथवा मकर राशि का होता है
तो इसकी अशुभता में कुछ कमी आती है.मकर राशि का मंगल होने से यह संतान
सम्बन्धी कष्ट देता है।
द्वादश भाव में मंगल (Mangal in Twelth
Bhava) कुण्डली का द्वादश भाव शैय्या सुख, भोग, निद्रा, यात्रा और व्यय का
स्थान होता है.इस भाव में मंगल की उपस्थिति से मंगली दोष लगता है.इस दोष के
कारण पति पत्नी के सम्बन्ध में प्रेम व सामंजस्य का अभाव होता है.धन की
कमी के कारण पारिवारिक जीवन में परेशानियां आती हैं.व्यक्ति में काम की
भावना प्रबल रहती है.अगर ग्रहों का शुभ प्रभाव नहीं हो तो व्यक्ति में
चारित्रिक दोष भी हो सकता है..
भावावेश में आकर जीवनसाथी को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं.इनमें गुप्त रोग व रक्त सम्बन्धी दोष की भी संभावना रहती है.
जब दो कुंडली के मिलान में ग्रहों का माकूल साथ हो तो प्रेम भी होगा और
प्रेम विवाह भी। ज्योतिष की मानें तो चंद्र और शुक्र का साथ किसी भी
व्यक्ति को प्रेमी बना सकता है और यही ग्रह अगर विवाह के घर से संबंध रखते
हों तो इस प्रेम की परिणति विवाह के रूप में तय है। ऐसा नहीं कि प्रारब्ध
को मानने से कर्म की महत्ता कम हो जाती है लेकिन इतना तय है कि ग्रहों का
संयोग आपके जीवन में विरह और मिलन का योग रचता है। किसी भी व्यक्ति के
प्रेम करने के पीछे ज्योतिषीय कारण भी होते हैं। कुंडली में शुक्र और चंद्र
की प्रबलता है तो किसी भी जातक का प्रेम में पड़ना स्वाभाविक है। कुंडली
में पाँचवाँ घर प्रेम का होता है और सातवाँ घर दाम्पत्य का माना जाता है।
लग्न, पंचम, सप्तम या एकादश भाव में शुक्र का संबंध होने से प्रेम होता है।
जब पाँचवें और सातवें घर में संबंध बनता है तो प्रेम विवाह में तब्दील हो
जाता है।शुक्र या चंद्र के अलावा वृषभ, तुला और कर्क राशि के जातक भी प्रेम
करते हैं। शुक्र और चंद्र प्रेम विवाह करवाते हैं तो सूर्य की मौजूदगी
संबंधों में विच्छेद का कारण भी बनती है। सूर्य और शुक्र या शनि का आपसी
संबंध जोड़े को अलग करने में मुख्य भूमिका निभाता है। सप्तम भाव का संबंध
यदि सूर्य से हो जाए तो भी युवा प्रेमी युगल का नाता लंबे समय तक नहीं
चलता। इनकी युति तलाक तक ले जाती है। अब आँखें चार हों तो कुंडली देख लें,
संभव है शुक्र और चंद्र का साथ आपको प्रेमी बना रहा हो।
प्राय: सभी
माता-पिता यह चाहते हैं कि उनकी बेटी या बेटे की शादी होने के बाद उनका
जीवन सुखमय और सौहार्दपूर्ण रहे। दोनों में वैचारिक मतभेद नहीं हों और वे
तरक्की करें। लेकिन शादी होने के बाद यदि पति-पत्नी के बीच क्लेश और विवाद
होने लगें और नौबत तलाक तक आ जाए, तो यह विचारणीय विषय है।
विवाह के
बाद यदि दांपत्य सुख न मिले या पति-पत्नी के बीच मतभेद जीवनपर्यन्त चलते
रहें, आपसी सामंजस का अभाव हो, तो इसका ज्योतिषीय कारण कुंडली में कुछ बाधक
योगों का होना हो सकता है। क्योंकि बाधक योग होने पर ही पति-पत्नी के बीच
वैचारिक मतभेद होते हैं और उनमें एक-दूसरे के प्रति भावनात्मक लगाव कम होने
लगता है। यदि ऎसी स्थिति किसी के साथ हो तो भयभीत नहीं हों, इन बाधक योगों
के उपचार कर लेने से प्रतिकूल प्रभावों में कमी आती है। दांपत्य सुख में
बाधक योग कौन से संभव हैं और उनका परिहार ज्योतिष में क्या बताया गया है
इसे समझें।
विवाह भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण संस्कार है। कहते हैं
कि जोड़ियां संयोग से बनती हैं जो कि परमात्मा द्वारा पहले से ही तय होती
हैं। यह भी सत्य है कि अच्छी पत्नी व अच्छी सन्तान भाग्य से ही मिलती है।
पूर्वजन्म के कर्मों के अनुसार ही जीवन साथी मिलता है, यदि सुकर्म अधिक हैं
तो वैवाहिक जीवन सुखमय और कुकर्म अधिक हैं तो वैवाहिक जीवन दुखमय होता है।
जन्मकुंडली में विवाह का विचार सातवें भाव से होता है। इस भाव से पति
एवं पत्नी, काम (भोग विलास), विवाह से पूर्व एवं पश्चात यौन संबंध,
साझेदारी आदि का विचार मुख्य रूप से किया जाता है।
फलित ज्योतिष में योग की महत्ता---
सप्तम यानी केन्द्र स्थान विवाह और जीवनसाथी का घर होता है. इस घर पर अशुभ
ग्रहों का प्रभाव होने पर या तो विवाह विलम्ब से होता है या फिर विवाह के
पश्चात वैवाहिक जीवन में प्रेम और सामंजस्य की कमी रहती है.
जिनकी
कुण्डली में ग्रह स्थिति कमज़ोर हो और मंगल एवं शुक्र एक साथ बैठे हों उनके
वैवाहिक जीवन में अशांति और परेशानी बनी रहती है. ग्रहों के इस योग के
कारण पति पत्नी में अनबन रहती है.
शनि और राहु का सप्तम भाव होना भी
वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है क्योंकि दोनों ही पाप ग्रह
दूसरे विवाह की संभावना पैदा करते हैं.
राहु, सूर्य, शनि व द्वादशेश
पृथकतावादी ग्रह हैं, जो सप्तम (दाम्पत्य)और द्वितीय (कुटुंब) भावों पर
विपरीत प्रभाव डालकर वैवाहिक जीवन को नारकीय बना देते हैं। दृष्टि या युति
संबंध से जितना ही विपरीत या शुभ प्रभाव होगा उसी के अनुरूप वैवाहिक जीवन
सुखमय या दुखमय होगा।
राहु की दशा में शादी हो,या राहु सप्तम को पीडित कर रहा हो,तो शादी होकर टूट जाती है,यह सब दिमागी भ्रम के कारण होता है।
चन्द्रमा मन का कारक है,और वह जब बलवान होकर सप्तम भाव या सप्तमेश से सम्बन्ध रखता हो तो चौबीसवें साल तक विवाह करवा ही देता है।
अष्टकूट मिलान(वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रह मैत्री, गण, भकूट और नाड़ी) आवश्यक है और ठीक न हो तो भी वैचारिक मतभेद रहता है।
जिस कन्या की जन्मकुंडली के लग्न में चन्द्र, बुध, गुरु या शुक्र उपस्थित होता है, उसे धनवान पति प्राप्त होता है।
जब सप्तमेश एकादश भाव में उपस्थित हो तो जातक की पत्नी रूपवती,
संस्कारयुक्त, मृदुभाषी व सुंदर होती है तथा विवाह के पश्चात जातक की
आर्थिक आय में वृद्धि होती है या पत्नी के माध्यम से भी उसे आर्थिक लाभ
प्राप्त होते हैं।
क्यों हे आजकल मेलापक की जरुरत/आवश्यकता---विवाह
योग्य वर वधु का भली-भांति विचार कर इन दोनों का मेलापक मिलान करना चाहिए|
दम्पति की प्रकृति, मनोवृति एंव अभिरुचि तथा स्वाभावगत अन्य विशेषताओं में
कितनी समानता है| यह हम नक्षत्र मेलापक से जान सकते है प्रणय या
दांम्पत्य संबधों के लिए वर वधु का मेलापक अनिवार्य रूप से विचारणीय है|
कुछ लोग यह कह सकते है कि ज्योतिषियों द्धारा मेलापक के बाद किए गये विवाह
भी बहुधा असफल होते देखें गये है| अनेक दांम्पत्यो में वैचारिक मतभेद या
वैमनस्य रहता है| अनेक युगल गृह-क्लेश से परेशान होकर तलाक ले लेते है तथा
अनेक लोग धनहीन, सन्तानहीन या प्रेमहीन होकर बुझे मन से गाड़ी ढकेलते देखें
जाते है| मेलापक का विचार करने के बाद विवाह करना सुखमय दांमपत्य जीवन की
क्या गारंटी है| यह कैसे कहां जा सकता है इस प्रकार की शंकाएं अनेकलोगों के
मन में रहती है ज्योतिषी द्धारा मेलापक मिलवाने के बाद विवाह करने पर भी
काफी लोगों का दांमपत्य जीवन आज सुखमय नहीं है इसके कुछ कारण है |
1
बिना जन्मपत्री मिलाएं विवाह करना 2 नकली जन्मपत्री बनवाकर मिलान करवाना 3
प्रचलित नाम से मिलान करवाना 4 जन्मकुंडली का ठीक न होना 5 जिस किसी
व्यक्ति से जन्मपत्रियों का मिलान का निणर्य करा लेना|
जिस किसी से
मिलवान करा लेना आज ज्योतिष कुछ ऐसे लोगों के हाथों में फंस गया है जिनको
ज्योतिष शास्त्र की यथार्थ जानकारी तो क्या प्रारंभिक बातें भी ठीक-ठीक रूप
से पता नहीं है ज्योतिष शास्त्र से अनभिज्ञ ज्योतिषीयो की संख्या हमारे
देश में ज्यादा है यधपि तो पांच प्रतिशत व्यक्ति ज्योतिष शास्त्र के
अधिकारी विदा्न भी है किन्तु मेलापक का कार्य करने वाले लोगों में अधिकांश
लोग इस शास्त्र की पुरी जानकारी नही रखते| जो लोग इस शास्त्र के अच्छे
ज्ञाता या विद्वान है सामान्य लोग उनके पास पहुंच नहीं पाते तथा ये विद्वान
अपने स्तर से उतर कर कार्य नहीं करते| इन्ही कारणों से मेलापक का कार्य
अनेक नीम-हकीम ज्योतिषीयो द्दारा हो जाता है|
कुडंलीयो का मेलापक करना
या विधी मिलाना एक जिम्मेदारीपूर्ण कार्य है| जिसमें सुझबुझ की आवश्यकता
है| बोलते नाम से नक्षत्र व राशियां ज्ञात कर उनके आधार पर रेडीमेड मेलापक
सारणी से गुण संख्या निकाल लेते है यदि 18 से गुण कम हो तो विवाह को
अस्वीकृत कर देते है| यदि 18 से ज्यादा गुण हो तो विवाह की स्वीकृति दे
देते है यदि जन्मपत्री उपलब्ध हो तो यह देखते हैं कि वर कि कुडंली में
लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्धादश, में मंगल तो नहीं है| अगर मंगल इन्ही
भावों में हो तो कन्या की कुडंली में इन्ही भावों में मंगल ढुढते है| यदि
कन्या कि कुडंली में इन्ही भावो में मंगल मिला तो गुण-दोष का परिहार बता
देते है|
मंगल की बजाय यदि इन्ही भावों में से किसी में शनि, राहु,
केतु, या सूर्य मिल जाय तो भी गुण दोष का परिहार बताकर जन्मपत्रियों के मिल
जाने की घोषणा 5-10 मिनटों में ही कर देते है| मेलापक करना एक
उत्तरदायित्य पूर्ण कार्य है इसे नामधारी ज्योतिषी दो अपरिचित व्यक्तीयो के
भावी भाग्य एवं दामपत्य जीवन का फैसला कर देता है यह कैसी विडम्बना है कि
आज हर एक पण्डित, करमकाण्डी, कथावाचक, पुजारी, साधु एवं सन्यासी स्वयं को
ज्योतिषी बतलाने में लगा हुआ है| इससे भी दुभाग्य की बात यह है कि जनता
ऐसे तथाकथित ज्योतिषीयों के पास अपने भाग्य का निणर्य कराने, मुहूर्त और
मेलापक पूछने जाती है तथा ये नामधारी ज्योतिषी लोगों के भाग्य का फैसला
चुटकियाँ बजाते-बजाते कर देते है| यही कारण है कि इन लोगों से मेलापक
मिलवाने के बाद ही वैवाहिक जीवन सुखमय न होने के असंख्य उदाहरण सामने आते
है|
मै यह नहीं कहता कि पण्डित, करमकाण्डी, कथावाचन या पुजारियों में
सभी लोग ज्योतिष से अनभिज्ञ होते है इनमें भी कुछ लोग ज्योतिष शास्त्र के
अच्छे ज्ञात होते है परन्तु इनकी संख्या प्रतिशत की दष्टि काफी कम है|
ज्योतिष को न जानने वाले लोगो की संख्या सवाधिक है|
मेरी राय में
मेलापक का विचार ज्योतिष शास्त्र के अच्छे विद्वान से कराना चाहिए| उन्हें
विचार करने के लिए भी पुरा अवसर देना चाहिए| मेलापक विचार कोई बच्चों का
खेल नहीं है यह एक गूढ़ विषय है, जिसका सावधानी पूवर्क विचार करना चाहिए
तथा नक्षत्र मेलापक के साथ-साथ लड़के की कुडंली से स्वास्थ्य, शिक्षा,
भाग्य, आयु, चरित्र एवं संतान क्षमता का विचार अवश्य है| कन्या की कुडंली
से स्वा स्वास्थ्य, स्वभाव, भाग्य, आयु, चरित्र एवं प्रजनन क्षमता का
विचार कर लेना चाहिए|
बाधक योग-----
जन्म कुंडली में 6, 8, 12
स्थानों को अशुभ माना जाता है। मंगल, शनि, राहु-केतु और सूर्य को क्रूर
ग्रह माना है। इनके अशुभ स्थिति में होने पर दांपत्य सुख में कमी आती है।
-सप्तमाधिपति द्वादश भाव में हो और राहू लग्न में हो, तो वैवाहिक सुख में बाधा होना संभव है।
-सप्तम भावस्थ राहू युक्त द्वादशाधिपति से वैवाहिक सुख में कमी होना संभव
है। द्वादशस्थ सप्तमाधिपति और सप्तमस्थ द्वादशाधिपति से यदि राहू की युति
हो तो दांपत्य सुख में कमी के साथ ही अलगाव भी उत्पन्न हो सकता है।
-लग्न में स्थित शनि-राहू भी दांपत्य सुख में कमी करते हैं।
-सप्तमेश छठे, अष्टम या द्वादश भाव में हो, तो वैवाहिक सुख में कमी होना संभव है।
-षष्ठेश का संबंध यदि द्वितीय, सप्तम भाव, द्वितीयाधिपति, सप्तमाधिपति अथवा शुक्र से हो, तो दांपत्य जीवन का आनंद बाधित होता है।
-छठा भाव न्यायालय का भाव भी है। सप्तमेश षष्ठेश के साथ छठे भाव में हो या
षष्ठेश, सप्तमेश या शुक्र की युति हो, तो पति-पत्नी में न्यायिक संघर्ष
होना भी संभव है।
-यदि विवाह से पूर्व कुंडली मिलान करके उपरोक्त दोषों
का निवारण करने के बाद ही विवाह किया गया हो, तो दांपत्य सुख में कमी नहीं
होती है। किसी की कुंडली में कौन सा ग्रह दांपत्य सुख में कमी ला रहा है।
इसके लिए किसी विशेषज्ञ की सलाह लें।
विवाह योग के लिये जो कारक मुख्य है वे इस प्रकार हैं-
सप्तम भाव का स्वामी खराब है या सही है वह अपने भाव में बैठ कर या किसी अन्य स्थान पर बैठ कर अपने भाव को देख रहा है।
सप्तम भाव पर किसी अन्य पाप ग्रह की द्रिष्टि नही है।
कोई पाप ग्रह सप्तम में बैठा नही है।
यदि सप्तम भाव में सम राशि है।
सप्तमेश और शुक्र सम राशि में है।
सप्तमेश बली है।
सप्तम में कोई ग्रह नही है।
किसी पाप ग्रह की द्रिष्टि सप्तम भाव और सप्तमेश पर नही है।
दूसरे सातवें बारहवें भाव के स्वामी केन्द्र या त्रिकोण में हैं,और गुरु से द्रिष्ट है।
सप्तमेश की स्थिति के आगे के भाव में या सातवें भाव में कोई क्रूर ग्रह नही है।
विवाह नही होगा अगर-----
सप्तमेश शुभ स्थान पर नही है।
सप्तमेश छ: आठ या बारहवें स्थान पर अस्त होकर बैठा है।
सप्तमेश नीच राशि में है।
सप्तमेश बारहवें भाव में है,और लगनेश या राशिपति सप्तम में बैठा है।
चन्द्र शुक्र साथ हों,उनसे सप्तम में मंगल और शनि विराजमान हों।
शुक्र और मंगल दोनों सप्तम में हों।
शुक्र मंगल दोनो पंचम या नवें भाव में हों।
शुक्र किसी पाप ग्रह के साथ हो और पंचम या नवें भाव में हो।
शुक्र बुध शनि तीनो ही नीच हों।
पंचम में चन्द्र हो,सातवें या बारहवें भाव में दो या दो से अधिक पापग्रह हों।
सूर्य स्पष्ट और सप्तम स्पष्ट बराबर का हो।
विवाह में देरी-----
सप्तम में बुध और शुक्र दोनो के होने पर विवाह वादे चलते रहते है,विवाह आधी उम्र में होता है।