Tuesday, March 8, 2011

पितृ दोष

मृत्यु के पश्चात संतान अपने पिता का श्राद्ध नहीं करते हैं एवं उनका जीवित अवस्था में अनादर करते हैं तो पुनर्जन्म में उनकी कुण्डली में पितृदोष ( Pitra dosha) लगता है. सर्प हत्या या किसी निरपराध की हत्या से भी यह दोष लगता है.पितृ दोष को अशुभ प्रभाव देने वाला माना जाता है. इस दोष की स्थिति एवं उपचार क्या है आइये देखते हैं.
कुण्डली में पितृ दोष: (Pitra Dosha in the Kundali)
सूर्य को पिता माना जाता है. राहु छाया ग्रह है (Rahu is a shadow planet). जब यह सूर्य के साथ युति (combination of Rahu and Sun) करता है तो सूर्य को ग्रहण लगता है इसी प्रकार जब कुण्डली में सूर्य चन्द्र और राहु मिलकर किसी भाव में युति बनाते हैं ( conjunction of Rahu, Sun and Moon) तब पितृ दोष लगता है. पितृ दोष होने पर संतान के सम्बन्ध में व्यक्ति को कष्ट भोगना पड़ता है. इस दोष में विवाह में बाधा, नौकरी एवं व्यापार में बाधा एवं महत्वपूर्ण कार्यों में बार बार असफलता मिलती है.
कुण्डली में पितृ दोष के कई लक्षण बताए जाते हैं जैसे चन्द्र लग्नेश (Moon’s lord of the ascendant) और सूर्य लग्नेश (Sun’s lord of the ascendant) जब नीच राशि (Debilitated sign) में हों और लग्न में या लग्नेश के साथ युति (combination) या दृष्टि (aspect) सम्बन्ध बनाते हों और उन पर पापी ग्रहों (malefic planet) का प्रभाव होता है तब पितृ दोष लगता है. लग्न व लग्नेश कमज़ोर (combusted ascendant or lord of the ascendant) हो और नीच लग्नेश के साथ राहु और शनि का युति और दृष्टि सम्बन्ध होने पर भी यह स्थिति बनती है. अशुभ भावेश (inauspicious lord of a house) शनि चन्द्र से युति या दृष्टि सम्बन्ध बनाता है अथवा चन्द्र शनि के नक्षत्र या उसकी राशि में हो तब व्यक्ति की कुण्डली पितृ दोष से पीड़ित होती है.
लग्न में गुरू नीच (combusted Jupiter) का हो और उस पर पापी ग्रहों का प्रभाव पड़ता हो अथवा त्रिक भाव (trine house) के स्वामियो से बृहस्पति दृष्ट या युति बनाता हो तब पितर व्यक्ति को पीड़ा देते हैं. नवम भाव में बृहस्पति और शुक्र की युति बनती हो एवं दशम भाव में चन्द्र पर शनि व केतु का प्रभाव हो तो पितृ दोष वाली स्थिति बनती है. शुक्र अगर राहु अथवा शनि और मंगल द्वारा पीड़ित होता है तब पितृ दोष का संकेत समझना चाहिए. अष्टम भाव में सूर्य व पंचम में शनि हो तथा पंचमेश राहु से युति कर रहा हो और लग्न पर पापी ग्रहों का प्रभाव हो तब पितृ दोष समझना चाहिए.
पंचम अथवा नवम भाव में पापी ग्रह हो या फिर पंचम भाव में सिंह राशि हो और सूर्य भी पापी ग्रहों से युत या दृष्ट हो तब पितृ दोष की पीड़ा होती है. कुण्डली में द्वितीय भाव, नवम भाव, द्वादश भाव और भावेश पर पापी ग्रहों का प्रभाव होता है या फिर भावेश अस्त या कमज़ोर होता है और उनपर केतु का प्रभाव होता है तब यह दोष बनता है. जिनकी कुण्डली में दशम भाव का स्वामी त्रिक भाव (trikha house)में होता है और बृहस्पति पापी ग्रहों के साथ स्थित होता है एवं लग्न और पंचम भाव पर पाप ग्रहों का प्रभाव होता है उन्हें भी पितृ दोष के कारण कष्ट भोगना होता है.
पितृ दोष उपचार (Remedies of Pitra Dosha)
जिनकी कुण्डली में पितृ दोष है उन्हें इसकी शांति और उपचार कराने से लाभ मिलता है. पितृ दोष शमन के लिए नियमित पितृ कर्म करना चाहिए अगर यह संभव नहीं हो तो पितृ पक्ष में श्राद्ध करना चाहिए. नियमित कौओं और कुत्तों का खाना देना चाहिए. पीपल में जल देना चाहिए. ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए. गौ सेवा और गोदान करना चाहिए. विष्णु भगवान की पूजा लाभकारी है.

अंक ज्योतिष से विवाह


अंकशास्त्र में मुख्य रूप से नामांक (Name Number), मूलांक (Root Number) और भाग्यांक (Destiny Number) इन तीन विशेष अंकों को आधार मानकर फलादेश किया जाता है. विवाह के संदर्भ में भी इन्हीं तीन प्रकार के अंकों के बीच सम्बन्ध को देखा जाता है.
अंक ज्योतिष (Numerology) भविष्य जानने की एक विधा है. अंक ज्योतिष से ज्योतिष की अन्य विधाओं की तरह भविष्य और सभी प्रकार के ज्योंतिषीय प्रश्नों का उत्तर ज्ञात किया जा सकता है. विवाह जैसे महत्वपूर्ण विषय में भी अंक ज्योतिष और उसके उपाय काफी मददगार साबित होते हैं.
अंक ज्योंतिष अपने नाम के अनुसार अंक पर आधारित है. अंक शास्त्र के अनुसार सृष्टि के सभी गोचर और अगोचर तत्वों अपना एक निश्चत अंक होता है. अंकों के बीच जब ताल मेल नहीं होता है तब वे अशुभ या विपरीत परिणाम देते हैं. अंकशास्त्र में मुख्य रूप से नामांक, मूलांक और भाग्यांक इन तीन विशेष अंकों को आधार मानकर फलादेश किया जाता है. विवाह के संदर्भ में भी इन्हीं तीन प्रकार के अंकों के बीच सम्बन्ध को देखा जाता है. अगर वर और वधू के अंक आपस में मेल खाते हैं तो विवाह हो सकता है. अगर अंक मेल नहीं खाते हैं तो इसका उपाय करना होता है ताकि अंकों के मध्य मधुर सम्बन्ध स्थापित हो सके.
वैदिक ज्योतिष (Vedic Astrology) एवं उसके समानांतर चलने वाली ज्योतिष विधाओं में वर वधु के वैवाहिक जीवन का आंकलन करने के लिए जिस प्रकार से कुण्डली से गुण मिलाया जाता ठीक उसी प्रकार अंकशास्त्र में अंकों को मिलाकर (Numerology Marriage compatibility) वर वधू के वैवाहिक जीवन का आंकलन किया जाता है.
अंकशास्त्र से वर वधू का गुण मिलान (Matching for marriage through Numerology)
अंकशास्त्र में वर एवं वधू के वैवाहिक गुण मिलान के लिए, अंकशास्त्र के प्रमुख तीन अंकों में से नामांक ज्ञात किया जाता है. नामांक ज्ञात करने के लिए दोनों के नामों को अंग्रेजी के अलग अलग लिखा जाता है. नाम लिखने के बाद सभी अक्षरों के अंकों को जोड़ा जाता है जिससे नामांक ज्ञात होता है. ध्यान रखने योग्य तथ्य यह है कि अगर मूलक 9 से अधिक हो तो योग से प्राप्त संख्या को दो भागों में बांटकर पुन: योग किया जाता है. इस प्रकार जो अंक आता है वह नामांक होता है. उदाहरण से योग 32 आने पर 3+2=5. वर का अंक 5 हो और कन्या का अंक 8 तो दोनों के बीच सहयोगात्मक सम्बन्ध रहेगा, अंकशास्त्र का यह नियम है.
वर वधू के नामांक का फल (Matching by Name Number)
अंकशास्त्र के नियम के अनुसार अगर वर का नामांक 1 है और वधू का नामांक भी एक है तो दोनों में समान भावना एवं प्रतिस्पर्धा रहेगी जिससे पारिवारिक जीवन में कलह की स्थिति होगी. कन्या का नामांक 2 होने पर किसी कारण से दोनों के बीच तनाव की स्थिति बनी रहती है. वर 1 नामांक का हो और कन्या तीन नामांक की तो उत्तम रहता है दोनों के बीच प्रेम और परस्पर सहयोगात्मक सम्बन्ध रहता है. कन्या 4 नामंक की होने पर पति पत्नी के बीच अकारण विवाद होता रहता है और जिससे गृहस्थी में अशांति रहती है. पंचम नामंक की कन्या के साथ गृहस्थ जीवन सुखमय रहता है. सप्तम और नवम नामाक की कन्या भी 1 नामांक के वर के साथ सुखमय वैवाहिक जीवन का आनन्द लेती है जबकि षष्टम और अष्टम नामांक की कन्या और 1 नमांक का वर होने पर वैवाहिक जीवन के सुख में कमी आती है.
वर का नामांक 2 हो और कन्या 1 व 7 नामांक की हो तब वैवाहिक जीवन के सुख में बाधा आती है. 2 नामांक का वर इन दो नामांक की कन्या के अलावा अन्य नामांक वाली कन्या के साथ विवाह करता है तो वैवाहिक जीवन आनन्दमय और सुखमय रहता है. तीन नामांक की कन्या हो और वर 2 नामांक का तो जीवन सुखी होता है परंतु सुख दुख धूप छांव की तरह होता है. वर 3 नामांक का हो और कन्या तीन, चार अथवा पांच नामांक की हो तब अंकशास्त्र के अनुसार वैवाहिक जीवन उत्तम नहीं रहता है. नामांक तीन का वर और 7 की कन्या होने पर वैवाहिक जीवन में सुख दु:ख लगा रहता है. अन्य नामांक की कन्या का विवाह 3 नामांक के पुरूष से होता है तो पति पत्नी सुखी और आनन्दित रहते हैं.
4 अंक का पुरूष हो और कन्या 2, 4, 5 अंक की हो तब गृहस्थ जीवन उत्तम रहता है. चतुर्थ वर और षष्टम या अष्टम कन्या होने पर वैवाहिक जीवन में अधिक परेशानी नहीं आती है. 4 अंक के वर की शादी इन अंकों के अलावा अन्य अंक की कन्या से होने पर गृहस्थ जीवन में परेशानी आती है. 5 नामांक के वर के लिए 1, 2, 5, 6, 8 नामांक की कन्या उत्तम रहती है. चतुर्थ और सप्तम नामांक की कन्या से साथ गृहस्थ जीवन मिला जुला रहता है जबकि अन्य नामांक की कन्या होने पर गृहस्थ सुख में कमी आती है. षष्टम नामांक के वर के लिए 1एवं  6 अंक की कन्या से विवाह उत्तम होता है. 3, 5, 7, 8 एवं 9 नामांक की कन्या के साथ गृहस्थ जीवन सामान्य रहता है और  2 एवं चार नामांक की कन्या के साथ उत्तम वैवाहिक जीवन नहीं रह पाता.
वर का नामांक 7 होने पर कन्या अगर 1, 3, 6, नामांक की होती है तो पति पत्नी के बीच प्रेम और सहयोगात्मक सम्बन्ध होता है. कन्या अगर 5, 8 अथवा 9 नामंक की होती है तब वैवाहिक जीवन में थोड़ी बहुत परेशानियां आती है परंतु सब सामान्य रहता है. अन्य नामांक की कन्या होने पर पति पत्नी के बीच प्रेम और सहयोगात्मक सम्बन्ध नहीं रह पाता है. आठ नामांक का वर 5, 6 अथवा 7 नामांक की कन्या के साथ विवाह करता है तो दोनों सुखी होते हैं. 2 अथवा 3 नामांक की कन्या से विवाह करता है तो वैवाहिक जीवन सामान्य बना रहता है जबकि अन्य नामांक की कन्या से विवाह करता है तो परेशानी आती है. 9 नामांक के वर के लिए 1, 2, 3, 6 एवं 9 नामांक की कन्या उत्तम होती है जबकि 5 एवं 7 नामांक की कन्या सामान्य होती है. 9 नामांक के वर के लिए 4 और 8 नामांक की कन्या से विवाह करना अंकशास्त्र की दृष्टि से शुभ नही होता है