Thursday, February 24, 2011

गुगल का धुआं करें, घर का वातावरण होगा शुद्ध


वातावरण में हमेशा ही कई प्रकार के कीटाणु रहते हैं जो कि हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। घर में अच्छी तरह सफाई करने के बाद भी कई ऐसे कीटाणु जो आंखों से दिखाई नहीं देते, मौजूद रहते हैं। इनसे हमारे स्वास्थ्य को नुकसान तो है साथ ही घर का वातावरण भी अपवित्र रहता है।

घर के माहौल को शुद्ध और पवित्र बनाने के लिए प्रतिदिन सुबह के समय कंडे पर थोड़ी सी गुग्गल डालकर रखें। अब गुग्गल से जो धुआं निकले उसे घर के हर कमरे में पहुंचाएं। इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा खत्म होगी और वास्तुदोषों का नाश होगा।

इस धुएं से वातावरण में मौजूद कई हानिकारक कीटाणु स्वत: ही नष्ट हो जाते हैं और घर का वातावरण एकदम शुद्ध और पवित्र हो जाता है। गुगल के धुएं से और अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए  इस मंत्र का जप करें- ऊं नारायणाय नम:

यह मंत्र भगवान विष्णु का मंत्र है। चूंकि धन की देवी महालक्ष्मी भगवान श्रीहरि की पत्नी है अत: भगवान का मंत्र जप करने वाले व्यक्ति से देवी लक्ष्मी भी प्रसन्न रहती हैं। देवी महालक्ष्मी की कृपा आपके घर पर होगी तथा धन संबंधी परेशानियां दूर होंगी।

Saturday, February 19, 2011

जानें और कब तक रहेंगे आपके बुरे दिन?

राशियां और ग्रह हमारे जीवन को पूरी तरह से प्रभावित करते है। यदि आपकी कुंडली में कोई ग्रह अशुभ फल देने वाला है तो वह अपनी वर्तमान स्थिति के अनुसार जब तक उस राशि में रहेगा तब तक आपको परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। उसी तरह शुभ ग्रह अच्छा फल प्रदान करते हैं।

जानिए... कौन सा ग्रह, एक राशि में कितने समय तक रहता है और कब तक आपके जीवन को प्रभावित करता है।



जो ग्रह आपकी राशि में रहता है उसी के अनुसार आपको फल प्राप्त होते हैं। अत: ग्रह स्थिति के अनुसार विशेष पूजा-अर्चना करनी चाहिए।



सूर्य- अगर आपकी कुंडली में सूर्य अशुभ है तो आपको सूर्य की वर्तमान स्थिति के अनुसार एक माह तक उसका फल मिलेगा।

चंद्र- किसी राशि वाले के लिए यह ग्रह अशुभ होने पर कुछ समय के लिए ही बुरा फल देता है। यानी सवा दो दिन ।

मंगल- एक राशि पर डेढ़ माह तक रहता है इसलिए इसका बुरा फल 45 दिन तक ही रहता है।

बुध- यह ग्रह एक राशि पर 30 तक ही अपना अच्छा या बुरा फल देता है।

गुरु- एक राशि पर गुरु का प्रभाव 12 महीने तक रहता है।

शुक्र- यह ग्रह एक राशि पर 27 दिन तक रहता है। इसलिए इसका शुभ अशुभ प्रभाव 27 दिन तक ही रहता है।

शनि- एक राशि पर शनि का शुभ-अशुभ प्रभाव ढाई साल तक रहता है।

राहु और केतु एक राशि पर डेढ़ साल तक अपना प्रभाव देते हैं। ये दोनो छाया ग्रह है इसलिए इनका शुभ अशुभ प्रभाव बदलता रहता है।

यदि कुंडली का केंद्र स्थान खाली हो...

कुंडली में चार केंद्र स्थान होते हैं। यह प्रथम, चतुर्थ, सप्तम एवं दशम भाव होते हैं जो कि तन, सुख, दांपत्य एवं कर्म के कारक होते हैं।

यदि केंद्र में शुभ ग्रह हो तो जातक लक्ष्मीपति होता है। वहीं केंद्र में उच्च के पाप ग्रह बैठे हो तो जातक राजा तो होता ही है पर वह धन से हीन होता है।

सूर्य यदि उच्च को हो तथा गुरु केंद्र में चतुर्थ स्थान पर बैठा हो तो जातक आधुनिक केंद्र या राज्य में मंत्री पद को प्राप्त करता है। सूर्य के केंद्र में होने से जातक राजा का सेवक, चंद्रमा केंद्र में हो तो व्यापारी, मंगल केंद्र में हो तो व्यक्ति सेना में कार्य करता है।

बुध के केंद्र में होने से अध्यापक तथा गुरु के केंद्र में होने से विज्ञानी, शुक्र के केंद्र में होने पर धनवान तथा विद्यावान होता है। शनि के केंद्र में होने से नीच जनों की सेवा करने वाला होता है।

यदि केंद्र में कोई भी ग्रह नहीं हो तो जातक समस्या ग्रस्त परेशान रहता है। कोई भी ग्रह केंद्र में न हो तथा आप, ऋण, रोग, दरिद्रता से परेशान हो तो निम्न उपाय करें।

- शिवजी की उपासना करें।

- सोमवार का व्रत करें।

- भगवान शिव पर चांदी का नाग अर्पण करें।

- बिल्व पत्रों से 108 आहूतियां दें।

अलग-अलग रिश्तों के लिए अलग है ग्रह पूजा

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली से व्यक्ति के सभी पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों पर विचार किया जाता है। कुंडली के ग्रहों की स्थिति से मालूम किया जा सकता है कि उस व्यक्ति के अपने परिवार के लोगों से कैसे रिश्ते हैं और भविष्य में कैसे रहेंगे? मित्र कैसे हैं? इसी तरह अन्य सभी रिश्तों पर विचार किया जा सकता है।

हर रिश्ते को अलग-अलग ग्रह प्रभावित करते हैं-

रिश्ता- रिश्ते को प्रभावित करने वाला ग्रह

राज्य- सूर्य

भाई, मित्र- मंगल

गुरु, पिता, दादा- गुरु

चाचा, ताऊ- शनि

पुत्र- केतु

माता, दादी- चंद्र

पुत्री, बहन, बुआ- बुध

पत्नी या पति- शुक्र

ससुराल, ननिहाल- राहु

हर रिश्ता कैसा रहेगा यह कुंडली में स्थित ग्रहों के शुभ-अशुभ होने पर निर्भर करता है।

- यदि आपको राज्य या समाज में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो आप सूर्य की आराधना करें। प्रतिदिन सूर्य को जल चढ़ाएं, इससे समाज में यश, मान-सम्मान मिलेगा।

- भाई या मित्र से संबंध ठीक नहीं रहते तो मंगलदेव की आराधना करें। प्रति मंगलवार शिवलिंग पर लाल फूल चढ़ाएं।

- यदि पिता, दादा या गुरु से रिश्ता ठीक नहीं है तो गुरु अथवा ब्रहस्पति की पूजा कराएं। प्रतिदिन शिवजी को पीले फूल अर्पित करें।

- यदि चाचा या ताऊजी से संबंधों खटास है तो शनिवार को शनिदेव के निमित्त तेल का दान करें।

- यदि पुत्र आपकी नहीं सुनता, तो केतु का उपचार करें। केतु संबंधी वस्तुओं का दान दें।

- चंद्र की आराधना से माता और दादी से रिश्तों में सुधार आएगा।

- पुत्री, बहन या बुआ से रिश्तों में कड़वाहट आ गई है तो बुध ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान करें। बुधवार को श्रीगणेश को दूर्वा अर्पित करें।

- यदि पति-पत्नी के रिश्तों में किसी तरह की परेशानियां आ रही हैं तो शुक्रदेव को मनाएं। शुक्रवार को शुक्र ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान करें।

- ससुराल या ननिहाल वालों को मनाने के लिए राहु जप कराएं।

जल्दी शादी के लिए गुरुवार का व्रत ही क्यों?

कहते हैं जिन लोगों की कुंडली में दोष होता है उनकी शादी में विघ्र आते हैं या तो उनकी शादी या तो बहुत जल्दी होती है या बहुत देर से होती है। लोगों के विवाह में देरी का एक कारण मंगली लड़की या लड़के का ना मिलना भी होता है। समय पर योग्य वर या वधु नहीं मिल पाते हैं। जो मिलते हैं वहां कोई दूसरी समस्या सामने आ जाती है। ऐसे में शीघ्र विवाह के लिए गुरु के उपाय करने को कहा जाता है।



ज्योतिष के अनुसार गृहस्थ जीवन को गुरु प्रभावित करता है। पारिवारिक शांति और सुखमय गृहस्थ जीवन के लिए बृहस्पति यानी गुरु से संबंधित उपाय किए जाते है तो निश्चित ही घर में सुख शांति बनी रहती है। दरअसल गुरु को विवाह का कारक गृह माना जाता है। जब किसी की कुंडली में गुरु अशुभ होता है तो उसकी कुंडली में विवाह विलंब योग बनता है।गुरु को जन्मकुंडली के सप्तम भाव का कारक माना जाता है।





कुंडली का यह भाव पति या पत्नी का माना गया है। इसलिए मंगल होने पर भी मंगल के उपाय के साथ ही ज्योतिषों द्वारा गुरुवार का व्रत रखने की ओर गुरु से जुड़े उपाय करने की सलाह दी जाती है ताकि जन्मकुंडली के दोष का निवारण हो और विवाह योग्य लड़के या लड़की का शीघ्र विवाह हो जाए।

Monday, February 7, 2011

हमारे द्वारा कार्य करने की प्रक्रिया



हमारे द्वारा कार्य करने की प्रक्रिया :-
हमारी इन्द्रियां जो कुछ देखती है ,सुनती है ,स्पर्श करती है ,सूंघती है ,चखती या स्वाद लेती है वो सुचना हमारे मन के पास पहुचती है ! मन फिर वो सूचना बुद्धि को देता है फिर बुद्धि उसके बारे में सोच विचार करती है ! सोच विचार करके बुद्धि मन को जवाब देती है फिर मन इन्द्रियों को जवाब देता है फिर इन्द्रियां जवाब के अनुसार अपना काम करती है ! 

मति में अगर तप है,मति अगर सुमति है ,बुद्धि सात्विक है तो वह उस सुचना का विवेक करती है ।
मति में अगर तप नहीं है , बुद्धि तामसी ,राजसी है तो वह मन इन्द्रियों को जो अच्छा लगे वही निर्णय देती है।

और ऐसा करते करते इन्सान की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है,जब देखने, सुनने, चखने, भोगने की वासना मति ने स्वीकार कर ली तो मति का स्वभाव हो जाता है कि अभी वह चखना है, यह खाना है, यह भोगना है। ऐसा करते-करते जीवन पूरा हो जाता है फिर भी कुछ न कुछ करना-भोगना, खाना-पीना बाकी रह जाता है। 

मनुष्य जन्म में ऐसी मति मिली है कि इससे वह भूत का, भविष्य का चिन्तन-विचार कर सकता है। पशु तो कुछ समय के बाद अपने माँ-बाप को भी भूल जाते हैं, भाई-बहन को भी भूल जाते है और संसार व्यवहार कर लेते हैं। मनुष्य की मति में स्मृति (याददास्त ) रहती है। इसलिए जो भी करो सोच समझकर करो,और फिर जैसा आप करोगे उसका परिणाम भी आपको ही भुगतना पड़ेगा !
हम अपनी बुद्धि को सात्विक बना सकते हैं, अपनी मति को सुमति बना सकते हैं ओर ये जप, तप ,ध्यान और सत्संग से संभव है
♥ हरी ॐ

सत्य धर्म

 
संतों ने ठीक ही कहा हैः

" साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।  
 जाके हिरदे साँच है, ताके हिरदे आप।”

'सत्य के समान कोई तप नहीं है एवं झूठ के समान कोई पाप नहीं है। जिसके हृदय में सच्चाई है, उसके  
हृदय में स्वयं परमात्मा निवास करते हैं।'

गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कहा हैः --"धरम न दूसरा सत्य समाना।"

सत्य के समान दूसरा कोई धर्म नहीं है।

मोहनदास कर्मचन्द गांधी ने अपने विद्यार्थी काल में सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र नामक नाटक देखा। उनके जीवन पर इसका इतना प्रभाव पड़ा कि उन्होंने दृढ़ निर्णय कर लियाः 'कुछ भी हो जाय, मैं सदैव सत्य ही बोलूँगा।

उन्होंने सत्य को ही अपना जीवनमंत्र बना लिया।

१.►एक बार पाठशाला में खेलकूद का कार्यक्रम चल रहा था। खेलकूद में रूचि न होने के कारण गांधीजी देर से आये ! देर से आया देखकर शिक्षक ने पूछाः "इतनी देर से क्यों आये ?"

मोहनलालः "खेलकूद में मेरी रूचि नहीं है और घर पर थोड़ा काम भी था, इसलिए देर से आया।"

शिक्षकः "तुम्हें एक आने का अर्थदण्ड(जुर्माना ) देना पड़ेगा।"

दण्ड सुनकर मोहनलाल रोने लगे। शिक्षक ने उन्हें रोते देखकर कहाः

"तुम्हारे पिता करमचंद गाँधी तो धनवान आदमी हैं। एक आना दण्ड के लिए क्यों रोते हो ?"

मोहनलालः "में एक आने के लिए नहीं रो रहा , मेने सच बता दिया ,कोई बहाना नहीं बनाया है, फिर भी आपको मेरी बात पर विश्वास नहीं होता इसीलिए मुझे रोना आ गया।"

मोहनलाल की सच्चाई देखकर शिक्षक ने उन्हें माफ कर दिया। ये ही विद्यार्थी मोहन लाल आगे चलकर महात्मा गाँधी के रूप में करोड़ों-करोड़ों लोगों के दिलों-दिमाग पर छा गये।

२.►एक बार परीक्षा के समय स्कूल में शिक्षा विभाग के कुछ इन्सपैक्टर आये हुए थे। उन्होंने कक्षा के समस्त विद्यार्थियों को एक-एक कर पाँच शब्द लिखवाये। अचानक कक्षा - अध्यापक ने एक बालक की कापी देखी जिसमें एक शब्द गल्त लिखा था। अध्यापक ने उस बालक को पैर से इशारा किया कि पडोसी की कॉपी से गलत शब्द ठीक कर ले। ऐसे ही उन्होंने दूसरे बालकों को भी इशारा करके समझा दिया और सबने अपने शब्द ठीक कर लिये, पर उस बालक ने कुछ न किया।

इन्सपैक्टरों के चले जाने पर अध्यापक ने भरी कक्षा में उसे डाँटा और झिड़कते हुए कहा कि इशारा करने पर भी अपना शब्द ठीक नहीं किया ? कितना मूर्ख है !

इस पर बालक ने कहाः "अपने अज्ञान पर पर्दा डालकर दूसरे की नकल करना सच्चाई नहीं है।"

अध्यापकः "तुमने सत्य का व्रत कब लिया और कैसे लिया ?"

बालक ने उत्तर दियाः "राजा हरिश्चन्द्र के नाटक को देखकर, जिन्होंने सत्य की रक्षा के लिए अपनी पत्नी, पुत्र और स्वयं को बेचकर अपार कष्ट सहते हुए भी सत्य की रक्षा की थी।"

यह बालक कोई ओर नहीं बल्कि मोहनलाल करमचन्द गाँधी ही थे।


► सत्य का आचरण करने वाला निर्भय रहता है। उसका आत्मबल बढ़ता है। असत्य से ,सत्य अनंतगुना बलनान है। 
जो बात - बात में झूठ बोल देते है, उनका विश्वास कोई नहीं करता है। फिर एक झूठ को छिपाने के लिए सौ बार झूठ भी बोलना पड़ता है। अतः इन सब बातों से बचने के लिए पहले से ही सत्य का आचरण करना चाहिए। सत्य का आचरण करने वाला सदैव सबका प्रिय हो जाता है। 
शास्त्रों में भी आता हैः (सत्यं वद। धर्में चर।)

"सत्य बोलो। धर्म का आचरण करो। जीवन की वास्तिवक उन्नति सत्य में ही निहित है।"


जीवन काल की समाप्ति पर, जब हमारे शव को अर्थी पर ले जायेंगे तब भी लोग ये ही कहेंगे कि "राम नाम सत्य है "
उस दिन हमे पता चलता है की ये संसार तो झूठा था !

इसलिए आज से अभी से अपने आप को सत्य की ओर लगा दो , राम की ओर लगा दो !

"जय श्री राम " 

7 का महत्व

 





















* सात फेरे : ►
वैदिक रीति के अनुसार आदर्श विवाह में परिजनों के सामने अग्नि को अपना साक्षी मानते हुए सात फेरे लिए जाते हैं। प्रारंभ में कन्या आगे और वर पीछे चलता है। भले ही माता-पिता कन्या दान कर दें, भाई लाजा होम कर दे किंतु विवाह की पूर्णता सप्तपदी के पश्चात तभी मानी जाती है जब वर के साथ सात कदम चलकर कन्या अपनी स्वीकृति दे देती है। शास्त्रों ने अंतिम अधिकार कन्या को ही दिया है।

*सात वचन :►
वामा बनने से पूर्व कन्या वर से यज्ञ, दान में उसकी सहमति, आजीवन भरण-पोषण, धन की सुरक्षा, संपत्ति ख़रीदने में सम्मति, समयानुकूल व्यवस्था तथा सखी-सहेलियों में अपमानित न करने के सात वचन कन्या द्वारा वर से भराए जाते हैं। इसी प्रकार कन्या भी पत्नी के रूप में अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए सात वचन भरती है। सप्तपदी में पहला पग भोजन व्यवस्था के लिए, दूसरा शक्ति संचय, आहार तथा संयम के लिए, तीसरा धन की प्रबंध व्यवस्था हेतु, चौथा आत्मिक सुख के लिए, पाँचवाँ पशुधन संपदा हेतु, छटा सभी ऋतुओं में उचित रहन-सहन के लिए तथा अंतिम सातवें पग में कन्या अपने पति का अनुगमन करते हुए सदैव साथ चलने का वचन लेती है तथा सहर्ष जीवन पर्यंत पति के प्रत्येक कार्य में सहयोग देने की प्रतिज्ञा करती है।

*सात दिन :►
वर्ष एवं महीनों के काल खंडों को सात दिनों के सप्ताह में विभाजित किया गया है। 


*सात घोड़े :►
सूर्य के रथ में सात घोड़े होते हैं जो सूर्य के प्रकाश से मिलनेवाले सात रंगों में प्रकट होते हैं।


*सात रंग :►
आकाश में इंद्र धनुष के समय वे सातों रंग स्पष्ट दिखाई देते हैं। दांपत्य जीवन में इंद्रधनुषी रंगों की सतरंगी छटा बिखरती रहे इस कामना से 'सप्तपदी' की प्रक्रिया पूरी की जाती है।


*सात स्वर :►
सर्वविदित है कि भारतीय संगीत में सा, रे, गा, मा, पा, धा, नि अर्थात - षड़ज, ऋषभ, गांधोर, मध्यम, पंचम, धैवत तथा निषाद ये सात स्वर होते हैं।


*सात तल :►
इसी प्रकार अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल ये सात तल कहे गए हैं।


*सात ऋषि :►
मन, वचन और कर्म के प्रत्येक तल पर पति-पत्नी के रूप में हमारा हर कदम एक साथ उठे इसलिए आज अग्निदेव के समक्ष हम साथ-साथ सात कदम रखते हैं। हमारे जीवन में कदम-कदम पर मरीचि, अंगिरा, अत्रि, पुलह, केतु, पौलस्त्य और वैशिष्ठ ये सात ऋषि हम दोनों को अपना आशीर्वाद प्रदान करें तथा सदैव हमारी रक्षा करें।


*सात लोक :►
भू, भुवः स्वः, महः, जन, तप और सत्य नाम के सातों लोकों में हमारी कीर्ति हो। हम अपने गृहस्थ धर्म का जीवन पर्यंत पालन करते हुए एक-दूसरे के प्रति सदैव एकनिष्ठ रहें और पति-पत्नी के रूप में जीवन पर्यंत हमारा यह बंधन सात समंदर पार तक अटूट बना रहे तथा हमारा प्यार सात समुद्रों की भांति विशाल और गहरा हो। हमारे प्राचीन मनीषियों ने बहुत सोच-समझकर विवाह में इन परंपराओं की नींव रखी थी। विवाह संस्कार की संपूर्ण प्रक्रिया के पीछे वैज्ञानिक कारण हैं। दांपत्य के भावी जीवन रूपी भवन का भविष्य 'विवाह संस्कार' निर्भर करता है।


*सात शुभ पदार्थ :►
प्रातःकाल मंगल दर्शन के लिए सात पदार्थ शुभ माने गए हैं। गोरोचन, चंदन, स्वर्ण, शंख, मृदंग, दर्पण और मणि इन सातों या इनमें से किसी एक का दर्शन अवश्य करना चाहिए।


*सात क्रियाएँ : ►
शौच, दंतधावन, स्नान, ध्यान, भोजन, भजन और शयन सात क्रियाएँ मानव जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। अतः नित्य कर्म के रूप में इन्हें अवश्य करना चाहिए।

*सात स्नान :►
वेद स्मृति में स्नान भी सात प्रकार के बताए गए हैं। मंत्र स्नान, भौम स्नान, अग्नि स्नान, वायव्य स्नान, दिव्य स्नान, करुण स्नान तथा मानसिक स्नान जो क्रमशः मंत्र, मिट्टी, भस्म, गौखुर की धूल, सूर्य किरणों में, वर्षाजल, गंगाजल तथा आत्मचिंतन द्वारा किए जाते हैं। 


*सात अभिवादन योग्य :►
शास्त्रों में माता, पिता, गुरु, ईश्वर, सूर्य, अग्नि और अतिथि इन सातों को अभिवादन करना अनिवार्य बताया गया है

*सात आंतरिक अशुद्धियाँ :►
ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, लोभ, मोह, घृणा और कुविचार ये सात आंतरिक अशुद्धियाँ बताई गई हैं। अतः इनसे बचने के लिए सदैव सचेष्ट रहना चाहिए,

*सात सदाचार :►
बाह्यशुद्धि, पूजा-पाठ, मंत्र-जप, दान-पुण्य, तीर्थयात्रा, ध्यान-योग तथा विद्या और ज्ञान !


*सात विशिष्ट लाभ :►
जीवन में सुख, शांति, भय का नाश, विष से रक्षा, ज्ञान, बल और विवेक की वृद्धि 

*सात दांत साफ़ करने के वृक्ष :►
आयुर्वेद के अनुसार दाँतों की सफ़ाई करने के लिए आम, नीम, बेल, बबूल, गूलर, करंज तथा खैर - इन सात हरे वृक्षों की टहनी से बनी दातौन अच्छी मानी जाती है। लसौढ़ा, पलाश, कपास, नील, धव, कुश और काश - इन सातों से बनी दातौन से दाँत साफ़ करना वर्जित कहा गया है। 

*आयु में सात माह / सात दिन की कटोती :►
शनिवार के दिन बाल या नाखून काटने से उस दिन के अभिमानी देवता सात माह की आयु क्षीण कर देते हैं तथा सोमवार को बाल या नाखून काटने से सात माह की आयु वृद्धि होती हैं।