 वृष लग्न की कुंडली के प्रथम भाव में राहु हो तो...
वृष लग्न की कुंडली के प्रथम भाव में राहु हो तो...
जिन
 लोगों की कुंडली वृष लग्न की है और उसके प्रथम भाव में राहु स्थित है तो 
उन लोगों को स्वास्थ्य के संबंध में थोड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता 
है। कुंडली का प्रथम भाव शरीर से संबंधित होता है। इस स्थान वृष राशि का 
स्वामी शुक्र है और शुक्र की राशि में राहु हो तो व्यक्ति दिखने में 
सामान्य रहता है। ये लोग गुप्त चतुराइयों से कार्य करते हैं। साथ ही इन 
लोगों के जीवन में बहुत सी परेशानियों आती हैं और उसी के बाद इन्हें सफलता 
प्राप्त होती है।
वृष लग्न के द्वितीय भाव राहु हो तो...
इस
 लग्न की कुंडली में द्वितीय भाव धन एवं कुटुम्ब से संबंधित होता है। इस 
स्थान मिथुन राशि का स्वामी ग्रह बुध है। यहां राहु का उच्च का रहता है। 
अत: इस ग्रह स्थिति के प्रभाव से व्यक्ति को अनेक योजनाएं बनानी की शक्ति 
मिलती है। ये लोग बहुत चतुर रहते हैं। ये लोग धनी होते हैं और घर-परिवार से
 भी संपन्न रहते हैं। इनका धन बढ़ते रहता है। फिर भी कई बार घर-परिवार में 
कुछ तनाव बना ही रहता है। 
 यदि वृष लग्न की कुंडली में राहु तृतीय भाव में हो तो...
वृष
 लग्न की कुंडली में राहु यदि तृतीय स्थान पर स्थित हो तो व्यक्ति को अक्सर
 परेशानियों का सामना करना पड़ता है। तीसरा स्थान पराक्रम और भाई-बहन से 
संबंधित होता है। इस भाव कर्क राशि का स्वामी चंद्र है। चंद्र तथा राहु को 
एक-दूसरे का शत्रु माना जाता है। शत्रु राशि में होने से राहु मानसिक तनाव 
बढ़ाता है। इन लोगों को घर-परिवार और व्यवसाय की चिंताएं सताती रहती हैं।
वृष लग्न की कुंडली के चतुर्थ भाव में राहु हो तो...
इस
 लग्न की कुंडली में चतुर्थ भाव सिंह राशि का है और इसका स्वामी सूर्य है। 
सूर्य और राहु को शत्रु माना जाता है। अत: सूर्य की राशि में होने पर राहु 
व्यक्ति को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यह भाव माता 
एवं भूमि से संबंधित होता है। इस ग्रह स्थिति के कारण व्यक्ति को माता की 
ओर से भी सुख में कमी रहती है। इन्हें भूमि और भवन से भी पर्याप्त लाभ 
प्राप्त नहीं हो पाता है।
वृष लग्न की कुंडली के पंचम भाव में राहु हो तो...
जिन
 लोगों की कुंडली वृष लग्न की है और उसके पंचम भाव में राहु हो तो व्यक्ति 
को संतान से कष्ट प्राप्त होने की संभावनाएं रहती हैं। इस कुंडली का पांचवा
 भाव कन्या राशि है और इसका स्वामी बुध ग्रह है। बुध की राशि में राहु होने
 पर व्यक्ति नशा करने वाला हो सकता है। ये लोग गुप्त विद्याओं में अधिक 
कार्य करते हैं। इन लोगों को जीवनसाथी से विशेष सहयोग प्राप्त होता है।
वृष लग्न की कुंडली के षष्ठम भाव में राहु हो तो...
वृष
 लग्न की कुंडली के षष्ठम भाव में राहु होने पर व्यक्ति को शत्रुओं पर विजय
 प्राप्त होती रहती है। इस लग्न में षष्ठम भाव तुला राशि है और इसका स्वामी
 शुक्र ग्रह है। शुक्र की राशि में राहु हो तो व्यक्ति गुप्त शक्तियों की 
विद्या जानने वाला होता है। इन लोगों को मानसिक अशांति का सामना करना पड़ता
 है। परेशानियों में हिम्मत से काम लेते हैं और सफलता प्राप्त कर लेते हैं। 
वृष लग्न की कुंडली के सप्तम भाव में राहु हो तो...
कुंडली
 का सातवां भाव स्त्री तथा व्यवसाय से संबंधित है। इस लग्न में सप्तम भाव 
वृश्चिक राशि का है और इसका स्वामी है मंगल। मंगल की राशि में राहु होने पर
 व्यक्ति को पत्नी की ओर से कई प्रकार के कष्ट झेलने पड़ते हैं। इन लोगों 
को आय के संबंध में कई परेशानियां रहती है।
वृष लग्न की कुंडली के अष्टम भाव में राहु हो तो...
ज्योतिष
 के अनुसार कुंडली का अष्टम भाव आयु एवं पुरातत्व से संबंधित होता है। इस 
भाव धनु राशि का स्वामी गुरु है। गुरु की राशि में राहु होने पर व्यक्ति को
 स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। आयु के घर में राहु 
होने से आयु में भी कमी हो सकती है। धनु राशि में राहु होने से व्यक्ति 
व्यवहारिक तथा सज्जन होता है। जीवन में काफी मेहनत के बाद सफलता प्राप्त 
करते हैं।
वृष लग्न की कुंडली के नवम भाव में राहु हो तो...
इस
 लग्न की कुंडली का नवम भाव मकर राशि का स्थान होता है। इसका स्वामी शनि 
है। कुंडली का नवम भाव भाग्य एवं धर्म से संबंधित होता है। इस स्थान पर 
राहु होने से व्यक्ति का स्वभाव धार्मिक नहीं होता है लेकिन वह खुद धर्म के
 प्रति लगाव रखने वाला ही बताता है। इन लोगों के पास काफी पैसा रहता है। इस
 ग्रह स्थिति के कारण व्यक्ति कई गुप्त योजनाओं से ही स्वयं का भाग्य बनाता
 है।
वृष लग्न की कुंडली के दशम भाव में राहु हो तो...
जिन
 लोगों की कुंडली वृष लग्न की है और उसके दशम भाव में राहु स्थित है तो 
व्यक्ति को शासकीय कार्यों में थोड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता 
है। दसवां भाव राज्य एवं पिता से संबंधित होता है। इस भाव कुंभ राशि का 
स्वामी शनि है और शनि की राशि में राहु होने पर पिता से अक्सर वाद-विवाद का
 सामना करना पड़ता है। राज्य एवं व्यवसाय के क्षेत्र में भी कठिनाइयां 
उपस्थित होती हैं।
वृष लग्न की कुंडली के एकादश भाव में राहु हो तो...
कुंडली
 का ग्याहरवां भाव लाभ का स्थान माना जाता है। इस लग्न की कुंडली में इस 
भाव मीन राशि का स्वामी गुरु है और गुरु की इस राशि में राहु होने पर 
आर्थिक क्षेत्र में व्यक्ति को कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 
ज्योतिष के अनुसार इस स्थान पर यदि कोई क्रूर ग्रह हो तो व्यक्ति को कड़ी 
मेहनत के बाद बड़ी सफलता मिलने के योग होते हैं। राहु भी एक क्रूर ग्रह 
माना जाता है यह लाभ के स्थान पर राहु मेहनत अवश्य करवाता है लेकिन शुभ फल 
भी प्रदान करता है। इस ग्रह स्थिति के कारण व्यक्ति को गुप्त योजनाओं का 
सहारा लेना पड़ता है। तभी सफलता प्राप्त होती है।
वृष लग्न की कुंडली में राहु यदि द्वादश भाव में हो तो...
इस
 लग्न की कुंडली का 12वां भाव मेष राशि का है और इसका स्वामी मंगल है। मंगल
 की राशि में राहु व्यक्ति को अधिक खर्च करने वाला बनाता है। बाहरवां भाव 
व्यय एवं बाहरी स्थानों से संबंधित होता है। अत: इस स्थान पर राहु होने से 
व्यक्ति को आय से अधिक खर्च करने पड़ते हैं, कड़ी मेहनत करना होती है।
वृष लग्न की कुंडली के प्रथम भाव में केतु हो तो...
जिन
 लोगों की कुंडली वृष लग्न की है और उसके प्रथम भाव में केतु हो तो व्यक्ति
 को शारीरिक सौंदर्य में कुछ कमी रहती है। वृष लग्न की कुंडली का प्रथम भाव
 वृष राशि का होता है और उसका स्वामी शुक्र है। शुक्र की इस राशि में केतु 
होने पर व्यक्ति को चिंताओं का सामना करना पड़ता है। इन लोगों को शारीरिक 
परिश्रम अधिक करना पड़ता है। योग्यता के प्रभाव से अन्य लोगों को अच्छे से 
प्रभावित कर लेते हैं।
वृष लग्न की कुंडली के द्वितीय भाव में केतु हो तो...
कुंडली
 का दूसरा भाव धन एवं कुटुम्ब का स्थान माना जाता है। मिथुन राशि का यह 
स्थान है और इसका स्वामी बुध है। इन लोगों को कठिनाइयों एवं परेशानियों का 
सामना करना पड़ता है। इन्हें गुप्त योजनाओं के माध्यम से कार्यों में सफलता
 प्राप्त होती है। कठिन परिश्रम के बल पर ही कार्य पूर्ण होते हैं।
वृष लग्न की कुंडली के तृतीय भाव में केतु के प्रभाव...
यदि
 किसी व्यक्ति की कुंडली वृष लग्न की है और उसके तृतीय भाव में केतु है तो 
व्यक्ति को शत्रु एवं पराक्रम के क्षेत्र में काफी परेशानियों का सामना 
करना पड़ता है। तृतीय भाव कर्क राशि का स्वामी चंद्र है और चंद्र की राशि 
में केतु होने पर व्यक्ति को जीवन में कई बार बड़ी-बड़ी परेशानियों का 
सामना करना पड़ता है। ये लोग मन की कमजोरी और अभावों के चिंता न करते हुए 
हिम्मत से काम लेते हैं। धैर्य और परिश्रम से सभी कार्य पूर्ण कर लेते हैं।
 इन्हें जीवन में सफलता के लिए कड़ा संघर्ष करना होता है।
वृष लग्न की कुंडली के चतुर्थ भाव में केतु हो तो...
इस
 लग्न की कुंडली का चतुर्थ भाव सिंह राशि का है और इस भाव का स्वामी सूर्य 
है। सूर्य की राशि में केतु होने पर व्यक्ति को माता एवं भूमि के संबंध में
 काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। चौथा भाव माता, भूमि और सुख का 
स्थान होता है। केतु के प्रभाव से ये लोग गुप्त युक्तियों में माहिर होते 
हैं। सफलता के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है। 
वृष लग्न की कुंडली के पंचम भाव में केतु हो तो...
जिन
 लोगों की कुंडली वृष लग्न की है और उसके पंचम भाव में केतु स्थित है तो उन
 लोगों को विद्या और बुद्धि के क्षेत्र में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता 
है। इस लग्न का पंचम भाव कन्या राशि का है और इसका स्वामी बुध है। बुध की 
राशि में केतु होने पर व्यक्ति को धैर्य और साहस प्राप्त होता है। ऐसे लोग 
गुप्त योजनाओं के माध्यम से भी अपने कार्यों में सफलता प्राप्त कर लेते 
हैं।
वृष लग्न की कुंडली के षष्ठम भाव में केतु के फल...
इस
 लग्न की कुंडली में षष्ठम भाव का केतु होने पर व्यक्ति को हिम्मत प्राप्त 
होती है। षष्ठम भाव तुला राशि का स्वामी शुक्र है और शुक्र की इस राशि में 
केतु के प्रभाव से व्यक्ति गुप्त युक्तियों से ही सफलताएं प्राप्त करते 
हैं। कुंडली का षष्ठम भाव रोग से संबंधित होता है। इन लोगों को केतु के 
कारण कई प्रकार शारीरिक बीमारियों का सामना भी करना पड़ता है। जीवन की सभी 
परेशानियों का सामना हिम्मत और धैर्य के साथ करते हैं।
 वृष लग्न की कुंडली के सप्तम भाव में केतु हो तो...
यदि
 किसी व्यक्ति की कुंडली वृष लग्न की है और उसके सप्तम भाव में केतु हो तो 
व्यक्ति को स्त्री या पत्नी के संबंध में काफी कष्ट सहना पड़ते हैं। कुंडली
 का सातवां भाव स्त्री एवं व्यवसाय से संबंधित होता है। सप्तम भाव वृश्चिक 
राशि का स्वामी मंगल है। मंगल और केतु एक-दूसरे के शत्रु ग्रह माने जाते 
हैं। शत्रु की राशि में केतु होने पर व्यक्ति को मूत्राशय से संबंधित रोग 
तथा प्रमेह रोग होने की संभावनाएं रहती हैं। व्यवसाय के संबंध में लोगों को
 कई कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। संकटों का सामना करते हुए 
ये लोग सफलता प्राप्त कर सकते हैं लेकिन इन्हें धैर्य रखना चाहिए।
वृष लग्न की कुंडली के अष्टम भाव में केतु हो तो...
कुंडली
 का आठवां भाव मृत्यु और पुरातत्व से संबंधित होता है। इस लग्न में इस 
स्थान धनु राशि का स्वामी गुरु है। गुरु और केतु को एक-दूसरे का शत्रु माना
 जाता है। शत्रु की राशि में केतु होने पर व्यक्ति को जीवन निर्वाह के लिए 
कड़ी मेहनत करना होती है। इन लोगों को आयु तो लंबी मिलती है लेकिन अधिकांश 
समय इन्हें कठिनाइयों का सामना ही करना पड़ता है।