शत्रु पीड़ा अथवा संकट निवारण हेतु बजरंग बाण प्रयोग 
=====================================
 आज का समय भौतिकता का समय है |प्रतियोगिता का समय है |ऐसे में कभी कोई समस्या -संकट तो कभी कोई आती रहती है |अक्सर शत्रु भी पीड़ा पहुचाते है |कभी ज्ञात कभी अज्ञात |कभी रोग सताता है ,कभी रोजगार |ऐसे में कभी विशिष्ट कनकट के निवारण हेतु बजरंग बाण का प्रयोग किया जा सकता है |बजरंग बाण हनुमान जी की पूजा है ,इसे अनुष्ठान रूप में करने के लिए बजरंग बाण का १०८ पाठ लगातार किया जाता है |इसमें साधक या अनुष्ठान करता को इस दौरान उठाना नहीं चाहिए और इसे संकल्प पूर्वक करना चाहिए |इसलिए समस्त तैयारी पहले से होनी चाहिए एयर साधक को पूर्ण तैयार होकर बैठना चाहिए |इस साधना में लगभग तीन से चार घंटे का समय लग सकता है|
आज का समय भौतिकता का समय है |प्रतियोगिता का समय है |ऐसे में कभी कोई समस्या -संकट तो कभी कोई आती रहती है |अक्सर शत्रु भी पीड़ा पहुचाते है |कभी ज्ञात कभी अज्ञात |कभी रोग सताता है ,कभी रोजगार |ऐसे में कभी विशिष्ट कनकट के निवारण हेतु बजरंग बाण का प्रयोग किया जा सकता है |बजरंग बाण हनुमान जी की पूजा है ,इसे अनुष्ठान रूप में करने के लिए बजरंग बाण का १०८ पाठ लगातार किया जाता है |इसमें साधक या अनुष्ठान करता को इस दौरान उठाना नहीं चाहिए और इसे संकल्प पूर्वक करना चाहिए |इसलिए समस्त तैयारी पहले से होनी चाहिए एयर साधक को पूर्ण तैयार होकर बैठना चाहिए |इस साधना में लगभग तीन से चार घंटे का समय लग सकता है|
जब आप किसी समस्या के निवारण के लिए बजरंग बाण का अनुष्ठान करना चाहें तो पहले दिन का चुनाव करें |इसके लिए शनिवार या मंगलवार उत्तम होते हैं |पूजन में पांच अनाजों को पीसकर उससे दिया बनाया और उसे ही जलाया जाता है ,अतः गेहूं ,चावल ,मूंग ,उड़द और काले तिल एक दिन पूर्व ही भिगोकर रखें और अनुष्ठान के दिन उन्हें पीसकर मिश्रित कर दीपक बनाएं |दीपक में तिल का तेल डालें |बत्ती लाल कच्चे धागे का उपयोग करें ,अगर यह नहीं मिलता तो सफ़ेद कच्चे धागे को लाल रंग से रंग लें |इस धागे को अपने लम्बाई के बराबर तोड़ लें और उससे मोड़कर बत्ती का निर्माण करें |दीपक और बत्ती का निर्माण ऐसा हो की यह पूरे अनुष्ठान काल में जलता रहे बुझे नहीं |हनुमान साधना में दीपदान का बहुत महत्व है |पूजन में लाल मिठाई अथवा लड्डू का प्रयोग करें |लाल कपडा बिछाएं |कलश स्थापना करें आदि |हनुमान जी का चित्र अथवा मूर्ती पहले से अपने पास रखें |गुगुल का धुप रखें |साधना शांत वातावरण में होनी चाहिए अतः घर का एकांत कमरा अथवा पूजा स्थान चुने |अगर यहाँ दिक्कत हो तो समस्त सामग्री के साथ किसी हनुमान मंदिर में बैठकर अनुष्ठान संपन्न करें 
पूर्ण रूप से पवित्र -शुद्ध हो ऊनि अथवा कुश के आसन पर बैठें |पूजा में लगने वाली आवश्यक सामग्री पहले से व्यवस्थित कर अपने पास रखें |पवित्री कारन आचमन के बाद अपने सामने एक बाजोट या चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उसपर हनुमान जी का चित्र स्थापित करें |दीपक जलाएं और संकल्प करें |हनुमान जी की और दीपक की पूजा करें फिर बजरंग बाण का पाठ शुरू करें |पूर्ण बजरंग बाण का पाठ हो जाने पर उसे पुनः करें इस प्रकार १०८ बार पाठ करें |ध्यान हनुमान जी के मूर्ती या चित्र पर एकाग्र रखने का प्रयास करें |दीपक जलता रहे और गुगुल की धूनी होती रहे |१०८ पाठ पूर्ण हो जाने पर अपने पाठ जप को हनुमान जी के दाहिने हाथ में समर्पित कर प्रार्थना करें की वे आपकी मनोकामना पूर्ण करें |पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगें |उम्मीद करें की आपकी मनोकामना पूर्ण होगी |इस पाठ से दुर्भाग्य ,दारिद्र्य ,भूत-प्रेत प्रकोप का नाश होता है |असाध्य शारीरिक कष्ट से राहत मिलती है |संकट से मुक्ति मिलती है|
::::::::::::::::::बजरंग बाण :::::::::::::::::
========================== 
ध्यान
=====
अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं।
दनुज वन कृशानुं, ज्ञानिनामग्रगण्यम्।।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं।
रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।
चौपाई
जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।।
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै।।
जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा।।
बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा।।
अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।।
लाह समान लंक जरि गई। जै जै धुनि सुर पुर में भई।।
अब विलंब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होई दुख करहु निपाता।।
जै गिरधर जै जै सुख सागर। सुर समूह समरथ भट नागर।।
ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले। वैरहिं मारू बज्र सम कीलै।।
गदा बज्र तै बैरिहीं मारौ। महाराज निज दास उबारों।।
सुनि हंकार हुंकार दै धावो। बज्र गदा हनि विलम्ब न लावो।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीसा।।
सत्य होहु हरि सत्य पाय कै। राम दुत धरू मारू धाई कै।।
जै हनुमन्त अनन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत है दास तुम्हारा।।
वन उपवन जल-थल गृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।
पाँय परौं कर जोरि मनावौं। अपने काज लागि गुण गावौं।।
जै अंजनी कुमार बलवन्ता। शंकर स्वयं वीर हनुमंता।।
बदन कराल दनुज कुल घालक। भूत पिशाच प्रेत उर शालक।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल वीर मारी मर।।
इन्हहिं मारू, तोंहि शमथ रामकी। राखु नाथ मर्याद नाम की।।
जनक सुता पति दास कहाओ। ताकी शपथ विलम्ब न लाओ।।
जय जय जय ध्वनि होत अकाशा। सुमिरत होत सुसह दुःख नाशा।।
उठु-उठु चल तोहि राम दुहाई। पाँय परौं कर जोरि मनाई।।
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमंता।।
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल दल।।
अपने जन को कस न उबारौ। सुमिरत होत आनन्द हमारौ।।
ताते विनती करौं पुकारी। हरहु सकल दुःख विपति हमारी।।
ऐसौ बल प्रभाव प्रभु तोरा। कस न हरहु दुःख संकट मोरा।।
हे बजरंग, बाण सम धावौ। मेटि सकल दुःख दरस दिखावौ।।
हे कपिराज काज कब ऐहौ। अवसर चूकि अन्त पछतैहौ।।
जन की लाज जात ऐहि बारा। धावहु हे कपि पवन कुमारा।।
जयति जयति जै जै हनुमाना। जयति जयति गुण ज्ञान निधाना।।
जयति जयति जै जै कपिराई। जयति जयति जै जै सुखदाई।।
जयति जयति जै राम पियारे। जयति जयति जै सिया दुलारे।।
जयति जयति मुद मंगलदाता। जयति जयति त्रिभुवन विख्याता।।
ऐहि प्रकार गावत गुण शेषा। पावत पार नहीं लवलेषा।।
राम रूप सर्वत्र समाना। देखत रहत सदा हर्षाना।।
विधि शारदा सहित दिनराती। गावत कपि के गुन बहु भाँति।।
तुम सम नहीं जगत बलवाना। करि विचार देखउं विधि नाना।।
यह जिय जानि शरण तब आई। ताते विनय करौं चित लाई।।
सुनि कपि आरत वचन हमारे। मेटहु सकल दुःख भ्रम भारे।।
एहि प्रकार विनती कपि केरी। जो जन करै लहै सुख ढेरी।।
याके पढ़त वीर हनुमाना। धावत बाण तुल्य बनवाना।।
मेटत आए दुःख क्षण माहिं। दै दर्शन रघुपति ढिग जाहीं।।
पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की।।
डीठ, मूठ, टोनादिक नासै। परकृत यंत्र मंत्र नहीं त्रासे।।
भैरवादि सुर करै मिताई। आयुस मानि करै सेवकाई।।
प्रण कर पाठ करें मन लाई। अल्प-मृत्यु ग्रह दोष नसाई।।
आवृत ग्यारह प्रतिदिन जापै। ताकी छाँह काल नहिं चापै।।
दै गूगुल की धूप हमेशा। करै पाठ तन मिटै कलेषा।।
यह बजरंग बाण जेहि मारे। ताहि कहौ फिर कौन उबारे।।
शत्रु समूह मिटै सब आपै। देखत ताहि सुरासुर काँपै।।
तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई। रहै सदा कपिराज सहाई।।
दोहा
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै। सदा धरैं उर ध्यान।।
तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान।।

 



