संतों ने ठीक ही कहा हैः
" साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदे साँच है, ताके हिरदे आप।”
'सत्य के समान कोई तप नहीं है एवं झूठ के समान कोई पाप नहीं है। जिसके हृदय में सच्चाई है, उसके
हृदय में स्वयं परमात्मा निवास करते हैं।'
गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कहा हैः --"धरम न दूसरा सत्य समाना।"
सत्य के समान दूसरा कोई धर्म नहीं है।
मोहनदास कर्मचन्द गांधी ने अपने विद्यार्थी काल में सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र नामक नाटक देखा। उनके जीवन पर इसका इतना प्रभाव पड़ा कि उन्होंने दृढ़ निर्णय कर लियाः 'कुछ भी हो जाय, मैं सदैव सत्य ही बोलूँगा।
उन्होंने सत्य को ही अपना जीवनमंत्र बना लिया।
१.►एक बार पाठशाला में खेलकूद का कार्यक्रम चल रहा था। खेलकूद में रूचि न होने के कारण गांधीजी देर से आये ! देर से आया देखकर शिक्षक ने पूछाः "इतनी देर से क्यों आये ?"
मोहनलालः "खेलकूद में मेरी रूचि नहीं है और घर पर थोड़ा काम भी था, इसलिए देर से आया।"
शिक्षकः "तुम्हें एक आने का अर्थदण्ड(जुर्माना ) देना पड़ेगा।"
दण्ड सुनकर मोहनलाल रोने लगे। शिक्षक ने उन्हें रोते देखकर कहाः
"तुम्हारे पिता करमचंद गाँधी तो धनवान आदमी हैं। एक आना दण्ड के लिए क्यों रोते हो ?"
मोहनलालः "में एक आने के लिए नहीं रो रहा , मेने सच बता दिया ,कोई बहाना नहीं बनाया है, फिर भी आपको मेरी बात पर विश्वास नहीं होता इसीलिए मुझे रोना आ गया।"
मोहनलाल की सच्चाई देखकर शिक्षक ने उन्हें माफ कर दिया। ये ही विद्यार्थी मोहन लाल आगे चलकर महात्मा गाँधी के रूप में करोड़ों-करोड़ों लोगों के दिलों-दिमाग पर छा गये।
२.►एक बार परीक्षा के समय स्कूल में शिक्षा विभाग के कुछ इन्सपैक्टर आये हुए थे। उन्होंने कक्षा के समस्त विद्यार्थियों को एक-एक कर पाँच शब्द लिखवाये। अचानक कक्षा - अध्यापक ने एक बालक की कापी देखी जिसमें एक शब्द गल्त लिखा था। अध्यापक ने उस बालक को पैर से इशारा किया कि पडोसी की कॉपी से गलत शब्द ठीक कर ले। ऐसे ही उन्होंने दूसरे बालकों को भी इशारा करके समझा दिया और सबने अपने शब्द ठीक कर लिये, पर उस बालक ने कुछ न किया।
इन्सपैक्टरों के चले जाने पर अध्यापक ने भरी कक्षा में उसे डाँटा और झिड़कते हुए कहा कि इशारा करने पर भी अपना शब्द ठीक नहीं किया ? कितना मूर्ख है !
इस पर बालक ने कहाः "अपने अज्ञान पर पर्दा डालकर दूसरे की नकल करना सच्चाई नहीं है।"
अध्यापकः "तुमने सत्य का व्रत कब लिया और कैसे लिया ?"
बालक ने उत्तर दियाः "राजा हरिश्चन्द्र के नाटक को देखकर, जिन्होंने सत्य की रक्षा के लिए अपनी पत्नी, पुत्र और स्वयं को बेचकर अपार कष्ट सहते हुए भी सत्य की रक्षा की थी।"
यह बालक कोई ओर नहीं बल्कि मोहनलाल करमचन्द गाँधी ही थे।
► सत्य का आचरण करने वाला निर्भय रहता है। उसका आत्मबल बढ़ता है। असत्य से ,सत्य अनंतगुना बलनान है।
जो बात - बात में झूठ बोल देते है, उनका विश्वास कोई नहीं करता है। फिर एक झूठ को छिपाने के लिए सौ बार झूठ भी बोलना पड़ता है। अतः इन सब बातों से बचने के लिए पहले से ही सत्य का आचरण करना चाहिए। सत्य का आचरण करने वाला सदैव सबका प्रिय हो जाता है।
शास्त्रों में भी आता हैः (सत्यं वद। धर्में चर।)
"सत्य बोलो। धर्म का आचरण करो। जीवन की वास्तिवक उन्नति सत्य में ही निहित है।"
जीवन काल की समाप्ति पर, जब हमारे शव को अर्थी पर ले जायेंगे तब भी लोग ये ही कहेंगे कि "राम नाम सत्य है "
उस दिन हमे पता चलता है की ये संसार तो झूठा था !
इसलिए आज से अभी से अपने आप को सत्य की ओर लगा दो , राम की ओर लगा दो !
"जय श्री राम "