Tuesday, November 12, 2013

विवाह के तीन सूत्र ग्रह : गुरु, शुक्र व मंगल


जब किसी व्यक्ति की कुण्डली से दांपत्य का विचार किया जाता है, तो उसके लिये गुरु, शुक्र व मंगल का विश्लेषण किया जाता है. इन तीनों ग्रहों कि स्थिति को समझने के बाद ही व्यक्ति के दांपत्य जीवन के विषय में कुछ कहना सही रहता है. आईये यहां हम दाम्पत्य जीवन से जुडे तीन मुख्य ग्रहों को समझने का प्रयास करते है.

1. गुरु की वैवाहिक जीवन में भूमिका (Role of Jupiter in Marriage Astrology)

सुखी दाम्पत्य जीवन के लिये भावी वर-वधू की कुण्डली में गुरु पाप प्रभाव से मुक्त (Jupiter should be free for malefic influence) होना चाहिए. गुरु की शुभ दृ्ष्टि सप्तम भाव पर हों तो वैवाहिक जीवन में परेशानियों व दिक्कतों के बाद भो अलगाव की स्थिति नहीं बनती है. अर्थात गुरु की शुभता वर-वधू का साथ व उसके विवाह को बनाये रखती है. गुरु दाम्पत्य जीवन की बाधाओं को दूर करने के साथ-साथ, संतान का कारक ग्रह भी है. अगर कुण्डली में गुरु पीडित हों तो सर्वप्रथम तो विवाह में विलम्ब होगा, तथा उसके बाद संतान प्राप्ति में भी परेशानियां आती है.

सुखी दाम्पत्य जीवन के लिये संतान का समय पर होना आवश्यक समझा जाता है. विवाह के बाद सर्वप्रथम संतान का ही विचार किया जाता है. अगर गुरु किसी पापी ग्रह के प्रभाव से दूषित हों तो संतान प्राप्ति में बाधाएं आती है. जब गुरु पर पाप प्रभाव हों तथा गुरु पापी ग्रह की राशि में भी स्थित हों तो निश्चित रुप से दाम्पत्य जीवन में अनेक प्रकार की समस्यायें आने की संभावनाएं बनती है.

2. शुक्र की वैवाहिक जीवन में भूमिका ( Role of Venus in married Life and astrology)
शुक्र विवाह का कारक ग्रह है. वैवाहिक सुख की प्राप्ति के लिये शुक्र का कुण्डली में सुस्थिर होना आवश्यक होता है. जब पति-पत्नी दोनों की ही कुण्डली में शुक्र पूर्ण रुप से पाप प्रभाव से मुक्त हो तब ही विवाह के बाद संबन्धों में सुख की संभावनाएं बनती है. इसके साथ-साथ शुक्र का पूर्ण बली व शुभ (Venus should be strong and auspicious) होना भी जरूरी होता है.

शुक्र को वैवाहिक संबन्धों का कारक ग्रह कहा जाता है. कुण्डली में शुक्र का किसी भी अशुभ स्थिति में होना पति अथवा पत्नी में से किसी के जीवन साथी के अलावा अन्यत्र संबन्धों की ओर झुकाव होने की संभावनाएं बनाता है. इसलिये शुक्र की शुभ स्थिति दाम्पत्य जीवन के सुख को प्रभावित करती है.

कुण्डली में शुक्र की शुभाशुभ स्थिति के आधार पर ही दाम्पत्य जीवन में आने वाले सुख का आकलन किया जा सकता है. इसलिये जब शुक्र बली हों, पाप प्रभाव से मुक्त हों, किसी उच्च ग्रह के साथ किसी शुभ भाव में बैठा हों (When Venus is strong, free of malefic influence and situated with exalted planet) तो, अथवा शुभ ग्रह से दृ्ष्ट हों तो दाम्पत्य सुख में कमी नहीं होती है. उपरोक्त ये योग जब कुण्डली में नहीं होते है. तब स्थिति इसके विपरीत होती है. शुक्र अगर स्वयं बली है, स्व अथवा उच्च राशि में स्थित है. केन्द्र या त्रिकोण में हों तब भी अच्छा दाम्पत्य सुख प्राप्त होता है.

इसके विपरीत जब त्रिक भाव, नीच का अथवा शत्रु क्षेत्र में बैठा हों, अस्त अथवा किसी पापी ग्रह से दृ्ष्ट अथवा पापी ग्रह के साथ में बैठा हों तब दाम्पत्य जीवन के लिये अशुभ योग बनता है. यहां तक की ऎसे योग के कारण पति-पत्नी के अलगाव की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है. इसके अलावा शुक्र, मंगल का संबन्ध व्यक्ति की अत्यधिक रुचि वैवाहिक सम्बन्धों में होने की सम्भावनाएं बनाती है. यह योग इन संबन्धों में व्यक्ति के हिंसक प्रवृ्ति अपनाने का भी संकेत करता है.

इसलिये विवाह के समय कुण्डलियों की जांच करते समय शुक्र का भी गहराई से अध्ययन करना चाहिए.

3. मंगल की वैवाहिक जीवन में भूमिका (Role of Mars in Marriage astrology)

मंगल की जांच किये बिना विवाह के पक्ष से कुण्डलियों का अध्ययन पूरा ही नहीं होता है. भावी वर-वधू की कुण्डलियों का विश्लेषण करते समय सबसे पहले कुण्डली में मंगल की स्थिति पर विचार किया जाता है. मंगल किन भावों में स्थित है, कौन से ग्रहों से द्रष्टि संबन्ध बना रहा है (aspect of Mars for marriage), तथा किन ग्रहों से युति संबन्ध में है. इन सभी बातों की बारीकी से जांच की जाती है.

मंगल के सहयोग से मांगलिक योग का निर्माण होता है (mars causes Manglik yoga in marriage). वैवाहिक जीवन में मांगलिक योग को इतना अधिक महत्वपूर्ण बना दिया गया है कि जो लोग ज्योतिष शास्त्र में विश्वास नहीं करते है. अथवा जिन्हें विवाह से पूर्व कुण्डलियों की जांच करना अनुकुल नहीं लगता है वे भी यह जान लेना चाहते है कि वर-वधू की कुण्डलियों में मांगलिक योग बन रहा है या नहीं.

चूंकि विवाह के बाद सभी दाम्पत्य जीवन में सुख की कामना करते है. जबकि मांगलिक योग से इन इसमें कमी होती है. जब मंगल कुंण्डली के लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम व द्वादश भाव में स्थित होता है तो व्यक्ति मांगलिक होता है. परन्तु मंगल का इन भावों में स्थित होने के अलावा भी मंगल के कारण वैवाहिक जीवन के सुख में कमी आने की अनेक संभावनाएं बनती है.

अनेक बार ऎसा होता है कि कुण्डली में मांगलिक योग बनता है. परन्तु कुण्डली के अन्य योगों से इस योग की अशुभता में कमी हो रही होती है. ऎसे में अपूर्ण जानकारी के कारण वर-वधू अपने मन में मांगलिक योग से प्राप्त होने वाले अशुभ प्रभाव को लेकर भयभीत होते रहते है. तथा बेवजह की बातों को लेकर अनेक प्रकार के भ्रम भी बनाये रखते है. जो सही नहीं है. विवाह के बाद एक नये जीवन में प्रवेश करते समय मन में दाम्पत्य जीवन को लेकर किसी भी प्रकार का भ्रम नहीं रखना चाहिए.

शुभ और अशुभ भकूट


शुभ और अशुभ भकूट (Auspicious Bhakoot & malefic Bhakoot in Marriage Compatibility)


ज्योतिष के अनुसार वर और कन्या की कुण्डली मिलायी जाती है। कुण्डली मिलान से पता चलता है कि वर कन्या की कुण्डली मे कितने गुण मिलते हैं, कुल 36 गुणों में से 18 से अधिक गुण मिलने पर यह आशा की जाती है कि वर वधू का जीवन खुशहाल और प्रेमपूर्ण रहेगा.

भकूट का तात्पर्य वर एवं वधू की राशियों के अन्तर से है। यह 6 प्रकार का होता है जो क्रमश: इस प्रकार है:-

कुण्डली में गुण मिलान के लिए अष्टकूट(Ashtkoot) से विचार किया जाता है इन अष्टकूटों में एक है भकूट (Bhakoot)। भकूट अष्टकूटो में 7 वां है,भकूट निम्न प्रकार के होते हैं.

1. प्रथम - सप्तक 2. द्वितीय - द्वादश 3. तृतीय - एकादश 4. चतुर्थ - दशम 5. पंचम - नवम 6. षडष्टक

ज्योतिष के अनुसार निम्न भकूट अशुभ (Malefic Bhakoota) हैं.
द्विर्द्वादश,(Dwirdadasha or Dwitiya Dwadash Bhakoot)
नवपंचक (Navpanchak Bhakoota) एवं
षडष्टक (Shadashtak Bhakoota)

शेष निम्न तीन भकूट शुभ (Benefic Bhakoota) हैं. इनके रहने पर भकूट दोष (Bhakoot Dosha) माना जाता है.
प्रथम-सप्तक,(Prathap Saptak Bhakoota)
तृतीय-एकादश (Tritiya Ekadash Bhakoot)
चतुर्थ-दशम (Chaturth Dasham Bhakoot)

भकूट जानने के लिए वर की राशि से कन्या की राशि तक तथा कन्या की राशि से वर की राशि तक गणना करनी चाहिए। यदि दोनों की राशि आपस में एक दूसरे से द्वितीय एवं द्वादश भाव में पड़ती हो तो द्विर्द्वादश भकूट होता है। वर कन्या की राशि परस्पर पांचवी व नवी में पड़ती है तो नव-पंचम भकूट होता है, इस क्रम में अगर वर-कन्या की राशियां परस्पर छठे एवं आठवें स्थान पर पड़ती हों तो षडष्टक भकूट बनता है। नक्षत्र मेलापक में द्विर्द्वादश, नव-पंचक एवं षडष्टक ये तीनों भकूट अशुभ माने गये हैं। द्विर्द्वादश को अशुभ की इसलिए कहा गया है क्योंकि द्सरा स्थान(12th place) धन का होता है और बारहवां स्थान व्यय का होता है, इस स्थिति के होने पर अगर शादी की जाती है तो पारिवारिक जीवन में अधिक खर्च होता है।

नवपंचक (Navpanchak) भकूट को अशुभ कहने का कारण यह है कि जब राशियां परस्पर पांचवें तथा नवमें स्थान (Fifth and Nineth place) पर होती हैं तो धार्मिक भावना, तप-त्याग, दार्शनिक दृष्टि तथा अहं की भावना जागृत होती है जो दाम्पत्य जीवन में विरक्ति तथा संतान के सम्बन्ध में हानि देती है। षडष्टक भकूट को महादोष की श्रेणी में रखा गया है क्योंकि कुण्डली में 6ठां एवं आठवां स्थान(Sixth and Eighth Place) मृत्यु का माना जाता हैं। इस स्थिति के होने पर अगर शादी की जाती है तब दाम्पत्य जीवन में मतभेद, विवाद एवं कलह ही स्थिति बनी रहती है जिसके परिणामस्वरूप अलगाव, हत्या एवं आत्महत्या की घटनाएं भी घटित होती हैं। मेलापक के अनुसार षडष्टक में वैवाहिक सम्बन्ध नहीं होना चाहिए।

शेष तीन भकूट- प्रथम-सप्तम, तृतीय - एकादश तथा चतुर्थ -दशम शुभ होते हैं। शुभ भकूट (Auspicious Bhakoot) का फल निम्न हैं
मेलापक में राशि अगर प्रथम-सप्तम हो तो शादी के पश्चात पति पत्नी दोनों का जीवन सुखमय होता है और उन्हे उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।
वर कन्या का परस्पर तृतीय-एकादश भकूट हों तो उनकी आर्थिक अच्छी रहती है एवं परिवार में समृद्धि रहती है,
जब वर कन्या का परस्पर चतुर्थ-दशम भकूट हो तो शादी के बाद पति पत्नी के बीच आपसी लगाव एवं प्रेम बना रहता है।


इन स्थितियों में भकूट दोष नहीं लगता है:
1. यदि वर-वधू दोनों के राशीश आपस में मित्र हों।
2. यदि दोनों के राशीश एक हों।
3. यदि दोनों के नवमांशेश आपस में मित्र हों।
4. यदि दोनों के नवमांशेश एक हो।

परीक्षा/प्रतियोगी परीक्षा में सफलता के लिए कुछ खास उपाय

परीक्षा/प्रतियोगी परीक्षा में सफलता के लिए कुछ खास उपाय

1. अध्धयन कक्ष में कभी भी कोई कॉपी किताबें पेन पेंसिल को खुला न रखें ।

2. अध्धयन कक्ष में कॉपी किताबों को हमेशा उनकी नियत स्थान , बैग या अलमारी में ही सलीके से रखें , यह जरुर ध्यान रखें की पड़ाई की मेज, कुर्सी टूटी न हो , कापी, किताबें फटी न हो उन सभी पर जरा भी धूल मिटटी न रहे ,लगातार वहां पर साफ सफाई होती रहे ।

3. पड़ने की मेज पर खाना नहीं खाना चाहिए , खाना खाते समय पड़ाई की टेबिल पर कॉपी किताबें बंद करके ,खाना खाने के लिए बनाये गए स्थान पर ही खाना चाहिए ।

4. हमेशा पड़ाई प्रारंभ करते समय अपने इष्ट देव का ध्यान करते हुए कॉपी किताबों को अपने मस्तक से लगाकर पड़ाई शुरू करें , यही प्रक्रिया पड़ाई को समाप्त करते समय भी दोहराएँ ।

5. पड़ने का सर्वोतम समय ब्रह्म मुहूर्त अर्थात सुबह के 4 बजे का माना गया है उस काल में पड़ाई करते समय हमें कई गुना ज्यादा और तेजी से अपना पाठ याद होता है इसलिए पड़ने वाले छात्रों को सुबह सवेरे पड़ाई की आदत अवश्य ही डालनी चाहिए ।

6. पड़ते समय छात्र का मुंह सदैव ईशान कोण ( उत्तर पूर्व ) की तरफ ही होना चाहिए इसलिए उसकी मेज इस तरह से हो की उसका मुंह ईशान कोण की तरफ ही रहे ।

7. विधार्थी को घर पर पड़ते समय जूते - मोज़े नहीं पहनने चाहिए ।

8. इमली के ताजे पत्ते ब्रहस्पति वार को अपनी किताबों में रखने से भी विधार्थी की बुद्धि त्रीव होती है । 

9. अष्ट सरस्वती यंत्र को गले में धारण करवाने से भी विधार्थी की बुद्धि का विकास होता है ।

10. मोर का पंख अपने पास रखने से विधार्थी का अपने स्कूल कालेज में सम्मान बड़ता है ।

11.तुलसी के पत्तों को मिश्री के साथ पीसकर प्रतिदिन उसका रस विधार्थी को पिलाने से भी उसकी स्मरण शक्ति का विकास होता है । 

12. किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में सफलता प्राप्ति हेतु हर गुरुवार को नियम से किसी भी गाय को पीले पेड़े अवश्य खिलाये ।

13. विद्यार्थी को चहिये की वह गणेश चालीसा का पाठ करें और बुधवार को गणपति जी को बेसन के लड्डू और दूर्वा अर्पित करें, विद्यार्थी को चाहिए की वह अपनी पड़ाई की मेज या कमरे की ईशान की दीवार पर माँ सरस्वती की तस्वीर जरुर लगायें और रोज उनसे बेहतर विद्या प्राप्ति के लिए आग्रह करें ।

14. पड़ाई में उत्कर्ष सफलता हेतु छात्र में यह संस्कार डाले जाएँ की वह सदैव अपने माता पिता, घर के अन्य बडे् बुजुर्ग के रोज चरण स्पर्श करें और अपने गुरुजनों को पूर्ण सम्मान दें , ऐसा करने से उस छात्र पर हमेशा ईश्वर की कृपा बनी रहती है ।

15. परीक्षा देने जाते समय यदि छात्र मीठा दही या अन्य कोई भी मीठा खाकर जाये तो उसे निश्चित ही सफलता प्राप्त होती है ।

16. किसी भी विद्यार्थी छात्र छात्रा को कभी भी भूलकर परीक्षा में नकल नहीं करनी चाहिए , चाहे उसे कुछ नंबरों का नुकसान ही क्यों न उठाना पड़े ,नकल करने पर विद्या की देवी माँ सरस्वती उससे कुपित हो जाती है , और उसे लगातार पड़ाई में कठनाइयों का सामना करना पड़ता है ।

17. परीक्षा में शत प्रतिशत सफलता के लिए विद्यार्थी छात्र छात्रा को रोज नियम से उगते हुए सूर्य देव को फूल ,लाल चंदन, चावल आदि डालकर जल चडाने एवं उनका ध्यान करने से अति विशेष लाभ की प्राप्ति होती है , इस नियम का जीवन पर्यंत पालन करने से व्यक्ति को जीवन में सदैव सफलता की प्राप्ति होती है ।

18. ब्राम्ही का नित्य सेवन करने वाले विधार्थियों की बुद्धि त्रीव होती है स्मरण शक्ति बडती है इसलिए उन्हें परीक्षा में शानदार सफलता प्राप्त होती हैं।

19. जिन विद्यार्थियों को परीक्षा में उत्तर भूल जाने की आदत हो, उन्हें परीक्षा में अपने पास कपूर और फिटकरी रखनी चाहिए। इससे मानसिक रूप से मजबूती बनी रहती है और यह नकारात्मक ऊर्जा को भी हटाती हैं ।

20. विद्यार्थियों के कमरे में यथासंभव हरे रंग के परदे लगवाने चाहिए इससे एकाग्रता आती है और मन भी शांत रहता है । 

21. विद्यार्थियों के कमरे में दीवार पर नीम की डाली लगनी चाहिए इससे कमरे में शुद्ध हवा के साथ साथ सकारात्मक उर्जा का भी प्रभाव बना रहता है । 

22. भगवान गणोश जी को हर बुधवार के दिन दूर्वा चढ़ाने से बच्चों में कुशाग्र बुद्धि विकसित होती है। 

23. परीक्षा में जाने से पूर्व मीठे दही पर तुलसी के पत्ते रखकर ग्रहण करके घर से निकलें। 

24. साधारणतया मस्तिष्क का केवल 3 से 7 प्रतिशत भाग ही सक्रिय हो पाता है। शेष भाग सुप्त रहता है, जिसमें अनंत ज्ञान छिपा रहता है। ऐसी विलक्षण शक्ति को जाग्रत करने के दोनों कानों के नीचे के भाग को अंगूठे और अंगुलियों से दबाकर नीचे की ओर खीचें। पूरे कान को ऊपर से नीचे करते हुए मरोड़ें। सुबह 4-5 मिनट और दिन में जब भी समय मिले, कान के नीचे के भाग को खींचे। 

25.सिर व गर्दन के पीछे बीच में मेडुला नाड़ी होती है। इस पर अंगुली से 3-4 मिनट मालिश करें। इससे एकाग्रता बढ़ती है और पढ़ा हुआ याद रहता है। 

26.उत्तर दिशा में मुंह करके पिरामिड की आकृति की टोपी पहनकर पढ़ाई करने से पढ़ा हुआ बहुत शीघ्र याद होता है। टोपी, कागज, गत्ता या मोटे कपड़े की बनाई जा सकती है। 

27.परीक्षा के लिए घर से निकलते समय पहले दायाँ पैर घर से बाहर निकाले और परीक्षा कक्ष में भी पहले दायाँ पैर ही अन्दर रखे । 

28.परीक्षा के लिए घर से जाते समय किसी भी मंदिर में आधा किलो दूध देकर जाये ईश्वर की कृपा से आपमें प्रबल आत्मविश्वास बना रहेगा । 

29. 125 ग्राम बादाम और 125 ग्राम सौंफ को मिलाकर बारीक़ कूट लें । इसको प्रतिदिन एक तोला रात में सोते समय पानी के साथ ले लें । शरीर स्वस्थ रहेगा दिमाग और नज़र दोनों ही तेज़ होते है ।

30. किसी शुभ मुहूर्त में लाल सुलेमानी हक़ीक को धारण करने से भी दिमाग तेज़ होता है ...निर्णय लेने में आसानी रहती है । 


31. बच्चो की पड़ाई में सफलता के लिए शुक्ल पक्ष के ब्रहस्पतिवार को सवा मीटर पीले कपड़े में 2 किलो चने की दाल बांधकर किसी भी लक्ष्मी नारायण मंदिर में दे आयें और प्रभु से अपने बच्चो की शिक्षा में सर्वश्रेष्ठ सफलता के लिए प्रार्थना करें । ऐसा लगातार 5 ब्रहस्पतिवार को अवश्य ही करें ।