Sunday, August 25, 2013

प्रेम विवाह

प्रेम विवाह करने वाले लडके व लडकियों को एक-दुसरे को समझने
के अधिक अवसर प्राप्त होते है. इसके फलस्वरुप दोनों एक-दूसरे
की रुचि, स्वभाव व पसन्द-नापसन्द को अधिक कुशलता से समझ
पाते है. प्रेम विवाह करने वाले वर-वधू भावनाओ व स्नेह की प्रगाढ
डोर से बंधे होते है. ऎसे में जीवन की कठिन परिस्थितियों में
भी दोनों का साथ बना रहता है.
पर कभी-कभी प्रेम विवाह करने वाले वर-वधू के विवाह के बाद
की स्थिति इसके विपरीत होती है. इस स्थिति में दोनों का प्रेम
विवाह करने का निर्णय शीघ्रता व बिना सोचे समझे हुए प्रतीत
होता है. आईये देखे कि कुण्डली के कौन से योग प्रेम विवाह
की संभावनाएं बनाते है.
1. राहु के योग से प्रेम विवाह की संभावनाएं (Yogas of Rahu
increase the chances of a love marriage)
1) जब राहु लग्न में हों परन्तु सप्तम भाव पर गुरु
की दृ्ष्टि हों तो व्यक्ति का प्रेम विवाह होने की संभावनाए
बनती है. राहु का संबन्ध विवाह भाव से होने पर
व्यक्ति पारिवारिक परम्परा से हटकर विवाह करने
का सोचता है. राहु को स्वभाव से संस्कृ्ति व लीक से हटकर कार्य
करने की प्रवृ्ति का माना जाता है.
2.) जब जन्म कुण्डली में मंगल का शनि अथवा राहु से संबन्ध
या युति हो रही हों तब भी प्रेम विवाह कि संभावनाएं बनती है.
कुण्डली के सभी ग्रहों में इन तीन ग्रहों को सबसे अधिक अशुभ व
पापी ग्रह माना गया है. इन तीनों ग्रहों में से कोई भी ग्रह जब
विवाह भाव, भावेश से संबन्ध बनाता है तो व्यक्ति के अपने
परिवार की सहमति के विरुद्ध जाकर विवाह करने की संभावनाएं
बनती है.
3.) जिस व्यक्ति की कुण्डली में सप्तमेश व शुक्र पर शनि या राहु
की दृ्ष्टि हो, उसके प्रेम विवाह करने की सम्भावनाएं बनती है.
(Aspect of Rahu on the seventh lord, saturn or venus increases
chances of love marriage)
4) जब पंचम भाव के स्वामी की उच्च राशि में राहु या केतु स्थित
हों तब भी व्यक्ति के प्रेम विवाह के योग बनते है.
2. प्रेम विवाह के अन्य योग (Other astrological yogas for love
marriage)
1) जब किसी व्यक्ति कि कुण्ड्ली में मंगल अथवा चन्द्र पंचम भाव
के स्वामी के साथ, पंचम भाव में ही स्थित हों तब अथवा सप्तम
भाव के स्वामी के साथ सप्तम भाव में ही हों तब भी प्रेम विवाह
के योग बनते है.
2) इसके अलावा जब शुक्र लग्न से पंचम अथवा नवम अथवा चन्द लग्न
से पंचम भाव में स्थित होंने पर प्रेम विवाह की संभावनाएं बनती है.
(Venus in fifth or ninth house from ascendant or fifth house
from Moon increases love marriage chances)
3) प्रेम विवाह के योगों में जब पंचम भाव में मंगल हों तथा पंचमेश व
एकादशेश का राशि परिवतन अथवा दोनों कुण्डली के
किसी भी एक भाव में एक साथ स्थित हों उस स्थिति में प्रेम
विवाह होने के योग बनते है.
4) अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में पंचम व सप्तम भाव के
स्वामी अथवा सप्तम व नवम भाव के स्वामी एक-दूसरे के साथ
स्थित हों उस स्थिति में प्रेम विवाह कि संभावनाएं बनती है.
5) जब सप्तम भाव में शनि व केतु
की स्थिति हों तो व्यक्ति का प्रेम विवाह हो सकता है. (When
Saturn or ketu are in the seventh house the chances for love
marriage increase)
6) कुण्डली में लग्न व पंचम भाव के स्वामी एक साथ स्थित
हों या फिर लग्न व नवम भाव के स्वामी एक साथ बैठे हों,
अथवा एक-दूसरे को देख रहे हों इस स्थिति में व्यक्ति के प्रेम
विवाह की संभावनाएं बनती है.
7) जब किसी व्यक्ति की कुण्डली में चन्द्र व सप्तम भाव के
स्वामी एक -दूसरे से दृ्ष्टि संबन्ध बना रहे हों तब भी प्रेम विवाह
की संभावनाएं बनती है.
जब सप्तम भाव का स्वामी सप्तम भाव में ही स्थित हों तब
विवाह का भाव बली होता है. तथा व्यक्ति प्रेम विवाह कर
सकता है.
9) पंचम व सप्तम भाव के स्वामियों का आपस में युति,
स्थिति अथवा दृ्ष्टि संबन्ध हो या दोनों में राशि परिवर्तन
हो रहा हों तब भी प्रेम विवाह के योग बनते है. (Combinatin of
fifth and the seventh house and mutual aspect or sign
exchange causes love marriage)
10) जब सप्तमेश की दृ्ष्टि, युति, स्थिति शुक्र के साथ द्वादश
भाव में हों तो, प्रेम विवाह होता है.
11) द्वादश भाव में लग्नेश, सप्तमेश कि युति हों व भाग्येश इन से
दृ्ष्टि संबन्ध बना रहा हो, तो प्रेम विवाह की संभावनाएं
बनती है. (Conjunction of lagna lord seventh house or aspect
increases chances of love marriage)
12) जब जन्म कुण्डली में शनि किसी अशुभ भाव
का स्वामी होकर वह मंगल, सप्तम भाव व सप्तमेश से संबन्ध बनाते
है. तो प्रेम विवाह हो सकता है.

वास्तु व जीवन में महत्वपूर्ण, बाँसुरी

वास्तु व जीवन में महत्वपूर्ण, बाँसुरी


बाँसुरी को शान्ति, शुभता एवं स्थिरता का प्रतीक
माना जाता है. यह उन्नति, प्रगति एवं सकारात्मक
गुणों की वृद्धि की सूचक भी होती है. फेगशुई और हमारे
शास्त्रों में शुभ वस्तुओं में बाँसुरी का अत्यधिक महत्व है.
फेंगशुई
बाँसुरी के उपायों का महत्व इसलिए भी अधिक है,
क्योंकि वास्तु शास्त्र में जहां कहीं किसी दोष से
पूर्णतः मुक्ति के लिए अशुभ निर्माण कार्य
को तोड़ना आवश्यक होता है, वहीं फेंगशुई में अशुभ निर्माण
को तोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं होती है. अपितु पैगोडा,
बाँसुरी आदि सकरात्मक वस्तुओं का प्रयोग कर के उस दोष से
मुक्ति पा लेते है.
बाँसुरी का निर्माण बाँस के ताने से होता है.
सभी वनस्पतियों में बाँस सबसे तेज गति से बढ़ने
वाला पौधा होता है.इसी कारण से यह विकास का प्रतीक
है.और किसी भी वातावरण में यह अपना अस्तित्व बनाए
रखने की क्षमता इसमें होती है. यदि किसी भी दूकान
या व्यवसाय स्थल पर इसके पौधे को लगाया जाए तो जैसे
बाँस के पौधे की वृद्धि तेज गति से होगी, वैसे ही उस दूकान
या व्यवसाय स्थल के मालिक की भी प्रगति होगी. बाँस के
पौधे के ये सभी गुण बाँसुरी में भी विद्यमान होते है.
बाँसुरी का उपयोग न केवल फेंगशुई में, वरन वास्तु शास्त्र
एवं ग्रह दोष निवारण में बहुत ही उपयोगी है. वास्तु में बीम
संबंधी दोष, द्वार वेध, वृक्ष वेध, वीथी वेध
आदि सभी वेधो के निराकरण में और अशुभ निर्माण
संबंधी वास्तु दोषों में बाँसुरी का प्रयोग होता है. ग्रह
दोषों के अंतर्गत शनि, राहू आदि पाप ग्रहों से सम्बन्धित
दोषों के निवारण में बाँसुरी का कोई विपरीत प्रभाव
नहीं होता है.
लेकिन बाँसुरी के प्रयोग में एक सावधानी अवश्य
रखनी चाहिए वह यह है कि, जहां कहीं भी इसे लगाया जाए,
वहां इसे बिलकुल सीधा नहीं लगा कर
थोड़ा तिरछा लगाना चाहिए तथा इसका मुंह नीचे की तरफ
होना चाहिए.
जापान, चीन, हांगकांग, मलेशिया और मध्य एशिया में
इसका प्रयोग बहुतायत में किया जाता है. यदि किसी के
विकास में अनेक प्रयास करने के बाद भी बाधाए उत्पन्न
हो रही हो तो इस बाँसुरी का प्रयोग अवश्य
ही करना चाहिए.वैसे तो ”बाँसुरी एक फायदे अनेक है”. लेकिन
यहां मै इस लेख मेंबाँसुरी के आसान और अचूक रामबाण उपाय
दे रहा हूं जो कि पग पग पर हमारे लिए सहायक बनते है, और
हमारी समस्याओं का पूर्ण रूप से समाधान करते है.
१:- बाँसुरी बाँस के पौधे से निर्मित होने के कारण शीघ्र
उन्नतिदायक प्रभाव रखती है अतः जिन व्यक्तियों को जीवन
में पर्याप्त सफलता प्राप्त नहीं हो पा रही हो,
अथवा शिक्षा, व्यवसाय या नौकरी में बाधा आ रही हो,
तो उसे अपने बैडरूम के दरवाजे पर
दो बाँसुरियों को लगाना चाहिए.
२:- यदि घर में बहुत ही अधिक वास्तु दोष है, या दो या तीन
दरवाजे एक सीध में है, तो घर के मुख्यद्वार के ऊपर
दो बाँसुरी लगाने से लाभ मिलता है तथा वास्तु दोष धीरे धीरे
समाप्त होने लगता है.
३:- यदि आप आध्यात्मिक रूप से उन्नति चाहते है, या फिर
किसी प्रकार की साधना में सफलता चाहते है तो, अपने
पूजा घर के दरवाजे पर भी बाँसुरिया लगाए. शीघ्र
ही सफलता प्राप्त होगी.
४:- बैडरूम में पलंग के ऊपर अथवा डाइनिंग टेबल के ऊपर
बीम हो तो, इसका अत्यंत खराब प्रभाव पड़ता है. इस दोष
को दूर करने के लिए बीम के दोनों ओर एक एक बाँसुरी लाल
फीते में बाँध कर लगानी चाहिए. साथ ही यह भी ध्यान रखे
कि बाँसुरी को लगाते समय बाँसुरी का मुंह नीचे की ओर
होना चाहिए.
५:- यदि बाँसुरी को घर के मुख हाल में या प्रवेश द्वार पर
तलवार की तरह “क्रास” के रूप में लगाया जाए,
तो आकस्मिक समस्याओं से छुटकारा मिलता है.
६:- घर के सदस्य यदि बीमार अधिक हों अथवा अकाल मृत्यु
का भय या अन्य कोई स्वास्थ्य से सम्बन्धित समस्या हो,
तो प्रत्येक कमरें के बाहर और बीमार व्यक्ति के सिरहाने
बाँसुरी का प्रयोग करना चाहिए इससे अति शीघ्र लाभ
प्राप्त होने लगेगा.
७:- यदि किसी व्यक्ति की जन्मकुण्डली में शनि सातवें भाव
में अशुभ स्थिति में होकर विवाह में देर करवा रहे हो,
अथवा शनि की साढ़ेसती या ढैया चल रही हो, तो एक
बाँसुरी में चीनी या बूरा भरकर किसी निर्जन स्थान में
दबा देना लाभदायक होता है इससे इस दोष से
मुक्ति मिलती है.
८:- यदि मानसिक चिंता अधिक तेहती हो अथवा पति-
पत्नी दोनों के बीच झगड़ा रहता हो, तो सोते समय सिरहाने
के नीचे बाँसुरी रखनी चाहिए.
९:- यदि आप एक बाँसुरी को गुरु-पुष्य योग में शुभ मुहूर्त में
पूजन कर के अपने गल्ले में स्थापित करते है तो इसके कारण
आपके कार्य-व्यवसाय में बढोत्तरी होगी, और धन आगमन
के अवसर प्राप्त होंगे.
१०:- पाश्चात्य देशो में इसे घरों में तलवार की तरह से
भी लटकाया जाता है.इसके प्रभाव स्वरुप अनिष्ट एवं अशुभ
आत्माओं एवं बुरे व्यक्तियों से घर की रक्षा होती है.
११:- घर और अपने परिवार की सुख समृधि और सुरक्षा के
लिए एक बाँसुरी लेकर श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन रात
बारह बजे के बाद भगवान श्री कृष्ण के हाथों में सुसज्जित
कर दे तो इसके प्रभाव से पूरे वर्ष आपकी और आपके परिवार
की रक्षा तो होगी ही तथा सभी कष्ट व बाधाए भी दूर
होती जायेगी.
बाँसुरी के संबंध में एक धार्मिक मान्यता है कि जब
बाँसुरी को हाथ में लेकर हिलाया जाता है, तो बुरी आत्माएं
दूर हो जाति है. और जब इसे बजाया जाता है,
तो ऐसी मान्यता है कि घरों में शुभ चुम्बकीय प्रवाह
का प्रवेश होता है.
इस प्रकार बाँसुरी प्रकृति का एक अनुपम वरदान है.
यदि सोच समझ कर इसका उपयोग किया जाए तो वास्तु
दोषों का बिना किसी तोड़ फोड के निवारण कर अशुभ फलो से
बचा जा सकता है. जहां रत्न धारण, रुद्राक्ष, यंत्र, हवन,
आदि श्रमसाध्य और खर्चीले उपाय है,
वहीं बाँसुरी का प्रयोग सस्ता, सुगम और प्रभावी होता है.
अपनी आवश्यकता के अनुसार इसका प्रयोग करके लाभ
उठाया जा सकता है

सन्तान प्राप्ति हेतु जानिए कुछ रहस्यमयी बातें एवम सरल उपाय !!!


सन्तान प्राप्ति हेतु जानिए कुछ रहस्यमयी बातें एवम सरल उपाय !!!


प्रायः देखने में आया है की किसी को संतान तो पैदा हुए लेकिन वो कुछ दीन बाद ही परलोक सुधर गया या अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गया है… किसी को संतान होती ही नहीं है , कोए पुत्र चाहता है तो कोए कन्या … हमारे ऋषि महर्षियों ने हजारो साल पहले ही संतान प्राप्ति के कुछ नियम और सयम बताये है ,संसार की उत्पत्ति पालन और विनाश का क्रम पृथ्वी पर हमेशा से चलता रहा है,और आगे चलता रहेगा। इस क्रम के अन्दर पहले जड चेतन का जन्म होता है,फ़िर उसका पालन होता है और समयानुसार उसका विनास होता है। मनुष्य जन्म के बाद उसके लिये चार पुरुषार्थ सामने आते है,पहले धर्म उसके बाद अर्थ फ़िर काम और अन्त में मोक्ष, धर्म का मतलब पूजा पाठ और अन्य धार्मिक क्रियाओं से पूरी तरह से नही पोतना चाहिये,धर्म का मतलब मर्यादा में चलने से होता है,माता को माता समझना पिता को पिता का आदर देना अन्य परिवार और समाज को यथा स्थिति आदर सत्कार और सबके प्रति आस्था रखना ही धर्म कहा गया है,अर्थ से अपने और परिवार के जीवन यापन और समाज में अपनी प्रतिष्ठा को कायम रखने का कारण माना जाता है,काम का मतलब अपने द्वारा आगे की संतति को पैदा करने के लिये स्त्री को पति और पुरुष को पत्नी की कामना करनी पडती है,पत्नी का कार्य धरती की तरह से है और पुरुष का कार्य हवा की तरह या आसमान की तरह से है,गर्भाधान भी स्त्री को ही करना पडता है,वह बात अलग है कि पादपों में अमर बेल या दूसरे हवा में पलने वाले पादपों की तरह से कोई पुरुष भी गर्भाधान करले। धरती पर समय पर बीज का रोपड किया जाता है,तो बीज की उत्पत्ति और उगने वाले पेड का विकास सुचारु रूप से होता रहता है,और समय आने पर उच्चतम फ़लों की प्राप्ति होती है,अगर वर्षा ऋतु वाले बीज को ग्रीष्म ऋतु में रोपड कर दिया जावे तो वह अपनी प्रकृति के अनुसार उसी प्रकार के मौसम और रख रखाव की आवश्यकता को चाहेगा,और नही मिल पाया तो वह सूख कर खत्म हो जायेगा,इसी प्रकार से प्रकृति के अनुसार पुरुष और स्त्री को गर्भाधान का कारण समझ लेना चाहिये। जिनका पालन करने से आप तो संतानवान होंगे ही आप की संतान भी आगे कभी दुखों का सामना नहीं करेगा…
कुछ राते ये भी है जिसमे हमें सम्भोग करने से बचना चाहिए .. जैसे अष्टमी, एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमवाश्या .चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।
यदि आप पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं और वह भी गुणवान, तो हम आपकी सुविधा के लिए हम यहाँ माहवारी के बाद की विभिन्न रात्रियों की महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं।
मासिक स्राव के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है।
१- चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है।
२- पाँचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी।
३- छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा।
४- सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी।
५- आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है।
६- नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है।
७- दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है।
८- ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है।
९- बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है।
१०- तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है।
११- चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है।
१२- पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पुत्री पैदा होती है।
१३- सोलहवीं रात्रि के गर्भ से सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है।
सहवास से निवृत्त होते ही पत्नी को दाहिनी करवट से 10-15 मिनट लेटे रहना चाहिए, एमदम से नहीं उठना चाहिए।

बच्चों के कक्ष की आंतरिक सुसज्जा

बच्चों के कक्ष की आंतरिक सुसज्जा


बच्चों का कक्ष हमेशा पश्चिम, उत्तर अथवा पूर्व दिशा में होना चाहिए। बच्चों के कक्ष की आंतरिक सुसज्जा बालक घर की मात्र रौनक ही नहीं, अपितु पुरे घर की शक्ति और उमंग का स्रोत है। बच्चों के बिना घर आत्माविहीन हो जाता है। बच्चे घर को उल्लासमय जीवन से सींचते हैं। अत: उनके पालन के लिए एक संतुलित वास्तुसम्मत वातावरण का निर्माण अत्यंत आवश्यक है। 

यह संतुलन उनके लिए सही स्थान की व्यवस्था प्रदान करने से लेकर प्रेम और उल्लास के वातावरण का निर्माण करने तक मददगार सिद्ध हो सकता है। :------बच्चों के कमरे का प्रवेश द्वार उत्तर अथवा पूर्व दिशा में होना चाहिए। खिड़की अथवा रोशनदान पूर्व में रखना उत्तम है। पढ़ने की टेबल का मुख पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। पुस्तकें ईशान कोण में रखी जा सकती हैं।बच्चों का मुख पढ़ते समय उत्तर अथवा पूर्व दिशा में होना चाहिए।एक छोटा-सा पूजास्थल अथवा मंदिर बच्चों के कमरे की ईशान दिशा में बनाना उत्तम है। इस स्थान में विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की मूर्ति अथवा तस्वीर लगाना शुभ है।

कमरे का ईशान कोण का क्षेत्र सदैव स्वच्छ रहना चाहिए और वहां पर किसी भी प्रकार का व्यर्थ का सामान, कूड़ा, कबाड़ा नहीं होना चाहिए।

अलमारी, कपबोर्ड़, पढ़ने का डेस्क और बुक शेल्फ व्यवस्थित ढंग से रखा जाना चाहिए। सोने का बिस्तर नैऋत्य कोण में होना चाहिए। सोते समय सिरदक्षिण दिशा में हो तो उत्तम है, परंतु बालक अपना सिर पूर्व दिशा में भी रख कर सो सकते हैं।
कमरे के मध्य में भारी सामान न रखें।
कमरे में हरे रंग के हलके शेड्स करवाना उत्तम है, इससे बच्चों में बुद्धिमता की वृद्धि होती है।
कमरे के मध्य का स्थान बच्चों के खेलने के लिए खाली रखें।

बच्चों के कमरे का द्वार कदापि भी सीढ़ियों के अथवा शौचालय के सम्मुख न हो, अन्यथा ऐसे परिवार के 

बच्चे मां-बाप के नियमानुसार अनुसरण नहीं करेंगे।
बच्चों के कक्ष के ईशान कोण और ब्रह्म स्थान की ओर भी विशेष ध्यान दें कि वहां पर बेवजह का सामरन एकत्रित न हो।
यह क्षेत्र सदैव स्वच्छ और बेकार के सामान से मुक्त होना चाहिए।

वास्तु दोष को दूर करने के लिए विशेष उपाय


वास्तु दोष को दूर करने के लिए किसी विशेष उपाय की आवश्यकता नहीं है ...
यदि हम अगर अपनी दैनिक दिनचर्या में इन उपायों को शामिल कर लें, तो बहुत सी समस्यायों को
इन छोटी-छोटी मगर अत्यधिक प्रभावशाली उपायों से दूर कर सकतें हैं ......

1- सूर्यास्त व सूर्योदय होने से पहले मुख्य प्रवेश द्वार की साफ-सफाई हो जानी चाहिए।
2- सायंकाल होते ही यहां पर उचित रोशनी का प्रबंध होना भी जरूरी हैं।

3- दरवाजा खोलते व बंद करते समय किसी प्रकार की आवाज नहीं आना चाहिए,
4- बरामदे और बालकनी के ठीक सामने भी प्रवेश द्वार का होना अशुभ होता हैं.

5- प्रवेश द्वार पर गणेश व गज लक्ष्मी के चित्र लगाने से सौभाग्य व सुख में निरंतर वृद्धि होती है,

6- पूरब व उत्तर दिशा में अधिक स्थान छोड़ना चाहिए

7- मांगलिक कार्यो व शुभ अवसरों पर प्रवेश द्वार को आम के पत्ते व हल्दी तथा चंदन जैसे शुभ व
कल्याणकारी वनस्पतियों से सजाना शुभ होता है.

8- प्रवेश द्वार को सदैव स्वच्छ रखना चाहिए,
9- किसी प्रकार का कूड़ा या बेकार सामान प्रवेश द्वार के सामने कभी न रखे,
10- प्रातः व सायंकाल कुछ समय के लिए दरवाजा खुला रखना चाहिए.
11- सांय काल घर की दहलीज़ पर दीपक अवश्य जलाएं इससे घर का पित्र दोष भी समाप्त होता है
एवं नकारात्मक शक्तियों का घर में प्रवेश नहीं हो पाता .
12- बैठक के कमरे में द्वार के सामने की दीवार पर दो सूरजमुखी के या ट्यूलिप के फूलों का चित्र
लगाएं.

13- घर के बाहर के बगीचे में दक्षिण-पश्चिम के कोने को सदैव रोशन रखें.

14- घर के अंदर दरवाजे के सामने कचरे का ‍डिब्बा न रखें.

15- घर के किसी भी कोने में अथवा मध्य में जूते-चप्पल (मृत चर्म) न रखेंजूतों के रखने का स्थान
घर के प्रमुख व्यक्ति के कद का एक चौथाई हो, उदाहरण के तौर पर 6 फुट के व्यक्ति (घर का प्रमुख) के
घर में जूते-चप्पल रखने का स्थल डेढ़ फुट से ऊंचा न हो....