Sunday, August 25, 2013

बच्चों के कक्ष की आंतरिक सुसज्जा

बच्चों के कक्ष की आंतरिक सुसज्जा


बच्चों का कक्ष हमेशा पश्चिम, उत्तर अथवा पूर्व दिशा में होना चाहिए। बच्चों के कक्ष की आंतरिक सुसज्जा बालक घर की मात्र रौनक ही नहीं, अपितु पुरे घर की शक्ति और उमंग का स्रोत है। बच्चों के बिना घर आत्माविहीन हो जाता है। बच्चे घर को उल्लासमय जीवन से सींचते हैं। अत: उनके पालन के लिए एक संतुलित वास्तुसम्मत वातावरण का निर्माण अत्यंत आवश्यक है। 

यह संतुलन उनके लिए सही स्थान की व्यवस्था प्रदान करने से लेकर प्रेम और उल्लास के वातावरण का निर्माण करने तक मददगार सिद्ध हो सकता है। :------बच्चों के कमरे का प्रवेश द्वार उत्तर अथवा पूर्व दिशा में होना चाहिए। खिड़की अथवा रोशनदान पूर्व में रखना उत्तम है। पढ़ने की टेबल का मुख पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। पुस्तकें ईशान कोण में रखी जा सकती हैं।बच्चों का मुख पढ़ते समय उत्तर अथवा पूर्व दिशा में होना चाहिए।एक छोटा-सा पूजास्थल अथवा मंदिर बच्चों के कमरे की ईशान दिशा में बनाना उत्तम है। इस स्थान में विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की मूर्ति अथवा तस्वीर लगाना शुभ है।

कमरे का ईशान कोण का क्षेत्र सदैव स्वच्छ रहना चाहिए और वहां पर किसी भी प्रकार का व्यर्थ का सामान, कूड़ा, कबाड़ा नहीं होना चाहिए।

अलमारी, कपबोर्ड़, पढ़ने का डेस्क और बुक शेल्फ व्यवस्थित ढंग से रखा जाना चाहिए। सोने का बिस्तर नैऋत्य कोण में होना चाहिए। सोते समय सिरदक्षिण दिशा में हो तो उत्तम है, परंतु बालक अपना सिर पूर्व दिशा में भी रख कर सो सकते हैं।
कमरे के मध्य में भारी सामान न रखें।
कमरे में हरे रंग के हलके शेड्स करवाना उत्तम है, इससे बच्चों में बुद्धिमता की वृद्धि होती है।
कमरे के मध्य का स्थान बच्चों के खेलने के लिए खाली रखें।

बच्चों के कमरे का द्वार कदापि भी सीढ़ियों के अथवा शौचालय के सम्मुख न हो, अन्यथा ऐसे परिवार के 

बच्चे मां-बाप के नियमानुसार अनुसरण नहीं करेंगे।
बच्चों के कक्ष के ईशान कोण और ब्रह्म स्थान की ओर भी विशेष ध्यान दें कि वहां पर बेवजह का सामरन एकत्रित न हो।
यह क्षेत्र सदैव स्वच्छ और बेकार के सामान से मुक्त होना चाहिए।

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