Sunday, May 4, 2014

लाल किताब के अचूक उपाय धन संपत्ति दिलाएं

लाल किताब के अचूक उपाय धन संपत्ति दिलाएं
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Photo: लाल किताब के अचूक उपाय धन संपत्ति दिलाएं
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1 लोहे के पात्र में जल, चीनी, घी तथा दूध का मिश्रण बना कर पीपल के वृक्ष की जड़ में अर्पित करने से घर में लक्ष्मी का वास होता है।

2 कच्ची धानी के तेल से दीपक जलाएं, उसमें लौंग डालकर हनुमान जी की आरती करें। समस्त विध्नों का नाश होगा और धन प्राप्ती के साधन बनने लगेंगे।

3 धनहानि हो रही हो तो बृहस्पतिवार के दिन मुख्य द्वार पर गुलाल से सुंदर रंगोली बनाएं अथवा गुलाल का छिड़काव करके देसी घी का दो मुख वाला दीपक जलाएं। जब दीपक बढ़ जाए तो उसे चलते हुए पानी में परवाह कर दें।

4 मुट्ठी भर काले तिल लेकर परिवार के सभी सदस्यों के सिर पर से सात बार फेर कर घर की उत्तर दिशा में फेंक दें। धनहानि समाप्त हो जाएगी।

5 घर से धन का अभाव दूर करने के लिए घर में सोने का चौरस सिक्का रखें, प्रतिदिन कुत्ते को दूध पिलाएं। घर के सभी कमरों में मोर पंख रखें।

6 आर्थिक तंगी से परेशान हों तो मन्दिर में केले के दो पौधे (नर-मादा) का रोपण करें।

7 मां लक्ष्मी के श्री स्वरूप के समक्ष नौ बत्तियों का घी का दीपक जलाने से धन लाभ होने लगता है।

8 कारोबार में दिन दुगुनी रात चौगुणी तरक्की करने के लिए शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार को सफेद कपड़े के झंडे को पीपल के वृक्ष पर लगाएं।

9 घर में सुख समृद्धि का समावेश करवाने के लिए उत्तर पश्चिमी कोण में मिट्टी के बर्तन में थोड़े से सोने-चांदी के सिक्के किसी लाल कपड़े में बांध कर रखें। फिर उस बर्तन को गेहूं अथवा चावलों से भर दें।

10 कलह क्लेश से निजात पाने के लिए पके हुए मिट्टी के घड़े पर लाल रंग का पेंट करके उसके मुख पर मोली बांधें और उसके बीच जटायुक्त नारियल रखकर बहते हुए पानी में प्रवाहित कर दें।1 लोहे के पात्र में जल, चीनी, घी तथा दूध का मिश्रण बना कर पीपल के वृक्ष की जड़ में अर्पित करने से घर में लक्ष्मी का वास होता है।

2 कच्ची धानी के तेल से दीपक जलाएं, उसमें लौंग डालकर हनुमान जी की आरती करें। समस्त विध्नों का नाश होगा और धन प्राप्ती के साधन बनने लगेंगे।

3 धनहानि हो रही हो तो बृहस्पतिवार के दिन मुख्य द्वार पर गुलाल से सुंदर रंगोली बनाएं अथवा गुलाल का छिड़काव करके देसी घी का दो मुख वाला दीपक जलाएं। जब दीपक बढ़ जाए तो उसे चलते हुए पानी में परवाह कर दें।

4 मुट्ठी भर काले तिल लेकर परिवार के सभी सदस्यों के सिर पर से सात बार फेर कर घर की उत्तर दिशा में फेंक दें। धनहानि समाप्त हो जाएगी।

5 घर से धन का अभाव दूर करने के लिए घर में सोने का चौरस सिक्का रखें, प्रतिदिन कुत्ते को दूध पिलाएं। घर के सभी कमरों में मोर पंख रखें।

6 आर्थिक तंगी से परेशान हों तो मन्दिर में केले के दो पौधे (नर-मादा) का रोपण करें।

7 मां लक्ष्मी के श्री स्वरूप के समक्ष नौ बत्तियों का घी का दीपक जलाने से धन लाभ होने लगता है।

8 कारोबार में दिन दुगुनी रात चौगुणी तरक्की करने के लिए शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार को सफेद कपड़े के झंडे को पीपल के वृक्ष पर लगाएं।

9 घर में सुख समृद्धि का समावेश करवाने के लिए उत्तर पश्चिमी कोण में मिट्टी के बर्तन में थोड़े से सोने-चांदी के सिक्के किसी लाल कपड़े में बांध कर रखें। फिर उस बर्तन को गेहूं अथवा चावलों से भर दें।

10 कलह क्लेश से निजात पाने के लिए पके हुए मिट्टी के घड़े पर लाल रंग का पेंट करके उसके मुख पर मोली बांधें और उसके बीच जटायुक्त नारियल रखकर बहते हुए पानी में प्रवाहित कर दें।

ऊपरी हवा पहचान और निदान

ऊपरी हवा पहचान और निदान
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हम जहां रहते हैं वहां कई ऐसी शक्तियां होती हैं, जो हमें दिखाई नहीं देतीं किंतु बहुधा हम पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं जिससे हमारा जीवन अस्त-व्यस्त हो उठता है और हम दिशाहीन हो जाते हैं। इन अदृश्य शक्तियों को ही आम जन ऊपरी बाधाओं की संज्ञा देते हैं। भारतीय ज्योतिष में ऐसे कतिपय योगों का उल्लेख है जिनके घटित होने की स्थिति में ये शक्तियां शक्रिय हो उठती हैं और उन योगों के जातकों के जीवन पर अपना प्रतिकूल प्रभाव डाल देती हैं।
ज्योतिश सिद्धांत के अनुसार गुरु पित्रदोश, शनि यमदोष, चन्द्र व शुक्र जल देवी दोष, राहु सर्प व प्रेत दोष, मंगल शाकिनी दोष, सूर्य देव दोष एवं बुध कुल देवता दोष का कारक होता है। राहु, शनि व केतु ऊपरी हवाओं के कारक ग्रह हैं। जब किसी व्यक्ति के लग्न (शारीर), गुरु (ज्ञान), त्रिकोण (धर्म भाव) तथा द्विस्वभाव राशियों पर पाप ग्रहों का प्रभाव होता है, तो उस पर ऊपरी हवा क़ी संभावना होती है।
प्राय: सभी धर्मग्रंथों में ऊपरी हवाओं, नज़र दोषों आदि का उल्लेख है। कुछ ग्रंथों में इन्हें बुरी आत्मा कहा गया है तो कुछ अन्य में भूत-प्रेत और जिन्न।

कब और किन परिस्थितियों में डालती हैं ऊपरी हवाओं किसी व्यक्ति पर अपना प्रभाव?
जब कोई व्यक्ति दूध पीकर या कोई सफ़ेद मिठाई खाकर किसी चौराहे पर जाता है, तब ऊपरी हवाएं उस पर अपना प्रभाव डालती हैं। गन्दी जगहों पर इन हवाओं का वास होता है, इसीलिए ऐसे जगहों पर जाने वाले लोगों को ये हवाएं अपने प्रभाव में ले लेती हैं। इन हवाओं का प्रभाव रजस्वला स्त्रियों पर भी पड़ता है। कुएं, बावड़ी आदि पर भी इनका वास होता है। विवाह व अन्य मांगलिक कार्यों के अवसर पर ये हवाएं सक्रिय होती हैं। इसके अतिरिक्त रात और दिन के 12 बजे दरवाजे क़ी चौखट पर इनका प्रभाव होता है।

दूध व सफ़ेद मिठाई चन्द्र के घोतक हैं। चौराहा राहु का घोतक है। चन्द्र राहु का शत्रु है, अतः जब कोई व्यक्ति उक्त चीजों का सेवन कर चौराहे पर जाता है, तो उस पर ऊपरी हवाओं के प्रभाव क़ी संभावना रहती है।

कोई स्त्री जब राजस्वला होती है, तब उसका चन्द्र व मंगल दोनों दुर्बल हो जाते हैं। ये दोनों राहु व शनि के शत्रु हैं। रजस्वलावस्था में स्त्री अशुद्ध होती है और अशुद्धता राहु क़ी घोतक है। ऐसे में उस स्त्री पर ऊपरी हवाओं के प्रकोप क़ी संभावना रहती है। कुएं एवं बावड़ी का अर्थ होता है जल स्थान और चन्द्र जल स्थान का कारक है। चन्द्र राहु का शत्रु है, इसलिये ऐसे स्थानों पर ऊपरी हवाओं का प्रभाव होता है।
मनुष्य क़ी दायीं आँख पर सूर्य का और बायीं पर चन्द्र का नियंत्रण होता है। इसलिए ऊपरी हवाओं का प्रभाव सबसे पहले पहले आँखों पर ही पड़ता है।

किसी स्त्री के सप्तम भाव में शनि, मंगल और राहु या केतु क़ी युति हो, तो उसके उसके पिशाच पीड़ा से ग्रस्त होने की संभावना रहती है। गुरु नीच राशि अथवा नीच राशि के नवांश में हो, या राहु सेयुत हो और उस पर पाप ग्रहों क़ी दृष्टी हो, तो जातक क़ी चंडाल प्रवति होती है।

पंचम भाव में शनि का सम्बन्ध बने तो व्यक्ति प्रेत एवं क्षुद्र देवियों क़ी भक्ति करता है।

* उपरी हवाओं से मुक्ति हेतु हनुमान चालीसा का पाठ और गायत्री का जप तथा हवं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त अग्नि तथा लाल मिर्ची जलानी चाहिए।

* रोज़ सूर्यास्त के समय एक साफ़- सुथरे बर्तन में गाय का आधा किलो कच्चा दूध लेकर उसमें शुद्ध शहद क़ी 9 बूँदें मिला लें। फिर स्नान करके, शुद्ध वस्त्र पहनकर मकान क़ी छत से नीचे तक प्रत्येक कमरे, जीने, गैलरी आदि में उस दूध के छींटे देते हुए द्वार तक और बस हुए दूध को मुख्य द्वार के बाहर गिरा दें। क्रिया के दौरान इष्टदेव का स्मरण करते रहे। यह क्रिया इक्कीस दिन तक नियमित रूप से करें, घर पर प्रभावी उपरी हवाएं दूर हो जायेंगी।

* रविवार को बांह पर काले धतूरे क़ी जड़ बांधें, उपरी हवाओं से मुक्ति मिलेगी ।
* लहसून के रस में हींग घोलकर आँख में डालने या सुंघाने से पीड़ित व्यक्ति को उपरी हवाओं से मुक्ति मिल जाती है।

* उपरी बाधाओं से मुक्ति हेतु निम्नोक्त मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए। "ॐ नमो भगवते रुद्राय नमः कोशेश्वस्य नमो ज्योति पंतगाय नमो रुदाय नम: सिद्धि स्वाहा।"

* घर के मुख्य द्वार के समीप श्वेतार्क का पौधा लगायें, घर उपरी हवाओं से मुक्त रहेगा।
* उपले या लकड़ी के कोयले जलाकर उसमें धूनी क़ी विशिष्ट वस्तुएं डालें और उससे उत्पन्न होने वाला धुंआ पीड़ित व्यक्ति को सुंघाएं। यह क्रिया किसी ऐसे व्यक्ति से करवाएं जो अनुभवी हो और जिसमें पर्याप्त आत्मबल हो।

* प्रातः काल बीज मंत्र 'क्लीं' का उच्चारण करते हुए काली मिर्च के 9 दाने सिर पर से घुमाकर दक्षिण दिशा क़ी और फेंक दें, उपरी बला दूर हो जायेगी।

* रविवार को स्नानादि से निवृत्त होकर काले कपडे क़ी छोटी थैली में तुलसी के 8 पत्ते, 8 काली मिर्च और सहदेई क़ी जड़ बंधकर गले में धारण करें, नजर दोष बाधा से मुक्ति मिलेगी।

* निम्नोक्त मंत्र का 108 बार जप करके सरसों का तेल अभिमंत्रित कर लें और उससे पीड़ित व्यक्ति के शरीर पर मालिश करें, व्यक्ति पीडामुक्त हो जाएगा। मंत्र : ॐ नमोह काली कपाला देहि देहि स्वाहा ।
उपरी हवाओं के शक्तिशाली होने क़ी स्थिति में शाबर मन्त्रों का जप एवं प्रयोग किया जा सकता है। प्रयोग करने के पूर्व इन मन्त्रों का दीपावली क़ी रात को अथवा होलिका दहन क़ी रात को जलती हुई होली के सामने या फिर शमशान में 108 बार जप कर इन्हें सिद्ध कर लेना चाहिए। यहाँ यह उल्लेख कर देना आवश्यक है क़ी इन्हें सिद्ध करने के इच्छुक साधकों में पर्याप्त आत्मबल होना चाहिए, अन्यथा हानि हो सकती है।

* थोड़ी सी हल्दी को 3 बार निम्नलिखित मंत्र से अभिमंत्रित करके अग्नि में इस तरह चोदें क़ी उसका धुंआ रोगी के मुख क़ी और जाए। इसे हल्दी बाण मंत्र कहते हैं।

हल्दी गीरी बाण बाण को लिया हाथ उठाय ।

हल्दी बाण से नीलगिरी पहाड़ थहराय ॥

यह सब देख बोलत बीर हनुमान ।

डाइन योगिनी भूत प्रेत मुंड काटौ तान ॥

आज्ञा कामरू कामाक्षा माई ।

आज्ञा हाडि की चंडी की दोहाई ॥
* एक मुठ्ठी धुल को निम्नोक्त मंत्र से 3 बार अभिमंत्रित करें और नज़र दोष से ग्रस्त व्यक्ति पर फेकें, व्यक्ति को दोष से मुक्ति मिलेगी।
ऊपरी हवाओं के प्रभाव से मुक्ति के सरल उपाय
ऊपरी हवाओं से मुक्ति हेतु शास्त्रों में अनेक उपाय बताए गए हैं। अथर्ववेद में इस हेतु कई मंत्रों व स्तुतियों का उल्लेख है। आयुर्वेद में भी इन हवाओं से मुक्ति के उपायों का विस्तार से वर्णन किया गया है। यहां कुछ प्रमुख सरल एवं प्रभावशाली उपायों का विवरण प्रस्तुत है।

ऊपरी हवाओं से मुक्ति हेतु हनुमान चालीसा का पाठ और गायत्री का जप तथा हवन करना चाहिए। इसके अतिरिक्त अग्नि तथा लाल मिर्ची जलानी चाहिए।
रोज सूर्यास्त के समय एक साफ-सुथरे बर्तन में गाय का आधा किलो कच्चा दूध लेकर उसमें शुद्ध शहद की नौ बूंदें मिला लें। फिर स्नान करके, शुद्ध वस्त्र पहनकर मकान
की छत से नीचे तक प्रत्येक कमरे, जीने, गैलरी आदि में उस दूध के छींटे देते हुए द्वार तक आएं और बचे हुए दूध को मुख्य द्वार के बाहर गिरा दें। क्रिया के दौरान इष्टदेव का स्मरण करते रहें। यह क्रिया इक्कीस दिन तक नियमित रूप से करें, घर पर प्रभावी ऊपरी हवाएं दूर हो जाएंगी।
रविवार को बांह पर काले धतूरे की जड़ बांधें, ऊपरी हवाओं से मुक्ति मिलेगी।
लहसुन के रस में हींग घोलकर आंख में डालने या सुंघाने से पीड़ित व्यक्ति को ऊपरी हवाओं से मुक्ति मिल जाती है।
ऊपरी बाधाओं से मुक्ति हेतु निम्नोक्त मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए।
" ओम नमो भगवते रुद्राय नमः कोशेश्वस्य नमो ज्योति पंतगाय नमो रुद्राय नमः सिद्धि स्वाहा।''
घर के मुख्य द्वार के समीप श्वेतार्क का पौधा लगाएं, घर ऊपरी हवाओं से मुक्त रहेगा।
उपले या लकड़ी के कोयले जलाकर उसमें धूनी की विशिष्ट वस्तुएं डालें और उससे उत्पन्न होने वाला धुआं पीड़ित व्यक्त्ि को सुंघाएं। यह क्रिया किसी ऐसे व्यक्ति से करवाएं जो अनुभवी हो और जिसमें पर्याप्त आत्मबल हो।
प्रातः काल बीज मंत्र ÷क्लीं' का उच्चारण करते हुए काली मिर्च के नौ दाने सिर पर से घुमाकर दक्षिण दिशा की ओर फेंक दें, ऊपरी बला दूर हो जाएगी।
रविवार को स्नानादि से निवृत्त होकर काले कपड़े की छोटी थैली में तुलसी के आठ पत्ते, आठ काली मिर्च और सहदेई की जड़ बांधकर गले में धारण करें, नजर दोष बाधा से मुक्ति मिलेगी।
निम्नोक्त मंत्र का १०८ बार जप करके सरसों का तेल अभिमंत्रित कर लें और उससे पीड़ित व्यक्ति के शरीर पर मालिश करें, व्यकित पीड़ामुक्त हो जाएगा।
मंत्र : ओम नमो काली कपाला देहि देहि स्वाहा।
ऊपरी हवाओं के शक्तिषाली होने की स्थिति में शाबर मंत्रों का जप एवं प्रयोग किया जा सकता है। प्रयोग करने के पूर्व इन मंत्रों का दीपावली की रात को अथवा होलिका दहन की रात को जलती हुई होली के सामने या फिर श्मषान में १०८ बार जप कर इन्हें सिद्ध कर लेना चाहिए। यहां यह उल्लेख कर देना आवष्यक है कि इन्हें सिद्ध करने के इच्छुक साधकों में पर्याप्त आत्मबल होना चाहिए, अन्यथा हानि हो सकती है।
निम्न मंत्र से थोड़ा-सा जीरा ७ बार अभिमंत्रित कर रोगी के शरीर से स्पर्श कराएं और उसे अग्नि में डाल दें। रोगी को इस स्थिति में बैठाना चाहिए कि उसका धूंआ उसके मुख के सामने आये। इस प्रयोग से भूत-प्रेत बाधा की निवृत्ति होती है।

मंत्र : जीरा जीरा महाजीरा जिरिया चलाय। जिरिया की शक्ति से फलानी चलि जाय॥ जीये तो रमटले मोहे तो मशान टले। हमरे जीरा मंत्र से अमुख अंग भूत चले॥ जाय हुक्म पाडुआ पीर की दोहाई॥
एक मुट्ठी धूल को निम्नोक्त मंत्र से ३ बार अभिमंत्रित करें और नजर दोष से ग्रस्त व्यक्ति पर फेंकें, व्यक्ति को दोष से मुक्ति मिलेगी।
मंत्र : तह कुठठ इलाही का बान। कूडूम की पत्ती चिरावन। भाग भाग अमुक अंक से भूत। मारुं धुलावन कृष्ण वरपूत। आज्ञा कामरु कामाख्या। हारि दासीचण्डदोहाई।
थोड़ी सी हल्दी को ३ बार निम्नलिखित मंत्र से अभिमंत्रित करके अग्नि में इस तरह छोड़ें कि उसका धुआं रोगी के मुख की ओर जाए। इसे हल्दी बाण मंत्र कहते हैं।
हल्दी गीरी बाण बाण को लिया हाथ उठाय। हल्दी बाण से नीलगिरी पहाड़ थहराय॥ यह सब देख बोलत बीर हनुमान। डाइन योगिनी भूत प्रेत मुंड काटौ तान॥ आज्ञा कामरु कामाक्षा माई। आज्ञा हाड़ि की चंडी की दोहाई॥
जौ, तिल, सफेद सरसों, गेहूं, चावल, मूंग, चना, कुष, शमी, आम्र, डुंबरक पत्ते और अषोक, धतूरे, दूर्वा, आक व ओगां की जड़ को मिला लें और उसमें दूध, घी, मधु और गोमूत्र मिलाकर मिश्रण तैयार कर लें। फिर संध्या काल में हवन करें और निम्न मंत्रों का १०८ बार जप कर इस मिश्रण से १०८ आहुतियां दें।
मंत्र : ओम नमः भवे भास्कराय आस्माक अमुक सर्व ग्रहणं पीड़ा नाशनं कुरु-कुरु स्वाहा।

मानसिक तनाव से मुक्ति का अचूक मंत्र ....... तनाव से देता है छुटकारा, यह चमत्कारी मंत्र

मानसिक तनाव से मुक्ति का अचूक मंत्र ....... तनाव से देता है छुटकारा, यह चमत्कारी मंत्र
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यदि आप किसी वजह से मानसिक तनाव में रहते हैं अथवा किसी अज्ञात भय से पीड़ित हैं, अपने आपको असु‍रक्षित महसूस करते हैं तो उसके लिए 11 बुधवार लगातार 1 नारियल नीले वस्त्र में लपेटकर किसी भिखारी को दान करें।

अपने शयनकक्ष में तांबे का एक पिरामिड स्थापित करें।
नित्य मानसिक रूप से निम्न मंत्र का जाप अवश्य किया करें।

मंत्र :
ॐ अतिक्रकर महाकाय, कल्पान्त दहनोपम
भैरवाय नमस्तुभ्यमनुज्ञां दातुमहसि!!

इस उपरोक्त उपाय से एक ओर जहां आपको मानसिक तनाव/ भय/ दबाव इत्यादि से मुक्ति मिलेगी वहीं परिवार में अगर कोई नकारात्मक‍ विचारधारा का है तो उसके विचारों में भी परिवर्तन आना आरंभ होगा।

वैदिक ज्योतिष »----ज्योतिष--कसौटी पर खरे उतरते वैज्ञानिक नियम

वैदिक ज्योतिष »----ज्योतिष--कसौटी पर खरे उतरते वैज्ञानिक नियम
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Photo: वैदिक ज्योतिष »----ज्योतिष--कसौटी पर खरे उतरते वैज्ञानिक नियम
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ज्योतिष को संसार में विज्ञान का दर्जा देने से कितने ही विज्ञान-कर्ता कतराते है. कारण और निवारण का सिद्धान्त अपना कर भौतिक जगत की श्रेणी मे ज्योतिष को तभी रखा जा सकता है, जब उसे पूरी तरह से समझ लिया जाये. वातावरण के परिवर्तन जैसे तूफ़ान आना,चक्रवात का पैदा होना और हवाओं का रुख बदलना,भूकम्प आना,बाढ की सूचना देना आदि मौसम विज्ञान के अनुसार कथित किया जाता है.
पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के द्वारा ब्रहमाण्ड से आने वाली अनन्त शक्तियों का प्रवाह का कथन पुराणो मे भी मिलता है. जिन्हे धनात्मक शक्तियों का रूप प्रदान किया गया है और दक्षिणी ध्रुव से नकारात्मक शक्तियों का प्रवाह पृथ्वी पर प्रवाहित होने से ही वास्तु-शास्त्र को कथित करने में वैज्ञानिकों को सहायता मिली है.कहावत है कि जब हवायें थम जाती है तो आने वाले किसी तूफ़ान का अंदेशा रहता है. यह सब प्राथमिक सूचनायें भी हमें ज्योतिष द्वारा ही मिलती है. वातावरण की जानकारी और वातावरण के द्वारा प्रेषित सूचनाओं के आधार पर ही प्राचीन समय से ही वैज्ञानिक अपने कथनो को सिद्ध करते आये है,जो आज तक भी सत्यता की कसौटी पर सौ प्रतिशत खरे उतरते है. अगर आज का मानव अनिष्ट सूचक घटनाओ को इस विज्ञान के माध्यम से जान ले तो वह मानव की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि होगी.
ब्रह्माजी से जब सर्व प्रथम यह विद्या गर्ग ऋषि ने प्राप्त की और उसके बाद अन्य लोग इस विद्या को जान सके. प्राचीन काल से ही ऋषियों-मुनियों ने अपनी खोजबीन और पराविज्ञान की मदद से इस विद्या का विकास किया, उन रहस्यों को जाना जिन्हे आज का मानव अरबों-खरबों डालर खर्च करने के बाद भी पूरी तरह से प्राप्त नही कर सका है. तल,वितल,सुतल,तलातल,पाताल,धरातल और महातल को ऋषियों ने पहले ही जान लिया था उनकी व्याख्या "सुखसागर" आदि ग्रंथों में बहुत ही विस्तृत रूप से की गई है. प्राकृतिक रहस्यों को सुलझाने के लिये परा और अपरा विद्याओं को स्थापित कर दिया था. परा विद्याओं का सम्बन्ध वेदों में निहित किया था. ज्योतिष शास्त्र के अन्तर्गत खगोलशास्त्र,पदार्थ विज्ञान,आयुर्वेद और गणित का अध्ययन प्राचीन काल से ही किया जाता रहा है. उस समय के एक डाक्टर को ज्योतिषी और अध्यापक होना अनिवार्य माना जाता था और ज्योतिषी को भी डाक्टरी और अध्यापन मे प्रवीण होना जरूरी था. कालान्तर के बाद आर्यभट्ट और बाराहमिहिर ने शास्त्र का संवर्धन किया और अपने आधार से ठोस आधार प्रदान किये.
"भास्कराचार्य" ने तो न्यूटन से बहुत पहले ही पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण-शक्ति का प्रतिपादन कर दिया था,जिसे उन्होने अपने ग्रंथ "सिद्धान्तशिरोमणि" में प्रस्तुत किया है. "आकृष्ट शक्ति च महीतया,स्वस्थ गुरं स्वभिमुखं स्वंशवत्या" अर्थात पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है,जिससे वह अपने आस पास की वस्तुओं को आकर्षित करती है.
आज से २२०० साल पहले बाराहमिहिर ने २७ नक्षत्रों और ७ ग्रहों तथा ध्रुव तारे का को वेधने के लिये एक बडे जलाशय में स्तम्भ का निर्माण करवाया था,जिसकी चर्चा "भागवतपुराण" मे की गई है. स्तम्भ मे सात ग्रहों के लिये सात मंजिले,और २७ नक्षत्रों के लिये २७ रोशनदान काले पत्थरों से निर्मित करवाये थे. इसके चारों तरफ़ २७ वेधशालायें मन्दिरों के रूप में बनी थीं. प्राचीन भारतीय शासक कुतुब्द्दीन ऐबक ने उन सब वेधशालाओं को तुडवाकर वहाँ मस्जिद बनवा दी थी और रही सही कसर अन्ग्रेजी शासन नें निकाल दी, जिन्होने इस स्तम्भ के ऊपरी भाग को भी तुडवा दिया था. हालॉकि आज भी वह ७६ फ़ुट शेष है. यह वही दिल्ली की प्रसिद्ध "कुतुबमीनार" है, जिसे सारी दुनिया जानती है.
ज्योतिष विज्ञान आज भी उतना ही उपयोगी है,जितना कि कभी पुरातन काल में था. मुस्लिम ज्योतिषी इब्बनबतूता और अलबरूनो ने भारत मे रह कर संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त किया और अनेक ज्योतिष ग्रंथों का अरबी भाषा में अनुवाद किया और अरब देशों में इसका प्रचार प्रसार किया. "अलबरूनो" ने "इन्डिका" नामक ग्रन्थ लिखा जिसका अनुवाद बाद में जर्मन भाषा में किया गया था. जर्मन विद्वानो ने जब यह पुस्तक पढी तो उनका ध्यान भारत की ओर आकर्षित हुआ और उन लोगो ने यहां के अनेक प्राचीन ग्रन्थों का अनुवाद किया. यूनान के प्रसिद्ध "यवनाचार्य" ने भारत मे ही रह कर कई ग्रन्थ ज्योतिष के लिखे.
लन्दन के प्रसिद्ध विद्वान "फ़्रान्सिस हचिंग" ने शोध द्वारा यह सिद्ध किया कि मिश्र के "पिरामिड" और उनमे रखे जाने वाले शवों का स्थान ज्योतिषीय रूप रेखा के द्वारा ही तय किया जाता था
कसौटी पर खरे उतरते वैज्ञानिक नियम:---
ब्रह्मांड की अति सूक्षम हलचल का प्रभाव भी पृथ्वी पर पडता है. सूर्य और चन्द्र का प्रत्यक्ष प्रभाव हम आसानी से देख और समझ सकते है. सूर्य के प्रभाव से ऊर्जा और चन्द्रमा के प्रभाव से समुद में ज्वार-भाटा को भी समझ और देख सकते है. जिसमे अष्ट्मी के लघु ज्वार और पूर्णमासी के दिन बृहद ज्वार का आना इसी प्रभाव का कारण है. पानी पर चन्द्रमा का प्रभाव अत्याधिक पडता है. मनुष्य के अन्दर भी पानी की मात्रा अधिक होने के कारण चन्द्रमा का प्रभाव मानवी प्रकृति पर भी पडता है. पूर्णिमा के दिन होने वाली अपराधों में बढोत्तरी को देखकर इसे आसानी से समझा जा सकता है. जो लोग मानसिक रूप से विक्षिप्त होते हैं, उनकी विक्षिप्तता भी इसी तिथि को अधिक रहती है. आत्महत्या वाले कारण भी इसी तिथि को अधिक देखने को मिलते है. इस दिन सामान्यत: स्त्रियों में मानसिक तनाव भी कुछ अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देता है.
शुक्ल पक्ष मे वनस्पतियां अधिक तीव्रता से बढती है. सूर्योदय के पश्चात वन्स्पतियों और प्राणियों में स्फ़ूर्ति का प्रभाव अधिक बढ जाता है. आयुर्वेद भी चन्द्रमा का विज्ञान है जिसके अन्तर्गत वनस्पति जगत का सम्पूर्ण मिश्रण है. कहा भी जाता है कि "संसार का प्रत्येक अक्षर एक मंत्र है. प्रत्येक वनस्पति एक औषधि है और प्रत्येक मनुष्य एक अपना गुण रखता है. बस आवश्यकता महज उसे पहचानने की होती है".
’ग्रहाधीन जगत सर्वम". विज्ञान की मान्यता है कि सूर्य एक जलता हुआ आग का गोला है,जिससे सभी ग्रह पैदा हुए है. गायत्री मन्त्र मे सूर्य को सविता या परमात्मा माना गया है. रूस के वैज्ञानिक "चीजेविस्की" ने सन १९२० में अन्वेषण किया था कि हर ११ वर्ष के अन्तराल पर सूर्य में एक विस्फ़ोट होता है जिसकी क्षमता १००० अणुबम के बराबर होती है. इस विस्फ़ोट के समय पृथ्वी पर उथल-पुथल, लडाई झगडे, मारकाट होती है. युद्ध भी इसी समय मे अधिक होते है. पुरुषों का खून पतला हो जाता है. पेडों के तनों में पडने वाले वलय बडे होते है. आमतौर पर आप देखें तो पायेंगें कि श्वास रोग सितम्बर से नबम्बर तक अधिक रूप से बढ जाता है. मासिक धर्म के आरम्भ में १४,१५,या १६ दिन गर्भाधान की अधिक सम्भावना होती है.
बताईये क्या इतने सब कारण क्या ज्योतिष को विज्ञान कहने के लिये पर्याप्त नही है?ज्योतिष को संसार में विज्ञान का दर्जा देने से कितने ही विज्ञान-कर्ता कतराते है. कारण और निवारण का सिद्धान्त अपना कर भौतिक जगत की श्रेणी मे ज्योतिष को तभी रखा जा सकता है, जब उसे पूरी तरह से समझ लिया जाये. वातावरण के परिवर्तन जैसे तूफ़ान आना,चक्रवात का पैदा होना और हवाओं का रुख बदलना,भूकम्प आना,बाढ की सूचना देना आदि मौसम विज्ञान के अनुसार कथित किया जाता है.
पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के द्वारा ब्रहमाण्ड से आने वाली अनन्त शक्तियों का प्रवाह का कथन पुराणो मे भी मिलता है. जिन्हे धनात्मक शक्तियों का रूप प्रदान किया गया है और दक्षिणी ध्रुव से नकारात्मक शक्तियों का प्रवाह पृथ्वी पर प्रवाहित होने से ही वास्तु-शास्त्र को कथित करने में वैज्ञानिकों को सहायता मिली है.कहावत है कि जब हवायें थम जाती है तो आने वाले किसी तूफ़ान का अंदेशा रहता है. यह सब प्राथमिक सूचनायें भी हमें ज्योतिष द्वारा ही मिलती है. वातावरण की जानकारी और वातावरण के द्वारा प्रेषित सूचनाओं के आधार पर ही प्राचीन समय से ही वैज्ञानिक अपने कथनो को सिद्ध करते आये है,जो आज तक भी सत्यता की कसौटी पर सौ प्रतिशत खरे उतरते है. अगर आज का मानव अनिष्ट सूचक घटनाओ को इस विज्ञान के माध्यम से जान ले तो वह मानव की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि होगी.

ब्रह्माजी से जब सर्व प्रथम यह विद्या गर्ग ऋषि ने प्राप्त की और उसके बाद अन्य लोग इस विद्या को जान सके. प्राचीन काल से ही ऋषियों-मुनियों ने अपनी खोजबीन और पराविज्ञान की मदद से इस विद्या का विकास किया, उन रहस्यों को जाना जिन्हे आज का मानव अरबों-खरबों डालर खर्च करने के बाद भी पूरी तरह से प्राप्त नही कर सका है. तल,वितल,सुतल,तलातल,पाताल,धरातल और महातल को ऋषियों ने पहले ही जान लिया था उनकी व्याख्या "सुखसागर" आदि ग्रंथों में बहुत ही विस्तृत रूप से की गई है. प्राकृतिक रहस्यों को सुलझाने के लिये परा और अपरा विद्याओं को स्थापित कर दिया था. परा विद्याओं का सम्बन्ध वेदों में निहित किया था. ज्योतिष शास्त्र के अन्तर्गत खगोलशास्त्र,पदार्थ विज्ञान,आयुर्वेद और गणित का अध्ययन प्राचीन काल से ही किया जाता रहा है. उस समय के एक डाक्टर को ज्योतिषी और अध्यापक होना अनिवार्य माना जाता था और ज्योतिषी को भी डाक्टरी और अध्यापन मे प्रवीण होना जरूरी था. कालान्तर के बाद आर्यभट्ट और बाराहमिहिर ने शास्त्र का संवर्धन किया और अपने आधार से ठोस आधार प्रदान किये.
"भास्कराचार्य" ने तो न्यूटन से बहुत पहले ही पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण-शक्ति का प्रतिपादन कर दिया था,जिसे उन्होने अपने ग्रंथ "सिद्धान्तशिरोमणि" में प्रस्तुत किया है. "आकृष्ट शक्ति च महीतया,स्वस्थ गुरं स्वभिमुखं स्वंशवत्या" अर्थात पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है,जिससे वह अपने आस पास की वस्तुओं को आकर्षित करती है.
आज से २२०० साल पहले बाराहमिहिर ने २७ नक्षत्रों और ७ ग्रहों तथा ध्रुव तारे का को वेधने के लिये एक बडे जलाशय में स्तम्भ का निर्माण करवाया था,जिसकी चर्चा "भागवतपुराण" मे की गई है. स्तम्भ मे सात ग्रहों के लिये सात मंजिले,और २७ नक्षत्रों के लिये २७ रोशनदान काले पत्थरों से निर्मित करवाये थे. इसके चारों तरफ़ २७ वेधशालायें मन्दिरों के रूप में बनी थीं. प्राचीन भारतीय शासक कुतुब्द्दीन ऐबक ने उन सब वेधशालाओं को तुडवाकर वहाँ मस्जिद बनवा दी थी और रही सही कसर अन्ग्रेजी शासन नें निकाल दी, जिन्होने इस स्तम्भ के ऊपरी भाग को भी तुडवा दिया था. हालॉकि आज भी वह ७६ फ़ुट शेष है. यह वही दिल्ली की प्रसिद्ध "कुतुबमीनार" है, जिसे सारी दुनिया जानती है.
ज्योतिष विज्ञान आज भी उतना ही उपयोगी है,जितना कि कभी पुरातन काल में था. मुस्लिम ज्योतिषी इब्बनबतूता और अलबरूनो ने भारत मे रह कर संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त किया और अनेक ज्योतिष ग्रंथों का अरबी भाषा में अनुवाद किया और अरब देशों में इसका प्रचार प्रसार किया. "अलबरूनो" ने "इन्डिका" नामक ग्रन्थ लिखा जिसका अनुवाद बाद में जर्मन भाषा में किया गया था. जर्मन विद्वानो ने जब यह पुस्तक पढी तो उनका ध्यान भारत की ओर आकर्षित हुआ और उन लोगो ने यहां के अनेक प्राचीन ग्रन्थों का अनुवाद किया. यूनान के प्रसिद्ध "यवनाचार्य" ने भारत मे ही रह कर कई ग्रन्थ ज्योतिष के लिखे.
लन्दन के प्रसिद्ध विद्वान "फ़्रान्सिस हचिंग" ने शोध द्वारा यह सिद्ध किया कि मिश्र के "पिरामिड" और उनमे रखे जाने वाले शवों का स्थान ज्योतिषीय रूप रेखा के द्वारा ही तय किया जाता था
कसौटी पर खरे उतरते वैज्ञानिक नियम:---
ब्रह्मांड की अति सूक्षम हलचल का प्रभाव भी पृथ्वी पर पडता है. सूर्य और चन्द्र का प्रत्यक्ष प्रभाव हम आसानी से देख और समझ सकते है. सूर्य के प्रभाव से ऊर्जा और चन्द्रमा के प्रभाव से समुद में ज्वार-भाटा को भी समझ और देख सकते है. जिसमे अष्ट्मी के लघु ज्वार और पूर्णमासी के दिन बृहद ज्वार का आना इसी प्रभाव का कारण है. पानी पर चन्द्रमा का प्रभाव अत्याधिक पडता है. मनुष्य के अन्दर भी पानी की मात्रा अधिक होने के कारण चन्द्रमा का प्रभाव मानवी प्रकृति पर भी पडता है. पूर्णिमा के दिन होने वाली अपराधों में बढोत्तरी को देखकर इसे आसानी से समझा जा सकता है. जो लोग मानसिक रूप से विक्षिप्त होते हैं, उनकी विक्षिप्तता भी इसी तिथि को अधिक रहती है. आत्महत्या वाले कारण भी इसी तिथि को अधिक देखने को मिलते है. इस दिन सामान्यत: स्त्रियों में मानसिक तनाव भी कुछ अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देता है.
शुक्ल पक्ष मे वनस्पतियां अधिक तीव्रता से बढती है. सूर्योदय के पश्चात वन्स्पतियों और प्राणियों में स्फ़ूर्ति का प्रभाव अधिक बढ जाता है. आयुर्वेद भी चन्द्रमा का विज्ञान है जिसके अन्तर्गत वनस्पति जगत का सम्पूर्ण मिश्रण है. कहा भी जाता है कि "संसार का प्रत्येक अक्षर एक मंत्र है. प्रत्येक वनस्पति एक औषधि है और प्रत्येक मनुष्य एक अपना गुण रखता है. बस आवश्यकता महज उसे पहचानने की होती है".
’ग्रहाधीन जगत सर्वम". विज्ञान की मान्यता है कि सूर्य एक जलता हुआ आग का गोला है,जिससे सभी ग्रह पैदा हुए है. गायत्री मन्त्र मे सूर्य को सविता या परमात्मा माना गया है. रूस के वैज्ञानिक "चीजेविस्की" ने सन १९२० में अन्वेषण किया था कि हर ११ वर्ष के अन्तराल पर सूर्य में एक विस्फ़ोट होता है जिसकी क्षमता १००० अणुबम के बराबर होती है. इस विस्फ़ोट के समय पृथ्वी पर उथल-पुथल, लडाई झगडे, मारकाट होती है. युद्ध भी इसी समय मे अधिक होते है. पुरुषों का खून पतला हो जाता है. पेडों के तनों में पडने वाले वलय बडे होते है. आमतौर पर आप देखें तो पायेंगें कि श्वास रोग सितम्बर से नबम्बर तक अधिक रूप से बढ जाता है. मासिक धर्म के आरम्भ में १४,१५,या १६ दिन गर्भाधान की अधिक सम्भावना होती है.
बताईये क्या इतने सब कारण क्या ज्योतिष को विज्ञान कहने के लिये पर्याप्त नही है?

रावण सहिंता के ये उपाय चमका देंगे आपकी किस्मत को

रावण सहिंता के ये उपाय चमका देंगे आपकी किस्मत को 
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बहुत कम लोग जानते हैं। रावण सभी शास्त्रों का जानकार और श्रेष्ठ विद्वान था।
रावण ने भी ज्योतिष और तंत्र शास्त्र की रचना की है। दशानन ने ऐसे कई उपाय बताए हैं जिनसे किसी भी व्यक्ति की किस्मत रातोंरात बदल सकती है।

यहां जानिए रावण संहिता के अनुसार कुछ ऐसे तांत्रिक उपाय जिनसे किसी भी व्यक्ति की किस्मत चमक सकती है...
महाज्ञानी रावण कई चीजों में पारंगत था। ज्योतिष शास्त्र में भी उसे महारत हासिल थी। तंत्र शास्त्र का भी वह महाज्ञाता था। इसी वजह से जो भी दशानन के संपर्क में आता था वह सहसा ही उससे मोहित हो जाता था।

बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि रावण का प्रभाव उसकी तांत्रिक साधना के बल पर था। रावण कई ऐसे उपाय भी करता था जिससे जो भी सामान्य इंसान उसे देखता था वह आकर्षित हो जाता था।

रावण संहिता में कुछ ऐसे ही खास प्रकार के तांत्रिक तिलक की चर्चा की गई है। जो भी व्यक्ति यह तिलक लगाता है सहज ही लोग उसकी तरफ खिंचे चले आते हैं। यहां जानिए कि कौन-कौन से हैं वह तांत्रिक तिलक......

1. धन प्राप्ति का उपाय: किसी भी शुभ मुहूर्त में या किसी शुभ दिन में सुबह जल्दी उठें। इसके बाद नित्यकर्मों से निवृत्त होकर किसी पवित्र नदी या जलाशय के किनारे जाएं। किसी शांत एवं एकांत स्थान पर वट वृक्ष के नीचे चमड़े का आसन बिछाएं। आसन पर बैठकर धन प्राप्ति मंत्र का जप करें।

धन प्राप्ति का मंत्र: ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं नम: ध्व: ध्व: स्वाहा।

इस मंत्र का जप आपको 21 दिनों तक करना चाहिए। मंत्र जप के लिए रुद्राक्ष की माला का उपयोग करें। 21 दिनों में अधिक से अधिक संख्या में मंत्र जप करें।
जैसे ही यह मंत्र सिद्ध हो जाएगा आपको अचानक धन प्राप्ति अवश्य कराएगा।

2.यदि किसी व्यक्ति को धन प्राप्त करने में बार-बार रुकावटें आ रही हों तो उसे यह उपाय करना चाहिए।
यह उपाय 40 दिनों तक किया जाना चाहिए। इसे अपने घर पर ही किया जा सकता है। उपाय के अनुसार धन प्राप्ति मंत्र का जप करना है। प्रतिदिन 108 बार।
मंत्र: ऊँ सरस्वती ईश्वरी भगवती माता क्रां क्लीं, श्रीं श्रीं मम धनं देहि फट् स्वाहा।
इस मंत्र का जप नियमित रूप से करने पर कुछ ही दिनों महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो जाएगी और आपके धन में आ रही रुकावटें दूर होने लगेंगी।

3. यदि आप दसों दिशाओं से यानी चारों तरफ से पैसा प्राप्त करना चाहते हैं तो यह उपाय करें। यह उपाय दीपावली के दिन किया जाना चाहिए।
दीपावली की रात में विधि-विधान से महालक्ष्मी का पूजन करें। पूजन के सो जाएं और सुबह जल्दी उठें। नींद से जागने के बाद पलंग से उतरे नहीं बल्कि यहां दिए गए मंत्र का जप 108 बार करें।
मंत्र: ऊँ नमो भगवती पद्म पदमावी ऊँ ह्रीं ऊँ ऊँ पूर्वाय दक्षिणाय उत्तराय आष पूरय सर्वजन वश्य कुरु कुरु स्वाहा।
शय्या पर मंत्र जप करने के बाद दसों दिशाओं में दस-दस बार फूंक मारें। इस उपाय से साधक को चारों तरफ से पैसा प्राप्त होता है

4.सफेद आंकड़े को छाया में सुखा लें। इसके बाद कपिला गाय यानी सफेद गाय के दूध में मिलाकर इसे पीस लें और इसका तिलक लगाएं। ऐसा करने पर व्यक्ति का समाज में वर्चस्व हो जाता है।

5.यदि आपको ऐसा लगता है कि किसी स्थान पर धन गढ़ा हुआ है और आप वह धन प्राप्त करना चाहते हैं तो यह उपाय करें।
गड़ा धन प्राप्त करने के लिए यहां दिए गए मंत्र का जप दस हजार बार करना होगा।
मंत्र: ऊँ नमो विघ्नविनाशाय निधि दर्शन कुरु कुरु स्वाहा।
गड़े हुए धन के दर्शन करने के लिए विधि इस प्रकार है। किसी शुभ दिवस में यहां दिए गए मंत्र का जप हजारों की संख्या करें। मंत्र सिद्धि हो जाने के बाद जिस स्थान पर धन गड़ा हुआ है वहां धतुरे के बीज, हलाहल, सफेद घुघुंची, गंधक, मैनसिल, उल्लू की विष्ठा, शिरीष वृक्ष का पंचांग बराबर मात्रा में लें और सरसों के तेल में पका लें। इसके बाद इस सामग्री से गड़े धन की शंका वाले स्थान पर धूप-दीप ध्यान करें। यहां दिए गए मंत्र का जप हजारों की संख्या में करें।
ऐसा करने पर उस स्थान से सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियों का साया हट जाएगा। भूत-प्रेत का भय समाप्त हो जाएगा। साधक को भूमि में गड़ा हुआ धन दिखाई देने लगेगा।
ध्यान रखें तांत्रिक उपाय करते समय किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी का परामर्श अवश्य लें।

6.शास्त्रों के अनुसार दूर्वा घास चमत्कारी होती है। इसका प्रयोग कई प्रकार के उपायों में भी किया जाता है। यदि कोई व्यक्ति सफेद दूर्वा को कपिला गाय यानी सफेद गाय के दूध के साथ पीस लें और इसका तिलक लगाएं तो वह किसी भी काम में असफल नहीं होता है।

7.महालक्ष्मी की कृपा तुरंत प्राप्त करने के लिए यह तांत्रिक उपाय करें।
किसी शुभ मुहूर्त जैसे दीपावली, अक्षय तृतीया, होली आदि की रात यह उपाय किया जाना चाहिए। दीपावली की रात में यह उपाय श्रेष्ठ फल देता है। इस उपाय के अनुसार आपको दीपावली की रात कुमकुम या अष्टगंध से थाली पर यहां दिया गया मंत्र लिखें।
मंत्र: ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्मी, महासरस्वती ममगृहे आगच्छ-आगच्छ ह्रीं नम:।
इस मंत्र का जप भी करना चाहिए। किसी साफ एवं स्वच्छ आसन पर बैठकर रुद्राक्ष की माला या कमल गट्टे की माला के साथ मंत्र जप करें। मंत्र जप की संख्या कम से कम 108 होनी चाहिए। अधिक से अधिक इस मंत्र की आपकी श्रद्धानुसार बढ़ा सकते हैं।
इस उपाय से आपके घर में महालक्ष्मी की कृपा बरसने लगेगी।

8.अपामार्ग के बीज को बकरी के दूध में मिलाकर पीस लें, लेप बना लें। इस लेप को लगाने से व्यक्ति का समाज में आकर्षण काफी बढ़ जाता है। सभी लोग इनके कहे को मानते हैं।

9.यदि आप देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर की कृपा से अकूत धन संपत्ति चाहते हैं तो यह उपाय करें।
उपाय के अनुसार आपको यहां दिए जा रहे मंत्र का जप तीन माह तक करना है। प्रतिदिन मंत्र का जप केवल 108 बार करें।
मंत्र: ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रवाणाय, धन धन्याधिपतये धन धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा।
मंत्र जप करते समय अपने पास धनलक्ष्मी कौड़ी रखें। जब तीन माह हो जाएं तो यह कौड़ी अपनी तिजोरी में या जहां आप पैसा रखते हैं वहां रखें। इस उपाय से जीवनभर आपको पैसों की कमी नहीं होगी।

10.यदि आप घर या समाज या ऑफिस में लोगों को आकर्षित करना चाहते हैं तो बिल्वपत्र तथा बिजौरा नींबू लेकर उसे बकरी के दूध में मिलाकर पीस लें। इसके बाद इससे तिलक लगाएं। ऐसा करने पर व्यक्ति का आकर्षण बढ़ता है।

(मोटापा) घटाने में अत्यंत सहायक हैं. सूर्य मुद्रा :- हस्त-मुद्रा-चिकित्सा

(मोटापा) घटाने में अत्यंत सहायक हैं. सूर्य मुद्रा :- हस्त-मुद्रा-चिकित्सा
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मानव-सरीर अनन्त रहस्योंसे भरा हुआ है । शरीरकी अपनी एक मुद्रामयी भाषा है । जिसे करनेसे शारीरिक स्वास्थ्य-लाभ में सहयोग होता है । यह शरीर पंचतत्त्वोंके योगसे बना है । पाँच तत्त्व ये हैं-
(1) पृथ्वी, (2) जल, (3) अग्नि, (4) वायु, एवं (5) आकाश । शरीर में जब भी इन तत्त्वोंका असंतुलन होता है, तो रोग पैदा हो जाते हैं । यदि हम इनका संतुलन करना सीख जायँ तो बीमार हो ही नहीं सकते एवं यदि हो भी जायँ तो इन तत्त्वोंको संतुलित करके आरोग्यता वापस ला सकते हैं ।

हस्त-मुद्रा-चिकित्साके अनुसार हाथ तथा हाथोंकी अँगुलियों और अँगुलियोंसे बननेवाली मुद्राओंमें आरोग्यका राज छिपा हुआ है । हाथकी अँगुलियोंमें पंचतत्त्व प्रतिष्ठित हैं ।

ऋषि-मुनियोंने हजारों साल पहले इसकी खोज कर ली थी एवं इसे उपयोगमें बराबर प्रतिदिन लाते रहे, इसीलिये वे लोग स्वस्थ रहते थे । ये शरीरमें चैतन्यको अभिव्यक्ति देनेवाली कुंजियाँ हैं ।

मनुष्यका मस्तिष्क विकसित है, उसमें अनंत क्षमताएँ हैं । ये क्षमताएँ आवृत हैं, उन्हें अनावृत करके हम अपने लक्ष्यको पा सकते हैं ।

नृत्य करते समय भी मुद्राएँ बनायी जाती हैं, जो शरीर हजारों नसों एवं नाडियोंको प्रभावित करती हैं और उनका प्रभाव भी शरीरपर अच्छा पड़ता है ।

हस्त-मुद्राएँ तत्काल ही असर करना शुरू कर देती हैं । जिस हाथमें ये मुद्राएँ बनाते हैं, शरीरके विपरीत भागमें उनका तुरंत असर होना शुरू हो जाता है । इन सब मुद्राओंका प्रयोग करते समय वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासनका प्रयोग करना चाहिये ।

इन मुद्राओंको प्रतिदिन तीससे पैंतालीस मिनटतक करनेसे पूर्ण लाभ होता है । एक बारमें न कर सके तो दो-तीन बारमें भी किया जा सकता है ।

किसी भी मुद्राको करते समय जिन अँगुलियोंका कोई काम न हो उन्हें सीधी रखे ।
सूर्य मुद्रा हमारे भीतर के अग्नि तत्व को संचालित करती है। सूर्य की अँगुली अनामिका को रिंग फिंगर भी कहते हैं। इस अँगुली का संबंध सूर्य और यूरेनस ग्रह से है। सूर्य ऊर्जा स्वास्थ्य का प्रतिनिधित्व करती है और यूरेनस कामुकता, अंतर्ज्ञान और बदलाव का प्रतीक है।

विधि : अंगूठे से तीसरी अंगुली अनामिका (रिंग फिंगर) को मोड़कर उसके ऊपरी नाखून वाले भाग को अंगूठे के जड़ (गद्देदार भाग) पर दवाब(हल्का) डालें और अंगूठा मोड़कर अनामिका पर निरंतर दवाब(हल्का) बनाये रखें तथा शेष अँगुलियों को अपने सीध में सीधा रखें.....इस तरह जिस मुद्रा का निर्माण होगा उसे सूर्य मुद्रा कहते हैं...

लाभ : इस मुद्रा का रोज दो बार 5 से 15 मिनट के लिए अभ्यास करने से शरीर का कोलेस्ट्रॉल घटता है। वजन कम करने के लिए भी इस मुद्रा का उपयोग किया जाता है। पेट संबंधी रोगों में भी यह मुद्रा लाभदायक है। बेचैनी और चिंता कम होकर दिमाग शांत बना रहता है। यह मुद्रा शरीर की सूजन मिटाकर उसे हलका बनाती है।
यह मुद्रा शारीरिक स्थूलता (मोटापा) घटाने में अत्यंत सहायक होता है...जो लोग मोटापे से परेशान हैं,इस मुद्रा का प्रयोग कर फलित होते देख सकते हैं..

( अनामिका को महत्त्व लगभग सभी धर्म सम्प्रदाय में दिया गया है.इसे बड़ा ही शुभ और मंगलकारी माना गया है.हिन्दुओं में पूजा पाठ उत्सव आदि पर मस्तक पर जो तिलक लगाया जाता है,वह इसलिए कि ललाट में जिस स्थान पर तिलक लगाया जाता है योग के अनुसार मस्तक के उस भाग में द्विदल कमल होता है और अनामिका द्वारा उस स्थान के स्पर्श से मस्तिष्क की अदृश्य शक्ति जागृत हो जाती हैं,व्यक्तित्व तेजोमय हो जाता है)

हाथ में कौन सी अंगुली पर तिल हो तो क्या होता है?

हाथ में कौन सी अंगुली पर तिल हो तो क्या होता है?
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Photo: हाथ में कौन सी अंगुली पर तिल हो तो क्या होता है?
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार तिल भी हमारे स्वभाव और भविष्य को प्रभावित करते हैं। शरीर के अलग-अलग अंगों पर तिल होना अलग-अलग प्रभाव देता है। ऐसा माना जाता है कि पुरुषों के लिए दाएं अंग पर तिल होना शुभ है और बाएं अंग पर तिल होना अशुभ। जबकि स्त्रियों के लिए बाएं अंग पर तिल होना शुभ है तो दाएं अंग पर तिल होना अशुभ माना जाता है।
जिन लोगों के हाथों पर तिल होते हैं वे चतुर होते हैं। गुरु पर्वत यानि इंडेक्स फिंगर के नीचे वाले भाग पर तिल हो तो व्यक्ति धार्मिक हो सकता है। दायीं हथेली पर तिल हो तो व्यक्ति बलवान होता है। कुछ परिस्थितियों में दायीं हथेली का तिल व्यक्ति को धनवान भी बनाता है। बायीं हथेली पर तिल हो तो व्यक्ति खर्चीला तथा कंजूस हो सकता है।
तर्जनी यानि इंडेक्स फिंगर पर तिल:जिसकी तर्जनी पर तिल हो, वह विद्यावान, गुणवान और धनवान किंतु शत्रुओं से पीडि़त होता है।
अनामिका या रिंग फिंगर पर तिल:जिसकी अनामिका पर तिल हो तो वह ज्ञानी, यशस्वी, धनी और पराक्रमी होता है।
कनिष्ठका या लिटिल फिंगर पर तिल:कनिष्ठका पर तिल हो तो वह व्यक्ति संपत्तिवान होता है, किंतु उसका जीवन दुखमय होता है।
अंगूठे या थम्ब पर तिल: अंगूठे पर तिल हो तो व्यक्ति कार्यकुशल, व्यवहार कुशल तथा न्यायप्रिय होता है।
मध्यमा या मीडिल फिंगर पर तिल:मध्यमा पर तिल उत्तम फलदायी होता है। व्यक्ति सुखी होता है। उसका जीवन शांतिपूर्ण होता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार तिल भी हमारे स्वभाव और भविष्य को प्रभावित करते हैं। शरीर के अलग-अलग अंगों पर तिल होना अलग-अलग प्रभाव देता है। ऐसा माना जाता है कि पुरुषों के लिए दाएं अंग पर तिल होना शुभ है और बाएं अंग पर तिल होना अशुभ। जबकि स्त्रियों के लिए बाएं अंग पर तिल होना शुभ है तो दाएं अंग पर तिल होना अशुभ माना जाता है।

जिन लोगों के हाथों पर तिल होते हैं वे चतुर होते हैं। गुरु पर्वत यानि इंडेक्स फिंगर के नीचे वाले भाग पर तिल हो तो व्यक्ति धार्मिक हो सकता है। दायीं हथेली पर तिल हो तो व्यक्ति बलवान होता है। कुछ परिस्थितियों में दायीं हथेली का तिल व्यक्ति को धनवान भी बनाता है। बायीं हथेली पर तिल हो तो व्यक्ति खर्चीला तथा कंजूस हो सकता है।


तर्जनी यानि इंडेक्स फिंगर पर तिल:जिसकी तर्जनी पर तिल हो, वह विद्यावान, गुणवान और धनवान किंतु शत्रुओं से पीडि़त होता है।


अनामिका या रिंग फिंगर पर तिल:जिसकी अनामिका पर तिल हो तो वह ज्ञानी, यशस्वी, धनी और पराक्रमी होता है।


कनिष्ठका या लिटिल फिंगर पर तिल:कनिष्ठका पर तिल हो तो वह व्यक्ति संपत्तिवान होता है, किंतु उसका जीवन दुखमय होता है।


अंगूठे या थम्ब पर तिल: अंगूठे पर तिल हो तो व्यक्ति कार्यकुशल, व्यवहार कुशल तथा न्यायप्रिय होता है।


मध्यमा या मीडिल फिंगर पर तिल:मध्यमा पर तिल उत्तम फलदायी होता है। व्यक्ति सुखी होता है। उसका जीवन शांतिपूर्ण होता है।

किसी व्यक्ति को वश में कैसे करें

जानिए, किसी व्यक्ति को वश में कैसे करें
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सभी को किसी ना किसी को अपने वश में करना है। जो लोग लालची हैं उन्हें धन से वश में करें, जो लोग घमंडी हैं उन्हें मान-सम्मान देकर, जो मूर्ख हैं उनकी प्रशंसा करके और जो लोग विद्वान हैं उन्हें ज्ञान की बातों से वश में किया जा सकता है। वशीकरण है क्या...? यही कि जो आप बोलें, जो आप चाहें... वह ही हो जाए। कर्मचारी चाहता है कि उसका बॉस उसके वश में हो, पत्नी सोचती है पति वश में रहे, पति की भी सोच ऐसी ही रहती है। कोई दोस्त को अपने वश में करना चाहता है तो कोई अपनी औलाद को। लड़कों को लड़कियों को वश में करना है तो लड़कियों को लड़के अपने वश में चाहिए।

वशीकरण के लिए सबसे जरूरी है ध्यान...। एक जगह, एक बिंदू, एक स्थान, किसी भी उस वस्तु पर जिसे अपने वश में करना हो उसके लिए अपना मन केंद्रित करना ही ध्यान है। ध्यान से आपके शरीर में अद्भूत ऊर्जा का विकास होगा। भगवान शिव के बारे सभी जानते ही हैं वे युगों-युगों तक ध्यान में रहते हैं। जितना आप मेडिटेशन करेंगे आपके चेहरे पर तेज बढ़ जाएगा, एक मधुर मुस्कान सदा आपके चेहरे पर खिली दिखाई देगी, आपका व्यक्तित्व निखर जाएगा, आपके चलने, बोलने में आत्मविश्वास दिखाई देगा। जब ऐसा होने लगेगा तो जब आप बोलना शुरू करेंगे वहां सभी आपको ही सुनते दिखाई देंगे, आपकी मधुर मुस्कान और चेहरे की चमक के आगे आपका बॉस, आपका जीवन साथी, आपके मित्र आसानी से आपका कहा मान लेंगे। बस यही है वशीकरण का आसान और सुगम मार्ग

वशीकरण तिलक लगाने से किसी को भी अपने वश में किया जा सकता है। शुद्ध सिन्दूर, शुद्ध केसर, शुद्ध गोरोचन को समान मात्रा में लेकर किसी चांदी की डिबिया या कटोरी में रख लें। प्रातः सूर्योदय के उपरांत इस डिबिया में से तिलक लेकर भृकुटि के मध्य आज्ञाचक्र पर लगाएं। यह चक्र हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है, जहां शरीर की प्रमुख तीन नाडि़यां इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना आकर मिलती हैं, इसलिए इसे त्रिवेणी या संगम भी कहा जाता है। तिलक लगाते वक्त निम्नलिखित मन्त्र का जाप करें ऊँ नमः सर्व लोक वशंकराय कुरु कुरु स्वाहा।

1. तिलक के अभाव में सत्कर्म सफल नहीं होते। देव पूजन, मंत्र जप, होम तीर्थ शौच आदि कार्यों में नीचे से ऊपर की ओर अर्ध्वपुण्द्र लगाकर शुभ कृत्य करने चाहिए।

2. तिलक बैठकर लगाना चाहिए। भगवान पर चढ़ाने से बचे हुए चन्दन को ही लगाना चाहिए।

3. माथे पर तिलक लगाना प्रतीक है कि दोनों आंखों के बीच में उस परम शक्ति का या परमात्मा का निवास है जिसे पाकर हम सच्चे सुख की प्राप्ति कर सकते हैं।

4. जब भी हम किसी परेशानी में होते हैं तो हमारा हाथ अपने आप ही माथे पर चला जाता है क्योंकि हमारी सारी परेशानियां उस परमलोक मे जाकर ही समाप्त होती हैं।