(मोटापा) घटाने में अत्यंत सहायक हैं. सूर्य मुद्रा :- हस्त-मुद्रा-चिकित्सा
========================================================
मानव-सरीर अनन्त रहस्योंसे भरा हुआ है । शरीरकी अपनी एक मुद्रामयी भाषा है । जिसे करनेसे शारीरिक स्वास्थ्य-लाभ में सहयोग होता है । यह शरीर पंचतत्त्वोंके योगसे बना है । पाँच तत्त्व ये हैं-
(1) पृथ्वी, (2) जल, (3) अग्नि, (4) वायु, एवं (5) आकाश । शरीर में जब भी इन तत्त्वोंका असंतुलन होता है, तो रोग पैदा हो जाते हैं । यदि हम इनका संतुलन करना सीख जायँ तो बीमार हो ही नहीं सकते एवं यदि हो भी जायँ तो इन तत्त्वोंको संतुलित करके आरोग्यता वापस ला सकते हैं ।
हस्त-मुद्रा-चिकित्साके अनुसार हाथ तथा हाथोंकी अँगुलियों और अँगुलियोंसे बननेवाली मुद्राओंमें आरोग्यका राज छिपा हुआ है । हाथकी अँगुलियोंमें पंचतत्त्व प्रतिष्ठित हैं ।
ऋषि-मुनियोंने हजारों साल पहले इसकी खोज कर ली थी एवं इसे उपयोगमें बराबर प्रतिदिन लाते रहे, इसीलिये वे लोग स्वस्थ रहते थे । ये शरीरमें चैतन्यको अभिव्यक्ति देनेवाली कुंजियाँ हैं ।
मनुष्यका मस्तिष्क विकसित है, उसमें अनंत क्षमताएँ हैं । ये क्षमताएँ आवृत हैं, उन्हें अनावृत करके हम अपने लक्ष्यको पा सकते हैं ।
नृत्य करते समय भी मुद्राएँ बनायी जाती हैं, जो शरीर हजारों नसों एवं नाडियोंको प्रभावित करती हैं और उनका प्रभाव भी शरीरपर अच्छा पड़ता है ।
हस्त-मुद्राएँ तत्काल ही असर करना शुरू कर देती हैं । जिस हाथमें ये मुद्राएँ बनाते हैं, शरीरके विपरीत भागमें उनका तुरंत असर होना शुरू हो जाता है । इन सब मुद्राओंका प्रयोग करते समय वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासनका प्रयोग करना चाहिये ।
इन मुद्राओंको प्रतिदिन तीससे पैंतालीस मिनटतक करनेसे पूर्ण लाभ होता है । एक बारमें न कर सके तो दो-तीन बारमें भी किया जा सकता है ।
किसी भी मुद्राको करते समय जिन अँगुलियोंका कोई काम न हो उन्हें सीधी रखे ।
सूर्य मुद्रा हमारे भीतर के अग्नि तत्व को संचालित करती है। सूर्य की अँगुली अनामिका को रिंग फिंगर भी कहते हैं। इस अँगुली का संबंध सूर्य और यूरेनस ग्रह से है। सूर्य ऊर्जा स्वास्थ्य का प्रतिनिधित्व करती है और यूरेनस कामुकता, अंतर्ज्ञान और बदलाव का प्रतीक है।
विधि : अंगूठे से तीसरी अंगुली अनामिका (रिंग फिंगर) को मोड़कर उसके ऊपरी नाखून वाले भाग को अंगूठे के जड़ (गद्देदार भाग) पर दवाब(हल्का) डालें और अंगूठा मोड़कर अनामिका पर निरंतर दवाब(हल्का) बनाये रखें तथा शेष अँगुलियों को अपने सीध में सीधा रखें.....इस तरह जिस मुद्रा का निर्माण होगा उसे सूर्य मुद्रा कहते हैं...
लाभ : इस मुद्रा का रोज दो बार 5 से 15 मिनट के लिए अभ्यास करने से शरीर का कोलेस्ट्रॉल घटता है। वजन कम करने के लिए भी इस मुद्रा का उपयोग किया जाता है। पेट संबंधी रोगों में भी यह मुद्रा लाभदायक है। बेचैनी और चिंता कम होकर दिमाग शांत बना रहता है। यह मुद्रा शरीर की सूजन मिटाकर उसे हलका बनाती है।
यह मुद्रा शारीरिक स्थूलता (मोटापा) घटाने में अत्यंत सहायक होता है...जो लोग मोटापे से परेशान हैं,इस मुद्रा का प्रयोग कर फलित होते देख सकते हैं..
( अनामिका को महत्त्व लगभग सभी धर्म सम्प्रदाय में दिया गया है.इसे बड़ा ही शुभ और मंगलकारी माना गया है.हिन्दुओं में पूजा पाठ उत्सव आदि पर मस्तक पर जो तिलक लगाया जाता है,वह इसलिए कि ललाट में जिस स्थान पर तिलक लगाया जाता है योग के अनुसार मस्तक के उस भाग में द्विदल कमल होता है और अनामिका द्वारा उस स्थान के स्पर्श से मस्तिष्क की अदृश्य शक्ति जागृत हो जाती हैं,व्यक्तित्व तेजोमय हो जाता है)
========================================================
मानव-सरीर अनन्त रहस्योंसे भरा हुआ है । शरीरकी अपनी एक मुद्रामयी भाषा है । जिसे करनेसे शारीरिक स्वास्थ्य-लाभ में सहयोग होता है । यह शरीर पंचतत्त्वोंके योगसे बना है । पाँच तत्त्व ये हैं-
(1) पृथ्वी, (2) जल, (3) अग्नि, (4) वायु, एवं (5) आकाश । शरीर में जब भी इन तत्त्वोंका असंतुलन होता है, तो रोग पैदा हो जाते हैं । यदि हम इनका संतुलन करना सीख जायँ तो बीमार हो ही नहीं सकते एवं यदि हो भी जायँ तो इन तत्त्वोंको संतुलित करके आरोग्यता वापस ला सकते हैं ।
हस्त-मुद्रा-चिकित्साके अनुसार हाथ तथा हाथोंकी अँगुलियों और अँगुलियोंसे बननेवाली मुद्राओंमें आरोग्यका राज छिपा हुआ है । हाथकी अँगुलियोंमें पंचतत्त्व प्रतिष्ठित हैं ।
ऋषि-मुनियोंने हजारों साल पहले इसकी खोज कर ली थी एवं इसे उपयोगमें बराबर प्रतिदिन लाते रहे, इसीलिये वे लोग स्वस्थ रहते थे । ये शरीरमें चैतन्यको अभिव्यक्ति देनेवाली कुंजियाँ हैं ।
मनुष्यका मस्तिष्क विकसित है, उसमें अनंत क्षमताएँ हैं । ये क्षमताएँ आवृत हैं, उन्हें अनावृत करके हम अपने लक्ष्यको पा सकते हैं ।
नृत्य करते समय भी मुद्राएँ बनायी जाती हैं, जो शरीर हजारों नसों एवं नाडियोंको प्रभावित करती हैं और उनका प्रभाव भी शरीरपर अच्छा पड़ता है ।
हस्त-मुद्राएँ तत्काल ही असर करना शुरू कर देती हैं । जिस हाथमें ये मुद्राएँ बनाते हैं, शरीरके विपरीत भागमें उनका तुरंत असर होना शुरू हो जाता है । इन सब मुद्राओंका प्रयोग करते समय वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासनका प्रयोग करना चाहिये ।
इन मुद्राओंको प्रतिदिन तीससे पैंतालीस मिनटतक करनेसे पूर्ण लाभ होता है । एक बारमें न कर सके तो दो-तीन बारमें भी किया जा सकता है ।
किसी भी मुद्राको करते समय जिन अँगुलियोंका कोई काम न हो उन्हें सीधी रखे ।
सूर्य मुद्रा हमारे भीतर के अग्नि तत्व को संचालित करती है। सूर्य की अँगुली अनामिका को रिंग फिंगर भी कहते हैं। इस अँगुली का संबंध सूर्य और यूरेनस ग्रह से है। सूर्य ऊर्जा स्वास्थ्य का प्रतिनिधित्व करती है और यूरेनस कामुकता, अंतर्ज्ञान और बदलाव का प्रतीक है।
विधि : अंगूठे से तीसरी अंगुली अनामिका (रिंग फिंगर) को मोड़कर उसके ऊपरी नाखून वाले भाग को अंगूठे के जड़ (गद्देदार भाग) पर दवाब(हल्का) डालें और अंगूठा मोड़कर अनामिका पर निरंतर दवाब(हल्का) बनाये रखें तथा शेष अँगुलियों को अपने सीध में सीधा रखें.....इस तरह जिस मुद्रा का निर्माण होगा उसे सूर्य मुद्रा कहते हैं...
लाभ : इस मुद्रा का रोज दो बार 5 से 15 मिनट के लिए अभ्यास करने से शरीर का कोलेस्ट्रॉल घटता है। वजन कम करने के लिए भी इस मुद्रा का उपयोग किया जाता है। पेट संबंधी रोगों में भी यह मुद्रा लाभदायक है। बेचैनी और चिंता कम होकर दिमाग शांत बना रहता है। यह मुद्रा शरीर की सूजन मिटाकर उसे हलका बनाती है।
यह मुद्रा शारीरिक स्थूलता (मोटापा) घटाने में अत्यंत सहायक होता है...जो लोग मोटापे से परेशान हैं,इस मुद्रा का प्रयोग कर फलित होते देख सकते हैं..
( अनामिका को महत्त्व लगभग सभी धर्म सम्प्रदाय में दिया गया है.इसे बड़ा ही शुभ और मंगलकारी माना गया है.हिन्दुओं में पूजा पाठ उत्सव आदि पर मस्तक पर जो तिलक लगाया जाता है,वह इसलिए कि ललाट में जिस स्थान पर तिलक लगाया जाता है योग के अनुसार मस्तक के उस भाग में द्विदल कमल होता है और अनामिका द्वारा उस स्थान के स्पर्श से मस्तिष्क की अदृश्य शक्ति जागृत हो जाती हैं,व्यक्तित्व तेजोमय हो जाता है)
No comments:
Post a Comment