Friday, December 16, 2016

ज्योतिष में मंगल

ज्योतिष में मंगल
ज्योतिष में मंगल नवग्रहों में अपनी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है मंगल को हिम्मत शक्ति पराक्रम, उत्साह, बल, प्रतिस्पर्धा की क्षमता, स्पोर्ट्स, अग्नि, रक्त मांसपेशिया आदि का कारक माना गया है और इन घटकों का नियंत्रक होने से मंगल की हमारी जन्मकुंडली में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पर स्त्रियों की जन्म-कुण्डली में "मंगल" कहीं अधिक विशेष भूमिका निभाता है नाड़ी ज्योतिष के गूढ़ नियमों में मंगल को स्त्रियों के लिए पति और पति सुख का कारक ग्रह माना गया है और स्त्रियों के लिए विशेष रूप से मंगल ही उनके वैवाहिक जीवन की स्थिति को नियंत्रित करने वाला ग्रह होता है और स्त्रियों की कुंडली में मंगल ही उनके माँगल्य और सौभाग्य का कारक होता है अतः स्त्रियों की कुण्डली में मंगल की बली या निर्बल स्थिति ही उनके पति सुख और वैवाहिक जीवन की शुभता या संघर्ष को निश्चित करती है।

स्त्री की कुण्डली में मंगल का बलवान होना जहाँ अच्छा पति सुख और वैवाहिक जीवन देता है तो वहीँ मंगल पीड़ित या कमजोर होने पर विवाह में विलब, पति सुख और वैवाहिक जीवन में बहुत सी समस्याएं और उतार चढ़ाव का सामना करना पड़ता है। स्त्री की कुंडली में मंगल यदि स्व उच्च राशि (मेष, वृश्चिक, मकर) में हो, केंद्र (1,4,7,10) त्रिकोण (1,5,9) आदि शुभ भावों में हो और पाप प्रभाव से मुक्त हो तो ऐसे में अच्छा पति सुख और वैवाहिक जीवन प्राप्त होता है दीर्घ काल तक माँगल्य और सौभाग्य बना रहता है, पर स्त्री की कुण्डली में मंगल यदि नीच राशि (कर्क) में हो, दुःख भाव (6,8,12) में हो विशेषकर आठवे भाव में हो, मंगल, राहु या शनि के साथ होने से पीड़ित हो या मंगल पर राहु या शनि की दृष्टि हो तो ऐसे में पति सुख बाधित होता है और वैवाहिक जीवन में संघर्ष और समस्याओं की स्थिति उत्पन्न होती है, पति का स्वास्थ बाधित और जीवन संघर्षमय रहता है,  स्त्रियों की कुंडली में मंगल का पीड़ित होना विवाह में विलम्ब का भी कारण बनता है, यदि स्त्री की कुंडली में पीड़ित मंगल पर बलवान बृहस्पति की दृष्टि पड़ रही हो वैवाहिक जीवन की समस्याओं का कोई ना कोई समाधान मिल जाता है और बाधायें बड़ा रूप नहीं लेती।

कुण्डली में मंगल पीड़ित होने पर यदि पति सुख और वैवाहिक जीवन बाधित हो रहा हो तो निम्न उपाय करना लाभदायक होगा -

1. ॐ अंग अंगारकाय नमः का नियमित जाप करें।

2. प्रत्येक मंगलवार को गाय को गुड़ खिलाएं।

3. ताम्र पत्र का बना "मंगल यन्त्र" अपने पूजास्थल में स्थापित करके उसकी उपासना करें।

4. किसी योग्य ज्योतिषी की सलाह के बाद यदि आपके लिए शुभ हो तो 'मूँगा' भी धारण कर सकती हैं।

।। श्री हनुमते नमः।।

ज्योतिष विज्ञान में गंड मूल नक्षत्

ज्योतिष विज्ञान में गंड मूल नक्षत्र

27 नक्षत्रों में 6 नक्षत्र- अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, अश्विनी, मूल तथा रेवती नक्षत्रों को गंड मूल नक्षत्र के नाम से जाना जाता है। इन नक्षत्रों में जन्म होने पर 27 दिनों के पश्चात जब वही नक्षत्र आता है। तब मूल शांति करायी जाती है। ज्योतिष विज्ञान में मूल नक्षत्र में जन्मे बालक को पिता के लिये कष्टकारी बताया गया है। यदि शांति नहीं करायी जाय तो बच्‍चा बीमार रहता है, लेकिन प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते है। बालक का जन्म नक्षत्र के किस चरण में हुआ है यह जानना अतिआवश्यक है, क्योंकि उक्त नक्षत्रों के सभी चरण अशुभ नहीं होते है वरन शुभ व फलदायी भी होते हैं। यदि बालक का जन्म शुभ चरण में हुआ है तो बालक धन, पद, प्रतिष्ठा और ऐश्वर्य से परिपूर्ण होता है। 

नक्षत्रों के निम्न चरणों में भेद का फलः 

अश्विनी

प्रथम चरण - पिता को कष्ट तथा भय रहेगा

द्वितीय चरण - सुख सम्पत्ति में वृद्धि होगी

तृतीय चरण - राजकीय कार्यो में विजय तथा नौकरी में प्रगति होगी

चतुर्थ चरण - धन का लाभ तथा परिवार में कोई मांगलिक कार्य होगा

अश्लेषा

प्रथम चरण - शांति कराने से शुभ फल प्राप्त होगा

द्वितीय चरण - अचानक धन की हानि हो सकती है

तृतीय चरण - माता के लिये अनिष्टकारी रहेगा

चतुर्थ चरण - पिता के धन का अपव्यय होगा एंव बच्चों की शिक्षा में व्यवधान आयेगा

मघा 

प्रथम चरण - माता के लिये कष्टकारी रहेगा

द्वितीय चरण - पिता के लिये अनिष्टकारी रहेगा

तृतीय चरण - सुख व समृद्धि आयेगी

चतुर्थ चरण - परिवार की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी तथा भौतिक संसाधनों में वृद्धि होगी

ज्येष्ठा 

प्रथम चरण - बड़े भाई के लिये अनिष्टकारी रहेगा

द्वितीय चरण - छोटे भाई के लिये अशुभ प्रतीत होगा

तृतीय चरण - माता को मानसिक व शारीरिक पीड़ा रहेगी

चतुर्थ चरण - स्वंय को शारीरिक कष्ट रहेगा

मूल 

प्रथम चरण - पिता को शारीरिक कष्ट तथा धन की हानि होगी

द्वितीय चरण - माता को शारीरिक कष्ट रहेगा

तृतीय चरण - धन का व्यय तथा आपस में विरोधाभास की स्थिति उत्पन्न होगी

चतुर्थ चरण - शांति कराने से लाभ होगा

रेवती 

प्रथम चरण - राज्य से सम्मान तथा परिवार में धन का आगमन

द्वितीय चरण - परिवार में वैभव तथा प्रसन्नता रहेगी

तृतीय चरण - नौकरी व व्यवसाय में लाभ होगा। मन प्रसन्नचित्त रहेगा

चतुर्थ चरण - विविध प्रकार के कष्ट आ सकते हैं

मूल नक्षत्र 

मूल नक्षत्र गण्डमूल नक्षत्र के अन्तर्गत आता है। यह नक्षत्र बहुत ही अशुभ माना जाता है। इस नक्षत्र का स्वामी केतु होता है। इस नक्षत्र के चारों चरण धनु राशि में होते हैं। इस नक्षत्र के विषय में यह धारणा है कि जो व्यक्ति इस नक्षत्र में जन्म लेते हैं उनके परिवार के सदस्यों को इसके दोष का सामना करना पड़ता है। दोष पर विशेष चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति में कई गुण होते हैं, हमें इन गुणों पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। 

ज्योतिषशास्त्र कहता है जो व्यक्ति मूल नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे ईमानदार होते हैं। इनमें ईश्वर के प्रति आस्था होती है। ये बुद्धिमान होते हैं। ये न्याय के प्रति विश्वास रखते हैं। लोगों के साथ मधुर सम्बन्ध रखते हैं और इनकी प्रकृति मिलनसार होती है। स्वास्थ्य के मामले में ये भाग्यशाली होते हैं, ये सेहतमंद होते हैं। ये मजबूत व दृढ़ विचारधारा के स्वामी होते हैं। ये सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं। ये अपने गुणों एवं कार्यो से काफी प्रसिद्धि हासिल करते हैं। 

मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति के कई मित्र होते हैं क्योंकि इनमें वफादारी होती है। ये पढ़ने लिखने में अच्छे होते हैं तथा दर्शन शास्त्र में इनकी विशेष रूचि होती है। इन्हें विद्वानों की श्रेणी में गिना जाता है। ये आदर्शवादी और सिद्धान्तों पर चलने वाले व्यक्ति होते हैं अगर इनके सामने ऐसी स्थिति आ जाए जब धन और सम्मान मे से एक को चुनना हो तब ये धन की जगह सम्मान को चुनना पसंद करते हैं। 

जो व्यक्ति इस नक्षत्र में जन्म लेते हैं वे व्यवसाय एवं नौकरी दोनों में ही सफल होते हैं, परंतु व्यवसाय की अपेक्षा नौकरी करना इन्हें अधिक पसंद है। ये जहां भी होते हैं अपने क्षेत्र में सर्वोच्च होते हैं। ये शारीरिक श्रम की अपेक्षा बुद्धि का प्रयोग करना यानी बुद्धि से काम निकालना खूब जानते हैं। 

अध्यात्म में विशेष रूचि होने के कारण धन का लोभ इनके अंदर नहीं रहता। ये समाज में पीड़ित लोगों की सहायता के लिए कई कार्यक्रमों में सक्रिय भाग लेते हैं। समाज में इनका काफी सम्मान होता है तथा ये प्रसिद्ध होते हैं। इनका सांसारिक जीवन खुशियों से भरा होता है। ये सुख सुविधाओं से युक्त जीवन जीने वाले होते हैं। समाज के उच्च वर्गों से इनकी मित्रता रहती है। 

ये ईश्वरीय सत्ता में हृदय से विश्वास रखते हैं। इस नक्षत्र के जातक को मूल शांति करा लेनी चाहिए, इससे उत्तमता में वृद्धि होती है और अशुभ प्रभाव में कमी आती है।