Tuesday, September 30, 2014

हर o को करें ये 11 तांत्रिक उपाय, किस्मत चमकते देर नहीं लगेगी...



हर o को करें ये 11 तांत्रिक उपाय, किस्मत चमकते देर

नहीं लगेगी...

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धर्म ग्रंथों के अनुसार चतुर्थी तिथि व बुधवार के स्वामी भगवान

श्रीगणेश ही हैं। यदि इस दिन कोई भक्त भगवान श्रीगणेश

को प्रसन्न करने के लिए कुछ तांत्रिक उपाय करे तो इसका बहुत

ही जल्दी शुभ फल प्राप्त होता है। उस व्यक्ति की हर

मनोकामना पूरी हो जाती है।

1- बुधवार के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद एक कांसे

की थाली लें और उस पर चंदन से ऊँ गं गणपतयै नम: लिखें। इसके बाद

इस थाली में पांच बूंदी के लड्डू रखें व समीप स्थित किसी गणेश

मंदिर में दान कर आएं। इस उपाय से अचानक धन धन लाभ होने

की संभावना बढ़ जाएगी।

2- यंत्र शास्त्र के अनुसार गणेश यंत्र बहुत ही चमत्कारी यंत्र है। घर

में इसकी स्थापना बुधवार, चतुर्थी या किसी शुभ मुहूर्त में करने से

बहुत लाभ होता है। इस यंत्र के घर में रहने से किसी भी प्रकार

की बुरी शक्ति घर में प्रवेश नहीं कर सकती।

3- बुधवार के दिन सुबह स्नान अदि करने के बाद समीप स्थित

किसी गणेश मंदिर जाएं और भगवान श्रीगणेश को 21 गुड़

की ढेली के साथ दूर्वा रखकर चढ़ाएं। इस उपाय को करने से भगवान

श्रीगणेश भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं। ये बहुत

ही चमत्कारी उपाय है।

4- अगर आपको धन की इच्छा है तो इसके लिए आप बुधवार

या चतुर्थी तिथि के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद भगवान

श्रीगणेश को शुद्ध घी और गुड़ का भोग लगाएं। थोड़ी देर बाद

घी व गुड़ गाय को खिला दें। ये उपाय करने से धन

संबंधी समस्या का निदान हो जाता है।

5- शास्त्रों में भगवान श्रीगणेश का अभिषेक करने का विधान

भी बताया गया है। बुधवार के दिन भगवान श्रीगणेश का अभिषेक

करने से विशेष लाभ होता है। यह अभिषेक शुद्ध पानी से करें। साथ

में गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ भी करें। बाद में मावे का लड्डुओं

का भोग लगाकर सभी में बांट दें।

6- इस दिन किसी गणेश मंदिर जाएं और दर्शन करने के बाद

नि:शक्तों को यथासंभव दान करें। दान से पुण्य

की प्राप्ति होती है और भगवान श्रीगणेश भी अपने भक्तों पर

प्रसन्न होते हैं।

7- बुधवार के दिन सुबह उठकर नित्य कर्म करने के बाद पीले रंग के

श्रीगणेश भगवान की पूजा करें। पूजन में श्रीगणेश

को हल्दी की पांच गठान श्री गणाधिपतये नम: मंत्र का उच्चारण

करते हुए चढ़ाएं इसके बाद 108 दूर्वा पर गीली हल्दी लगाकर

श्री गजवकत्रम नमो नम: का जप करके चढ़ाएं। यह उपाय

प्रति बुधवार को करने से प्रमोशन होने की संभावनाएं बढ़

जाती हैं।

8- यदि किसी कन्या का विवाह नहीं हो पा रहा है तो वह

कन्या बुधवार को विवाह की कामना से भगवान श्रीगणेश

को मालपुए का भोग लगाए तो शीघ्र ही उसका विवाह

हो जाता है।

यदि किसी युवक के विवाह में परेशानियां आ रही हैं तो वह

भगवान श्रीगणेश को पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं

तो उसका विवाह भी जल्दी हो जाता है।

9- बुधवार को दूर्वा (एक प्रकार की घास) के गणेश बनाकर

उसका पूजा करना बहुत ही शुभ होता है। श्रीगणेश

की प्रसन्नता के उन्हें मोदक, गुड़, फल, मावा-मिïष्ठान

आदि अर्पण करें। ऐसा करने से भगवान गणेश सभी मनोकामनाएं

पूरी करते हैं।

10- अगर आपके जीवन में बहुत परेशानियां हैं और कम नहीं हो रही है

तो आप बुधवार के दिन किसी हाथी को हरा चारा खिलाएं और

गणेश मंदिर जाकर भगवान श्रीगणेश से परेशानियों का निदान

करने के लिए प्रार्थना करें। इससे आपके जीवन की परेशानियां कुछ

ही दिनों में दूर हो जाएंगी।

11- बुधवार के दिन घर में श्वेतार्क गणपति (सफेद आंकडे की जड़ से

बनी गणपति) की स्थापना करने से सभी प्रकार की तंत्र

शक्ति का नाश हो जाता है व ऊपरी हवा का असरभी नहीं होता।

क्या आपके कार्य को किसी की बुरी नजर/बद्नजर लगी है ?

क्या आपके कार्य को किसी की बुरी नजर/बद्नजर लगी है ?


प्रायः सुनने में आता है कि काम, दुकान अथवा भवन किसी ने बांध दिया। अकस्मात् धन की आगत अवरुद्ध हो गयी। कार्य को किसी की बद्नजर लग गयी। बांधना कुछ करने कराने वाली जैसी बातें सामान्यतया मैं नहीं मानता हूॅ। क्योंकि ऐसी बातें अधिकांषतः उस अबौद्धिक वर्ग के तांत्रिक-ज्योतिष द्वारा फैलायी जाती हैं जो पहले तो इन बातों से लोगों में एक अज्ञात भय पैदा करते हैं फिर उसको धन आदि किन्हीं बातों से कैष कराते हैं। ऐसा भी नहीं है कि ‘कुछ’ होता नहीं है, होता अवष्य है परन्तु वह होता केवल 5-10 प्रतिषत ही है। इसलिए सर्वप्रथम तो मन में ऐसी बात पनपने ही न दें। स्वस्थ मानसिकता और प्रभु में अटूट आस्था रख कर अपना कर्म और धर्म करते रहें। फिर भी किन्हीं ऐसी बातों से भयपूर्ण विपरीत स्थति बनने लगे तो एक उपाय अवष्य करें। उन्नति के मार्ग पुनः प्रषस्त होने लगेंगे। दुकानदारों के लिए तो ये प्रयोग बहुत ही प्रभावषाली सिद्ध हुआ है।

किसी भी शनिवार को दुकान बंद करने से पूर्व उसमें एक मुठठी साबुत उड़द की दाल बिखेर दें। दुकान के प्रवेष द्वार पर ( जिससे अधिकांषतः आना-जाना हो) बाहर से अंदर जाते समय बायीं ओर धरती पर हल्दी के घोल से स्वास्तिक बना लें। इस पर कच्चे सूत के एक धागे का छोर रखें। दुकान के अंदर क्रमषः बांये से दांये चलते हुए सूत इस प्रकार छोड़ते चलें कि अंदर से पूरी दुकान सूत से बंध जाये। सूत का दूसरा छोर बांयीं ओर बने स्वास्तिक पर समाप्त करें। धूप-दीप आदि कोई उपक्रम करते हैं तो आपके अपने ऊपर है। अब दुकान को बंद करके निःषब्द घर लौट आयें। अगले दिन अर्थात् रविवार को प्रातः काल 7-8 बजे से पूर्व दुकान खोलें। जिस क्रम से धागा बिछाया था उसके विपरीत क्रम अर्थात् दायें से बायें घूमते हुए धागा उठा कर समेंट लें। जितने बिखरे हुए दाल के दानें मिल सकते हों वह भी जमां करलें। इन्हें हाथ से चुनें, झाड़ू से एकत्र न करें। धागे को वहां ही जला दें। इसकी राख, उड़द की दाल के दानें पहले से क्रय किए हुए 1-2 किलो बाजरे में मिला लें। यह सब लेकर कहीं किसी नदी के किनारे बैठ जाएं। थोड़ा से बाजरा अपने एक हाथ में रखें। दूसरे से बहते हुए पानी को इस पर छोड़ें। बाजरे को धीरे-धीरे उंगलियों के मध्य बनें छिद्रों से गिर कर नदी में बहने दें। जब एक हाथ थक जाए तो यह क्रम हाथ बदल कर तब तक करते रहें जब तक कि सारा बाजरा विसर्जित न हो जाए। इसके बाद निःषब्द घर अथवा दुकान लौट जाएं। इस पूरे काल में कोई भी लक्ष्मी प्रदायक मंत्र निरंतर जपते रहें। ‘‘¬ नमो नारायणाय’’ मंत्र सबसे अधिक प्रभावषाली सिद्ध होता है, ऐसा अनेक दुकान दारों को अनुभूत हुआ है। इस बात का ध्यान अवष्य रखें कि बाजरा बहाने में कुछ समय अवष्य लगे। ऐसा न हो कि जल्दी से वह छोड़ कर आप लौट आएं। एक शब्द पुनः कहूंगा, इस उपाय से आपको अच्छा अवष्य लगेगा।

रोजगार प्राप्ति हेतु ये करे उपाय---


रोजगार प्राप्ति हेतु ये करे उपाय---

उपाय 01 ---शनिवार को हनुमान् जी के मन्दिर में जाकर उन्हें सवा किलो मोतीचूर के लड्डुओं का भोग लगाएँ । घी का दीपक जलाकर तथा वहीं बैठकर निम्नलिखित मन्त्र का लाल चन्दन अथवा मूँगे की माला से 108 बार जप करें -

“कवन सो काज कठिन जग माहीँ ।

जो नहीं होय तात तुम पाहिं ।।”

इसके बाद 40 दिनों तक नित्य अपने घर में बने पूजा-स्थल में अथवा हनुमान् जी के मन्दिर में मन-ही-मन इस मन्त्र का 108 बार जप करें । इन 40 दिनों के अन्दर ही अथवा 40 दिन पूरे होने के बाद आपको अच्छे रोजगार की प्राप्ति होगी ।


उपाय 02 ---शनिवार, मंगलवार अथवा अन्य किसी शुभ मुहूर्त में रात्रि 10 बजे के पश्चात् भगवान् श्रीराम, भरत, लक्ष्मण आदि की पूजा करने के पश्चात् भरत जी से रोजगार प्रदान करने की प्रार्थना करें । जब वे किसी पर प्रसन्न होते हैं, तो अतिशीघ्र अच्छा रोजगार प्राप्त होता है । इसके बाद निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए गाय के घी से 108 आहुतियाँ दें । अब अगले दिन से नित्य इस मन्त्र का प्रातःकाल उठते ही बिना किसी से बोले 21 बार उच्चारण करें, शीघ्र ही आपकी मनोकामना पूर्ण होगी -

“विश्व भरन पोषन कर जोई ।

ताकर नाम भरत अस होई ।।”


उपाय 03 ---मंगलवार को अथवा रात्रिकाल में निम्नलिखित मन्त्र का अकीक की माला से 108 बार जप करें । इसके बाद नित्य इसी मन्त्र का स्नान करने के बाद 11 बार जप करें । इसके प्रभाव से अतिशीघ्र ही आपको मनोनुकूल रोजगार की प्राप्ति होगी ।

यह मन्त्र माँ भवानी को प्रसन्न करता है, अतः जप के दौरान अपने सम्मुख उनका चित्र भी रखें ।

” ॐ हर त्रिपुरहर भवानी बाला

राजा मोहिनी सर्व शत्रु ।

विंध्यवासिनी मम चिन्तित फलं

देहि देहि भुवनेश्वरी स्वाहा ।।”



उपाय 04 ---शनैश्चरी अमावस्या को सन्ध्या के समय एक नींबू लें और उसके चार टुकड़े करके किसी चौराहे पर चारों दिशाओं में फेंक दें । इसके प्रभाव से अतिशीघ्र ही आपको अच्छे रोजगार की प्राप्ति होगी ।

ऐसे करे गोमती चक्र का प्रयोग धन/संपदा प्राप्ति हेतु---


१॰ सात गोमती चक्रों को शुक्ल पक्ष के प्रथम अथवा दीपावली पर लाल वस्त्र में अभिमंत्रित कर पोटली बना कर धन स्थान पर रखें ।

२॰ यदि आपको अचानक आर्थिक हानि होती हो, तो किसी भी मास के प्रथम सोमवार को २१ अभिमन्त्रित गोमती चक्रों को पीले अथवा लाल रेशमी वस्त्र में बांधकर धन रखने के स्थान पर रखकर हल्दी से तिलक करें । फिर मां लक्ष्मी का स्मरण करते हुए उस पोटली को लेकर सारे घर में घूमते हुए घर के बाहर आकर किसी निकट के मन्दिर में रख दें ।

३॰ यदि आपके परिवार में खर्च अधिक होता है, भले ही वह किसी महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए ही क्यों न हो, तो शुक्रवार को २१ अभिमन्त्रित गोमती चक्र लेकर पीले या लाल वस्त्र पर स्थान देकर धूप-दीप से पूजा करें । अगले दिन उनमें से चार गोमती चक्र उठाकर घर के चारों कोनों में एक-एक गाड़ दें । १३ चक्रों को लाल वस्त्र में बांधकर धन रखने के स्थान पर रख दें और शेष किसी मन्दिर में अपनी समस्या निवेदन के साथ प्रभु को अर्पित कर दें ।

४॰ यदि आप अधिक आर्थिक समृद्धि के इच्छुक हैं, तो अभिमंत्रित गोमती चक्र और काली हल्दी को पीले कपड़े में बांधकर धन रखने के स्थान पर रखें ।

५॰ यदि आपके गुप्त शत्रु अधिक हों अथवा किसी व्यक्ति की काली नज़र आपके व्यवसाय पर लग गई हो, तो २१ अभिमंत्रित गोमती चक्रों व तीन लघु नारियल को पूजा के बाद पीले वस्त्र में बांधकर मुख्य द्वारे पर लटका दें ।

६॰ यदि आपको नजर जल्दी लगती हो, तो पाँच गोमती चक्र लेकर किसी सुनसान स्थान पर जायें । फिर तीन चक्रों को अपने ऊपर से सात बार उसारकर अपने पीछे फेंक दें तथा पीछे देखे बिना वापस आ जायें । बाकी बचे दो चक्रों को तीव्र प्रवाह के जल में प्रवाहीत कर दें ।

७॰ यदि आप कितनी भी मेहनत क्यों न करें, परन्तु आर्थिक समृद्धि आपसे दूर रहती हो और आप आर्थिक स्थिति से संतुष्ट न होते हों, तो शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार को २१ अभिमंत्रित गोमती चक्र लेकर घर के पूजा स्थल में मां लक्ष्मी व श्री विष्णु की तस्वीर के समक्ष पीले रेशमी वस्त्र पर स्थान दें । फिर रोली से तिलक कर प्रभु से अपने निवास में स्थायी वास करने का निवेदन तथा समृद्धि के लिए प्रार्थना करके हल्दी की माला से “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र की तीन माला जप करें । इस प्रकार सवा महीने जप करने के बाद अन्तिम दिन किसी वृद्ध तथा ९ वर्ष से कम आयु की एक बच्ची को भोजन करवाकर दक्षिणा देकर विदा करें ।

८॰ यदि आपके बच्चे अथवा परिवार के किसी सदस्य को जल्दी-जल्दी नजर लगती हो, तो आप शुक्ल पक्ष की प्रथमा तिथि को ११ अभिमंत्रित गोमती चक्र को घर के पूजा स्थल में मां दुर्गा की तस्वीर के आगे लाल या हरे रेशमी वस्त्र पर स्थान दें । फिर रोली आदि से तिलक करके नियमित रुप से मां दुर्गा को ५ अगरबत्ती अर्पित करें । अब मां दुर्गा का कोई भी मंत्र जप करें । जप के बाद अगरबत्ती के भभूत से सभी गोमती चक्रों पर तिलक करें । नवमी को तीन चक्र पीड़ित पर से उसारकर दक्षिण दिशा में फेंक दें और एक चक्र को हरे वस्त्र में बांधकर ताबीज का रुप देकर मां दुर्गा की तस्वीर के चरणों से स्पर्श करवाकर पीड़ित के गले में डाल दें । बाकि बचे सभी चक्रों को पीड़ित के पुराने धुले हुए वस्त्र में बांधकर अलमारी में रख दें ।

९॰ यदि किसी का स्वास्थ्य अधिक खराब रहता हो अथवा जल्दी-जल्दी अस्वस्थ होता हो, तो चतुर्दशी को ११ अभिमंत्रित गोमती चक्रों को सफेद रेशमी वस्त्र पर रखकर सफेद चन्दन से तिलक करें । फिर भगवान् मृत्युंजय से अपने स्वास्थ्य रक्षा का निवेदन करें और यथा शक्ति महामृत्युंजय मंत्र का जप करें । पाठ के बाद छह चक्र उठाकर किसी निर्जन स्थान पर जाकर तीन चक्रों को अपने ऊपर से उसारकर अपने पीछे फेंक दें और पीछे देखे बिना वापस आ जायें । बाकि बचे तीन चक्रों को किसी शिव मन्दिर में भगवान् शिव का स्मरण करते हुए शिवलिंग पर अर्पित कर दें और प्रणाम करके घर आ जायें । घर आकर चार चक्रों को चांदी के तार में बांधकर अपने पंलग के चारों पायों पर बांध दें तथा शेष बचे एक को ताबीज का रुप देकर गले में धारण करें ।

१०॰ यदि आपका बच्चा अधिक डरता हो, तो शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार को हनुमान् जी के मन्दिर में जाकर एक अभिमंत्रित गोमती चक्र पर श्री हनुमानजी के दाएं कंधे के सिन्दूर से तिलक करके प्रभु के चरणों में रख दें और एक बार श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें । फिर चक्र उठाकर लाल कपड़े में बांधकर बच्चे के गले में डाल दें ।

११॰ यदि व्यवसाय में किसी कारण से आपका व्यवसाय लाभदायक स्थिति में नहीं हो, तो शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार को ३ गोमती चक्त, ३ कौड़ी व ३ हल्दी की गांठ को अभिमंत्रित कर किसी पीले कपड़े में बांधकर धन-स्थान पर रखें ।

नजर्दोश से बंधी दूकान ( तंत्र-मन्त्र प्रयोग वाली)कैसे खोलें ?


नजर्दोश से बंधी दूकान ( तंत्र-मन्त्र प्रयोग वाली)कैसे खोलें ?–

कभी-कभी देखने में आता है कि खूब चलती हुई दूकान भी एकदम से ठप्प हो जाती है । जहाँ पर ग्राहकों की भीड़ उमड़ती थी, वहाँ सन्नाटा पसरने लगता है । यदि किसी चलती हुई दुकान को कोई तांत्रिक बाँध दे, तो ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, अतः इससे बचने के लिए निम्नलिखित प्रयोग करने चाहिए -

१॰ दुकान में लोबान की धूप लगानी चाहिए ।

२॰ शनिवार के दिन दुकान के मुख्य द्वार पर बेदाग नींबू एवं सात हरी मिर्चें लटकानी चाहिए ।

३॰ नागदमन के पौधे की जड़ लाकर इसे दुकान के बाहर लगा देना चाहिए । इससे बँधी हुई दुकान खुल जाती है ।

४॰ दुकान के गल्ले में शुभ-मुहूर्त में श्री-फल लाल वस्त्र में लपेटकर रख देना चाहिए ।

५॰ प्रतिदिन संध्या के समय दुकान में माता लक्ष्मी के सामने शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए ।

६॰ दुकान अथवा व्यावसायिक प्रतिष्ठान की दीवार पर शूकर-दंत इस प्रकार लगाना चाहिए कि वह दिखाई देता रहे ।

७॰ व्यापारिक प्रतिष्ठान तथा दुकान को नजर से बचाने के लिए काले-घोड़े की नाल को मुख्य द्वार की चौखट के ऊपर ठोकना चाहिए ।

८॰ दुकान में मोरपंख की झाडू लेकर निम्नलिखित मंत्र के द्वारा सभी दिशाओं में झाड़ू को घुमाकर वस्तुओं को साफ करना चाहिए । मंत्रः- “ॐ ह्रीं ह्रीं क्रीं”

९॰ शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी के सम्मुख मोगरे अथवा चमेली के पुष्प अर्पित करने चाहिए ।

१०॰ यदि आपके व्यावसायिक प्रतिष्ठान में चूहे आदि जानवरों के बिल हों, तो उन्हें बंद करवाकर बुधवार के दिन गणपति को प्रसाद चढ़ाना चाहिए ।

११॰ सोमवार के दिन अशोक वृक्ष के अखंडित पत्ते लाकर स्वच्छ जल से धोकर दुकान अथवा व्यापारिक प्रतिष्ठान के मुख्य द्वार पर टांगना चाहिए । सूती धागे को पीसी हल्दी में रंगकर उसमें अशोक के पत्तों को बाँधकर लटकाना चाहिए ।

१२॰ यदि आपको यह शंका हो कि किसी व्यक्ति ने आपके व्यवसाय को बाँध दिया है या उसकी नजर आपकी दुकान को लग गई है, तो उस व्यक्ति का नाम काली स्याही से भोज-पत्र पर लिखकर पीपल वृक्ष के पास भूमि खोदकर दबा देना चाहिए तथा इस प्रयोग को करते समय किसी अन्य व्यक्ति को नहीं बताना चाहिए । यदि पीपल वृक्ष निर्जन स्थान में हो, तो अधिक अनुकूलता रहेगी ।

१३॰ कच्चा सूत लेकर उसे शुद्ध केसर में रंगकर अपनी दुकान पर बाँध देना चाहिए ।

१४॰ हुदहुद पक्षी की कलंगी रविवार के दिन प्रातःकाल दुकान पर लाकर रखने से व्यवसाय को लगी नजर समाप्त होती है और व्यवसाय में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है ।

१५॰ कभी अचानक ही व्यवसाय में स्थिरता आ गई हो, तो निम्नलिखित मंत्र का प्रतिदिन ग्यारह माला जप करने से व्यवसाय में अपेक्षा के अनुरुप वृद्धि होती है । मंत्रः- “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नमो भगवती माहेश्व

नवग्रह शांतिदायक टोटके--–(पंडित आशु बहुगुणा)--- सूर्यः-

१॰ सूर्यदेव के दोष के लिए खीर का भोजन बनाओ और रोजाना चींटी के बिलों पर रखकर आवो और केले को छील कर रखो ।

२॰ जब वापस आवो तभी गाय को खीर और केला खिलाओ ।

३॰ जल और गाय का दूध मिलाकर सूर्यदेव को चढ़ावो। जब जल चढ़ाओ, तो इस तरह से कि सूर्य की किरणें उस गिरते हुए जल में से निकल कर आपके मस्तिष्क पर प्रवाहित हो ।

४॰ जल से अर्घ्य देने के बाद जहाँ पर जल चढ़ाया है, वहाँ पर सवा मुट्ठी साबुत चावल चढ़ा देवें ।

चन्द्रमाः-

१॰ पूर्णिमा के दिन गोला, बूरा तथा घी मिलाकर गाय को खिलायें । ५ पूर्णमासी तक गाय को खिलाना है ।

२॰ ५ पूर्णमासी तक केवल शुक्ल पक्ष में प्रत्येक १५ दिन गंगाजल तथा गाय का दूध चन्द्रमा उदय होने के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य दें । अर्घ्य देते समय ऊपर दी गई विधि का इस्तेमाल करें ।

३॰ जब चाँदनी रात हो, तब जल के किनारे जल में चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को हाथ जोड़कर दस मिनट तक खड़ा रहे और फिर पानी में मीठा प्रसाद चढ़ा देवें, घी का दीपक प्रज्जवलित करें । उक्त प्रयोग घर में भी कर सकते हैं, पीतल के बर्तन में पानी भरकर छत पर रखकर या जहाँ भी चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब पानी में दिख सके वहीं पर यह कार्य कर सकते हैं ।

नवग्रह शान्ति मन्त्र ( ग्रहों के कुप्रभाव को शांत करने के लिए मंत्र )

नवग्रह शान्ति मन्त्र ( ग्रहों के कुप्रभाव को शांत करने के लिए मंत्र )

सूर्य ग्रह की शांति के लिए आप शुक्ल पक्ष के रविवार से उपवास आरंभ कर सकते हैं। रविवार को नमक का सेवन नहीं करना चाहिए और गेहूं की रोटी व गुड़ से अथवा गुड़ से बने दलिया का सेवन करना चाहिए। साथ ही पांच माला सूर्य के बीज मंत्र का जप करें,

ॐ हृं हृं स: सूर्याय नम:।

चंद्रमा की शांति के लिए आप श्रावण, चैत्र, वैशाख, कार्तिक अथवा मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष के सोमवार से उपवास आरंभ कर सकते हैं। इसके अलावा प्रतिदिन “ॐ नम: शिवाय” मंत्र का जप पांच माला करें। सोमवार के दिन पांच माला चंद्रमा के बीज मंत्र का भी जप करना चाहिए। इस दिन शिव-पार्वती पर श्वेत पुष्प, सुपारी, अक्षत, बिल्व पत्र आदि चढ़ाकर ग्रह शांति की प्रार्थना करें।

ऊं श्रां श्रीं श्रौं स: चंद्रमसे नम

मंगल ग्रह की शांति के लिए मंगलवार को उपवास करना चाहिए। यह व्रत 21 सप्ताह तक करने से पूर्ण फल मिलता है। इस दिन नमक छोड़ दें और लाल पुष्प, फल, ताम्र बर्तन, नारियल आदि द्वारा हनुमान जी की पूजन करके उन्हें सिंदूर अर्पित करना चाहिए तथा लाल चंदन की माला से पांच माला यह मंत्र जपे।

ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:

बुध की शांति के लिए लिए बुधवार का उपवास रखना चाहिए और भगवान विष्णु की पूरे विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। अगर आप 21 या 31 बुधवार के व्रत का संकल्प लें, तो बेहतर होगा। व्रत के दिन श्री विष्णु सहस्रनाम का पांच या ग्यारह बार पाठ करें। यह पाठ प्रतिदिन पांच बार ही करना श्रेयस्कर माना गया है। घी, मूंग की दाल से बने पदार्थ से बुधवार को परहेज करें और इस मंत्र की पाँच माला जपे।

ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:

गुरु या बृहस्पति की शांति के लिए शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार से उपवास आरंभ किया जाए, तो उपासक की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। व्रत के दिन स्नानादि के बाद पीले वस्त्र धारण करके पीले फूल, पीला नैवेद्य, गुड़, चने की दाल, हल्दी या पीले चंदन से सत्यनारायण भगवान की आराधना करें। साथ ही इस मंत्र का पांच माला जप करें।

ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरुवे नम:

शुक्र की शांति के लिए उपवास लक्ष्मी या वैभव लक्ष्मी के समक्ष श्वेत चंदन, श्वेत पुष्प, मावा की मिठाई, दीया, धूप आदि से पूजन करें और इस मंत्र का जप करें। यह व्रत 21 शुक्रवार तक करने तथा प्रतिदिन श्रीसूक्त का पाठ करने से लाभ होता है

ऊं द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:

शनि ग्रह की शांति के लिए: शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से यह उपवास आरंभ किया जा सकता है। 11 या 21 शनिवार तक व्रत करें, तो लाभप्रद होगा। इस दिन स्नान से पहले अपने ऊपर से 20-25 ग्राम सरसों या तिल के तेल में काले तिल डालकर सात बार सिर से पांव तक उतार लें और शनिदेव पर अर्पित करें। इसके बाद स्नान करके नीले वस्त्र पहनें। लौह निर्मित शनि प्रतिमा पर पंचामृत से स्नान कराएं तथा इस मंत्र का जप करें।

ॐ शं शनैश्चराय नम:

राहु की शांति के लिए: यह छाया ग्रह है, इसलिए इसके लिए कोई रात या दिन नहीं होता। राहु का उपवास शनिवार को ही करना चाहिए। इस दिन या प्रतिदिन पक्षियों को बाजरा खिलाएं और राहु मंत्र का 21 बार उच्चारण करें। साथ ही इस मंत्र का जप करें।

ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:

केतु की शांति के लिए: यह भी एक छाया ग्रह है, इसलिए इसकी कोई राशि या दिन नहीं होता। विद्वानों के अनुसार केतु मंगल के समान ही है। इसलिए इसका व्रत भी मंगलवार को ही करना चाहिए। इस दिन नमक रहित भोजन करें और बीज मंत्र का जप करें।

ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: केतवे नम:

अशांत ग्रह को शांत करने के लिए सामान्य गृहस्थों के लिए कठोर तप के विकल्प के रूप में उपवास का विधान शास्त्रों में बताया गया है, जिससे वह किसी ग्रह की भी उपासना कर सकते हैं

पारद शिवलिंग



पारद शिवलिंग ( Parad Shivling )
.
आजकल मान्यता है घर में शिवलिंग नहीं रखते, मै आपको बता दूँ घर मै मार्वेल, पत्थर आदि के शिवलिंग नहीं रखते , हर घर मै "पारद शिवलिंग" जरूर होना चाहिए | पारद शिवलिंग घर की नकारात्मक उर्जा और वास्तुदोष को खत्म करता है | जिनकी जन्मकुंडली मे चंद्रमा , नीच का है , मन अशांत रहता है, मन मे नेगेटिव बिचार ज्यादा आते है, उनको "पारद शिवलिंग" पर नियमित कच्चा दूध - सफ़ेद फुल चढ़ाना चाहिए |

पुरे परिवार की समृधी के लिए प्रत्येक साल इस पर दूध से रुद्राभिषेक करवाना चाहिए | क्योकि शिव स्वयं भूत-प्रेत , तांत्रिक प्रयोगों के स्वामी है , अतः इसकी नियमित आराधना करने से भूत-प्रेत बाधा , नज़र बाधा, आदि तुरंत दूर हो जाती है|

अगर कोई ब्यक्ति लगातार बीमार रहता हो , दवाई का असर न होता हो , निम्न मंत्र का 108 वार पाठ करके, इस पर चढ़ाया हुआ गंगाजल एक चम्मच रोगी को पिला दे , रोगी ठीक होने लगेगा |

." ॐ जूं सः "

ये अवश्य ध्यान रखे , पारद - शिवलिंग उच्च कोटि का ख़रीदे | शुभ- मुहूर्त मे घर मे स्थापित करे|

तुलसी के तंत्रिकीय और औषधीय उपयोग...

तुलसी के तंत्रिकीय और औषधीय उपयोग...

[१] तुलसी के बीज 5 ग्राम रोजाना रात को गर्म दूध के साथ
लेने से शीघ्र वीर्य पतन अथवा वीर्य की कमी की समस्या दूर
होती है |

[२] तुलसी के बीज 5 ग्राम रोजाना रात को गर्म दूध के साथ
लेने से नपुंसकता दूर होती है और यौन-शक्ति में
बढोतरि होती है।

[३] मासिक धर्म में अनियमियता:: जिस दिन मासिक आए उस
दिन से जब तक मासिक रहे उस दिन तक तुलसी के बीज 5-5
ग्राम सुबह और शाम पानी या दूध के साथ लेने से मासिक
की समस्या ठीक होती है और जिन महिलाओ को गर्भधारण में
समस्या है वो भी ठीक होती है

[४] तुलसी के पत्ते गर्म तासीर के होते है पर सब्जा शीतल
होता है . इसे फालूदा में इस्तेमाल किया जाता है . इसे भिगाने से
यह जेली की तरह फुल जाता है . इसे हम दूध या लस्सी के
साथ थोड़ी देशी गुलाब की पंखुड़ियां दाल कर ले तो गर्मी में बहुत
ठंडक देता है .इसके अलावा यह पाचन
सम्बन्धी गड़बड़ी को भी दूर करता है .यह पित्त घटाता है ये
त्रीदोषनाशक , क्षुधावर्धक है

[५] प्रतिदिन चार पत्तियां तुलसी की सुबह खाली पेट ग्रहण
करने से मधुमेह,रक्त विकार ,वाट-पित्त दोष आदि दूर होते हैं |

[६] तुलसी के समीप आसन लगाकर कुछ दिन बैठने से श्वास के
रोग ,अस्थमा आदि से जल्दी छुटकारा मिल सकता है |

[७] तुलसी का गमला रसोई के पास रखने से पारिवारिक कलह
समाप्त होती है |

[८] वास्तु दोष दूर करने के लिए तुलसी के पौधे अग्नि कोण
अर्थात दक्षिण पूर्व से लेकर वायव्य अर्थात उत्तर-पश्चिम
तक के खली स्थान में लगा सकते हैं ,अथवा गमले में रख सकते
हैं |

[९] पूर्व दिशा की खिड़की के पास रखने से जिद्दी पुत्र का हठ
दूर होता है |

[१०] पूर्व दिशा में रखे तुलसी के पौधे में से तीन पत्ते कुछ दिन
खिलाने से अनियंत्रित संतान आज्ञानुसार व्यवहार कर
सकती है |

[११] अग्नि कोण में स्थापित तुलसी के पौधे को कन्या अगर
नित्य अगर जल अर्पित कर प्रदक्षिणा करे तो उसके विवाह
की बाधाएं दूर होती हैं और शीघ्र उत्तम विवाह की संभावनाएं
बनती हैं |

[१२] दक्षिण -पश्चिम में रखे तुलसी के गमले पर
प्रति शुक्रवार को सुबह कच्चा दूध अर्पण करने और मिठाई
का भोग लगा किसी सुहागिन स्त्री को मीठी वस्तु देने से
व्यवसाय की सफ़लता बढती है और कारोबार ठीक होता है |

[१३] नित्य पंचामृत में तुलसी मिलाकर शालिग्राम का अभिषेक
करने से घर के वास्तु दोष दूर होते हैं|
[१४] तुलसी के १६ बीज किसी सफ़ेद कपडे में बांधकर सोमवार
को कार्यस्थल पर सुबह दबा देने से वहां सम्मान
की वृद्धि होती है और अधिकारियों की अनुकूलता प्राप्त होती है|

[१५] ८ तुलसी के पत्ते और ८ काली मिर्च की पोटली बनाकर
बांह में बाँधने से भूत-प्रेत आदि की समस्या दूर होती है |

ध्यान रहे तुलसी पूजनीय हें , इसका अपमान / अनादर न करें !

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सोलह सिद्धिया...

सोलह सिद्धिया...

1. वाक् सिद्धि : जो भी वचन बोले जाए वे व्यवहार में पूर्ण हो, वह वचन कभी व्यर्थ न जाये, प्रत्येक शब्द का महत्वपूर्ण अर्थ हो, वाक् सिद्धि युक्त व्यक्ति में श्राप अरु वरदान देने की क्षमता होती हैं!

2. दिव्य दृष्टि: दिव्यदृष्टि का तात्पर्य हैं कि जिस व्यक्ति के सम्बन्ध में भी चिन्तन किया जाये, उसका भूत, भविष्य और वर्तमान एकदम सामने आ जाये, आगे क्या कार्य करना हैं, कौन सी घटनाएं घटित होने वाली हैं, इसका ज्ञान होने पर व्यक्ति दिव्यदृष्टियुक्त महापुरुष बन जाता हैं!

3. प्रज्ञा सिद्धि : प्रज्ञा का तात्पर्य यह हें की मेधा अर्थात स्मरणशक्ति, बुद्धि, ज्ञान इत्यादि! ज्ञान के सम्बंधित सारे विषयों को जो अपनी बुद्धि में समेट लेता हें वह प्रज्ञावान कहलाता हें! जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से सम्बंधित ज्ञान के साथ-साथ भीतर एक चेतनापुंज जाग्रत रहता हें!

4. दूरश्रवण : इसका तात्पर्य यह हैं की भूतकाल में घटित कोई भी घटना, वार्तालाप को पुनः सुनने की क्षमता!

5. जलगमन : यह सिद्धि निश्चय ही महत्वपूर्ण हैं, इस सिद्धि को प्राप्त योगी जल, नदी, समुद्र पर इस तरह विचरण करता हैं मानों धरती पर गमन कर रहा हो!

6. वायुगमन : इसका तात्पर्य हैं अपने शरीर को सूक्ष्मरूप में परिवर्तित कर एक लोक से दूसरे लोक में गमन कर सकता हैं, एक स्थान से दूसरे स्थान पर सहज तत्काल जा सकता हैं!

7. अदृश्यकरण : अपने स्थूलशरीर को सूक्ष्मरूप में परिवर्तित कर अपने आप को अदृश्य कर देना! जिससे स्वयं की इच्छा बिना दूसरा उसे देख ही नहीं पाता हैं!

8. विषोका : इसका तात्पर्य हैं कि अनेक रूपों में अपने आपको परिवर्तित कर लेना! एक स्थान पर अलग रूप हैं, दूसरे स्थान पर अलग रूप हैं!

9. देवक्रियानुदर्शन : इस क्रिया का पूर्ण ज्ञान होने पर विभिन्न देवताओं का साहचर्य प्राप्त कर सकता हैं! उन्हें पूर्ण रूप से अनुकूल बनाकर उचित सहयोग लिया जा सकता हैं!

10. कायाकल्प : कायाकल्प का तात्पर्य हैं शरीर परिवर्तन! समय के प्रभाव से देह जर्जर हो जाती हैं, लेकिन कायाकल्प कला से युक्त व्यक्ति सदैव तोग्मुक्त और यौवनवान ही बना रहता हैं!

11. सम्मोहन : सम्मोहन का तात्पर्य हैं कि सभी को अपने अनुकूल बनाने की क्रिया! इस कला को पूर्ण व्यक्ति मनुष्य तो क्या, पशु-पक्षी, प्रकृति को भी अपने अनुकूल बना लेता हैं!

12. गुरुत्व : गुरुत्व का तात्पर्य हैं गरिमावान! जिस व्यक्ति में गरिमा होती हैं, ज्ञान का भंडार होता हैं, और देने की क्षमता होती हैं, उसे गुरु कहा जाता हैं! और भगवन कृष्ण को तो जगद्गुरु कहा गया हैं!

13. पूर्ण पुरुषत्व : इसका तात्पर्य हैं अद्वितीय पराक्रम और निडर, एवं बलवान होना! श्रीकृष्ण में यह गुण बाल्यकाल से ही विद्यमान था! जिस के कारन से उन्होंने ब्रजभूमि में राक्षसों का संहार किया! तदनंतर कंस का संहार करते हुए पुरे जीवन शत्रुओं का संहार कर आर्यभूमि में पुनः धर्म की स्थापना की!

14. सर्वगुण संपन्न : जितने भी संसार में उदात्त गुण होते हैं, सभी कुछ उस व्यक्ति में समाहित होते हैं, जैसे – दया, दृढ़ता, प्रखरता, ओज, बल, तेजस्विता, इत्यादि! इन्हीं गुणों के कारण वह सारे विश्व में श्रेष्ठतम व अद्वितीय मन जाता हैं, और इसी प्रकार यह विशिष्ट कार्य करके संसार में लोकहित एवं जनकल्याण करता हैं!

15. इच्छा मृत्यु : इन कलाओं से पूर्ण व्यक्ति कालजयी होता हैं, काल का उस पर किसी प्रकार का कोई बंधन नहीं रहता, वह जब चाहे अपने शरीर का त्याग कर नया शरीर धारण कर सकता हैं!

16. अनुर्मि : अनुर्मि का अर्थ हैं-जिस पर भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी और भावना-दुर्भावना का कोई प्रभाव न हो!