नवग्रह शान्ति मन्त्र ( ग्रहों के कुप्रभाव को शांत करने के लिए मंत्र )
सूर्य ग्रह की शांति के लिए आप शुक्ल पक्ष के रविवार से उपवास आरंभ कर सकते हैं। रविवार को नमक का सेवन नहीं करना चाहिए और गेहूं की रोटी व गुड़ से अथवा गुड़ से बने दलिया का सेवन करना चाहिए। साथ ही पांच माला सूर्य के बीज मंत्र का जप करें,
ॐ हृं हृं स: सूर्याय नम:।
चंद्रमा की शांति के लिए आप श्रावण, चैत्र, वैशाख, कार्तिक अथवा मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष के सोमवार से उपवास आरंभ कर सकते हैं। इसके अलावा प्रतिदिन “ॐ नम: शिवाय” मंत्र का जप पांच माला करें। सोमवार के दिन पांच माला चंद्रमा के बीज मंत्र का भी जप करना चाहिए। इस दिन शिव-पार्वती पर श्वेत पुष्प, सुपारी, अक्षत, बिल्व पत्र आदि चढ़ाकर ग्रह शांति की प्रार्थना करें।
ऊं श्रां श्रीं श्रौं स: चंद्रमसे नम
मंगल ग्रह की शांति के लिए मंगलवार को उपवास करना चाहिए। यह व्रत 21 सप्ताह तक करने से पूर्ण फल मिलता है। इस दिन नमक छोड़ दें और लाल पुष्प, फल, ताम्र बर्तन, नारियल आदि द्वारा हनुमान जी की पूजन करके उन्हें सिंदूर अर्पित करना चाहिए तथा लाल चंदन की माला से पांच माला यह मंत्र जपे।
ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:
बुध की शांति के लिए लिए बुधवार का उपवास रखना चाहिए और भगवान विष्णु की पूरे विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। अगर आप 21 या 31 बुधवार के व्रत का संकल्प लें, तो बेहतर होगा। व्रत के दिन श्री विष्णु सहस्रनाम का पांच या ग्यारह बार पाठ करें। यह पाठ प्रतिदिन पांच बार ही करना श्रेयस्कर माना गया है। घी, मूंग की दाल से बने पदार्थ से बुधवार को परहेज करें और इस मंत्र की पाँच माला जपे।
ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:
गुरु या बृहस्पति की शांति के लिए शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार से उपवास आरंभ किया जाए, तो उपासक की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। व्रत के दिन स्नानादि के बाद पीले वस्त्र धारण करके पीले फूल, पीला नैवेद्य, गुड़, चने की दाल, हल्दी या पीले चंदन से सत्यनारायण भगवान की आराधना करें। साथ ही इस मंत्र का पांच माला जप करें।
ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरुवे नम:
शुक्र की शांति के लिए उपवास लक्ष्मी या वैभव लक्ष्मी के समक्ष श्वेत चंदन, श्वेत पुष्प, मावा की मिठाई, दीया, धूप आदि से पूजन करें और इस मंत्र का जप करें। यह व्रत 21 शुक्रवार तक करने तथा प्रतिदिन श्रीसूक्त का पाठ करने से लाभ होता है
ऊं द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:
शनि ग्रह की शांति के लिए: शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से यह उपवास आरंभ किया जा सकता है। 11 या 21 शनिवार तक व्रत करें, तो लाभप्रद होगा। इस दिन स्नान से पहले अपने ऊपर से 20-25 ग्राम सरसों या तिल के तेल में काले तिल डालकर सात बार सिर से पांव तक उतार लें और शनिदेव पर अर्पित करें। इसके बाद स्नान करके नीले वस्त्र पहनें। लौह निर्मित शनि प्रतिमा पर पंचामृत से स्नान कराएं तथा इस मंत्र का जप करें।
ॐ शं शनैश्चराय नम:
राहु की शांति के लिए: यह छाया ग्रह है, इसलिए इसके लिए कोई रात या दिन नहीं होता। राहु का उपवास शनिवार को ही करना चाहिए। इस दिन या प्रतिदिन पक्षियों को बाजरा खिलाएं और राहु मंत्र का 21 बार उच्चारण करें। साथ ही इस मंत्र का जप करें।
ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:
केतु की शांति के लिए: यह भी एक छाया ग्रह है, इसलिए इसकी कोई राशि या दिन नहीं होता। विद्वानों के अनुसार केतु मंगल के समान ही है। इसलिए इसका व्रत भी मंगलवार को ही करना चाहिए। इस दिन नमक रहित भोजन करें और बीज मंत्र का जप करें।
ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: केतवे नम:
अशांत ग्रह को शांत करने के लिए सामान्य गृहस्थों के लिए कठोर तप के विकल्प के रूप में उपवास का विधान शास्त्रों में बताया गया है, जिससे वह किसी ग्रह की भी उपासना कर सकते हैं
सूर्य ग्रह की शांति के लिए आप शुक्ल पक्ष के रविवार से उपवास आरंभ कर सकते हैं। रविवार को नमक का सेवन नहीं करना चाहिए और गेहूं की रोटी व गुड़ से अथवा गुड़ से बने दलिया का सेवन करना चाहिए। साथ ही पांच माला सूर्य के बीज मंत्र का जप करें,
ॐ हृं हृं स: सूर्याय नम:।
चंद्रमा की शांति के लिए आप श्रावण, चैत्र, वैशाख, कार्तिक अथवा मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष के सोमवार से उपवास आरंभ कर सकते हैं। इसके अलावा प्रतिदिन “ॐ नम: शिवाय” मंत्र का जप पांच माला करें। सोमवार के दिन पांच माला चंद्रमा के बीज मंत्र का भी जप करना चाहिए। इस दिन शिव-पार्वती पर श्वेत पुष्प, सुपारी, अक्षत, बिल्व पत्र आदि चढ़ाकर ग्रह शांति की प्रार्थना करें।
ऊं श्रां श्रीं श्रौं स: चंद्रमसे नम
मंगल ग्रह की शांति के लिए मंगलवार को उपवास करना चाहिए। यह व्रत 21 सप्ताह तक करने से पूर्ण फल मिलता है। इस दिन नमक छोड़ दें और लाल पुष्प, फल, ताम्र बर्तन, नारियल आदि द्वारा हनुमान जी की पूजन करके उन्हें सिंदूर अर्पित करना चाहिए तथा लाल चंदन की माला से पांच माला यह मंत्र जपे।
ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:
बुध की शांति के लिए लिए बुधवार का उपवास रखना चाहिए और भगवान विष्णु की पूरे विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। अगर आप 21 या 31 बुधवार के व्रत का संकल्प लें, तो बेहतर होगा। व्रत के दिन श्री विष्णु सहस्रनाम का पांच या ग्यारह बार पाठ करें। यह पाठ प्रतिदिन पांच बार ही करना श्रेयस्कर माना गया है। घी, मूंग की दाल से बने पदार्थ से बुधवार को परहेज करें और इस मंत्र की पाँच माला जपे।
ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:
गुरु या बृहस्पति की शांति के लिए शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार से उपवास आरंभ किया जाए, तो उपासक की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। व्रत के दिन स्नानादि के बाद पीले वस्त्र धारण करके पीले फूल, पीला नैवेद्य, गुड़, चने की दाल, हल्दी या पीले चंदन से सत्यनारायण भगवान की आराधना करें। साथ ही इस मंत्र का पांच माला जप करें।
ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरुवे नम:
शुक्र की शांति के लिए उपवास लक्ष्मी या वैभव लक्ष्मी के समक्ष श्वेत चंदन, श्वेत पुष्प, मावा की मिठाई, दीया, धूप आदि से पूजन करें और इस मंत्र का जप करें। यह व्रत 21 शुक्रवार तक करने तथा प्रतिदिन श्रीसूक्त का पाठ करने से लाभ होता है
ऊं द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:
शनि ग्रह की शांति के लिए: शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से यह उपवास आरंभ किया जा सकता है। 11 या 21 शनिवार तक व्रत करें, तो लाभप्रद होगा। इस दिन स्नान से पहले अपने ऊपर से 20-25 ग्राम सरसों या तिल के तेल में काले तिल डालकर सात बार सिर से पांव तक उतार लें और शनिदेव पर अर्पित करें। इसके बाद स्नान करके नीले वस्त्र पहनें। लौह निर्मित शनि प्रतिमा पर पंचामृत से स्नान कराएं तथा इस मंत्र का जप करें।
ॐ शं शनैश्चराय नम:
राहु की शांति के लिए: यह छाया ग्रह है, इसलिए इसके लिए कोई रात या दिन नहीं होता। राहु का उपवास शनिवार को ही करना चाहिए। इस दिन या प्रतिदिन पक्षियों को बाजरा खिलाएं और राहु मंत्र का 21 बार उच्चारण करें। साथ ही इस मंत्र का जप करें।
ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:
केतु की शांति के लिए: यह भी एक छाया ग्रह है, इसलिए इसकी कोई राशि या दिन नहीं होता। विद्वानों के अनुसार केतु मंगल के समान ही है। इसलिए इसका व्रत भी मंगलवार को ही करना चाहिए। इस दिन नमक रहित भोजन करें और बीज मंत्र का जप करें।
ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: केतवे नम:
अशांत ग्रह को शांत करने के लिए सामान्य गृहस्थों के लिए कठोर तप के विकल्प के रूप में उपवास का विधान शास्त्रों में बताया गया है, जिससे वह किसी ग्रह की भी उपासना कर सकते हैं
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