Friday, October 10, 2014

रिश्ते और ज्योतिष


रिश्ते और ज्योतिष

मानव एक सामाजिक प्राणी है | हम समाज से जुड़े रहते हैं | समाज में भी हम रिश्तों की डोर से बंधे रहते हैं | कभी कभी रिश्ते हमारे लिए महत्वपूर्ण बन जाते हैं | ऐसे भी रिश्ते होते हैं जिनसे हमें ख़ास लगाव रहता है |

यदि ये रिश्ते न हों तो शायद दुनिया में किसी को किसी की या फिर यूं कहिये कि अपनी भी फ़िक्र न हो |

इन्ही रिश्तों को ज्योतिष की दृष्टि से भी देखा जा सकता है | आपकी जन्मकुंडली बता सकती है कि आपके परस्पर सम्बन्ध कैसे रहेंगे | भाई, बहन, माँ बाप, दादा, दादी, नाना और नानी से लेकर ससुराल सास ससुर और साले आदि का भी विश्लेष्ण आपकी जन्मकुंडली के द्वारा किया जा सकता है |

शुक्र स्त्री का कारक है | पुरुष की कुंडली हो तो शुक्र पत्नी का कारक है | चंद्रमा माता है और सूर्य पिता हैं |

बुध से छोटी या बड़ी बहन का विचार किया जाता है | मंगल भाई का कारक है | गुरु स्त्री की कुंडली में पति का परिचायक है | अधिक अंशों में बुध का विचार मामा से किया जाता है | मामा या मौसी के बारे में देखने के लिए बुध के अंश देखिये | अधिक गहराई से देखने के लिए मैं हमेशा नक्षत्रों को भी गिनता हूँ | शनि से ताया का विचार किया जाता है और राहू से ससुराल और ससुराल से जुड़े सभी लोगों का पता लगाया जाता है | यदि हम नक्षत्रों को साथ लेकर चलते हैं तो हम गहराई से किसी भी रिश्ते के बारे में जान सकते हैं | जैसे कि मेरी ससुराल कैसी होगी| मेरी सास के साथ मेरी बनेगी या नहीं | साले और सालियाँ या जीजा और बड़ी बहन के विषय में राहू और राहू के नक्षत्रों से काफी कुछ जाना जा सकता है |

इसी तरह हम जन्मकुंडली में भी देख सकते हैं | पहला घर यानी आप | आपसे सातवाँ घर आपकी पत्नी का है |

लग्न से चौथा घर यानी माँ का है तो माँ के घर से सातवाँ आपके पिता का | तीसरे घर से भाई का विचार किया जाता है और भाई के घर से सातवाँ उसकी पत्नी यानी आपकी भाभी का है | ननिहाल से सम्बंधित रिश्ते देखने के लिए आपको माता के घर का पता होना आवश्यक है | तभी आप ननिहाल पक्ष के नातेदारों के विषय में देख पायेंगे | कुंडली का चौथा घर आपकी माँ का है और माँ का भाई यानी आपके मामा या माता की बहन यानी आपकी मौसी के बारे में जानने के लिए माता से तीसरा यानी छठां घर आपके मामा और मौसी का है | कुंडली के तीसरे घर से भाई का विचार किया जाता है |

यदि पत्नी के भाई का विचार करना हो तो पत्नी का स्थान यानी सातवाँ और सातवें से तीसरा पत्नी के भाई का होता है | इस तरह नौवें घर से आप अपने साले और सालियों के बारे में जान सकते हैं |

विवाह से पहले अधिकतर लड़कियां अपनी ससुराल के बारे में जानना चाहती हैं यानी उनके ससुर कैसे होंगे | देवर, देवरानी जेठ, जेठानी, ननद, जीजा और सास ससुर के साथ सम्बन्ध कैसे रहेंगे | क्या लम्बे समय तक आपके सम्बन्ध कायम रहेंगे ? क्या आपको सास या ससुर से प्यार मिलेगा ? क्या आपके पति का छोटा भाई यानी आपका देवर लक्ष्मण की भांति आपकी सेवा करेगा ?

इसी तरह के सवालों के जवाब के लिए आपको ये समझ होनी आवश्यक है कि जिस स्थान में पाप ग्रह बैठा है उस घर से सम्बंधित सभी रिश्तों से आपको निराशा ही मिलेगी | जैसे कि दशम भाव में राहू होने से आपकी ससुराल आपके लिए न के बराबर रहेगी यानी संबंधों में न्यूनता | यदि आपका शनि नीच का है तो आपके घर में बुजुर्गों का हमेशा अभाव रहेगा | यदि राहू आपकी कुंडली में अच्छा नहीं है तो ससुराल से आपको कोई विशेष लाभ नहीं होगा और यदि आपका राहू अच्छा है तो ससुराल से न केवल आपके जीवन भर मधुर सम्बन्ध जुड़े रहेंगे अपितु समय समय पर ससुराल से मदद भी मिलेगी |

सबसे पक्का रिश्ता

सबसे पक्का रिश्ता दोस्ती का माना जाता है जो कभी टूटने के बाद भी फिर से जुड़ने की उम्मीद रहती है | दोस्ती ही एकमात्र वह रिश्ता है जिसके न होने से आपको हर रिश्ता अधूरा लगेगा |
कुछ लोगों की किस्मत में दोस्त होते ही नहीं या फिर उन्हें दोस्तों से हमेशा धोखा ही मिलता है | ऐसा क्यों होता है ? आइये एक नज़र डालते हैं इस रिश्ते पर भी |

बुध आपकी कुंडली में यदि शुभ स्थिति में है तो आपके मित्र आपके सगे सम्बन्धियों से ज्यादा आपको चाहेंगे | आपको एक या एक से अधिक मित्र ऐसे उपलब्ध रहेंगे जैसे कि आपकी परछाई हों |

जीवन में किसी भी प्रकार की विपरीत स्थिति में आपके मित्र आपके समक्ष प्रस्तुत रहेंगे और आपकी मदद करेंगे और आप भी उनके बिना नहीं रह पाएंगे | इसके विपरीत बुध यदि राहू के साथ है और निर्बल है तो फिर मित्रों से दूर रहने का ही प्रयत्न कीजिये क्योंकि आपके मुह पर तो वे आपके पक्ष में रहेंगे परन्तु समय पड़ने पर जड़ काटने को भी तैयार रहेंगे | हो सकता है कि किसी समय काम भी आ जाएँ परन्तु यहाँ भी उनका किसी न किसी प्रकार का स्वार्थ छिपा रहेगा |

शनि के साथ बुध होने पर आपके मित्र बुरे नहीं होंगे | बुध के साथ सूर्य रहने पर आप जैसा व्यवहार अपने मित्रों के साथ करेंगे आपको भी वैसा ही फल मिलेगा | यदि आप स्वार्थी हैं तो आपके मित्र भी स्वार्थी होंगे | एक फायदा आपको हमेशा रहेगा | आप मित्रों से हमेशा घिरे रहेंगे | गुरु के साथ बुध होने पर आपके मित्र सच्चे और सहायक होने के साथ साथ आपके गुण दोष आपके मुह पर कहने वाले होंगे | आपकी पीठ पीछे कोई आपकी बुराई नहीं करेगा |

केतु यदि बुध के साथ हो तो आपके मित्र मददगार तो होंगे परन्तु सामान्य लोगों से आपकी मित्रता नहीं होगी | आपके मित्र ऊँचे दर्जे के होंगे | यदि केतु शुभ है तो बड़े लोगों के साथ आपकी मित्रता खतरनाक लोगों के साथ रहेगी |
शुक्र बुध के साथ है तो स्त्रियों से मित्रता रहेगी और यदि चन्द्रमा बुध के साथ है तो हर किसी व्यक्ति को आप अपना मित्र बना सकते हैं | यहाँ तक कि आपमें शत्रुओं को भी अपने पक्ष में रखने की शक्ति होगी |

बेमेल विवाह और जन्मकुंडली

बेमेल विवाह और जन्मकुंडली

हमारे समाज में बेमेल विवाह एक मामूली सी बात है | इसमें पति और पत्नी में भारी अंतर होता है | अधिकतर मामलों में पति की उम्र विवाह के समय पत्नी से दुगनी होती है | महिलाएं इससे सर्वाधिक प्रभावित हैं | जैसा कि देखने में आता है कि पति पत्नी में काफी अंतर दिखाई देता है | सामान्य न लगने वाला यह संजोग बेमेल विवाह कहलाता है | हाल भी में उत्तर प्रदेश के कटिहार से एक ईमेल के जरिये एक नवविवाहिता ने अपने बारे में पूछा कि ऐसे क्यों हुआ | क्यों उसकी शादी उससे कम पढ़े लिखे युवक से कर दी गई | उस महिला ने बताया कि स्नातकोत्तर की डिग्री होते हुए भी एक ड्राइवर से उसकी शादी हो गई जो कि मैट्रिक भी पास नहीं है |
शिक्षा की दृष्टि से देखें या करियर की दृष्टि से | उम्र के लिहाज से या शरीर के किसी नुख्स के नजरिये से, हर कोई बेमेल विवाह से दुखी हो सकता है | विशेषकर तब जबकि व्यक्ति विशेष को इस बात का पहले से पता न हो कि उसके साथ क्या होने जा रहा है |
हाल ही में अम्बाला में ३३ वर्षीय एक लड़की को मंगलीक होने की वजह से जब कोई उपयुक्त वर नहीं मिला तो उसने २३ वर्षीय एक लड़के के साथ गुपचुप विवाह कर लिया और अपने परिवार से नाता तोड़ लिया | अपने से बड़ी उम्र की दुल्हन के साथ विवाह करने वाला कोई भी व्यक्ति कभी तो यह महसूस करेगा ही कि यह अनमेल विवाह क्यों हुआ |
चाहे कोई अपनी छात्रा से विवाह करे या दो लड़के आपस में विवाह करें, चाहे उम्र का फासला अधिक हो या पत्नी ज्यादा कमाती हो | गोर काले का भेद हो या दोनों में से एक बेहद खूबसूरत और दूसरा बदसूरत | सवाल अनपढ़ और पढ़े लिखे का हो या गरीब अमीर का | सभी चीजों को लोग बेमेल मानते हैं और ये नहीं जानते कि ये बेमेल विवाह उनके कर्मों के अनुसार परमात्मा की इच्छा से मिला है जिसे दोष नहीं दिया जा सकता |
सबकी अपनी अपनी सोच है | मेरी सोच केवल यही है कि जो भी होता है आपके कर्मानुसार पूर्वनिर्धारित है जिसे भगवान् की इच्छा समझ कर ग्रहण करना चाहिए | फिर भी पिछले कुछ दिनों में लोगों ने बेहद सवाल किये हैं कि ऐसा क्यों होता है | कुछ लोग जानना चाहते हैं कि उनके विवाह से पहले उन्हें इस बात की सूचना मिल जाए तो बेमेल विवाह नहीं होंगे |
यह आपकी सोच है परन्तु मेरे अनुसार बेमेल विवाह वह है जिसमे एक व्यक्ति घोर मंगलीक है और दूसरा कुंडली में विशवास न रखते हुए बिना मिलान किये शादी करने को तैयार है | बेमेल विवाह वो है जिसमे एक को पता है कि वो मंगली है और दूसरा नहीं | बेमेल विवाह वह है जिसमे धोखा दिया जाए और असलियत छुपा ली जाए |
संभव है कि यदि आप अपनी कुंडली का निरीक्षण करके अपने भाग्य का पता लगा कर अपने जीवन साथी के बारे में सचेत हो जाएँ तो जन्म लेने से पहले ही विवाद ख़त्म हो जाए | इसी आशा के साथ प्रस्तुत हैं ऐसे विवाह योग जिन्हें आप अपनी कुंडली में आसानी से देख सकते हैं |
कुंडली के अनुसार बेमेल विवाह
यदि आपकी कुंडली में सप्तमेश लग्न से असाधारण रूप से बलवान है तो आपमें और आपके जीवनसाथी में काफी अंतर होगा |
यदि पुरुष की कुंडली में शुक्र नीच का हो और सप्तमेश शुक्र का शत्रु हो जैसे कि सूर्य, मंगल या चन्द्र तो विवाह अनमेल होगा | ऐसे योग में आपकी पत्नी में और आपमें बहुत अधिक अंतर होगा |

यदि किसी भी प्रकार से मंगल की दृष्टि शुक्र और सप्तम स्थान दोनों पर पड़ती हो तो विवाह अनमेल होगा | पति या पत्नी में से कोई एक अपंग होगा |
शुक्र या गुरु को मंगल और शनि देख रहे हों और सप्तम स्थान पर कोई शुभ ग्रह न हो तो विवाह अनमेल होगा | इस योग में विवाह के बाद दोनों में से कोई एक मोटापे की और अग्रसर हो जाता है

गुरु लग्न में वृषभ, मिथुन, कन्या राशी में हो और उस पर शनि की दृष्टि हो तो व्यक्ति का शरीर विवाह के बाद बहुत बेडोल हो जाता है इसके विपरीत यदि शुक्र स्वराशी में या अच्छी स्थिति में हो तो पति पत्नी में जमीन आसमान का फर्क नज़र आता है |
शनि लग्न में हो और गुरु सप्तम में हो तो पति पत्नी की उम्र में काफी अंतर होता है |
राहू केतु लग्न और सप्तम में हों और लग्न या सप्तम भाव पर शनि की दृष्टि हो तो देखने में पति पत्नी की सुन्दरता में भारी अंतर होता है यानि एक बेहद खूबसूरत और दूसरा इसके विपरीत |

क्या कारण हैं
लग्न आपका अपना शरीर है और सातवाँ घर आपके पति या पत्नी का परिचायक है | यदि खूबसूरती का प्रश्न हो तो सब जानते हैं कि राहू और शनि खूबसूरती में दोष उत्पन्न करते हैं | गुरु मोटापा बढाता है | शुक्र के कमजोर होने से शरीर में खूबसूरती और आकर्षण का अभाव रहता है | मंगल शरीर के किसी अंग में कमी ला सकता है और राहू सच को छिपा कर आपको वो दिखाता है जो आप देखना चाहते हैं |
इसी कारण ऐसा होता है और यदि आपको ये वहम हो जाए कि आपके साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ है या हो सकता है तो आपके विचार और प्रश्न आमंत्रित हैं | यदि मैं माध्यम बनकर आपके बेमेल विवाह में बाधक बन सकूं तो हो सकता है कि यह भी परमपिता परमात्मा की ही इच्छा हो |

दुर्भाग्य और परिहार

दुर्भाग्य और परिहार

कुछ लोगों के जीवन में शादी के बाद उथल पुथल शुरू हो जाती है | यदि शादी के बाद आप कुछ अच्छा अनुभव नहीं कर रहे हैं या भाग्य साथ नहीं दे रहा है तो जन्मकुंडली में इसके कारण का पता लगा कर इसका परिहार किया जा सकता है |
यदि शुक्र पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो शादी के बाद भाग्य चमकने की बजाये दुर्भाग्य में भी बदल सकता है | ऐसी स्थिति में यह जानना आवश्यक है कि वह कौन सा ग्रह है जो शुक्र पर बुरा प्रभाव डाल रहा है | मैं एक एक करके सभी ग्रहों का वर्णन करता हूँ |
चन्द्र, बुध और गुरु से शुक्र को उतनी हानि नहीं होती इसलिए केवल उन्ही ग्रहों की चर्चा करूंगा जो शुक्र या विवाह के लिए बाधक बन सकते हैं |
इनमे सबसे ऊपर नाम आता है राहू का | राहू यदि भाग्य में अवरोध पैदा कर रहा हो तो बहुत ही चमत्कारी उपाय है | धर्म स्थान मंदिर, मस्जिद या गुरुद्वारा आदि में जो थोड़ी बहुत गन्दी जगह दिखे वहां पर राहू का वास होता है | उस जगह पर झाड़ू लगाने से आप राहू को धर्म के स्थान से अलग कर सकते हैं | रोज न हो सके तो प्रत्येक शनिवार को यह उपाय करें | इसके अतिरिक्त किसी से स्टील का कोई बर्तन मुफ्त में न लें | यदि पहले लिया हो तो किसी तरह उसे वापस कर दें या उसकी कीमत दे दें |
शनि से शुक्र को उतना नुक्सान नहीं पहुँचता जितना सूर्य, मंगल और राहू से होता है | यदि शनि भाग्य में अवरोध का कारण हो तो किसी बुजुर्ग को कपडे भेंट करें | मंदिर / धर्मस्थान में पेठा दान करें | इसके अतिरिक्त एक और आजमाया हुआ उपाय है जो बहुत लाभदायक सिद्ध होता है | शुक्रवार के दिन स्टील का नया ताला खरीद लें और शनिवार की सुबह पांच बजे से पहले किसी धर्म स्थान में दान कर दें | ताले को बंद करके चाबी बीच में ही छोड़ दें और आते हुए पीछे मुड़कर न देखें |
मंगल यदि भाग्य में अवरोध पैदा कर रहा हो तो मंगलवार के दिन तंदूरी रोटी और खीर के साथ कद्दू की सब्जी का भोजन और कुछ पैसे किसी विकलांग व्यक्ति को दोपहर के समय दें | हर मंगलवार यह उपाय करें |
यदि सूर्य भाग्य में बाधक बन जाए तो आलस्य छोड़ दीजिये और सूर्योदय से पूर्व उठाना प्रारम्भ कर दीजिये | स्नानोपरांत ताम्बे के पात्र में जल भरकर थोडा दूध और केसर मिला कर यह जल सूर्यदेव को तब अर्पण कीजिये जब सूर्य उदय हो  रहा हो | केवल चालीस दिन में भाग्य में आ रहा अवरोध समाप्त हो जाएगा |

कौन और कैसा होगा आपका जीवन साथी


कौन और कैसा होगा आपका जीवन साथी


प्रेम व्यक्ति में स्वाभाविक रूप से जागृत होता है | प्रेम ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा अजनबी एक दुसरे के प्रति समर्पण को जान पाते हैं | दो व्यक्तियों के बीच पनपने वाले इस भाव का लक्ष्य शादी पर संपन्न हो जाए तो प्रेम को पूर्णता मिल जाती है |

प्रेम करने वाले युवक युवतियों से हर रोज मेरी बात होती है | प्रेम के विषय पर लोगों से मेरी चर्चा जब भी होती है कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता है | यही मेरे ज्ञान का स्त्रोत है | कुछ सालों से मैंने लोगों से जितना सीखा है उतना ज्ञान किताबों से मिलना मुमकिन नहीं है | माँ सरस्वती का यह आशीर्वाद मेरे लिए दुर्लभ है |

माँ सरस्वती की कृपा से कुछ ऐसे तथ्य जो हाल ही में मैंने आप लोगों से ही सीखे हैं इस लेख के माध्यम से प्रस्तुत कर रहा हूँ |

प्रेम विवाह और जन्मकुंडली
जैसा कि वास्तविक जीवन में होता है | अनायास ही मुलाकात होती है और कोई अजनबी अपना लगने लगता है | जन्मकुंडली में भी कुछ ग्रह ऐसे होते हैं जो अनायास होने वाली घटनाओं के लिए जिम्मेदार होते हैं | हर अजनबी पर राहू की सत्ता है क्योंकि आप उसके विषय में कुछ नहीं जानते | राहू रहस्य के लिए जाना जाता है | इसलिए प्रेम को समझने के लिए राहू को समझना अत्यंत आवश्यक है |

मैंने देखा है जिस स्थान से राहू का सम्बन्ध हो उस स्थान से सम्बंधित काम अचानक ही होते हैं | प्रेम का भाव शुक्र से पनपता है | यदि आपका शुक्र अच्छा है तो आप प्रेम कर पायेंगे | प्रेम को समझने की आपमें शक्ति होती | प्रेम की अनुभूति आपके लिए नयी चीज नहीं होगी |

इस बात को थोड़ी और गहराई से समझते हैं | इस दुनिया में जितनी चमकदार चीजें हैं जिन्हें देखकर मन मोहित हो जाता है उन पर शुक्र का आधिपत्य है | मन को बहलाने के लिए या खुश होने के लिए या जिन कार्यों से ख़ुशी प्राप्त होती है उन सभी पर शुक्र का साम्राज्य है |

यदि आपका राहू अच्छा है तो अजनबी लोगों के दिल का हाल जानने की क्षमता आपमें होगी | आपका लगाया गया अनुमान गलत साबित नहीं होगा परन्तु यदि कुंडली में राहू खराब है तो आप किसी व्यक्ति को तब तक नहीं समझ पायेंगे जब तक काफी देर न हो चुकी हो |

शुक्र और राहू यदि दोनों अच्छे हैं तो प्रेम भी होगा और प्रेम विवाह भी होगा | आप अपने जीवन साथी विषय में अनुमान लगा पायेंगे कि वह इस समय सुख में है या दुःख में है | यही प्रेम है और यही प्रेम की पूर्णता है |

इस तरह शुक्र और राहू बहुत कुछ कहते हैं जिन्हें समझ पाने के लिए ज्ञान और अनुभव दोनों की आवश्यकता होगी |

किस से होगी शादी आपकी शादी 
यदि आपके माता पिता आपके लिए वर / वधु की तलाश कर रहे हैं और आपका मन कहीं और अटका है तो यह सवाल आपके मन में अवश्य आएगा | किन्ही दो व्यक्तियों की कुंडली देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह दोनों पति पत्नी बनेंगे या नहीं | इस सम्बन्ध में सटीक भविष्यवाणी करने के पीछे मेरे पास कुछ सिद्धांत हैं जिन्हें पढ़कर और समझकर आप भी शत प्रतिशत अनुमान लगा सकते हैं कि आपकी शादी किस से होने वाली है और किस से नहीं |

दो कुंडलियों में यदि समान लग्न, समान राशि, समान नवांश लग्न और समान नवमांश मिले तो चालीस प्रतिशत एक और लिख लें |

आपकी कुंडली के सातवें घर का स्वामी यदि आपके साथी की कुंडली में यदि नवांश लग्न में है या नवांश से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध रखता है तो पचास प्रतिशत एक ओर लिख लें |

आपका शुक्र और आपके साथी का शुक्र किसी एक ही ग्रह की राशि में हैं तो पचास प्रतिशत एक ओर लिख लें |

आपकी कुंडली का…
सप्तमेश और आपके जीवन साथी की कुंडली का सप्तमेश,
शुक्र और आपके जीवन साथी का शुक्र,
नवांश लग्नेश और जीवन साथी का नवांश लग्नेश,
लड़के का गुरु और लड़की का शुक्र,

यदि एक ही राशि में बैठे हों, एक दुसरे को देख रहे हों या एक ही ग्रह की राशि में हों तो यह संभावना साथ प्रतिशत बढ़ जाती है कि आपमें मेल होगा |

यदि आपकी कुंडली में सातवें घर में कोई वक्री ग्रह है और आपके साथी की कुंडली में भी कोई वक्री ग्रह सातवें घर में है तो आप दोनों के बीच शादी की संभावना सत्तर प्रतिशत होगी |

यदि लड़का और लड़की दोनों के सप्तमेश एक ही ग्रह के नक्षत्र में हों

यदि लड़का और लड़की दोनों के लग्नेश एक ही ग्रह के नक्षत्र में हों

यदि लड़का और लड़की दोनों के नवांश लग्नेश एक ही ग्रह के नक्षत्र में हों

तो शादी की संभावना तीस प्रतिशत तक होती है |

ऊपर लिखे नियमों में से एक से अधिक नियम यदि मिल जाएँ तो परस्पर शादी संभव होती है |

इस तरह के और भी नियम हैं जो केवल तभी प्रकट होते हैं जब सामने कुंडली हो और जिन्हें बिना देखे व्यक्त नहीं किया जा सकता |
मनपसन्द व्यक्ति से शादी

हर व्यक्ति की इच्छा होती है कि उसकी शादी उसकी पसंद के अनुसार हो | प्रस्तुत है कुछ ऐसे नियम जब आप की शादी मनचाहे जीवन साथी से होती है |

यदि सातवें घर में कोई ग्रह स्वराशी हो तो आप अपने जीवन साथी को पहली बार देखते ही पसंद करने लगेंगे | परन्तु कभी कभी केवल स्वराशी में होना पर्याप्त नहीं होता | फिर भी यह नियम सौ में से साठ लोगों पर लागू होगा |

मनपसंद व्यक्ति से शादी का मतलब यह नहीं की आपका जीवनसाथी अत्यंत सुन्दर हो अपितु कुछ लोगों की पसंद यह भी होती है कि जीवन साथी अच्छे स्वभाव वाला तथा प्रेम करने वाला हो | यदि आप स्त्री हैं और गुरु कुंडली के 1, 3, 7, 11वें घर में है तो इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि आपके पति से आपको प्रेम मिलेगा और आपके पति आपका ध्यान रखेंगे | परन्तु ऐसे गुरु पर यदि राहू, शनि का प्रभाव हो तो प्रेम तो मिलेगा परन्तु प्रेम के लिए तरसना भी पड़ेगा |

सातवें घर के स्वामी पर यदि गुरु, शुक्र, बुध और चन्द्र का प्रभाव हो तो भी आप उम्मीद कर सकते हैं कि आपके पति / पत्नी में बहुत से गुण ऐसे होंगे जो आपको पसंद हैं |

सातवें घर या सातवें घर के स्वामी पर शुक्र का प्रभाव होना ही इस बात के लिए काफी होता है कि जीवन साथी आकर्षक होगा |

आपकी कुंडली का नवमांश इस बात की पूरी जानकारी देता है कि आपका जीवनसाथी कैसा होगा | आपकी पसंद का होगा या आप उसे नापसंद करेंगे | समझदार होगा या लापरवाह | आपसे प्यार करेगा या आपसे दूर भागेगा | आदर्श जीवन साथी होगा नहीं |

बहरहाल कुंडली देखने के मेरे अपने नियम हैं मेरी अपनी विचारधारा है | हो सकता है कि मैंने अधिक ध्यान से यह लेख न लिखा हो या फिर आप मेरे विचारों से सहमत न हों | फिर भी मैं आपका आभारी रहूँगा यदि आप इस लेख के विषय में अपने विचार प्रकट करेंगे |

Saturday, October 4, 2014

यदि नहीं मिल पा रहा मनचाहा जॉब,

यदि नहीं मिल पा रहा मनचाहा जॉब, तो बस इतना कर लीजिए

क्या आप भी नौकरी की तलाश में है? क्या आप अपनी वर्तमान नौकरी से खुश नहीं हैं? क्या आप नौकरी बदलना चाहते हैं? पेश है कुछ आसान से चमत्कारी टोटके खास आपके लिए, जो निश्चित रूप से दिलाएंगे आपको मनचाहा आकर्षक जॉब। तुरंत आजमाएं यह सरल से 10 उपाय-

बजरंग बली का फोटो जिसमें उनका उड़ता हुआ चित्र हो घर में रखना चाहिए और उसकी पूजा करना चाहिए।

आपको नौकरी के लिए इंटरव्यू देने जाना है तो घर से निकलने से पहले हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए।

शनिवार के दिन शनि देव का विधिपूर्वक पूजन करके नीचे लिखे मंत्र का 108 बार जप करें। मंत्र – ॐ शं शनैश्चराय नम:

रोज सुबह पक्षियों को सात प्रकार के अनाजों को एकसाथ मिलाकर खिलाएं और मंदिर में दर्शन करें।

एक नींबू के ऊपर चार लौंग गाड़ दें और ‘ॐ श्री हनुमते नम:’ मंत्र का 108 बार जप करके नींबू को अपने साथ लेकर जाएं। आपका काम अवश्य बन जाएगा।

रोजाना शिवलिंग पर जल चढ़ाकर अक्षत यानी चावल अर्पित करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार इस उपाय से व्यक्ति को अखंड लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।इ
इंटरव्यू देने जाते समय यदि रास्ते में कोई गाय नजर आ जाए तो उसे आटा-गुड़ खिला कर जाएं।

रूके हुए कार्य सिद्धि के लिए यह टोटका बहुत ही लाभदायक है।

किसी भी गणेश चतुर्थी को गणेश जी का ऐसा चित्र घर पर लगाएं, जिसमें उनकी सूंड दाईं ओर मुड़ी हुई हो। उनकी आराधना करें। उनके आगे लौंग तथा सुपारी रखें। जब भी कहीं काम पर जाना हो, तो इस लौंग तथा सुपारी को साथ लेकर जाएं, तो काम सिद्ध होगा।

श्रीकृष्ण का मूलमंत्र ‘कृं कृष्णाय नमः’ है। अपना सुख चाहने वाले प्रत्येक मनुष्य को इस मूलमंत्र का जाप प्रातः काल नित्य क्रिया व स्नानादि के पश्चात एक सौ आठ बार करना चाहिए। ऐसा करने वाले मनुष्य सभी बाधाओं एवं कष्टों से सदैव मुक्त रहते है। 

सुकृति एस्ट्रो वास्तु रिसर्च सेंटर, करनाल 

Friday, October 3, 2014

वास्तुदेव की विशेषताए

वास्तुदेव की विशेषताएँ

वास्तुदेव की तीन विशेषताएं होती हैं  : -
चर वास्तु  : इसमें वास्तु पुरुष की  नजर या रुख  भाद्रपद ( अगस्त, सितम्बर ), आश्विन तथा कार्तिक ( अक्टूबर , नवम्बर ) महीनों के अवधि में दक्षिण की ओर  होता है |  तथा  मार्गशीर्ष (नवम्बर-दिसंबर ), पौष ( दिसंबर – जनवरी ), और माघ (जनवरी-फरवरी ) महीनों में पश्चिम की ओर होता है | फाल्गुन (फरवरी – मार्च ), चैत्र (मार्च – अप्रैल ), और  वैशाख (अप्रैल – मई ) महीनों में उत्तर की ओर होता है | ज्येष्ठ (मई – जून ), आषाढ़ (जून – जुलाई ), तथा  श्रावण (जुलाई – अगस्त ) महीनों की अवधि में पूर्व की ओर होता है | निर्माण कार्य का आरम्भ  या शिलान्यास  और मुख्य द्वार की स्थापना  ऐसे स्थान पर होनी चाहिए जो वास्तुपुरुष की दृष्टी  या नजर की ओर हो , ताकि मनुष्य उस मकान में शान्ति और सुख से रह सके |

स्थिर वास्तु :  वास्तु पुरुष का सिर सदैव उत्तर-पूर्व की ओर  तथा पैर दक्षिण – पश्चिम की ओर , दाहिना हाथ उत्तर-पश्चिम की ओर  एवं बांया  हाथ दक्षिण – पूर्व की ओर रहता है  इस बात को ध्यान में रखते हुए मकान का डिजाइन एवं प्लान  बनाना चाहिए |

नित्य वास्तु : प्रत्येक दिन वास्तु पुरुष की नजर  सुबह प्रथम  तीन घंटे  पूर्व की ओर , इसके पश्चात तीन घंटे दक्षिण  की ओर  तथा उसके बाद तीन घंटे पश्चिम की ओर तथा अंतिम तीन घंटे उत्तर की ओर दृष्टी अथवा नजर रहती है | भवन का निर्माण कार्य इसी प्रकार समयानुसार करना  चाहिए | वास्तु पुरुष की तीन अवसरों पर पूजा अर्चना करनी चाहिये  निर्माण कार्य में  शिलान्यास  करते समय , दूसरी बार  मुख्य द्ववार लगाते  समय , तीसरी बार  गृह प्रवेश के समय पूजा करनी चाहिये | गृह प्रवेश उस समय होना चाहिये जब वास्तुपुरुष की नजर उस ओर हो  ये शुभ रहता है ।

सुकृति एस्ट्रो वास्तु करनाल
मोबाइल 8607627999

Tuesday, September 30, 2014

हर o को करें ये 11 तांत्रिक उपाय, किस्मत चमकते देर नहीं लगेगी...



हर o को करें ये 11 तांत्रिक उपाय, किस्मत चमकते देर

नहीं लगेगी...

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धर्म ग्रंथों के अनुसार चतुर्थी तिथि व बुधवार के स्वामी भगवान

श्रीगणेश ही हैं। यदि इस दिन कोई भक्त भगवान श्रीगणेश

को प्रसन्न करने के लिए कुछ तांत्रिक उपाय करे तो इसका बहुत

ही जल्दी शुभ फल प्राप्त होता है। उस व्यक्ति की हर

मनोकामना पूरी हो जाती है।

1- बुधवार के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद एक कांसे

की थाली लें और उस पर चंदन से ऊँ गं गणपतयै नम: लिखें। इसके बाद

इस थाली में पांच बूंदी के लड्डू रखें व समीप स्थित किसी गणेश

मंदिर में दान कर आएं। इस उपाय से अचानक धन धन लाभ होने

की संभावना बढ़ जाएगी।

2- यंत्र शास्त्र के अनुसार गणेश यंत्र बहुत ही चमत्कारी यंत्र है। घर

में इसकी स्थापना बुधवार, चतुर्थी या किसी शुभ मुहूर्त में करने से

बहुत लाभ होता है। इस यंत्र के घर में रहने से किसी भी प्रकार

की बुरी शक्ति घर में प्रवेश नहीं कर सकती।

3- बुधवार के दिन सुबह स्नान अदि करने के बाद समीप स्थित

किसी गणेश मंदिर जाएं और भगवान श्रीगणेश को 21 गुड़

की ढेली के साथ दूर्वा रखकर चढ़ाएं। इस उपाय को करने से भगवान

श्रीगणेश भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं। ये बहुत

ही चमत्कारी उपाय है।

4- अगर आपको धन की इच्छा है तो इसके लिए आप बुधवार

या चतुर्थी तिथि के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद भगवान

श्रीगणेश को शुद्ध घी और गुड़ का भोग लगाएं। थोड़ी देर बाद

घी व गुड़ गाय को खिला दें। ये उपाय करने से धन

संबंधी समस्या का निदान हो जाता है।

5- शास्त्रों में भगवान श्रीगणेश का अभिषेक करने का विधान

भी बताया गया है। बुधवार के दिन भगवान श्रीगणेश का अभिषेक

करने से विशेष लाभ होता है। यह अभिषेक शुद्ध पानी से करें। साथ

में गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ भी करें। बाद में मावे का लड्डुओं

का भोग लगाकर सभी में बांट दें।

6- इस दिन किसी गणेश मंदिर जाएं और दर्शन करने के बाद

नि:शक्तों को यथासंभव दान करें। दान से पुण्य

की प्राप्ति होती है और भगवान श्रीगणेश भी अपने भक्तों पर

प्रसन्न होते हैं।

7- बुधवार के दिन सुबह उठकर नित्य कर्म करने के बाद पीले रंग के

श्रीगणेश भगवान की पूजा करें। पूजन में श्रीगणेश

को हल्दी की पांच गठान श्री गणाधिपतये नम: मंत्र का उच्चारण

करते हुए चढ़ाएं इसके बाद 108 दूर्वा पर गीली हल्दी लगाकर

श्री गजवकत्रम नमो नम: का जप करके चढ़ाएं। यह उपाय

प्रति बुधवार को करने से प्रमोशन होने की संभावनाएं बढ़

जाती हैं।

8- यदि किसी कन्या का विवाह नहीं हो पा रहा है तो वह

कन्या बुधवार को विवाह की कामना से भगवान श्रीगणेश

को मालपुए का भोग लगाए तो शीघ्र ही उसका विवाह

हो जाता है।

यदि किसी युवक के विवाह में परेशानियां आ रही हैं तो वह

भगवान श्रीगणेश को पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं

तो उसका विवाह भी जल्दी हो जाता है।

9- बुधवार को दूर्वा (एक प्रकार की घास) के गणेश बनाकर

उसका पूजा करना बहुत ही शुभ होता है। श्रीगणेश

की प्रसन्नता के उन्हें मोदक, गुड़, फल, मावा-मिïष्ठान

आदि अर्पण करें। ऐसा करने से भगवान गणेश सभी मनोकामनाएं

पूरी करते हैं।

10- अगर आपके जीवन में बहुत परेशानियां हैं और कम नहीं हो रही है

तो आप बुधवार के दिन किसी हाथी को हरा चारा खिलाएं और

गणेश मंदिर जाकर भगवान श्रीगणेश से परेशानियों का निदान

करने के लिए प्रार्थना करें। इससे आपके जीवन की परेशानियां कुछ

ही दिनों में दूर हो जाएंगी।

11- बुधवार के दिन घर में श्वेतार्क गणपति (सफेद आंकडे की जड़ से

बनी गणपति) की स्थापना करने से सभी प्रकार की तंत्र

शक्ति का नाश हो जाता है व ऊपरी हवा का असरभी नहीं होता।

क्या आपके कार्य को किसी की बुरी नजर/बद्नजर लगी है ?

क्या आपके कार्य को किसी की बुरी नजर/बद्नजर लगी है ?


प्रायः सुनने में आता है कि काम, दुकान अथवा भवन किसी ने बांध दिया। अकस्मात् धन की आगत अवरुद्ध हो गयी। कार्य को किसी की बद्नजर लग गयी। बांधना कुछ करने कराने वाली जैसी बातें सामान्यतया मैं नहीं मानता हूॅ। क्योंकि ऐसी बातें अधिकांषतः उस अबौद्धिक वर्ग के तांत्रिक-ज्योतिष द्वारा फैलायी जाती हैं जो पहले तो इन बातों से लोगों में एक अज्ञात भय पैदा करते हैं फिर उसको धन आदि किन्हीं बातों से कैष कराते हैं। ऐसा भी नहीं है कि ‘कुछ’ होता नहीं है, होता अवष्य है परन्तु वह होता केवल 5-10 प्रतिषत ही है। इसलिए सर्वप्रथम तो मन में ऐसी बात पनपने ही न दें। स्वस्थ मानसिकता और प्रभु में अटूट आस्था रख कर अपना कर्म और धर्म करते रहें। फिर भी किन्हीं ऐसी बातों से भयपूर्ण विपरीत स्थति बनने लगे तो एक उपाय अवष्य करें। उन्नति के मार्ग पुनः प्रषस्त होने लगेंगे। दुकानदारों के लिए तो ये प्रयोग बहुत ही प्रभावषाली सिद्ध हुआ है।

किसी भी शनिवार को दुकान बंद करने से पूर्व उसमें एक मुठठी साबुत उड़द की दाल बिखेर दें। दुकान के प्रवेष द्वार पर ( जिससे अधिकांषतः आना-जाना हो) बाहर से अंदर जाते समय बायीं ओर धरती पर हल्दी के घोल से स्वास्तिक बना लें। इस पर कच्चे सूत के एक धागे का छोर रखें। दुकान के अंदर क्रमषः बांये से दांये चलते हुए सूत इस प्रकार छोड़ते चलें कि अंदर से पूरी दुकान सूत से बंध जाये। सूत का दूसरा छोर बांयीं ओर बने स्वास्तिक पर समाप्त करें। धूप-दीप आदि कोई उपक्रम करते हैं तो आपके अपने ऊपर है। अब दुकान को बंद करके निःषब्द घर लौट आयें। अगले दिन अर्थात् रविवार को प्रातः काल 7-8 बजे से पूर्व दुकान खोलें। जिस क्रम से धागा बिछाया था उसके विपरीत क्रम अर्थात् दायें से बायें घूमते हुए धागा उठा कर समेंट लें। जितने बिखरे हुए दाल के दानें मिल सकते हों वह भी जमां करलें। इन्हें हाथ से चुनें, झाड़ू से एकत्र न करें। धागे को वहां ही जला दें। इसकी राख, उड़द की दाल के दानें पहले से क्रय किए हुए 1-2 किलो बाजरे में मिला लें। यह सब लेकर कहीं किसी नदी के किनारे बैठ जाएं। थोड़ा से बाजरा अपने एक हाथ में रखें। दूसरे से बहते हुए पानी को इस पर छोड़ें। बाजरे को धीरे-धीरे उंगलियों के मध्य बनें छिद्रों से गिर कर नदी में बहने दें। जब एक हाथ थक जाए तो यह क्रम हाथ बदल कर तब तक करते रहें जब तक कि सारा बाजरा विसर्जित न हो जाए। इसके बाद निःषब्द घर अथवा दुकान लौट जाएं। इस पूरे काल में कोई भी लक्ष्मी प्रदायक मंत्र निरंतर जपते रहें। ‘‘¬ नमो नारायणाय’’ मंत्र सबसे अधिक प्रभावषाली सिद्ध होता है, ऐसा अनेक दुकान दारों को अनुभूत हुआ है। इस बात का ध्यान अवष्य रखें कि बाजरा बहाने में कुछ समय अवष्य लगे। ऐसा न हो कि जल्दी से वह छोड़ कर आप लौट आएं। एक शब्द पुनः कहूंगा, इस उपाय से आपको अच्छा अवष्य लगेगा।

रोजगार प्राप्ति हेतु ये करे उपाय---


रोजगार प्राप्ति हेतु ये करे उपाय---

उपाय 01 ---शनिवार को हनुमान् जी के मन्दिर में जाकर उन्हें सवा किलो मोतीचूर के लड्डुओं का भोग लगाएँ । घी का दीपक जलाकर तथा वहीं बैठकर निम्नलिखित मन्त्र का लाल चन्दन अथवा मूँगे की माला से 108 बार जप करें -

“कवन सो काज कठिन जग माहीँ ।

जो नहीं होय तात तुम पाहिं ।।”

इसके बाद 40 दिनों तक नित्य अपने घर में बने पूजा-स्थल में अथवा हनुमान् जी के मन्दिर में मन-ही-मन इस मन्त्र का 108 बार जप करें । इन 40 दिनों के अन्दर ही अथवा 40 दिन पूरे होने के बाद आपको अच्छे रोजगार की प्राप्ति होगी ।


उपाय 02 ---शनिवार, मंगलवार अथवा अन्य किसी शुभ मुहूर्त में रात्रि 10 बजे के पश्चात् भगवान् श्रीराम, भरत, लक्ष्मण आदि की पूजा करने के पश्चात् भरत जी से रोजगार प्रदान करने की प्रार्थना करें । जब वे किसी पर प्रसन्न होते हैं, तो अतिशीघ्र अच्छा रोजगार प्राप्त होता है । इसके बाद निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए गाय के घी से 108 आहुतियाँ दें । अब अगले दिन से नित्य इस मन्त्र का प्रातःकाल उठते ही बिना किसी से बोले 21 बार उच्चारण करें, शीघ्र ही आपकी मनोकामना पूर्ण होगी -

“विश्व भरन पोषन कर जोई ।

ताकर नाम भरत अस होई ।।”


उपाय 03 ---मंगलवार को अथवा रात्रिकाल में निम्नलिखित मन्त्र का अकीक की माला से 108 बार जप करें । इसके बाद नित्य इसी मन्त्र का स्नान करने के बाद 11 बार जप करें । इसके प्रभाव से अतिशीघ्र ही आपको मनोनुकूल रोजगार की प्राप्ति होगी ।

यह मन्त्र माँ भवानी को प्रसन्न करता है, अतः जप के दौरान अपने सम्मुख उनका चित्र भी रखें ।

” ॐ हर त्रिपुरहर भवानी बाला

राजा मोहिनी सर्व शत्रु ।

विंध्यवासिनी मम चिन्तित फलं

देहि देहि भुवनेश्वरी स्वाहा ।।”



उपाय 04 ---शनैश्चरी अमावस्या को सन्ध्या के समय एक नींबू लें और उसके चार टुकड़े करके किसी चौराहे पर चारों दिशाओं में फेंक दें । इसके प्रभाव से अतिशीघ्र ही आपको अच्छे रोजगार की प्राप्ति होगी ।

ऐसे करे गोमती चक्र का प्रयोग धन/संपदा प्राप्ति हेतु---


१॰ सात गोमती चक्रों को शुक्ल पक्ष के प्रथम अथवा दीपावली पर लाल वस्त्र में अभिमंत्रित कर पोटली बना कर धन स्थान पर रखें ।

२॰ यदि आपको अचानक आर्थिक हानि होती हो, तो किसी भी मास के प्रथम सोमवार को २१ अभिमन्त्रित गोमती चक्रों को पीले अथवा लाल रेशमी वस्त्र में बांधकर धन रखने के स्थान पर रखकर हल्दी से तिलक करें । फिर मां लक्ष्मी का स्मरण करते हुए उस पोटली को लेकर सारे घर में घूमते हुए घर के बाहर आकर किसी निकट के मन्दिर में रख दें ।

३॰ यदि आपके परिवार में खर्च अधिक होता है, भले ही वह किसी महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए ही क्यों न हो, तो शुक्रवार को २१ अभिमन्त्रित गोमती चक्र लेकर पीले या लाल वस्त्र पर स्थान देकर धूप-दीप से पूजा करें । अगले दिन उनमें से चार गोमती चक्र उठाकर घर के चारों कोनों में एक-एक गाड़ दें । १३ चक्रों को लाल वस्त्र में बांधकर धन रखने के स्थान पर रख दें और शेष किसी मन्दिर में अपनी समस्या निवेदन के साथ प्रभु को अर्पित कर दें ।

४॰ यदि आप अधिक आर्थिक समृद्धि के इच्छुक हैं, तो अभिमंत्रित गोमती चक्र और काली हल्दी को पीले कपड़े में बांधकर धन रखने के स्थान पर रखें ।

५॰ यदि आपके गुप्त शत्रु अधिक हों अथवा किसी व्यक्ति की काली नज़र आपके व्यवसाय पर लग गई हो, तो २१ अभिमंत्रित गोमती चक्रों व तीन लघु नारियल को पूजा के बाद पीले वस्त्र में बांधकर मुख्य द्वारे पर लटका दें ।

६॰ यदि आपको नजर जल्दी लगती हो, तो पाँच गोमती चक्र लेकर किसी सुनसान स्थान पर जायें । फिर तीन चक्रों को अपने ऊपर से सात बार उसारकर अपने पीछे फेंक दें तथा पीछे देखे बिना वापस आ जायें । बाकी बचे दो चक्रों को तीव्र प्रवाह के जल में प्रवाहीत कर दें ।

७॰ यदि आप कितनी भी मेहनत क्यों न करें, परन्तु आर्थिक समृद्धि आपसे दूर रहती हो और आप आर्थिक स्थिति से संतुष्ट न होते हों, तो शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार को २१ अभिमंत्रित गोमती चक्र लेकर घर के पूजा स्थल में मां लक्ष्मी व श्री विष्णु की तस्वीर के समक्ष पीले रेशमी वस्त्र पर स्थान दें । फिर रोली से तिलक कर प्रभु से अपने निवास में स्थायी वास करने का निवेदन तथा समृद्धि के लिए प्रार्थना करके हल्दी की माला से “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र की तीन माला जप करें । इस प्रकार सवा महीने जप करने के बाद अन्तिम दिन किसी वृद्ध तथा ९ वर्ष से कम आयु की एक बच्ची को भोजन करवाकर दक्षिणा देकर विदा करें ।

८॰ यदि आपके बच्चे अथवा परिवार के किसी सदस्य को जल्दी-जल्दी नजर लगती हो, तो आप शुक्ल पक्ष की प्रथमा तिथि को ११ अभिमंत्रित गोमती चक्र को घर के पूजा स्थल में मां दुर्गा की तस्वीर के आगे लाल या हरे रेशमी वस्त्र पर स्थान दें । फिर रोली आदि से तिलक करके नियमित रुप से मां दुर्गा को ५ अगरबत्ती अर्पित करें । अब मां दुर्गा का कोई भी मंत्र जप करें । जप के बाद अगरबत्ती के भभूत से सभी गोमती चक्रों पर तिलक करें । नवमी को तीन चक्र पीड़ित पर से उसारकर दक्षिण दिशा में फेंक दें और एक चक्र को हरे वस्त्र में बांधकर ताबीज का रुप देकर मां दुर्गा की तस्वीर के चरणों से स्पर्श करवाकर पीड़ित के गले में डाल दें । बाकि बचे सभी चक्रों को पीड़ित के पुराने धुले हुए वस्त्र में बांधकर अलमारी में रख दें ।

९॰ यदि किसी का स्वास्थ्य अधिक खराब रहता हो अथवा जल्दी-जल्दी अस्वस्थ होता हो, तो चतुर्दशी को ११ अभिमंत्रित गोमती चक्रों को सफेद रेशमी वस्त्र पर रखकर सफेद चन्दन से तिलक करें । फिर भगवान् मृत्युंजय से अपने स्वास्थ्य रक्षा का निवेदन करें और यथा शक्ति महामृत्युंजय मंत्र का जप करें । पाठ के बाद छह चक्र उठाकर किसी निर्जन स्थान पर जाकर तीन चक्रों को अपने ऊपर से उसारकर अपने पीछे फेंक दें और पीछे देखे बिना वापस आ जायें । बाकि बचे तीन चक्रों को किसी शिव मन्दिर में भगवान् शिव का स्मरण करते हुए शिवलिंग पर अर्पित कर दें और प्रणाम करके घर आ जायें । घर आकर चार चक्रों को चांदी के तार में बांधकर अपने पंलग के चारों पायों पर बांध दें तथा शेष बचे एक को ताबीज का रुप देकर गले में धारण करें ।

१०॰ यदि आपका बच्चा अधिक डरता हो, तो शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार को हनुमान् जी के मन्दिर में जाकर एक अभिमंत्रित गोमती चक्र पर श्री हनुमानजी के दाएं कंधे के सिन्दूर से तिलक करके प्रभु के चरणों में रख दें और एक बार श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें । फिर चक्र उठाकर लाल कपड़े में बांधकर बच्चे के गले में डाल दें ।

११॰ यदि व्यवसाय में किसी कारण से आपका व्यवसाय लाभदायक स्थिति में नहीं हो, तो शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार को ३ गोमती चक्त, ३ कौड़ी व ३ हल्दी की गांठ को अभिमंत्रित कर किसी पीले कपड़े में बांधकर धन-स्थान पर रखें ।

नजर्दोश से बंधी दूकान ( तंत्र-मन्त्र प्रयोग वाली)कैसे खोलें ?


नजर्दोश से बंधी दूकान ( तंत्र-मन्त्र प्रयोग वाली)कैसे खोलें ?–

कभी-कभी देखने में आता है कि खूब चलती हुई दूकान भी एकदम से ठप्प हो जाती है । जहाँ पर ग्राहकों की भीड़ उमड़ती थी, वहाँ सन्नाटा पसरने लगता है । यदि किसी चलती हुई दुकान को कोई तांत्रिक बाँध दे, तो ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, अतः इससे बचने के लिए निम्नलिखित प्रयोग करने चाहिए -

१॰ दुकान में लोबान की धूप लगानी चाहिए ।

२॰ शनिवार के दिन दुकान के मुख्य द्वार पर बेदाग नींबू एवं सात हरी मिर्चें लटकानी चाहिए ।

३॰ नागदमन के पौधे की जड़ लाकर इसे दुकान के बाहर लगा देना चाहिए । इससे बँधी हुई दुकान खुल जाती है ।

४॰ दुकान के गल्ले में शुभ-मुहूर्त में श्री-फल लाल वस्त्र में लपेटकर रख देना चाहिए ।

५॰ प्रतिदिन संध्या के समय दुकान में माता लक्ष्मी के सामने शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए ।

६॰ दुकान अथवा व्यावसायिक प्रतिष्ठान की दीवार पर शूकर-दंत इस प्रकार लगाना चाहिए कि वह दिखाई देता रहे ।

७॰ व्यापारिक प्रतिष्ठान तथा दुकान को नजर से बचाने के लिए काले-घोड़े की नाल को मुख्य द्वार की चौखट के ऊपर ठोकना चाहिए ।

८॰ दुकान में मोरपंख की झाडू लेकर निम्नलिखित मंत्र के द्वारा सभी दिशाओं में झाड़ू को घुमाकर वस्तुओं को साफ करना चाहिए । मंत्रः- “ॐ ह्रीं ह्रीं क्रीं”

९॰ शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी के सम्मुख मोगरे अथवा चमेली के पुष्प अर्पित करने चाहिए ।

१०॰ यदि आपके व्यावसायिक प्रतिष्ठान में चूहे आदि जानवरों के बिल हों, तो उन्हें बंद करवाकर बुधवार के दिन गणपति को प्रसाद चढ़ाना चाहिए ।

११॰ सोमवार के दिन अशोक वृक्ष के अखंडित पत्ते लाकर स्वच्छ जल से धोकर दुकान अथवा व्यापारिक प्रतिष्ठान के मुख्य द्वार पर टांगना चाहिए । सूती धागे को पीसी हल्दी में रंगकर उसमें अशोक के पत्तों को बाँधकर लटकाना चाहिए ।

१२॰ यदि आपको यह शंका हो कि किसी व्यक्ति ने आपके व्यवसाय को बाँध दिया है या उसकी नजर आपकी दुकान को लग गई है, तो उस व्यक्ति का नाम काली स्याही से भोज-पत्र पर लिखकर पीपल वृक्ष के पास भूमि खोदकर दबा देना चाहिए तथा इस प्रयोग को करते समय किसी अन्य व्यक्ति को नहीं बताना चाहिए । यदि पीपल वृक्ष निर्जन स्थान में हो, तो अधिक अनुकूलता रहेगी ।

१३॰ कच्चा सूत लेकर उसे शुद्ध केसर में रंगकर अपनी दुकान पर बाँध देना चाहिए ।

१४॰ हुदहुद पक्षी की कलंगी रविवार के दिन प्रातःकाल दुकान पर लाकर रखने से व्यवसाय को लगी नजर समाप्त होती है और व्यवसाय में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है ।

१५॰ कभी अचानक ही व्यवसाय में स्थिरता आ गई हो, तो निम्नलिखित मंत्र का प्रतिदिन ग्यारह माला जप करने से व्यवसाय में अपेक्षा के अनुरुप वृद्धि होती है । मंत्रः- “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नमो भगवती माहेश्व

नवग्रह शांतिदायक टोटके--–(पंडित आशु बहुगुणा)--- सूर्यः-

१॰ सूर्यदेव के दोष के लिए खीर का भोजन बनाओ और रोजाना चींटी के बिलों पर रखकर आवो और केले को छील कर रखो ।

२॰ जब वापस आवो तभी गाय को खीर और केला खिलाओ ।

३॰ जल और गाय का दूध मिलाकर सूर्यदेव को चढ़ावो। जब जल चढ़ाओ, तो इस तरह से कि सूर्य की किरणें उस गिरते हुए जल में से निकल कर आपके मस्तिष्क पर प्रवाहित हो ।

४॰ जल से अर्घ्य देने के बाद जहाँ पर जल चढ़ाया है, वहाँ पर सवा मुट्ठी साबुत चावल चढ़ा देवें ।

चन्द्रमाः-

१॰ पूर्णिमा के दिन गोला, बूरा तथा घी मिलाकर गाय को खिलायें । ५ पूर्णमासी तक गाय को खिलाना है ।

२॰ ५ पूर्णमासी तक केवल शुक्ल पक्ष में प्रत्येक १५ दिन गंगाजल तथा गाय का दूध चन्द्रमा उदय होने के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य दें । अर्घ्य देते समय ऊपर दी गई विधि का इस्तेमाल करें ।

३॰ जब चाँदनी रात हो, तब जल के किनारे जल में चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को हाथ जोड़कर दस मिनट तक खड़ा रहे और फिर पानी में मीठा प्रसाद चढ़ा देवें, घी का दीपक प्रज्जवलित करें । उक्त प्रयोग घर में भी कर सकते हैं, पीतल के बर्तन में पानी भरकर छत पर रखकर या जहाँ भी चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब पानी में दिख सके वहीं पर यह कार्य कर सकते हैं ।

नवग्रह शान्ति मन्त्र ( ग्रहों के कुप्रभाव को शांत करने के लिए मंत्र )

नवग्रह शान्ति मन्त्र ( ग्रहों के कुप्रभाव को शांत करने के लिए मंत्र )

सूर्य ग्रह की शांति के लिए आप शुक्ल पक्ष के रविवार से उपवास आरंभ कर सकते हैं। रविवार को नमक का सेवन नहीं करना चाहिए और गेहूं की रोटी व गुड़ से अथवा गुड़ से बने दलिया का सेवन करना चाहिए। साथ ही पांच माला सूर्य के बीज मंत्र का जप करें,

ॐ हृं हृं स: सूर्याय नम:।

चंद्रमा की शांति के लिए आप श्रावण, चैत्र, वैशाख, कार्तिक अथवा मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष के सोमवार से उपवास आरंभ कर सकते हैं। इसके अलावा प्रतिदिन “ॐ नम: शिवाय” मंत्र का जप पांच माला करें। सोमवार के दिन पांच माला चंद्रमा के बीज मंत्र का भी जप करना चाहिए। इस दिन शिव-पार्वती पर श्वेत पुष्प, सुपारी, अक्षत, बिल्व पत्र आदि चढ़ाकर ग्रह शांति की प्रार्थना करें।

ऊं श्रां श्रीं श्रौं स: चंद्रमसे नम

मंगल ग्रह की शांति के लिए मंगलवार को उपवास करना चाहिए। यह व्रत 21 सप्ताह तक करने से पूर्ण फल मिलता है। इस दिन नमक छोड़ दें और लाल पुष्प, फल, ताम्र बर्तन, नारियल आदि द्वारा हनुमान जी की पूजन करके उन्हें सिंदूर अर्पित करना चाहिए तथा लाल चंदन की माला से पांच माला यह मंत्र जपे।

ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:

बुध की शांति के लिए लिए बुधवार का उपवास रखना चाहिए और भगवान विष्णु की पूरे विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। अगर आप 21 या 31 बुधवार के व्रत का संकल्प लें, तो बेहतर होगा। व्रत के दिन श्री विष्णु सहस्रनाम का पांच या ग्यारह बार पाठ करें। यह पाठ प्रतिदिन पांच बार ही करना श्रेयस्कर माना गया है। घी, मूंग की दाल से बने पदार्थ से बुधवार को परहेज करें और इस मंत्र की पाँच माला जपे।

ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:

गुरु या बृहस्पति की शांति के लिए शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार से उपवास आरंभ किया जाए, तो उपासक की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। व्रत के दिन स्नानादि के बाद पीले वस्त्र धारण करके पीले फूल, पीला नैवेद्य, गुड़, चने की दाल, हल्दी या पीले चंदन से सत्यनारायण भगवान की आराधना करें। साथ ही इस मंत्र का पांच माला जप करें।

ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरुवे नम:

शुक्र की शांति के लिए उपवास लक्ष्मी या वैभव लक्ष्मी के समक्ष श्वेत चंदन, श्वेत पुष्प, मावा की मिठाई, दीया, धूप आदि से पूजन करें और इस मंत्र का जप करें। यह व्रत 21 शुक्रवार तक करने तथा प्रतिदिन श्रीसूक्त का पाठ करने से लाभ होता है

ऊं द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:

शनि ग्रह की शांति के लिए: शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से यह उपवास आरंभ किया जा सकता है। 11 या 21 शनिवार तक व्रत करें, तो लाभप्रद होगा। इस दिन स्नान से पहले अपने ऊपर से 20-25 ग्राम सरसों या तिल के तेल में काले तिल डालकर सात बार सिर से पांव तक उतार लें और शनिदेव पर अर्पित करें। इसके बाद स्नान करके नीले वस्त्र पहनें। लौह निर्मित शनि प्रतिमा पर पंचामृत से स्नान कराएं तथा इस मंत्र का जप करें।

ॐ शं शनैश्चराय नम:

राहु की शांति के लिए: यह छाया ग्रह है, इसलिए इसके लिए कोई रात या दिन नहीं होता। राहु का उपवास शनिवार को ही करना चाहिए। इस दिन या प्रतिदिन पक्षियों को बाजरा खिलाएं और राहु मंत्र का 21 बार उच्चारण करें। साथ ही इस मंत्र का जप करें।

ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:

केतु की शांति के लिए: यह भी एक छाया ग्रह है, इसलिए इसकी कोई राशि या दिन नहीं होता। विद्वानों के अनुसार केतु मंगल के समान ही है। इसलिए इसका व्रत भी मंगलवार को ही करना चाहिए। इस दिन नमक रहित भोजन करें और बीज मंत्र का जप करें।

ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: केतवे नम:

अशांत ग्रह को शांत करने के लिए सामान्य गृहस्थों के लिए कठोर तप के विकल्प के रूप में उपवास का विधान शास्त्रों में बताया गया है, जिससे वह किसी ग्रह की भी उपासना कर सकते हैं

पारद शिवलिंग



पारद शिवलिंग ( Parad Shivling )
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आजकल मान्यता है घर में शिवलिंग नहीं रखते, मै आपको बता दूँ घर मै मार्वेल, पत्थर आदि के शिवलिंग नहीं रखते , हर घर मै "पारद शिवलिंग" जरूर होना चाहिए | पारद शिवलिंग घर की नकारात्मक उर्जा और वास्तुदोष को खत्म करता है | जिनकी जन्मकुंडली मे चंद्रमा , नीच का है , मन अशांत रहता है, मन मे नेगेटिव बिचार ज्यादा आते है, उनको "पारद शिवलिंग" पर नियमित कच्चा दूध - सफ़ेद फुल चढ़ाना चाहिए |

पुरे परिवार की समृधी के लिए प्रत्येक साल इस पर दूध से रुद्राभिषेक करवाना चाहिए | क्योकि शिव स्वयं भूत-प्रेत , तांत्रिक प्रयोगों के स्वामी है , अतः इसकी नियमित आराधना करने से भूत-प्रेत बाधा , नज़र बाधा, आदि तुरंत दूर हो जाती है|

अगर कोई ब्यक्ति लगातार बीमार रहता हो , दवाई का असर न होता हो , निम्न मंत्र का 108 वार पाठ करके, इस पर चढ़ाया हुआ गंगाजल एक चम्मच रोगी को पिला दे , रोगी ठीक होने लगेगा |

." ॐ जूं सः "

ये अवश्य ध्यान रखे , पारद - शिवलिंग उच्च कोटि का ख़रीदे | शुभ- मुहूर्त मे घर मे स्थापित करे|

तुलसी के तंत्रिकीय और औषधीय उपयोग...

तुलसी के तंत्रिकीय और औषधीय उपयोग...

[१] तुलसी के बीज 5 ग्राम रोजाना रात को गर्म दूध के साथ
लेने से शीघ्र वीर्य पतन अथवा वीर्य की कमी की समस्या दूर
होती है |

[२] तुलसी के बीज 5 ग्राम रोजाना रात को गर्म दूध के साथ
लेने से नपुंसकता दूर होती है और यौन-शक्ति में
बढोतरि होती है।

[३] मासिक धर्म में अनियमियता:: जिस दिन मासिक आए उस
दिन से जब तक मासिक रहे उस दिन तक तुलसी के बीज 5-5
ग्राम सुबह और शाम पानी या दूध के साथ लेने से मासिक
की समस्या ठीक होती है और जिन महिलाओ को गर्भधारण में
समस्या है वो भी ठीक होती है

[४] तुलसी के पत्ते गर्म तासीर के होते है पर सब्जा शीतल
होता है . इसे फालूदा में इस्तेमाल किया जाता है . इसे भिगाने से
यह जेली की तरह फुल जाता है . इसे हम दूध या लस्सी के
साथ थोड़ी देशी गुलाब की पंखुड़ियां दाल कर ले तो गर्मी में बहुत
ठंडक देता है .इसके अलावा यह पाचन
सम्बन्धी गड़बड़ी को भी दूर करता है .यह पित्त घटाता है ये
त्रीदोषनाशक , क्षुधावर्धक है

[५] प्रतिदिन चार पत्तियां तुलसी की सुबह खाली पेट ग्रहण
करने से मधुमेह,रक्त विकार ,वाट-पित्त दोष आदि दूर होते हैं |

[६] तुलसी के समीप आसन लगाकर कुछ दिन बैठने से श्वास के
रोग ,अस्थमा आदि से जल्दी छुटकारा मिल सकता है |

[७] तुलसी का गमला रसोई के पास रखने से पारिवारिक कलह
समाप्त होती है |

[८] वास्तु दोष दूर करने के लिए तुलसी के पौधे अग्नि कोण
अर्थात दक्षिण पूर्व से लेकर वायव्य अर्थात उत्तर-पश्चिम
तक के खली स्थान में लगा सकते हैं ,अथवा गमले में रख सकते
हैं |

[९] पूर्व दिशा की खिड़की के पास रखने से जिद्दी पुत्र का हठ
दूर होता है |

[१०] पूर्व दिशा में रखे तुलसी के पौधे में से तीन पत्ते कुछ दिन
खिलाने से अनियंत्रित संतान आज्ञानुसार व्यवहार कर
सकती है |

[११] अग्नि कोण में स्थापित तुलसी के पौधे को कन्या अगर
नित्य अगर जल अर्पित कर प्रदक्षिणा करे तो उसके विवाह
की बाधाएं दूर होती हैं और शीघ्र उत्तम विवाह की संभावनाएं
बनती हैं |

[१२] दक्षिण -पश्चिम में रखे तुलसी के गमले पर
प्रति शुक्रवार को सुबह कच्चा दूध अर्पण करने और मिठाई
का भोग लगा किसी सुहागिन स्त्री को मीठी वस्तु देने से
व्यवसाय की सफ़लता बढती है और कारोबार ठीक होता है |

[१३] नित्य पंचामृत में तुलसी मिलाकर शालिग्राम का अभिषेक
करने से घर के वास्तु दोष दूर होते हैं|
[१४] तुलसी के १६ बीज किसी सफ़ेद कपडे में बांधकर सोमवार
को कार्यस्थल पर सुबह दबा देने से वहां सम्मान
की वृद्धि होती है और अधिकारियों की अनुकूलता प्राप्त होती है|

[१५] ८ तुलसी के पत्ते और ८ काली मिर्च की पोटली बनाकर
बांह में बाँधने से भूत-प्रेत आदि की समस्या दूर होती है |

ध्यान रहे तुलसी पूजनीय हें , इसका अपमान / अनादर न करें !

Src : Internet

सोलह सिद्धिया...

सोलह सिद्धिया...

1. वाक् सिद्धि : जो भी वचन बोले जाए वे व्यवहार में पूर्ण हो, वह वचन कभी व्यर्थ न जाये, प्रत्येक शब्द का महत्वपूर्ण अर्थ हो, वाक् सिद्धि युक्त व्यक्ति में श्राप अरु वरदान देने की क्षमता होती हैं!

2. दिव्य दृष्टि: दिव्यदृष्टि का तात्पर्य हैं कि जिस व्यक्ति के सम्बन्ध में भी चिन्तन किया जाये, उसका भूत, भविष्य और वर्तमान एकदम सामने आ जाये, आगे क्या कार्य करना हैं, कौन सी घटनाएं घटित होने वाली हैं, इसका ज्ञान होने पर व्यक्ति दिव्यदृष्टियुक्त महापुरुष बन जाता हैं!

3. प्रज्ञा सिद्धि : प्रज्ञा का तात्पर्य यह हें की मेधा अर्थात स्मरणशक्ति, बुद्धि, ज्ञान इत्यादि! ज्ञान के सम्बंधित सारे विषयों को जो अपनी बुद्धि में समेट लेता हें वह प्रज्ञावान कहलाता हें! जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से सम्बंधित ज्ञान के साथ-साथ भीतर एक चेतनापुंज जाग्रत रहता हें!

4. दूरश्रवण : इसका तात्पर्य यह हैं की भूतकाल में घटित कोई भी घटना, वार्तालाप को पुनः सुनने की क्षमता!

5. जलगमन : यह सिद्धि निश्चय ही महत्वपूर्ण हैं, इस सिद्धि को प्राप्त योगी जल, नदी, समुद्र पर इस तरह विचरण करता हैं मानों धरती पर गमन कर रहा हो!

6. वायुगमन : इसका तात्पर्य हैं अपने शरीर को सूक्ष्मरूप में परिवर्तित कर एक लोक से दूसरे लोक में गमन कर सकता हैं, एक स्थान से दूसरे स्थान पर सहज तत्काल जा सकता हैं!

7. अदृश्यकरण : अपने स्थूलशरीर को सूक्ष्मरूप में परिवर्तित कर अपने आप को अदृश्य कर देना! जिससे स्वयं की इच्छा बिना दूसरा उसे देख ही नहीं पाता हैं!

8. विषोका : इसका तात्पर्य हैं कि अनेक रूपों में अपने आपको परिवर्तित कर लेना! एक स्थान पर अलग रूप हैं, दूसरे स्थान पर अलग रूप हैं!

9. देवक्रियानुदर्शन : इस क्रिया का पूर्ण ज्ञान होने पर विभिन्न देवताओं का साहचर्य प्राप्त कर सकता हैं! उन्हें पूर्ण रूप से अनुकूल बनाकर उचित सहयोग लिया जा सकता हैं!

10. कायाकल्प : कायाकल्प का तात्पर्य हैं शरीर परिवर्तन! समय के प्रभाव से देह जर्जर हो जाती हैं, लेकिन कायाकल्प कला से युक्त व्यक्ति सदैव तोग्मुक्त और यौवनवान ही बना रहता हैं!

11. सम्मोहन : सम्मोहन का तात्पर्य हैं कि सभी को अपने अनुकूल बनाने की क्रिया! इस कला को पूर्ण व्यक्ति मनुष्य तो क्या, पशु-पक्षी, प्रकृति को भी अपने अनुकूल बना लेता हैं!

12. गुरुत्व : गुरुत्व का तात्पर्य हैं गरिमावान! जिस व्यक्ति में गरिमा होती हैं, ज्ञान का भंडार होता हैं, और देने की क्षमता होती हैं, उसे गुरु कहा जाता हैं! और भगवन कृष्ण को तो जगद्गुरु कहा गया हैं!

13. पूर्ण पुरुषत्व : इसका तात्पर्य हैं अद्वितीय पराक्रम और निडर, एवं बलवान होना! श्रीकृष्ण में यह गुण बाल्यकाल से ही विद्यमान था! जिस के कारन से उन्होंने ब्रजभूमि में राक्षसों का संहार किया! तदनंतर कंस का संहार करते हुए पुरे जीवन शत्रुओं का संहार कर आर्यभूमि में पुनः धर्म की स्थापना की!

14. सर्वगुण संपन्न : जितने भी संसार में उदात्त गुण होते हैं, सभी कुछ उस व्यक्ति में समाहित होते हैं, जैसे – दया, दृढ़ता, प्रखरता, ओज, बल, तेजस्विता, इत्यादि! इन्हीं गुणों के कारण वह सारे विश्व में श्रेष्ठतम व अद्वितीय मन जाता हैं, और इसी प्रकार यह विशिष्ट कार्य करके संसार में लोकहित एवं जनकल्याण करता हैं!

15. इच्छा मृत्यु : इन कलाओं से पूर्ण व्यक्ति कालजयी होता हैं, काल का उस पर किसी प्रकार का कोई बंधन नहीं रहता, वह जब चाहे अपने शरीर का त्याग कर नया शरीर धारण कर सकता हैं!

16. अनुर्मि : अनुर्मि का अर्थ हैं-जिस पर भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी और भावना-दुर्भावना का कोई प्रभाव न हो!


Sunday, September 28, 2014

पूर्वजन्म सन्तान फल

पूर्वजन्म सन्तान फल
*पूर्व जन्म के कर्मों से ही हमें इस जन्म में
माता-पिता, भाई-बहिन,पति पत्नी- प्रेमिका, मित्र-शत्रु, सगे-सम्बन्धी इत्यादि संसार के जितने भी रिश्ते नाते है। सब मिलते है।
क्योंकि इन सबको हमें या तो कुछ देना होता है या इनसे कुछ लेना होता है।
वेसे ही संतान के रूप में हमारा कोई पूर्व जन्म का सम्बन्धी ही आकर जन्म लेता है।
जिसे शास्त्रों में चार प्रकार का बताया गया है।
1) ऋणानुबन्ध :- पूर्व जन्म का कोई एसा जीव
जिससे आपने ऋण लिया हो या उसका किसी भी प्रकार से धन नष्ट किया हो तो वो आपके घर में संतान बनकर जन्म लेगा और आपका धन बीमारी में या व्यर्थ के कार्यों में तब तक नष्ट करेगा जब तक उसका हिसाब पूरा ना हो।
2) शत्रु पुत्र :-पूर्व जन्म का कोई दुश्मन आपसे बदला लेने के लिये आपके घर में संतान बनकर आयेगा औए बडा होने पर माता पिता से मारपीट झगडा या उन्हे सारी जिन्दगी किसी भी प्रकार से सताता ही रहेगा !
3) उदासीन :-इस प्रकार की सन्तान माता पिता को न तो कष्ट देती है ओर ना ही सुख। विवाह होने पर यह माता- पिता से अलग होजाते है।
4)सेवक पुत्र :-पूर्व जन्म में यदि आपने किसी की खूब सेवा कि है तो वह अपनी कि हुई सेवा का ऋण उतारने के लियेआपकी सेवा करने के लिये पुत्र/पुत्री बनकर आता है।
आप यह ना समझे कि यह सब बाते केवल मनुष्य पर ही लागु होती है।
इन चार प्रकार में कोई सा भी जीव भी आ सकता है। जैसे आपने किसी गाय कि निःस्वार्थ भाव से सेवा कि है तो वह भी पुत्र या पुत्री बनकर आ सकती है। यदि आपने गाय को स्वार्थ वश पालकर उसके दूध देना बन्द करने के पश्चात उसे घर से निकाल दिया हो तो वह ऋणानुबन्ध पुत्र या पुत्री बनकर जन्म लेगी।
यदि आपने किसी निरपराध जीव को सताया है तो वह आपके जीवन में शत्रु बनकर आयेगा। इस लिये जीवन में कभी किसी का बुरा नहीं करे।
क्यों कि प्रकृति का नियम है कि आप जो भी करोगे। उसे वह आपको सौ गुना करके देगी। यदि आपने किसी को एक रूपया दिया है तो समझो आपके खाते में सौ रूपये जमा हो गये है।
यदि आपने किसी का एक रूपया छीना है तो समझो आपकी जमा राशि से सौ रूपये निकल गये।

Saturday, September 27, 2014

नियमों का करेंगे पालन तभी सिद्ध होंगे उपाय

नियमों का करेंगे पालन तभी सिद्ध होंगे उपाय
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कुछ परिस्थितियों में अगर आप बार बार मेहनत करने पर भी कार्य में सफल
नहीं हो पा रहे और आपका आत्मविश्वास बार बार धोखा दे रहा हे
तो ज्योतिष के माध्यम से आप अपने प्रतिकुल ग्रहों को अनुकुल करने
का प्रयास करते हैं। आप उपाय करने की ठान तो लेते हैं आप उपाय
भी करते हो कुछ लोगो को फायदा होता है कुछ लोगो को नहीं -- में
आपसे कहना चाहूंगी की उपाय करने के भी कुछ नियम होते हैंयदि आप उन
नियमो के आधार पर उपाय करे तो अबश्य सिद्ध होंगे उपाय जैसे--
1 अपनी किसी भी समस्या का समाधान करने के लिए उपाय करें
तो उसके प्रति मन में श्रद्धा रखें।
2 सच्ची भावना से किए गए उपाय अवश्य सिद्ध होते हैं एवं
मनचाही मुरादों की पूर्ति होती है। केवल कार्य की सिद्धि के लिए
अनमने मन से किए गए उपाय अपना प्रभाव नहीं दिखाते।
3 किसी भी उपाय को होंद में लाने के लिए ब्रह्म मूहर्त के बाद एवं सूर्य
अस्त होने से पहले करें, रात को किए गए उपाय विपरीत प्रभाव दे सकते
हैं। जब चन्द्र ग्रहण होता है उस समय जो उपाय होंद में लाए जाते हैं वह
रात के समय ही किए जाते हैं।
5 अगर आप उपाय करने में असमर्थ हैं तो आपका जिन से खून
का रिश्ता हो वह आपके स्थान पर उपाय कर सकते हैं।
ऐसा करना उतना ही फलदाई होगा जितना आपके स्वयं आपने हाथों से
उपाय करना।
6 एक दिन में एक ही उपाय को होंद में लाएं। दो उपाय एक साथ करने से
वह प्रभावहीन हो जाते हैं।
7 उपाय करते समय पंडित जी जो नियम र्निधारित करें उन पर अवश्य अमल
करें अन्यथा उपाय का कोई लाभ नहीं होगा।
8 जितने दिन अथवा जितनी अवधी के लिए उपाय करने को कहा जाए
वैसा ही करें। उस में अपनी सुविधा अनुरूप कोई बदलाव मत लाएं।
10 घर में सूतक अथवा पातक चल रहा हो तो 40 दिन तक उपाय मत करें

Monday, September 22, 2014

22 Reasons To Believe Hinduism Is Based On Science

22 Reasons To Believe Hinduism Is Based On Science

1. वृक्ष
People are advised to worship Neem and Banyan tree in
the morning. Inhaling the air near these trees, is good for
health.
2. योग
If you are trying to look ways for stress management,
there can’t be anything other than Hindu Yoga aasan
Pranayama (inhaling and exhaling air slowly using one of
the nostrils).
3. प्रतिष्ठान
Hindu temples are built scientifically. The place where an
idol is placed in the temple is called ‘Moolasthanam’. This
‘Moolasthanam’ is where earth’s magnetic waves are
found to be maximum, thus benefitting the worshipper.
4.तुलसी
Every Hindu household has a Tulsi plant. Tulsi or Basil
leaves when consumed, keeps our immune system strong
to help prevent the H1N1 disease.
5. मन्त्र
The rhythm of Vedic mantras, an ancient Hindu practice,
when pronounced and heard are believed to cure so many
disorders of the body like blood pressure.
6. तिलक
Hindus keep the holy ash in their forehead after taking a
bath, this removes excess water from your head.
7. कुंकुम
Women keep kumkum bindi on their forehead that protects
from being hypnotised.
8. हस्त ग्रास
Eating with hands might be looked down upon in the west
but it connects the body, mind and soul, when it comes to
food.
9. पत्तल
Hindu customs requires one to eat on a leaf plate. This is
the most eco-friendly way as it does not require any
chemical soap to clean it and it can be discarded without
harming the environment.banana; palash leaves
10. कर्णछेदन
Piercing of baby’s ears is actually part of acupuncture
treatment. The point where the ear is pierced helps in
curing Asthma.
11. हल्दी
Sprinkling turmeric mixed water around the house before
prayers and after. Its known that turmeric has antioxidant,
antibacterial and anti-inflammatory qualities.
12. गोबर
The old practice of pasting cow dung on walls and outside
their house prevents various diseases/viruses as this cow
dung is anti-biotic and rich in minerals.
13. गोमूत्र
Hindus consider drinking cow urine to cure various
illnesses. Apparently, it does balance bile, mucous and
airs and a remover of heart diseases and effect of poison.
14.शिक्षा
The age-old punishment of doing sit-ups while holding the
ears actually makes the mind sharper and is helpful for
those with Autism, Asperger’s Syndrome, learning
difficulties and behavioural problems.
15. दिया
Lighting ‘diyas’ or oil or ghee lamps in temples and house
fills the surroundings with positivity and recharges your
senses.
16.जनोई ‘
Janoyi’, or the string on a Brahmin’s body, is also a part
of Acupressure ‘Janoyi’ and keeps the wearer safe from
several diseases.
17. तोरण
Decorating the main door with ‘Toran’- a string of
mangoes leaves;neem leaves;ashoka leaves actually
purifies the atmosphere.
18.चरणस्पर्श
Touching your elder’s feet keeps your backbone in good
shape.
19. चिताग्नि
Cremation or burning the dead, is one of the cleanest form
of disposing off the dead body.
20. ॐ
Chanting the mantra ‘Om’ leads to significant reduction in
heart rate which leads to a deep form of relaxation with
increased alertness.
21. हनुमान चालीसा
Hanuman Chalisa, according to NASA, has the exact
calculation of the distance between Sun and the Earth.
22.शंख
The ‘Shankh Dhwani’ creates the sound waves by which
many harmful germs, insects are destroyed.The mosquito
breeding is also affected by Shankh blowing and
decreases the spread of malaria.

Sunday, September 21, 2014

लग्न के अनुसार मंत्र का जाप

लग्न के अनुसार मंत्र का जाप
इष्ट को मनाएँ उनके ही मंत्र से ....
इष्ट का बड़ा महत्व होता है। यदि इष्ट का साथ मिल जाए
तो जीवन की मुश्किलें आसान
होता चली जाती हैं। कुंडली में कितने
भी कष्टकर योग हो, इष्ट की कृपा से
जीवन आसान हो जाता है। अतः हर व्यक्ति को अपने इष्ट और
उसके मन्त्र की जानकारी होना जरूरी है।
लग्न कुंडली का नवम भाव इष्ट का भाव होता है और नवम से
नवम होने से पंचम भाव इष्ट का भाव माना जाता है। इस भाव में
जो राशि होती है उसके ग्रह के देवता ही हमारे
इष्ट कहलाते है। उनका मंत्र ही इष्ट मन्त्र कहलाता है।
यहाँ लग्न के अनुसार आपके इष्टदेव और उनके मंत्र
की जानकारी दी जा रही है।
1. मेष लग्न के इष्ट देव हैं विष्णु जी - मंत्र- ऊँ नमो भगवते
वासुदेवाय
2. वृषभ लग्न के इष्ट हैं गणपति जी - मंत्र- ऊँ गं गणपतये
नमः
3. मिथुन लग्न की इष्टदेवी हैं माँ दुर्गा - मंत्र- ऊँ
दुं दुर्गाय नमः
4. कर्क लग्न के इष्ट हैं हनुमान जी - मंत्र- ऊँ हं
हनुमंताय नमः
5. सिंह लग्न के इष्ट है विष्णु जी - मंत्र- ऊँ नमो भगवते
वासुदेवाय
6. कन्या लग्न के इष्ट हैं शिव जी - मंत्र-ऊँ नमः शिवाय
7. तुला लग्न के इष्ट हैं रूद्र जी - मंत्र- ऊँ रुद्राय नमः
8. वृश्चिक लग्न के इष्ट होंगे विष्णु जी - मंत्र- ऊँ गुं गुरुवे
नमः , ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय
9. धनु लग्न के इष्ट है हनुमान जी - मंत्र- ऊँ हं हनुमंताय
नमः
10. मकर लग्न की इष्ट है
देवी भगवती - मंत्र- ऊँ दुं दुर्गाय नमः
11. कुम्भ लग्न के इष्ट है गणपति जी - मंत्र- ऊँ गं गणपतये
नमः
12. मीन लग्न के इष्ट हैं शिव जी - मंत्र- ऊँ
नमः शिवाय
विशेष : इष्ट मंत्र का जाप नियमित रूप से और रोज एक निश्चित समय पर
ही करना चाहिये और कम से कम 108 बार.....

Sunday, May 4, 2014

लाल किताब के अचूक उपाय धन संपत्ति दिलाएं

लाल किताब के अचूक उपाय धन संपत्ति दिलाएं
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Photo: लाल किताब के अचूक उपाय धन संपत्ति दिलाएं
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1 लोहे के पात्र में जल, चीनी, घी तथा दूध का मिश्रण बना कर पीपल के वृक्ष की जड़ में अर्पित करने से घर में लक्ष्मी का वास होता है।

2 कच्ची धानी के तेल से दीपक जलाएं, उसमें लौंग डालकर हनुमान जी की आरती करें। समस्त विध्नों का नाश होगा और धन प्राप्ती के साधन बनने लगेंगे।

3 धनहानि हो रही हो तो बृहस्पतिवार के दिन मुख्य द्वार पर गुलाल से सुंदर रंगोली बनाएं अथवा गुलाल का छिड़काव करके देसी घी का दो मुख वाला दीपक जलाएं। जब दीपक बढ़ जाए तो उसे चलते हुए पानी में परवाह कर दें।

4 मुट्ठी भर काले तिल लेकर परिवार के सभी सदस्यों के सिर पर से सात बार फेर कर घर की उत्तर दिशा में फेंक दें। धनहानि समाप्त हो जाएगी।

5 घर से धन का अभाव दूर करने के लिए घर में सोने का चौरस सिक्का रखें, प्रतिदिन कुत्ते को दूध पिलाएं। घर के सभी कमरों में मोर पंख रखें।

6 आर्थिक तंगी से परेशान हों तो मन्दिर में केले के दो पौधे (नर-मादा) का रोपण करें।

7 मां लक्ष्मी के श्री स्वरूप के समक्ष नौ बत्तियों का घी का दीपक जलाने से धन लाभ होने लगता है।

8 कारोबार में दिन दुगुनी रात चौगुणी तरक्की करने के लिए शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार को सफेद कपड़े के झंडे को पीपल के वृक्ष पर लगाएं।

9 घर में सुख समृद्धि का समावेश करवाने के लिए उत्तर पश्चिमी कोण में मिट्टी के बर्तन में थोड़े से सोने-चांदी के सिक्के किसी लाल कपड़े में बांध कर रखें। फिर उस बर्तन को गेहूं अथवा चावलों से भर दें।

10 कलह क्लेश से निजात पाने के लिए पके हुए मिट्टी के घड़े पर लाल रंग का पेंट करके उसके मुख पर मोली बांधें और उसके बीच जटायुक्त नारियल रखकर बहते हुए पानी में प्रवाहित कर दें।1 लोहे के पात्र में जल, चीनी, घी तथा दूध का मिश्रण बना कर पीपल के वृक्ष की जड़ में अर्पित करने से घर में लक्ष्मी का वास होता है।

2 कच्ची धानी के तेल से दीपक जलाएं, उसमें लौंग डालकर हनुमान जी की आरती करें। समस्त विध्नों का नाश होगा और धन प्राप्ती के साधन बनने लगेंगे।

3 धनहानि हो रही हो तो बृहस्पतिवार के दिन मुख्य द्वार पर गुलाल से सुंदर रंगोली बनाएं अथवा गुलाल का छिड़काव करके देसी घी का दो मुख वाला दीपक जलाएं। जब दीपक बढ़ जाए तो उसे चलते हुए पानी में परवाह कर दें।

4 मुट्ठी भर काले तिल लेकर परिवार के सभी सदस्यों के सिर पर से सात बार फेर कर घर की उत्तर दिशा में फेंक दें। धनहानि समाप्त हो जाएगी।

5 घर से धन का अभाव दूर करने के लिए घर में सोने का चौरस सिक्का रखें, प्रतिदिन कुत्ते को दूध पिलाएं। घर के सभी कमरों में मोर पंख रखें।

6 आर्थिक तंगी से परेशान हों तो मन्दिर में केले के दो पौधे (नर-मादा) का रोपण करें।

7 मां लक्ष्मी के श्री स्वरूप के समक्ष नौ बत्तियों का घी का दीपक जलाने से धन लाभ होने लगता है।

8 कारोबार में दिन दुगुनी रात चौगुणी तरक्की करने के लिए शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार को सफेद कपड़े के झंडे को पीपल के वृक्ष पर लगाएं।

9 घर में सुख समृद्धि का समावेश करवाने के लिए उत्तर पश्चिमी कोण में मिट्टी के बर्तन में थोड़े से सोने-चांदी के सिक्के किसी लाल कपड़े में बांध कर रखें। फिर उस बर्तन को गेहूं अथवा चावलों से भर दें।

10 कलह क्लेश से निजात पाने के लिए पके हुए मिट्टी के घड़े पर लाल रंग का पेंट करके उसके मुख पर मोली बांधें और उसके बीच जटायुक्त नारियल रखकर बहते हुए पानी में प्रवाहित कर दें।

ऊपरी हवा पहचान और निदान

ऊपरी हवा पहचान और निदान
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हम जहां रहते हैं वहां कई ऐसी शक्तियां होती हैं, जो हमें दिखाई नहीं देतीं किंतु बहुधा हम पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं जिससे हमारा जीवन अस्त-व्यस्त हो उठता है और हम दिशाहीन हो जाते हैं। इन अदृश्य शक्तियों को ही आम जन ऊपरी बाधाओं की संज्ञा देते हैं। भारतीय ज्योतिष में ऐसे कतिपय योगों का उल्लेख है जिनके घटित होने की स्थिति में ये शक्तियां शक्रिय हो उठती हैं और उन योगों के जातकों के जीवन पर अपना प्रतिकूल प्रभाव डाल देती हैं।
ज्योतिश सिद्धांत के अनुसार गुरु पित्रदोश, शनि यमदोष, चन्द्र व शुक्र जल देवी दोष, राहु सर्प व प्रेत दोष, मंगल शाकिनी दोष, सूर्य देव दोष एवं बुध कुल देवता दोष का कारक होता है। राहु, शनि व केतु ऊपरी हवाओं के कारक ग्रह हैं। जब किसी व्यक्ति के लग्न (शारीर), गुरु (ज्ञान), त्रिकोण (धर्म भाव) तथा द्विस्वभाव राशियों पर पाप ग्रहों का प्रभाव होता है, तो उस पर ऊपरी हवा क़ी संभावना होती है।
प्राय: सभी धर्मग्रंथों में ऊपरी हवाओं, नज़र दोषों आदि का उल्लेख है। कुछ ग्रंथों में इन्हें बुरी आत्मा कहा गया है तो कुछ अन्य में भूत-प्रेत और जिन्न।

कब और किन परिस्थितियों में डालती हैं ऊपरी हवाओं किसी व्यक्ति पर अपना प्रभाव?
जब कोई व्यक्ति दूध पीकर या कोई सफ़ेद मिठाई खाकर किसी चौराहे पर जाता है, तब ऊपरी हवाएं उस पर अपना प्रभाव डालती हैं। गन्दी जगहों पर इन हवाओं का वास होता है, इसीलिए ऐसे जगहों पर जाने वाले लोगों को ये हवाएं अपने प्रभाव में ले लेती हैं। इन हवाओं का प्रभाव रजस्वला स्त्रियों पर भी पड़ता है। कुएं, बावड़ी आदि पर भी इनका वास होता है। विवाह व अन्य मांगलिक कार्यों के अवसर पर ये हवाएं सक्रिय होती हैं। इसके अतिरिक्त रात और दिन के 12 बजे दरवाजे क़ी चौखट पर इनका प्रभाव होता है।

दूध व सफ़ेद मिठाई चन्द्र के घोतक हैं। चौराहा राहु का घोतक है। चन्द्र राहु का शत्रु है, अतः जब कोई व्यक्ति उक्त चीजों का सेवन कर चौराहे पर जाता है, तो उस पर ऊपरी हवाओं के प्रभाव क़ी संभावना रहती है।

कोई स्त्री जब राजस्वला होती है, तब उसका चन्द्र व मंगल दोनों दुर्बल हो जाते हैं। ये दोनों राहु व शनि के शत्रु हैं। रजस्वलावस्था में स्त्री अशुद्ध होती है और अशुद्धता राहु क़ी घोतक है। ऐसे में उस स्त्री पर ऊपरी हवाओं के प्रकोप क़ी संभावना रहती है। कुएं एवं बावड़ी का अर्थ होता है जल स्थान और चन्द्र जल स्थान का कारक है। चन्द्र राहु का शत्रु है, इसलिये ऐसे स्थानों पर ऊपरी हवाओं का प्रभाव होता है।
मनुष्य क़ी दायीं आँख पर सूर्य का और बायीं पर चन्द्र का नियंत्रण होता है। इसलिए ऊपरी हवाओं का प्रभाव सबसे पहले पहले आँखों पर ही पड़ता है।

किसी स्त्री के सप्तम भाव में शनि, मंगल और राहु या केतु क़ी युति हो, तो उसके उसके पिशाच पीड़ा से ग्रस्त होने की संभावना रहती है। गुरु नीच राशि अथवा नीच राशि के नवांश में हो, या राहु सेयुत हो और उस पर पाप ग्रहों क़ी दृष्टी हो, तो जातक क़ी चंडाल प्रवति होती है।

पंचम भाव में शनि का सम्बन्ध बने तो व्यक्ति प्रेत एवं क्षुद्र देवियों क़ी भक्ति करता है।

* उपरी हवाओं से मुक्ति हेतु हनुमान चालीसा का पाठ और गायत्री का जप तथा हवं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त अग्नि तथा लाल मिर्ची जलानी चाहिए।

* रोज़ सूर्यास्त के समय एक साफ़- सुथरे बर्तन में गाय का आधा किलो कच्चा दूध लेकर उसमें शुद्ध शहद क़ी 9 बूँदें मिला लें। फिर स्नान करके, शुद्ध वस्त्र पहनकर मकान क़ी छत से नीचे तक प्रत्येक कमरे, जीने, गैलरी आदि में उस दूध के छींटे देते हुए द्वार तक और बस हुए दूध को मुख्य द्वार के बाहर गिरा दें। क्रिया के दौरान इष्टदेव का स्मरण करते रहे। यह क्रिया इक्कीस दिन तक नियमित रूप से करें, घर पर प्रभावी उपरी हवाएं दूर हो जायेंगी।

* रविवार को बांह पर काले धतूरे क़ी जड़ बांधें, उपरी हवाओं से मुक्ति मिलेगी ।
* लहसून के रस में हींग घोलकर आँख में डालने या सुंघाने से पीड़ित व्यक्ति को उपरी हवाओं से मुक्ति मिल जाती है।

* उपरी बाधाओं से मुक्ति हेतु निम्नोक्त मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए। "ॐ नमो भगवते रुद्राय नमः कोशेश्वस्य नमो ज्योति पंतगाय नमो रुदाय नम: सिद्धि स्वाहा।"

* घर के मुख्य द्वार के समीप श्वेतार्क का पौधा लगायें, घर उपरी हवाओं से मुक्त रहेगा।
* उपले या लकड़ी के कोयले जलाकर उसमें धूनी क़ी विशिष्ट वस्तुएं डालें और उससे उत्पन्न होने वाला धुंआ पीड़ित व्यक्ति को सुंघाएं। यह क्रिया किसी ऐसे व्यक्ति से करवाएं जो अनुभवी हो और जिसमें पर्याप्त आत्मबल हो।

* प्रातः काल बीज मंत्र 'क्लीं' का उच्चारण करते हुए काली मिर्च के 9 दाने सिर पर से घुमाकर दक्षिण दिशा क़ी और फेंक दें, उपरी बला दूर हो जायेगी।

* रविवार को स्नानादि से निवृत्त होकर काले कपडे क़ी छोटी थैली में तुलसी के 8 पत्ते, 8 काली मिर्च और सहदेई क़ी जड़ बंधकर गले में धारण करें, नजर दोष बाधा से मुक्ति मिलेगी।

* निम्नोक्त मंत्र का 108 बार जप करके सरसों का तेल अभिमंत्रित कर लें और उससे पीड़ित व्यक्ति के शरीर पर मालिश करें, व्यक्ति पीडामुक्त हो जाएगा। मंत्र : ॐ नमोह काली कपाला देहि देहि स्वाहा ।
उपरी हवाओं के शक्तिशाली होने क़ी स्थिति में शाबर मन्त्रों का जप एवं प्रयोग किया जा सकता है। प्रयोग करने के पूर्व इन मन्त्रों का दीपावली क़ी रात को अथवा होलिका दहन क़ी रात को जलती हुई होली के सामने या फिर शमशान में 108 बार जप कर इन्हें सिद्ध कर लेना चाहिए। यहाँ यह उल्लेख कर देना आवश्यक है क़ी इन्हें सिद्ध करने के इच्छुक साधकों में पर्याप्त आत्मबल होना चाहिए, अन्यथा हानि हो सकती है।

* थोड़ी सी हल्दी को 3 बार निम्नलिखित मंत्र से अभिमंत्रित करके अग्नि में इस तरह चोदें क़ी उसका धुंआ रोगी के मुख क़ी और जाए। इसे हल्दी बाण मंत्र कहते हैं।

हल्दी गीरी बाण बाण को लिया हाथ उठाय ।

हल्दी बाण से नीलगिरी पहाड़ थहराय ॥

यह सब देख बोलत बीर हनुमान ।

डाइन योगिनी भूत प्रेत मुंड काटौ तान ॥

आज्ञा कामरू कामाक्षा माई ।

आज्ञा हाडि की चंडी की दोहाई ॥
* एक मुठ्ठी धुल को निम्नोक्त मंत्र से 3 बार अभिमंत्रित करें और नज़र दोष से ग्रस्त व्यक्ति पर फेकें, व्यक्ति को दोष से मुक्ति मिलेगी।
ऊपरी हवाओं के प्रभाव से मुक्ति के सरल उपाय
ऊपरी हवाओं से मुक्ति हेतु शास्त्रों में अनेक उपाय बताए गए हैं। अथर्ववेद में इस हेतु कई मंत्रों व स्तुतियों का उल्लेख है। आयुर्वेद में भी इन हवाओं से मुक्ति के उपायों का विस्तार से वर्णन किया गया है। यहां कुछ प्रमुख सरल एवं प्रभावशाली उपायों का विवरण प्रस्तुत है।

ऊपरी हवाओं से मुक्ति हेतु हनुमान चालीसा का पाठ और गायत्री का जप तथा हवन करना चाहिए। इसके अतिरिक्त अग्नि तथा लाल मिर्ची जलानी चाहिए।
रोज सूर्यास्त के समय एक साफ-सुथरे बर्तन में गाय का आधा किलो कच्चा दूध लेकर उसमें शुद्ध शहद की नौ बूंदें मिला लें। फिर स्नान करके, शुद्ध वस्त्र पहनकर मकान
की छत से नीचे तक प्रत्येक कमरे, जीने, गैलरी आदि में उस दूध के छींटे देते हुए द्वार तक आएं और बचे हुए दूध को मुख्य द्वार के बाहर गिरा दें। क्रिया के दौरान इष्टदेव का स्मरण करते रहें। यह क्रिया इक्कीस दिन तक नियमित रूप से करें, घर पर प्रभावी ऊपरी हवाएं दूर हो जाएंगी।
रविवार को बांह पर काले धतूरे की जड़ बांधें, ऊपरी हवाओं से मुक्ति मिलेगी।
लहसुन के रस में हींग घोलकर आंख में डालने या सुंघाने से पीड़ित व्यक्ति को ऊपरी हवाओं से मुक्ति मिल जाती है।
ऊपरी बाधाओं से मुक्ति हेतु निम्नोक्त मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए।
" ओम नमो भगवते रुद्राय नमः कोशेश्वस्य नमो ज्योति पंतगाय नमो रुद्राय नमः सिद्धि स्वाहा।''
घर के मुख्य द्वार के समीप श्वेतार्क का पौधा लगाएं, घर ऊपरी हवाओं से मुक्त रहेगा।
उपले या लकड़ी के कोयले जलाकर उसमें धूनी की विशिष्ट वस्तुएं डालें और उससे उत्पन्न होने वाला धुआं पीड़ित व्यक्त्ि को सुंघाएं। यह क्रिया किसी ऐसे व्यक्ति से करवाएं जो अनुभवी हो और जिसमें पर्याप्त आत्मबल हो।
प्रातः काल बीज मंत्र ÷क्लीं' का उच्चारण करते हुए काली मिर्च के नौ दाने सिर पर से घुमाकर दक्षिण दिशा की ओर फेंक दें, ऊपरी बला दूर हो जाएगी।
रविवार को स्नानादि से निवृत्त होकर काले कपड़े की छोटी थैली में तुलसी के आठ पत्ते, आठ काली मिर्च और सहदेई की जड़ बांधकर गले में धारण करें, नजर दोष बाधा से मुक्ति मिलेगी।
निम्नोक्त मंत्र का १०८ बार जप करके सरसों का तेल अभिमंत्रित कर लें और उससे पीड़ित व्यक्ति के शरीर पर मालिश करें, व्यकित पीड़ामुक्त हो जाएगा।
मंत्र : ओम नमो काली कपाला देहि देहि स्वाहा।
ऊपरी हवाओं के शक्तिषाली होने की स्थिति में शाबर मंत्रों का जप एवं प्रयोग किया जा सकता है। प्रयोग करने के पूर्व इन मंत्रों का दीपावली की रात को अथवा होलिका दहन की रात को जलती हुई होली के सामने या फिर श्मषान में १०८ बार जप कर इन्हें सिद्ध कर लेना चाहिए। यहां यह उल्लेख कर देना आवष्यक है कि इन्हें सिद्ध करने के इच्छुक साधकों में पर्याप्त आत्मबल होना चाहिए, अन्यथा हानि हो सकती है।
निम्न मंत्र से थोड़ा-सा जीरा ७ बार अभिमंत्रित कर रोगी के शरीर से स्पर्श कराएं और उसे अग्नि में डाल दें। रोगी को इस स्थिति में बैठाना चाहिए कि उसका धूंआ उसके मुख के सामने आये। इस प्रयोग से भूत-प्रेत बाधा की निवृत्ति होती है।

मंत्र : जीरा जीरा महाजीरा जिरिया चलाय। जिरिया की शक्ति से फलानी चलि जाय॥ जीये तो रमटले मोहे तो मशान टले। हमरे जीरा मंत्र से अमुख अंग भूत चले॥ जाय हुक्म पाडुआ पीर की दोहाई॥
एक मुट्ठी धूल को निम्नोक्त मंत्र से ३ बार अभिमंत्रित करें और नजर दोष से ग्रस्त व्यक्ति पर फेंकें, व्यक्ति को दोष से मुक्ति मिलेगी।
मंत्र : तह कुठठ इलाही का बान। कूडूम की पत्ती चिरावन। भाग भाग अमुक अंक से भूत। मारुं धुलावन कृष्ण वरपूत। आज्ञा कामरु कामाख्या। हारि दासीचण्डदोहाई।
थोड़ी सी हल्दी को ३ बार निम्नलिखित मंत्र से अभिमंत्रित करके अग्नि में इस तरह छोड़ें कि उसका धुआं रोगी के मुख की ओर जाए। इसे हल्दी बाण मंत्र कहते हैं।
हल्दी गीरी बाण बाण को लिया हाथ उठाय। हल्दी बाण से नीलगिरी पहाड़ थहराय॥ यह सब देख बोलत बीर हनुमान। डाइन योगिनी भूत प्रेत मुंड काटौ तान॥ आज्ञा कामरु कामाक्षा माई। आज्ञा हाड़ि की चंडी की दोहाई॥
जौ, तिल, सफेद सरसों, गेहूं, चावल, मूंग, चना, कुष, शमी, आम्र, डुंबरक पत्ते और अषोक, धतूरे, दूर्वा, आक व ओगां की जड़ को मिला लें और उसमें दूध, घी, मधु और गोमूत्र मिलाकर मिश्रण तैयार कर लें। फिर संध्या काल में हवन करें और निम्न मंत्रों का १०८ बार जप कर इस मिश्रण से १०८ आहुतियां दें।
मंत्र : ओम नमः भवे भास्कराय आस्माक अमुक सर्व ग्रहणं पीड़ा नाशनं कुरु-कुरु स्वाहा।

मानसिक तनाव से मुक्ति का अचूक मंत्र ....... तनाव से देता है छुटकारा, यह चमत्कारी मंत्र

मानसिक तनाव से मुक्ति का अचूक मंत्र ....... तनाव से देता है छुटकारा, यह चमत्कारी मंत्र
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यदि आप किसी वजह से मानसिक तनाव में रहते हैं अथवा किसी अज्ञात भय से पीड़ित हैं, अपने आपको असु‍रक्षित महसूस करते हैं तो उसके लिए 11 बुधवार लगातार 1 नारियल नीले वस्त्र में लपेटकर किसी भिखारी को दान करें।

अपने शयनकक्ष में तांबे का एक पिरामिड स्थापित करें।
नित्य मानसिक रूप से निम्न मंत्र का जाप अवश्य किया करें।

मंत्र :
ॐ अतिक्रकर महाकाय, कल्पान्त दहनोपम
भैरवाय नमस्तुभ्यमनुज्ञां दातुमहसि!!

इस उपरोक्त उपाय से एक ओर जहां आपको मानसिक तनाव/ भय/ दबाव इत्यादि से मुक्ति मिलेगी वहीं परिवार में अगर कोई नकारात्मक‍ विचारधारा का है तो उसके विचारों में भी परिवर्तन आना आरंभ होगा।

वैदिक ज्योतिष »----ज्योतिष--कसौटी पर खरे उतरते वैज्ञानिक नियम

वैदिक ज्योतिष »----ज्योतिष--कसौटी पर खरे उतरते वैज्ञानिक नियम
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Photo: वैदिक ज्योतिष »----ज्योतिष--कसौटी पर खरे उतरते वैज्ञानिक नियम
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ज्योतिष को संसार में विज्ञान का दर्जा देने से कितने ही विज्ञान-कर्ता कतराते है. कारण और निवारण का सिद्धान्त अपना कर भौतिक जगत की श्रेणी मे ज्योतिष को तभी रखा जा सकता है, जब उसे पूरी तरह से समझ लिया जाये. वातावरण के परिवर्तन जैसे तूफ़ान आना,चक्रवात का पैदा होना और हवाओं का रुख बदलना,भूकम्प आना,बाढ की सूचना देना आदि मौसम विज्ञान के अनुसार कथित किया जाता है.
पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के द्वारा ब्रहमाण्ड से आने वाली अनन्त शक्तियों का प्रवाह का कथन पुराणो मे भी मिलता है. जिन्हे धनात्मक शक्तियों का रूप प्रदान किया गया है और दक्षिणी ध्रुव से नकारात्मक शक्तियों का प्रवाह पृथ्वी पर प्रवाहित होने से ही वास्तु-शास्त्र को कथित करने में वैज्ञानिकों को सहायता मिली है.कहावत है कि जब हवायें थम जाती है तो आने वाले किसी तूफ़ान का अंदेशा रहता है. यह सब प्राथमिक सूचनायें भी हमें ज्योतिष द्वारा ही मिलती है. वातावरण की जानकारी और वातावरण के द्वारा प्रेषित सूचनाओं के आधार पर ही प्राचीन समय से ही वैज्ञानिक अपने कथनो को सिद्ध करते आये है,जो आज तक भी सत्यता की कसौटी पर सौ प्रतिशत खरे उतरते है. अगर आज का मानव अनिष्ट सूचक घटनाओ को इस विज्ञान के माध्यम से जान ले तो वह मानव की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि होगी.
ब्रह्माजी से जब सर्व प्रथम यह विद्या गर्ग ऋषि ने प्राप्त की और उसके बाद अन्य लोग इस विद्या को जान सके. प्राचीन काल से ही ऋषियों-मुनियों ने अपनी खोजबीन और पराविज्ञान की मदद से इस विद्या का विकास किया, उन रहस्यों को जाना जिन्हे आज का मानव अरबों-खरबों डालर खर्च करने के बाद भी पूरी तरह से प्राप्त नही कर सका है. तल,वितल,सुतल,तलातल,पाताल,धरातल और महातल को ऋषियों ने पहले ही जान लिया था उनकी व्याख्या "सुखसागर" आदि ग्रंथों में बहुत ही विस्तृत रूप से की गई है. प्राकृतिक रहस्यों को सुलझाने के लिये परा और अपरा विद्याओं को स्थापित कर दिया था. परा विद्याओं का सम्बन्ध वेदों में निहित किया था. ज्योतिष शास्त्र के अन्तर्गत खगोलशास्त्र,पदार्थ विज्ञान,आयुर्वेद और गणित का अध्ययन प्राचीन काल से ही किया जाता रहा है. उस समय के एक डाक्टर को ज्योतिषी और अध्यापक होना अनिवार्य माना जाता था और ज्योतिषी को भी डाक्टरी और अध्यापन मे प्रवीण होना जरूरी था. कालान्तर के बाद आर्यभट्ट और बाराहमिहिर ने शास्त्र का संवर्धन किया और अपने आधार से ठोस आधार प्रदान किये.
"भास्कराचार्य" ने तो न्यूटन से बहुत पहले ही पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण-शक्ति का प्रतिपादन कर दिया था,जिसे उन्होने अपने ग्रंथ "सिद्धान्तशिरोमणि" में प्रस्तुत किया है. "आकृष्ट शक्ति च महीतया,स्वस्थ गुरं स्वभिमुखं स्वंशवत्या" अर्थात पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है,जिससे वह अपने आस पास की वस्तुओं को आकर्षित करती है.
आज से २२०० साल पहले बाराहमिहिर ने २७ नक्षत्रों और ७ ग्रहों तथा ध्रुव तारे का को वेधने के लिये एक बडे जलाशय में स्तम्भ का निर्माण करवाया था,जिसकी चर्चा "भागवतपुराण" मे की गई है. स्तम्भ मे सात ग्रहों के लिये सात मंजिले,और २७ नक्षत्रों के लिये २७ रोशनदान काले पत्थरों से निर्मित करवाये थे. इसके चारों तरफ़ २७ वेधशालायें मन्दिरों के रूप में बनी थीं. प्राचीन भारतीय शासक कुतुब्द्दीन ऐबक ने उन सब वेधशालाओं को तुडवाकर वहाँ मस्जिद बनवा दी थी और रही सही कसर अन्ग्रेजी शासन नें निकाल दी, जिन्होने इस स्तम्भ के ऊपरी भाग को भी तुडवा दिया था. हालॉकि आज भी वह ७६ फ़ुट शेष है. यह वही दिल्ली की प्रसिद्ध "कुतुबमीनार" है, जिसे सारी दुनिया जानती है.
ज्योतिष विज्ञान आज भी उतना ही उपयोगी है,जितना कि कभी पुरातन काल में था. मुस्लिम ज्योतिषी इब्बनबतूता और अलबरूनो ने भारत मे रह कर संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त किया और अनेक ज्योतिष ग्रंथों का अरबी भाषा में अनुवाद किया और अरब देशों में इसका प्रचार प्रसार किया. "अलबरूनो" ने "इन्डिका" नामक ग्रन्थ लिखा जिसका अनुवाद बाद में जर्मन भाषा में किया गया था. जर्मन विद्वानो ने जब यह पुस्तक पढी तो उनका ध्यान भारत की ओर आकर्षित हुआ और उन लोगो ने यहां के अनेक प्राचीन ग्रन्थों का अनुवाद किया. यूनान के प्रसिद्ध "यवनाचार्य" ने भारत मे ही रह कर कई ग्रन्थ ज्योतिष के लिखे.
लन्दन के प्रसिद्ध विद्वान "फ़्रान्सिस हचिंग" ने शोध द्वारा यह सिद्ध किया कि मिश्र के "पिरामिड" और उनमे रखे जाने वाले शवों का स्थान ज्योतिषीय रूप रेखा के द्वारा ही तय किया जाता था
कसौटी पर खरे उतरते वैज्ञानिक नियम:---
ब्रह्मांड की अति सूक्षम हलचल का प्रभाव भी पृथ्वी पर पडता है. सूर्य और चन्द्र का प्रत्यक्ष प्रभाव हम आसानी से देख और समझ सकते है. सूर्य के प्रभाव से ऊर्जा और चन्द्रमा के प्रभाव से समुद में ज्वार-भाटा को भी समझ और देख सकते है. जिसमे अष्ट्मी के लघु ज्वार और पूर्णमासी के दिन बृहद ज्वार का आना इसी प्रभाव का कारण है. पानी पर चन्द्रमा का प्रभाव अत्याधिक पडता है. मनुष्य के अन्दर भी पानी की मात्रा अधिक होने के कारण चन्द्रमा का प्रभाव मानवी प्रकृति पर भी पडता है. पूर्णिमा के दिन होने वाली अपराधों में बढोत्तरी को देखकर इसे आसानी से समझा जा सकता है. जो लोग मानसिक रूप से विक्षिप्त होते हैं, उनकी विक्षिप्तता भी इसी तिथि को अधिक रहती है. आत्महत्या वाले कारण भी इसी तिथि को अधिक देखने को मिलते है. इस दिन सामान्यत: स्त्रियों में मानसिक तनाव भी कुछ अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देता है.
शुक्ल पक्ष मे वनस्पतियां अधिक तीव्रता से बढती है. सूर्योदय के पश्चात वन्स्पतियों और प्राणियों में स्फ़ूर्ति का प्रभाव अधिक बढ जाता है. आयुर्वेद भी चन्द्रमा का विज्ञान है जिसके अन्तर्गत वनस्पति जगत का सम्पूर्ण मिश्रण है. कहा भी जाता है कि "संसार का प्रत्येक अक्षर एक मंत्र है. प्रत्येक वनस्पति एक औषधि है और प्रत्येक मनुष्य एक अपना गुण रखता है. बस आवश्यकता महज उसे पहचानने की होती है".
’ग्रहाधीन जगत सर्वम". विज्ञान की मान्यता है कि सूर्य एक जलता हुआ आग का गोला है,जिससे सभी ग्रह पैदा हुए है. गायत्री मन्त्र मे सूर्य को सविता या परमात्मा माना गया है. रूस के वैज्ञानिक "चीजेविस्की" ने सन १९२० में अन्वेषण किया था कि हर ११ वर्ष के अन्तराल पर सूर्य में एक विस्फ़ोट होता है जिसकी क्षमता १००० अणुबम के बराबर होती है. इस विस्फ़ोट के समय पृथ्वी पर उथल-पुथल, लडाई झगडे, मारकाट होती है. युद्ध भी इसी समय मे अधिक होते है. पुरुषों का खून पतला हो जाता है. पेडों के तनों में पडने वाले वलय बडे होते है. आमतौर पर आप देखें तो पायेंगें कि श्वास रोग सितम्बर से नबम्बर तक अधिक रूप से बढ जाता है. मासिक धर्म के आरम्भ में १४,१५,या १६ दिन गर्भाधान की अधिक सम्भावना होती है.
बताईये क्या इतने सब कारण क्या ज्योतिष को विज्ञान कहने के लिये पर्याप्त नही है?ज्योतिष को संसार में विज्ञान का दर्जा देने से कितने ही विज्ञान-कर्ता कतराते है. कारण और निवारण का सिद्धान्त अपना कर भौतिक जगत की श्रेणी मे ज्योतिष को तभी रखा जा सकता है, जब उसे पूरी तरह से समझ लिया जाये. वातावरण के परिवर्तन जैसे तूफ़ान आना,चक्रवात का पैदा होना और हवाओं का रुख बदलना,भूकम्प आना,बाढ की सूचना देना आदि मौसम विज्ञान के अनुसार कथित किया जाता है.
पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के द्वारा ब्रहमाण्ड से आने वाली अनन्त शक्तियों का प्रवाह का कथन पुराणो मे भी मिलता है. जिन्हे धनात्मक शक्तियों का रूप प्रदान किया गया है और दक्षिणी ध्रुव से नकारात्मक शक्तियों का प्रवाह पृथ्वी पर प्रवाहित होने से ही वास्तु-शास्त्र को कथित करने में वैज्ञानिकों को सहायता मिली है.कहावत है कि जब हवायें थम जाती है तो आने वाले किसी तूफ़ान का अंदेशा रहता है. यह सब प्राथमिक सूचनायें भी हमें ज्योतिष द्वारा ही मिलती है. वातावरण की जानकारी और वातावरण के द्वारा प्रेषित सूचनाओं के आधार पर ही प्राचीन समय से ही वैज्ञानिक अपने कथनो को सिद्ध करते आये है,जो आज तक भी सत्यता की कसौटी पर सौ प्रतिशत खरे उतरते है. अगर आज का मानव अनिष्ट सूचक घटनाओ को इस विज्ञान के माध्यम से जान ले तो वह मानव की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि होगी.

ब्रह्माजी से जब सर्व प्रथम यह विद्या गर्ग ऋषि ने प्राप्त की और उसके बाद अन्य लोग इस विद्या को जान सके. प्राचीन काल से ही ऋषियों-मुनियों ने अपनी खोजबीन और पराविज्ञान की मदद से इस विद्या का विकास किया, उन रहस्यों को जाना जिन्हे आज का मानव अरबों-खरबों डालर खर्च करने के बाद भी पूरी तरह से प्राप्त नही कर सका है. तल,वितल,सुतल,तलातल,पाताल,धरातल और महातल को ऋषियों ने पहले ही जान लिया था उनकी व्याख्या "सुखसागर" आदि ग्रंथों में बहुत ही विस्तृत रूप से की गई है. प्राकृतिक रहस्यों को सुलझाने के लिये परा और अपरा विद्याओं को स्थापित कर दिया था. परा विद्याओं का सम्बन्ध वेदों में निहित किया था. ज्योतिष शास्त्र के अन्तर्गत खगोलशास्त्र,पदार्थ विज्ञान,आयुर्वेद और गणित का अध्ययन प्राचीन काल से ही किया जाता रहा है. उस समय के एक डाक्टर को ज्योतिषी और अध्यापक होना अनिवार्य माना जाता था और ज्योतिषी को भी डाक्टरी और अध्यापन मे प्रवीण होना जरूरी था. कालान्तर के बाद आर्यभट्ट और बाराहमिहिर ने शास्त्र का संवर्धन किया और अपने आधार से ठोस आधार प्रदान किये.
"भास्कराचार्य" ने तो न्यूटन से बहुत पहले ही पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण-शक्ति का प्रतिपादन कर दिया था,जिसे उन्होने अपने ग्रंथ "सिद्धान्तशिरोमणि" में प्रस्तुत किया है. "आकृष्ट शक्ति च महीतया,स्वस्थ गुरं स्वभिमुखं स्वंशवत्या" अर्थात पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है,जिससे वह अपने आस पास की वस्तुओं को आकर्षित करती है.
आज से २२०० साल पहले बाराहमिहिर ने २७ नक्षत्रों और ७ ग्रहों तथा ध्रुव तारे का को वेधने के लिये एक बडे जलाशय में स्तम्भ का निर्माण करवाया था,जिसकी चर्चा "भागवतपुराण" मे की गई है. स्तम्भ मे सात ग्रहों के लिये सात मंजिले,और २७ नक्षत्रों के लिये २७ रोशनदान काले पत्थरों से निर्मित करवाये थे. इसके चारों तरफ़ २७ वेधशालायें मन्दिरों के रूप में बनी थीं. प्राचीन भारतीय शासक कुतुब्द्दीन ऐबक ने उन सब वेधशालाओं को तुडवाकर वहाँ मस्जिद बनवा दी थी और रही सही कसर अन्ग्रेजी शासन नें निकाल दी, जिन्होने इस स्तम्भ के ऊपरी भाग को भी तुडवा दिया था. हालॉकि आज भी वह ७६ फ़ुट शेष है. यह वही दिल्ली की प्रसिद्ध "कुतुबमीनार" है, जिसे सारी दुनिया जानती है.
ज्योतिष विज्ञान आज भी उतना ही उपयोगी है,जितना कि कभी पुरातन काल में था. मुस्लिम ज्योतिषी इब्बनबतूता और अलबरूनो ने भारत मे रह कर संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त किया और अनेक ज्योतिष ग्रंथों का अरबी भाषा में अनुवाद किया और अरब देशों में इसका प्रचार प्रसार किया. "अलबरूनो" ने "इन्डिका" नामक ग्रन्थ लिखा जिसका अनुवाद बाद में जर्मन भाषा में किया गया था. जर्मन विद्वानो ने जब यह पुस्तक पढी तो उनका ध्यान भारत की ओर आकर्षित हुआ और उन लोगो ने यहां के अनेक प्राचीन ग्रन्थों का अनुवाद किया. यूनान के प्रसिद्ध "यवनाचार्य" ने भारत मे ही रह कर कई ग्रन्थ ज्योतिष के लिखे.
लन्दन के प्रसिद्ध विद्वान "फ़्रान्सिस हचिंग" ने शोध द्वारा यह सिद्ध किया कि मिश्र के "पिरामिड" और उनमे रखे जाने वाले शवों का स्थान ज्योतिषीय रूप रेखा के द्वारा ही तय किया जाता था
कसौटी पर खरे उतरते वैज्ञानिक नियम:---
ब्रह्मांड की अति सूक्षम हलचल का प्रभाव भी पृथ्वी पर पडता है. सूर्य और चन्द्र का प्रत्यक्ष प्रभाव हम आसानी से देख और समझ सकते है. सूर्य के प्रभाव से ऊर्जा और चन्द्रमा के प्रभाव से समुद में ज्वार-भाटा को भी समझ और देख सकते है. जिसमे अष्ट्मी के लघु ज्वार और पूर्णमासी के दिन बृहद ज्वार का आना इसी प्रभाव का कारण है. पानी पर चन्द्रमा का प्रभाव अत्याधिक पडता है. मनुष्य के अन्दर भी पानी की मात्रा अधिक होने के कारण चन्द्रमा का प्रभाव मानवी प्रकृति पर भी पडता है. पूर्णिमा के दिन होने वाली अपराधों में बढोत्तरी को देखकर इसे आसानी से समझा जा सकता है. जो लोग मानसिक रूप से विक्षिप्त होते हैं, उनकी विक्षिप्तता भी इसी तिथि को अधिक रहती है. आत्महत्या वाले कारण भी इसी तिथि को अधिक देखने को मिलते है. इस दिन सामान्यत: स्त्रियों में मानसिक तनाव भी कुछ अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देता है.
शुक्ल पक्ष मे वनस्पतियां अधिक तीव्रता से बढती है. सूर्योदय के पश्चात वन्स्पतियों और प्राणियों में स्फ़ूर्ति का प्रभाव अधिक बढ जाता है. आयुर्वेद भी चन्द्रमा का विज्ञान है जिसके अन्तर्गत वनस्पति जगत का सम्पूर्ण मिश्रण है. कहा भी जाता है कि "संसार का प्रत्येक अक्षर एक मंत्र है. प्रत्येक वनस्पति एक औषधि है और प्रत्येक मनुष्य एक अपना गुण रखता है. बस आवश्यकता महज उसे पहचानने की होती है".
’ग्रहाधीन जगत सर्वम". विज्ञान की मान्यता है कि सूर्य एक जलता हुआ आग का गोला है,जिससे सभी ग्रह पैदा हुए है. गायत्री मन्त्र मे सूर्य को सविता या परमात्मा माना गया है. रूस के वैज्ञानिक "चीजेविस्की" ने सन १९२० में अन्वेषण किया था कि हर ११ वर्ष के अन्तराल पर सूर्य में एक विस्फ़ोट होता है जिसकी क्षमता १००० अणुबम के बराबर होती है. इस विस्फ़ोट के समय पृथ्वी पर उथल-पुथल, लडाई झगडे, मारकाट होती है. युद्ध भी इसी समय मे अधिक होते है. पुरुषों का खून पतला हो जाता है. पेडों के तनों में पडने वाले वलय बडे होते है. आमतौर पर आप देखें तो पायेंगें कि श्वास रोग सितम्बर से नबम्बर तक अधिक रूप से बढ जाता है. मासिक धर्म के आरम्भ में १४,१५,या १६ दिन गर्भाधान की अधिक सम्भावना होती है.
बताईये क्या इतने सब कारण क्या ज्योतिष को विज्ञान कहने के लिये पर्याप्त नही है?