कुण्डली के किसी भी भाव में स्थित ग्रह अपने से दसवें स्थान में स्थित ग्रह को अपनी धोखे की दृष्टि से अशुभ फल प्रदान करता है. जैसे कि उपरोक्त कुण्डली में दशम भाव में बैठा सूर्य अपनी दशम दृष्टि सप्तम भाव पर डालकर पत्नि या वैवाहिक जीवन की हानि करता है.
इसी प्रकार राहु पंचम भावमें स्थित होकर द्वितीय भाव में स्थित शनि पर अपनी दशम धोखे की दृष्टि डाल रहा है, जिस कारण से व्यक्ति के कुटुम्ब-परिवार में समस्या रहने की सम्भावना है. दृष्टि (धोखे) के इस नियम में भी नैसर्गिक मित्रता एंव शत्रुता का कोई महत्व नहीं है.लाल किताब में धोखे की दृष्टि के सम्बन्ध में एक बात बहुत महत्वपूर्ण है कि जो ग्रह जिस भाव पर अपनी दसवीं दृष्टि डाल रहा है उसका उस भाव से कैसा सम्बन्ध है.
उदाहरण स्वरुप यदि दृष्टिगत भाव ग्रह का स्वक्षेत्र उच्च क्षेत्र या पक्का घर हो तो जो ग्रह उस भाव में स्थित है उस पर अपनी धोखे की दृष्टि डालकर ग्रह को तो नुक्सान पहुँचा रहा होगा परन्तु भाव की हानि नहीं करेगा. लेकिन यदि दृष्टिगत भाव दृष्टि डालने वाले ग्रह का शत्रु या नीच राशी वाला भाव हो तो वह परम हानि करेगा. हाँ एक बात और विशेष रुप से ध्यान देने योग्य है कि अशुभ ग्रह या भाव किसी अन्य ग्रह से शुभ सम्बन्ध बना रहा हो तो उसके फल में परिवर्तन हो जायेगा.
शुक्र ग्रह के ऋण-पितृ होने पर परिवार के प्रत्येक सदस्य से समान मात्रा में धन एकत्र करें फिर उस धन से 100 गायो का उत्तम भोजन (चारा इत्यादि) करायें.
इसी प्रकार राहु पंचम भावमें स्थित होकर द्वितीय भाव में स्थित शनि पर अपनी दशम धोखे की दृष्टि डाल रहा है, जिस कारण से व्यक्ति के कुटुम्ब-परिवार में समस्या रहने की सम्भावना है. दृष्टि (धोखे) के इस नियम में भी नैसर्गिक मित्रता एंव शत्रुता का कोई महत्व नहीं है.लाल किताब में धोखे की दृष्टि के सम्बन्ध में एक बात बहुत महत्वपूर्ण है कि जो ग्रह जिस भाव पर अपनी दसवीं दृष्टि डाल रहा है उसका उस भाव से कैसा सम्बन्ध है.
उदाहरण स्वरुप यदि दृष्टिगत भाव ग्रह का स्वक्षेत्र उच्च क्षेत्र या पक्का घर हो तो जो ग्रह उस भाव में स्थित है उस पर अपनी धोखे की दृष्टि डालकर ग्रह को तो नुक्सान पहुँचा रहा होगा परन्तु भाव की हानि नहीं करेगा. लेकिन यदि दृष्टिगत भाव दृष्टि डालने वाले ग्रह का शत्रु या नीच राशी वाला भाव हो तो वह परम हानि करेगा. हाँ एक बात और विशेष रुप से ध्यान देने योग्य है कि अशुभ ग्रह या भाव किसी अन्य ग्रह से शुभ सम्बन्ध बना रहा हो तो उसके फल में परिवर्तन हो जायेगा.
शुक्र ग्रह के ऋण-पितृ होने पर परिवार के प्रत्येक सदस्य से समान मात्रा में धन एकत्र करें फिर उस धन से 100 गायो का उत्तम भोजन (चारा इत्यादि) करायें.