Thursday, April 26, 2012

इस दिशा में वास्तु दोष हो तो संभव है अकाल मृत्यु

भूखण्ड के नैऋत्य (पश्चिम-दक्षिण) दिशा में मार्ग हो तो भवन नैऋत्य मुखी होता है। नैऋत्य दिशा का स्वामी राक्षस तथा प्रतिनिधि गृह राहु है। नैऋत्य दिशा स्वयं के व्यवहार व आचार-विचार के लिए उत्तरदायी है। इसमें वास्तु दोष रखना अकाल मृत्यु को बुलावा देना है। ऐसे भूखण्ड पर निर्माण करते समय इन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए-

1- नैऋत्य दिशा सदैव ऊंची एवं भारी बनाएं, इस दिशा में भवन का भाग ऊंचा व भारी रखें जिससे अन्य दिशाओं का जल इस ओर न आए।

2- नैऋत्य दिशा शुद्ध रखने पर ही भाग्य वृद्धि होगी।

3- यदि भवन के स्वामी ने ईशान व नैऋत्य दिशा को शुद्ध कर लिया तो समझ लें उसने भाग्य व भोग के सभी साधन जुटा लिए हैं।

4- ऐसा नैऋत्य मुखी भूखण्ड कभी न खरीदें जिसमें खाई, गड्ढा या भराव की आवश्यकता हो।

5- नैऋत्य दिशा में भूखण्ड के आसपास ऊंचे वृक्ष हों तो उन्हें कटवाना नहीं चाहिए। ऐसा करने पर धन हानि होगी।

6- नैऋत्य दिशा में ऊंचा चबूतरा बनाना उन्नतिकारक है।

7- नैऋत्य दिशा का भाग ऊंचा रखना यश, समृद्धि व धन कारक है।

8- मुख्य द्वार पश्चिम में और कुआं ईशान दिशा में बनाना शुभ है।

9- नैऋत्य दिशा में स्नानागार व शौचालय न बनवाएं।

Sunday, April 1, 2012

बगलामुखी महामंत्रम

बगलामुखी महामंत्रम
     बगलमुखी की पूजा पीतांबरा विध्या के रूप में प्रसिध्द् हैं|(इनकी पूजा में प्रमुखता से पीले रंग का उपयोग किया जाता है)|इनकी पूजा से शत्रुओं से रक्षा तथा उन्हें परास्त करने,कोर्ट केश मे विजयी दिलाने,धनार्जन,ऋण से मुक्ति तथा वाक्-चातुर्य की शक्ति का प्राप्ति होता है|
     इनकी पूजा पीले वस्त्र,हल्दी से बने माला,पीले आसन और पीले पुष्प का उपयोग किया जाता है|यह पीठासीन देवी हैं जो अपनी दिव्य शक्तिओं से असुरों को विनाश करतीं हैं|उनका निवास अमृत की सागर के मध्य है,जहॉ उनके निवास स्थान को हीरों से सजाया गया है तथा उनका सिंहासन् गहनों से जड़ित है|
     उनके आकृति से स्वर्ण आभा आती है|वह पीले परिधान,स्वर्ण आभूषण तथा पीला माला धारण करतीं हैं|उनके वाएँ हाथ मे शत्रु के जीभ और दाहिने हाथ मे गदा है|इनकी उत्पत्ति के बारे मे एक कहानी का वर्णन किया गया है|सतयुग मे एक् बार पूरी सृष्टि भयानक चक्रवात मे फँसी थी,तब भगवान विष्णु संपूर्ण मानव जगत के सुरक्षा हेतु सॉराष्ट् मे स्थित हरिद्रा सरोवर के पास देवी भगवती को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करने लगें|
     श्रीविधा उनके सम्मुख हरिद्रा सरोवर के जल से स्वर्ण आभा लिए प्रकट हुई|उन्होनें सृष्टि विनाशक तूफान को नियंत्रित कीं तथा सृष्टि को बर्वाद होने से बचाई|
     देवी बगलामुखी प्रकृति में अतिचार करने वाली बुरी शक्तियों को नियंत्रित करने मे सहायता करती हैं|वह हमारी वाक् ज्ञान और गति को नियंत्रित करने मे मदद करती हैं|वह अपने भक्तों को शक्ति और सिद्दि देती हैं तथा सभी ईच्छाओं की पूर्ति करती हैं,जैसा-कि उन्होने अपने भक्त 'कल्पतरू' को दिए|
!!ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं
स्तम्भय जिह्वां किलय बुध्दिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा!!
बगलामुखी महामंत्र का अर्थ इस प्रकार हैं-
हे देवी मेरे सारे दुश्मनों को बेवस और लाचार कीजिए.उनके बुध्दि और गति को नष्ट कीजिए.
ध्यान देः- बिना सही निर्देश और सहायता के बगलामुखी मंत्र का उच्चारण ना करें.इस साधना के पहले बगलामुखी दीक्षा ले लें.