Wednesday, May 25, 2011

ऐसे चेहरे वाली महिलाएं होती हैं व्यवहारकुशल

हर रोज में कई लोगों से मिलते हैं, कई लोगों का स्वभाव समझ आ जाता है तो कुछ लोगों को समझने में मुश्किल होती है। अन्य लोगों के स्वभाव को समझने की उत्सुकता सामान्यत: सभी में रहती है। सभी जानना चाहते है कि उनके आसपास रहने वाले लोग कैसे हैं? अन्य लोगों को समझने के लिए ज्योतिष में कई प्रकार की विद्याएं बताई गई हैं। जिन्हें अपनाने पर किसी भी व्यक्ति को समझना काफी आसान हो जाता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति का केवल चेहरा देखकर भी उसके मन की बात और उसका स्वभाव मालुम किया जा सकता है। यदि आपके आसपास कोई चौकोर चेहरे वाला इंसान हो तो जानिए कैसा होता है उसका स्वभाव...

वर्गाकार या चौकोर चेहरे वाले लोग स्वस्थ्य, सुन्दर और बलवान होते हैं। ऐसे लोगों का दिमाग व्यवसाय में काफी तेज चलता है, इसी वजह से यह बड़े व्यवसायी बन सकते हैं। ये लोग व्यवहारिक और भौतिक साधनों से संपन्न, सुखी, समृद्ध होते हैं। बहुत सिद्धांतवादी होते हैं लेकिन स्वभाव से थोड़े आलसी होते है। आलस्य के कारण ही कई बार कार्यों को टालते रहते हैं। चौकोर चेहरे वाले लोगों का शरीर स्थूल होता है। चौकोर चेहरे वाली महिलाएं बहुत व्यवहारकुशल होती हैं। ऐसी महिलाएं बहुत जल्द किसी को भी प्रभावित कर लेती हैं। इसी वजह से इनके मित्रों की संख्या अधिक होती है।

सिर्फ अच्छा ही नही बुरा भी हो सकता दान देने से ..

अगर आप सोच रहे है कि दान देने से आपका बुरा समय खत्म हो जाएगा, आपके सितारे आपका साथ देने लगेंगे तो दान देने से पहले ये जान लें कि, आपके लिए कौन सी वस्तु का दान शुभ फल देगा और किस वस्तु के दान देने से आपको नुकसान होगा।

सूर्य- जिस कुंडली में सूर्य मेष रा


चंद्रमा- अगर आपकी जन्मकुण्डली में चन्द्र वृष राशि में (2 नंबर के साथ) हो तो पानी का दान नही करना चाहिए।

मंगल- अगर जन्मकुण्डली में मंगल मकर राशि में (10 नंबर के साथ) हो तो उस व्यक्ति को भूमि, संपत्ति या तांबे की वस्तुओं का दान नहीं देना चाहिए।

बुध- जन्मकुंडली में यदि बुध कन्या राशि में (6 नंबर के साथ) हो तो आपको हरे  वस्त्र या हरी वस्तुओं का दान नहीं देना चाहिए।

बृहस्पति- अगर आपकी जन्मकुण्डली में गुरु कर्क राशि में (4 नंबर के साथ) है तो आपको पीले वस्त्र, पीली वस्तुएं और धार्मिक कार्यों में दान नही देना चाहिए।

शुक्र- जिसकी जन्मकुण्डली में शुक्र ग्रह मीन राशि में (12 नंबर के साथ) होता है उन्हे एश्वर्य पूर्ण वस्तुएं, मनोरंजक एवं सौंदर्य से सम्बंधित वस्तुएं किसी को दान या गिफ्ट नहीं करनी चाहिए।

शनि- यदि शनि देव की स्थिति जन्मकुण्डली में उच्च हो यानी तुला राशि में (७ नंबर के साथ) शनि हो तो, उसे व्यर्थ परिश्रम और भ्रमण नहीं करना चाहिए। और लोहा, वाहन आदि का दान नहीं देना चाहिए।

मछलियां दूर कर देती हैं जीवन की हर परेशानी

मछलियां दूर कर देती हैं जीवन की हर परेशानी


जीवन के दो पहलु बताए गए हैं सुख और दुख। हर व्यक्ति को इन दोनों पहलुओं से रुबरु होना पड़ता है। किसी के जीवन में दुख अधिक होते हैं तो किसी के जीवन में सुख। शास्त्रों के अनुसार कर्मों के अनुसार ही हमें सुख या दुख प्राप्त होते हैं।

ऐसा माना जाता है कि पिछले जन्मों में किए गए कर्मों के आधार पर ही व्यक्ति को नया जन्म मिलता है। यदि किसी व्यक्ति को जीवन में काफी अधिक कष्ट भोगने पड़ रहे हैं तो उसे पुण्य कर्म करने चाहिए। जिससे कि पुराने पापों का नाश होता है और पुण्य की बढ़ोतरी होती है। ऐसा करने पर दुख के प्रभाव में कमी आती है तो सुख प्राप्त होने लगते हैं।

शास्त्रों के अनुसार सभी के कष्टों को दूर करने का एक सटीक उपाय बताया गया है मछलियों को आटे की छोटी-छोटी गोलियां बनाकर खिलाना। यदि आपकी कुंडली में कोई दोष या ग्रह बाधा हो तो इस उपाय काफी कारगर सिद्ध होता है। मछलियों को खाना खिलाने बहुत शुभ कर्म माना जाता है। इससे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था इससे मछलियों का महत्व काफी अधिक बढ़ जाता है। इसके अलावा सभी देवी-देवताओं और ग्रहों की कृपा प्राप्ति के लिए भी यह श्रेष्ठ उपाय है। प्रतिदिन मछलियों को आटे की छोटी-छोटी गोलियां खिलाने पर मन को असीम शांति की प्राप्ति होती है। हमेशा खुश और शांत रहने के लिए भी यह उपाय करना चाहिए।

नवांश के उपयोगीता

नवांश के उपयोगीता 
सभी वर्ग कुंडलियों में नवांश सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं. विम्शोपक बल में भी जन्म कुंडली के बाद सबसे महत्वपूर्ण नवांश ही हैं.विम्शोपक बल में लग्न कुंडली के बाद सबसे अधिक अंक नवांश को दिए गए हैं. जन्म कुंडली और नवांश को देख कर ही आप ग्रह किस नक्षत्र और चरण में हैं ज्ञात कर सकते हैं. ज्योतिषीय ग्रन्थ जैसे बृहत् पराशर होरा शास्त्र, जातक पारिजात, चंद्र नाडी कला, बृहत् जातक इत्यादि में नवांश के उपयोग कई स्थानों पर वर्णित हैं. मेरी सक्षमता के आधार पर मैं जितना समझ पाया वो आप सभी ज्योतिष प्रेमियों से बाँटना चाहूँगा.
नवांश के उपयोग :-
१) यदि ग्रह जन्म कुंडली में निर्बल अर्थात पाप ग्रहों से दृष्ट नीच का हो, अस्त हो परन्तु नवांश में बली हो तो ग्रह के पास बल होता हैं.
२) अस्त ग्रह यदि नवांश में सूर्य से २ भाव से अधिक दूरी पर हो तो अस्त ग्रह भी फल देने में सक्षम होता हैं.
३) कोई भी ग्रह यदि मित्र तथा सौम्य ग्रह के नवांश में हो तो उस ग्रह का फल अवश्य और शुभ मिलता हैं.
४) शुभ राशि में वर्गोत्तम ग्रह शुभ फल देता हैं.
५) क्रूर राशि में वर्गोत्तम ग्रह संघर्षो के बाद परिणाम देता हैं.
पर इस लेख में मैं नवांश पर नहीं नवांश के स्वामी पर चर्चा करना चाहता हूँ.
सारावली के अनुसार , चंद्र राशि हमारे स्वभाव को दर्शाती हैं परन्तु यदि जिस नवांश में चंद्र हैं उसका स्वामी अधिक बली हो तो स्वभाव नवांश के अनुसार होगा.
सर्वार्थ चिंतामणि के अनुसार, यदि चतुर्थ भाव का स्वामी जिस नवांश में हैं उसका स्वामी लग्न कुंडली में केन्द्र गत हो तो ऐसे जातक को घर-सम्पदा का सुख अवश्य प्राप्त होता हैं.
परन्तु यदि वह त्रिक भाव (६-८-१२) में हो तो ऐसे जातक को घर-सम्पदा के सुख की हानि होती हैं.
ऐसे श्लोक हमे बाध्य करते हैं की हम नवांश के स्वामी की स्थिति फल कथन से पहले अवश्य विचार लें.
जब सर्वार्थ चिंतामणी के श्लोक पर ध्यान देते हुए कुछ जानी पहचानी कुण्डलियाँ देखी तो परिणाम अद्भुत था. यदि भावेश का नवांश अधिपति लग्न कुंडली मे केंद्र अथवा त्रिकोण में बली हो तो उस भाव के फल अवश्य मिलते हैं.
और यदि भावेश का नवांश अधिपति निर्बल होकर त्रिक भावो में हो तो निश्चय ही उस भाव के फल में कमी आएगी

गर्भस्थ शिशु पुत्र या पुत्री ....................


गर्भस्थ शिशु पुत्र या पुत्री ....................

गर्भस्थ शिशु के लिंग पर आधारित प्रश्न कई बार पूछे जाते हैं, इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर देने से बचना चाहिए क्योंकि कहीं इस कारण से आप भ्रूण हत्या के दोषी न बन जाएँ| यदि आप आश्वस्त हैं की आपके उत्तर से शिशु पर कोई प्रभाव नही पड़ेगा तभी आप ज्योतिषीय ज्ञान से उत्तर देने का प्रयास करें| लिंग आधारित प्रश्नों के उत्तरों पर कई प्रकार से विचार होता है| उनमे जो प्रमुख हैं वे इस प्रकार हैं :
राशि और ग्रह के योग :- प्रश्न कर्ता यदि प्रथम संतान पर विश्लेषण चाहता हैं तो पंचम भाव में स्थित ग्रह से विचार करें, यदि भाव रिक्त हो तो पंचम भाव पर दृष्टि और तदुपरांत राशि पर ध्यान दें|
इसी प्रकार पंचम भाव का स्वामी की युति, फिर उस पर दृष्टि और अंत में राशि जिस में पंचमेश स्थित है उस पर विचार करें| दोनों में जिस की अधिकता हो उसके अनुसार फल कहें|


उपरोक्त कुंडली में पंचम भाव में केतु स्थित हैं, उस पर शनि (स्त्री/नपुंसक) ग्रह की दृष्टि हैं| पंचम भाव में कुम्भ राशि (पुरुष) है| पंचमेश शनि राहू के साथ सिंह राशि(पुरुष) राशि में हैं और मंगल (पुरुष) से दृष्ट है| राहू और केतु लिंग रहित ग्रह हैं| यहाँ हमने देखा की पंचम-पंचमेश दोनों ओज विषम राशि में हैं| पंचमेश पर मंगल के रूप में एक पुरुषकारक ग्रह की दृष्टि हैं| इस जातक की पहली संतान पुत्र हैं |
पहली संतान पंचम से और दूसरी क्योंकि उसकी अनुज होगी इसलिए दूसरी का विचार पंचम से तीसरे अर्थात सप्तम से होता हैं| नियम उपरोक्त ही रहेंगे परन्तु भाव सप्तम हो जायेगा |दूसरी संतान पर भी इसी तरह विचार करें, सप्तम भाव में कोई ग्रह नही हैं और न ही किसी ग्रह की उसपर दृष्टि है| सप्तम भाव में मेष एक विषम राशि हैं जो पुत्र की सूचक हैं, सप्तमेश मंगल सम(कन्या) राशि में हैं, उस पर शनि की दसवी दृष्टि हैं, जो पुत्री दर्शाती हैं अब यदि निचोड़ देखा जाएँ तो दो प्रभाव पुत्री और केवल एक प्रभाव पुत्र को दर्शाता हैं| जातक की दूसरी संतान पुत्री हैं|


उपरोक्त कुंडली में पंचम भाव में मीन राशि में शुक्र चन्द्र की युति हैं और किसी ग्रह की दृष्टि नहीं हैं| पंचमेश गुरु मेष राशि में हैं और मंगल और शनि दोनों से दृष्ट हैं | अब यदि हम सार देखें तो मीन राशि +शुक्र +चन्द्र +शनि यहाँ ४ प्रभाव पुत्री दर्शाते हैं और (मेष राशि + मंगल की दृष्टि) दो प्रभाव पुत्र के लिए हैं जातक की पहली संतान पुत्री हैं|

इस जातक के पंचम भाव में धनु राशि, ग्रह और दृष्टि दोनों से विहीन हैं, पंचमेश गुरु वृषभ राशि में मंगल से दृष्ट हैं|
सार :- धनु राशि (पुत्र)+ वृषभ राशि(कन्या )+मंगल की दृष्टि (पुत्र)
पुत्र होने की संभावना अधिक आ रही हैं, इस जातक की पहली संतान पुत्र ही हैं|
और दूसरी संतान भी पुत्र ही हैं |
यहाँ संतान पर विचार करते समय हमें यह अवश्य जान लेना चाहिए की कभी गर्भ पात हुआ हैं या नहीं क्योंकि यदि गर्भपात कभी हुआ हैं तो उस भाव को छोड़ कर अगले तीसरे भाव पर जाना चाहिए| उदहारण के लिए प्रथम संतान के बाद गर्भ पात हुआ है तो दूसरी संतान का विचार सप्तम से नही अपितु नवम से करना चाहिए |यदि कुंडली उपलब्ध न हो तो एक और कारगर उपाय हैं जो की ज्योतिष के प्रकांड ज्ञाता स्वर्गीय बी वी रमण की एक पुस्तक में निहित हैं उसके अनुसार जिस समय जातक यह प्रश्न कर रहा हो उस समय की तिथि, वार और गर्भिणी के नामाक्षर का योग कर लें और उस संख्या में २५ और जोड़ कर ९ से भाग दें यदि शेष विषम आयें तो पुत्र और सम आयें तो कन्या होने की सम्भावना हैं |

गंड नक्षत्र पद

गंड नक्षत्र पद
 
बुध और केतु के नक्षत्र गंड मूल नक्षत्र कहलाते हैं, परन्तु इसके साथ साथ कुछ नक्षत्रो के पद अशुभ होते हैं, और उसका प्रभाव अन्य संबंधियो पर भी होता हैं इसकी जानकारी निम्नलिखित है :-
१)       अश्विनी प्रथम पद :- पिता के लिए ३ महीने तक भारी, उपाय :- सोना दान दें |
२)     भरणी :- बालक के लिए भारी २७ दिन तक
३)     रोहिणी :-१) मामा पर भारी २)पिता पर भारी ३) माता पर भारी
४)     पुष्य नक्षत्र लड़के का जन्म दिन में हो हो और कर्क लग्न हो :- पिता पर भारी
५)     पुष्य नक्षत्र कन्या का जन्म रात्रि में हो और कर्क लग्न हो :- माता पर भारी
६)      पुष्य नक्षत्र प्रथम पद :- मामा पर भारी
७)     आश्लेषा  २ पद जातक पर भारी, ३ पद माता पर भारी, ४ पद पिता पर भारी, उपाय :-भोजन का दान देना|
८)     मघा का १ पद पिता पर ५ महीने के लिए भारी, उपाय : घोडा दान दें|
९)      उत्तर फाल्गुनी १ और ४ पद माता पिता और भाई-बहन पर ३ महीने तक भारी|
१०)   चित्रा का १,२ और ३ पद माता पिता और भाई-बहन पर ६ महीने तक भारी| उपाय: वस्त्र दान
११)    विशाखा ४ पद देवर पर भारी |

नीच बुरा नहीं और वक्री उल्टा नहीं

नीच बुरा नहीं और वक्री उल्टा नहीं
मैं वक्री, नीच और अस्‍त ग्रहों के बारे में पहले भी कुछ कुछ लिख चुका हूं, लेकिन इस बार शब्‍दावली के तौर पर एक साथ तीनों बिंदुओं पर यह देना जरूरी समझा। देखिएगा...  
केस – 1
एक जातक ज्‍योतिषी के पास पहुंचता है और अपनी कुण्‍डली दिखाता है। ज्‍योतिषी जातक से कहता है कि आपकी कुण्‍डली कन्‍या लग्‍न की है, लेकिन बुध अस्‍त होने के कारण आप कुछ कर नहीं पा रहे हैं। लग्‍न में बुधादित्‍य (सूर्य और बुध के साथ होने का योग) के बावजूद आपकी कुण्‍डली असरदार नहीं रह गई है। जातक ज्‍योतिषी से इसका उपाय पूछता है। कुण्‍डली के कारक ग्रहों का उपचार बताने के बजाय ज्‍योतिषी जातक को बुध के उपाय बताकर भेज देता है।

केस – 2
पुस्‍तक में पढ़कर अपनी कुण्‍डली का विश्‍लेषण कर रहे व्‍यक्ति को पता चलता है कि शनि के वक्री होने के कारण उसके सारे काम उल्‍टे हो रहे हैं और आने वाली महादशा भी शनि की ही है। इससे परेशान हुआ व्‍यक्ति ज्‍योतिषियों के चक्‍कर निकालने लगता है। वह हर ज्‍योतिषी से यही पूछता है कि वक्री शनि का उपचार क्‍या है। जबकि वास्‍तव में उसकी कुण्‍डली में शनि अकारक है। यानि उसकी जिंदगी में शनि की बजाय अन्‍य ग्रहों का रोल अधिक है।


ऐसे ही कई उद्धरण ज्‍योतिषियों के पास आते हैं और आम लोग भी ग्रहों के अस्‍त या वक्री होने से परेशान नजर आते हैं। ज्‍योतिष की मूल रूप से दो शाखाएं हैं। सिद्धांत और फलित। सिद्धांत शाखा में जहां ज्‍योतिषीय गणनाओं के बारे में विस्‍तार से दिया गया है वहीं फलित ज्‍योतिष में ग्रहों, राशियों और नक्षत्रों का मनुष्‍य के जीवन पर प्रभाव के बारे में विशद वर्णन है। समय के साथ सिद्धांत और फलित शाखाओं में समय के साथ दूरी बनती जा रही है। एक ओर जहां फलित की पुस्‍तकों के ढेर लग रहे हैं वहीं सिद्धांत ज्‍योतिष उपेक्षित होती जा रही है। इसी का नतीजा है कि सिद्धांत में दिए गए शब्‍दों को फलित ज्‍योतिष में भली भांति समझे जाने के बजाय उनके सामान्‍य शब्‍दों के अनुरूप ही अर्थ निकाले जाने लगे हैं। पहले पहल नौसिखिए ज्‍योतिषियों ने इन शब्‍दों के शाब्दिक अर्थों का प्रयोग किया, बाद में तो कई पुस्‍तकों तक में इन शब्‍दों के गलत अर्थ आ गए। इससे आम लोगों में भी ज्‍योतिषीय शब्‍दों को लेकर भ्रांतियां बढ़ती जा रही हैं। वास्‍तव में शब्‍दों के अर्थ समझना विषय को समझने से पहले जरूरी है।

वक्री और मार्गी का असर

सिद्धांत ज्‍योतिष में स्‍पष्‍ट किया गया है कि वक्री क्‍या होता है। हम सामान्‍य विज्ञान के दृष्टिकोण से देखें तो पता चलेगा कि सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर दीर्धवृत्ताकार कक्षा में चक्‍कर लगा रहे हैं। चूंकि पृथ्‍वी भी सूर्य के चारों ओर चक्‍कर लगा रही है, अत: सापेक्ष गति के कारण ऐसा दिखाई देता है। अगर सौर मण्‍डल में ग्रहों का मार्ग पूर्णत: वृत्ताकार होता तो कभी कोई ग्रह वक्री या मार्गी नहीं होता, लेकिन दीर्धवृत्ताकार चक्‍कर निकालने के कारण पृथ्‍वी से देखे जाने पर ये ग्रह कभी अधिक तेज गति से चलते हुए तो कभी धीमी रफ्तार से चलते हुए दिखाई देते हैं। वास्‍तव में कोई भी ग्रह उल्‍टी चाल से नहीं चलता है। सिद्धांत ज्‍योतिष ने यह तो स्‍पष्‍ट कर दिया कि कब ग्रह की मार्गी गति होती, कब अतिचाल होगी और कब वक्री गति होगी, लेकिन फलित ज्‍योतिष में इसके असर के बारे में स्‍पष्‍ट नहीं किया गया है कि ग्रहों की इस चाल का से क्‍या और क्‍यों असर में बदलाव आता है। इसका एक सिद्धांत यह भी बताया जाता है कि ग्रह के वक्री होने पर वह किसी राशि विशेष में अधिक समय तक ठहरकर सूर्य और अन्‍य नक्षत्रों से मिली राशियों को पृथ्‍वी की ओर भेजता है। इससे वक्री ग्रह का प्रभाव सामान्‍य के बजाय उच्‍च की भांति हो जाता है। वहीं दूसरी ओर अतिचाल के कारण ग्रह कम समय के लिए राशि में ठहरता है और नक्षत्रों से मिली रश्मियों को अपेक्षाकृत कम समय के लिए जातक की ओर भेजता है। ऐसे में उसका प्रभाव नीच की भांति हो जाता है।

प्रकृति में नहीं होता बदलाव

फलित ज्‍योतिष में हर ग्रह और राशि (नक्षत्रों के समूह) की प्रकृति के बारे में विस्‍तार से जानकारी दी गई है। ग्रहों के रंग, दिशा, स्‍त्री-पुरुष भेद, तत्‍व और धातु के अलावा राशियों के गुणों के बारे में भी बताया गया है। ग्रहों और राशियों की प्रकृति स्‍थाई होती है। इनके प्रभाव में कमी या बढ़ोतरी हो सकती है, लेकिन मूल प्रकृति में कभी बदलाव नहीं होता। जब कोई ग्रह अपनी नीच राशि में जाता है तो यह माना जाता है कि इस राशि में ग्रह का प्रभाव अपेक्षाकृत कम होता है और उच्‍च राशि में अपना सर्वाधिक प्रभाव देता है। सूर्य मेष राशि में, चंद्रमा वृष में, बुध कन्‍या में, शनि तुला में, मंगल मकर में, गुरु कर्क में और शुक्र मीन राशि में उच्‍च का होता है। इसका तात्‍पर्य यह हुआ कि इन राशियों में ग्रहों का प्रभाव अधिक होगा। दूसरी ओर सूर्य तुला में, चंद्रमा वृश्चिक में, बुध मीन में, शनि मेष में, मंगल कर्क में, गुरु मकर में और शुक्र कन्‍या राशि में नीच का प्रभाव देते हैं। यहां इन ग्रहों का प्रभाव सबसे कम होता है। अब प्रभावों में बढ़ोतरी हो या कमी, न तो ग्रह की और न ही राशि की प्रकृति में कोई बदलाव आता है। ऐसे में किसी ग्रह के नीच या उच्‍च होने पर उसके प्रभाव को नीच या उच्‍च नहीं कहा जा सकता है।

ग्रहों की बत्ती नहीं बुझती

ज्‍योतिष में सौरमण्‍डल के अन्‍य ग्रहों के साथ सूर्य को भी एक ग्रह मान लिया गया है, लेकिन वास्‍तव में सूर्य ग्रह न होकर एक तारा है। ग्रह जहां सूर्य की रोशनी से चमकते हैं वहीं सूर्य खुद की रोशनी से दमकता है। पृथ्‍वी से परीक्षण के दौरान हम देखते हैं कि कई बार ग्रह सूर्य के बहुत करीब आ जाते हैं। किसी भी ग्रह के सूर्य के करीब आने पर ज्‍योतिष में उसे अस्‍त मान लिया जाता है। आमतौर पर दस डिग्री से घेरे में सभी ग्रह अस्‍त रहते हैं। सिद्धांत ज्‍योतिष के अस्‍त के कथन को भी फलित ज्‍योतिष में गलत तरीके से लिया जाने लगा है। अस्‍त ग्रह के लिए यह मान लिया जाता है कि अमुक ग्रह ने अपना प्रभाव खो दिया, लेकिन वास्‍तव में ऐसा नहीं होता। ग्रह खुद की किरणें भेजने के बजाय नक्षत्रों से मिली किरणें जातकों तक भेजते हैं। बुध और शुक्र सूर्य के सबसे करीबी ग्रह हैं। छोटे कक्ष में लगातार चक्‍कर लगा रहे ये ग्रह सर्वाधिक अस्‍त होते हैं। अन्‍य ग्रह भी समय समय पर अस्‍त और उदय होते रहते हैं। फलित ज्‍योतिष के अनुसार इन ग्रहों के अस्‍त होने का वास्‍तविक अर्थ यह है कि नक्षत्रों (तारों के समूह) से मिल रहे किरणों के प्रभाव को अब ग्रह सीधा भेजने के बजाय सूर्य के प्रभाव के साथ मिलाकर भेज रहे हैं। ऐसे में ग्रह का प्रभाव यथावत तो रहेगा ही उसमें सूर्य का प्रभाव भी आ मिलेगा। इसी वजह से तो बुधादित्‍य के योग को हमेशा बेहतरीन माना गया है।    - एस. जोशी