Monday, February 7, 2011

हमारे द्वारा कार्य करने की प्रक्रिया



हमारे द्वारा कार्य करने की प्रक्रिया :-
हमारी इन्द्रियां जो कुछ देखती है ,सुनती है ,स्पर्श करती है ,सूंघती है ,चखती या स्वाद लेती है वो सुचना हमारे मन के पास पहुचती है ! मन फिर वो सूचना बुद्धि को देता है फिर बुद्धि उसके बारे में सोच विचार करती है ! सोच विचार करके बुद्धि मन को जवाब देती है फिर मन इन्द्रियों को जवाब देता है फिर इन्द्रियां जवाब के अनुसार अपना काम करती है ! 

मति में अगर तप है,मति अगर सुमति है ,बुद्धि सात्विक है तो वह उस सुचना का विवेक करती है ।
मति में अगर तप नहीं है , बुद्धि तामसी ,राजसी है तो वह मन इन्द्रियों को जो अच्छा लगे वही निर्णय देती है।

और ऐसा करते करते इन्सान की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है,जब देखने, सुनने, चखने, भोगने की वासना मति ने स्वीकार कर ली तो मति का स्वभाव हो जाता है कि अभी वह चखना है, यह खाना है, यह भोगना है। ऐसा करते-करते जीवन पूरा हो जाता है फिर भी कुछ न कुछ करना-भोगना, खाना-पीना बाकी रह जाता है। 

मनुष्य जन्म में ऐसी मति मिली है कि इससे वह भूत का, भविष्य का चिन्तन-विचार कर सकता है। पशु तो कुछ समय के बाद अपने माँ-बाप को भी भूल जाते हैं, भाई-बहन को भी भूल जाते है और संसार व्यवहार कर लेते हैं। मनुष्य की मति में स्मृति (याददास्त ) रहती है। इसलिए जो भी करो सोच समझकर करो,और फिर जैसा आप करोगे उसका परिणाम भी आपको ही भुगतना पड़ेगा !
हम अपनी बुद्धि को सात्विक बना सकते हैं, अपनी मति को सुमति बना सकते हैं ओर ये जप, तप ,ध्यान और सत्संग से संभव है
♥ हरी ॐ

No comments: