Wednesday, May 8, 2019

आभामंडल परिचय

आभामंडल परिचय
कहते हैं मन खुश हो तो सब अच्छा लगता है और यदि मन ही उदास हो तो जीवन में कोई रस नहीं दिखता। रोजाना एक जैसे दिनचर्या बिताने वाले लोगों के लिए मन के उतार-चढ़ाव का होना आम बात है। लेकिन अचानक किसी में एक अलग चमक देख हैरानी होती है और मन में सवाल आता है कि वह आज खुश कैसे है, क्या कुछ बात हुई, उसके निखरे हुए चेहरे का क्या राज है? आखिर क्या है जो आज उसके आसपास सब कुछ काफी चमकदार सा लगता है। इसका कारण जान आप दंग भी रह सकते हैं।

जिस तरह आपका मन आपके शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है, उसी तरह से आपका शरीर भी आपके मन को एनर्जी देता है। यही कारण है कि कई बार लोग काफी खुश प्रतीत होते हैं। उनके चारो ओर का वातावरण खुशनुमा लगता है। इसे आप आभामण्डल यानी कि “औरा” भी कह सकते हैं। लेकिन क्या है यह आभामण्डल?

यदि वैज्ञानिक रूप से देखें तो बताया जाता है कि मनुष्य का केवल एक शरीर ही नहीं होता है, बल्कि इस भौतिक शरीर के अलावा एक प्रकाशमय एवं ऊर्जावान शरीर भी होता है। एक ऐसा शरीर जो ऊर्जा के रूप में मनुष्य के शरीर के चारो ओर 2 फीट की दूरी पर दिखाई देता है। इस शरीर को आप छू नहीं सकते, लेकिन इसकी किरणों को महसूस जरूर कर सकते हैं।

क्या आप जानते हैं कि मानव शरीर को चार प्रकार के शरीर में विभाजित किया गया है? इसमें से एक शरीर वही है जो मनुष्य अपने जीवन के दौरान अपने साथ लेकर चल रहा है, लेकिन अन्य सभी शरीर आत्मा के अलग होने के बाद आते हैं। लेकिन आभामण्डल स्वयं भी मानव के एक शरीर का निर्माण करता है, यह शरीर सूक्ष्म शरीर है इसीलिए दिखाई नहीं देता।

केवल मनुष्य ही क्यों, बल्कि अन्य जीव जंतुओं के पास भी एक सूक्ष्म शरीर होता है जो उनके आभामण्डल को परिभाषित करता है। चाहे मनुष्य हो या अन्य कोई भी जीव हो, हर किसी का अपना औरा होता है। यह औरा विभिन्न रंगों की किरणों के साथ मनुष्य के आसपास चक्रिय आकार में घूमता है।

आभामण्डल का आकार तथा उसका रंग एक मनुष्य के बारे में कई चीजों की जानकारी देता है। क्या आप जानते हैं कि इस आभामण्डल की मदद से एक इंसान के चरित्र, उसके विचारों तथा उसकी सोच का पता चलता है। यह आभामण्डल बताता है कि आपके सामने खड़ा इंसान किस प्रकार की सोच में गुम है।

क्या वह वास्तव में आपके साथ है भी या अपनी ही किसी दुनिया में खोया है। आभामण्डल में मौजूद रंग हमें एक इंसान के चरित्र का जो वर्णन देते हैं वह काफी दिलचस्प है। माना जाता है कि यदि एक इंसान देखने में काफी आकर्षक लग रहा है और तरोताजा प्रतीत होता है तो इसका अर्थ है कि वह विभिन्न रुचियों से भरा है।

लेकिन वहीं दूसरी ओर यदि उसका आभामण्डल केवल एक या दो रंगों को ही दर्शाता है तो इसका तात्पर्य है कि उसका जीवन केवल कुछ ही विषयों के आसपास घूम रहा है।

यह रंग हमारे आभामण्डल को परिभाषित करते हैं। क्या आप जानते हैं कि यही आभामण्डल आपके आध्यात्मिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डालता है, लेकिन कैसे? इसका जवाब आभामण्डल में मौजूद रंगों द्वारा मिलता है। जिससे आप ना केवल अपने बल्कि किसी और के चरित्र को भी पहचान सकते हैं। लेकिन क्या आपने कभी जाना है कि आपका आभामण्डल आपके बारे में क्या कहता है?

आप कैसे खुद के आभामण्डल को जान सकते हैं इसके लिए इसका सही ज्ञान होना आवश्यक है। यदि आप अपने आभामण्डल को पहचान पाएंगे तो आप किसी के भी आभामण्डल को विस्तारित करने के योग्य होंगे। जैसा कि उपरोक्त पंक्तियों में बताया गया है कि हमारे औरा में मौजूद रंग ही उस आभामण्डल को परिभाषित करते हैं, तो आइए जानें कौन से रंग क्या कहते हैं:

यदि आपको आभामण्डल का रंग लाल या गहरा प्रतीत हो है तो इसका मतलब है कि वह इंसान बहुत जल्दी क्रोधित हो जाता है। ऐसे इंसान जब गुस्से में होते हैं तो वे नहीं जानते कि वे क्या बोल रहे हैं। इनके गुस्से की कोई सीमा नहीं होती और जब वे क्रोधित होते हैं तो कुछ भी सोचते-विचारते नहीं हैं।

कहते हैं जिस व्यक्ति के आभामण्डल में पीले रंग का आभास हो उनका मस्तिष्क काफी सचेत रहता है, लेकिन यदि यही पीला रंग गहरा हो जाए तो यह अच्छा संकेत नहीं है।

यदि किसी व्यक्ति का आभामण्डल आपको नारंगी रंग का लगता है तो ऐसे लोग रचनात्मक स्वभाव के होते हैं। इन्हें भावनात्मक भी माना जाता है। अगला रंग है पीला यह बुद्धिमानी का प्रतीक है।

इसके बाद आभामण्डल में यदि हरा रंग दिखाई दे तो ऐसा इंसान काफी शांत स्वभाव का होता है। एक बाग में दिखने वाली हरियाली की तरह ही ऐसे इंसान के चेहरे पर आप संतुष्टि देख सकते हैं।

परंतु आभामण्डल में काला रंग दिखाई दे तो यह जीवन की असंतुष्टि की व्याख्या करता है। ऐसे लोग जीवन में खुश नहीं होते। इनका मानसिक स्वास्थ्य भी स्थिर नहीं रहता।

यानी कि परेशानियां इनके जीवन का एक विशेष भाग बनकर बैठी हैं। माना जाता है कि काले आभामण्डल वाले लोग ही नशीले पदर्थों का सबसे ज्यादा सेवन करते हैं। लेकिन दूसरी ओर यदि किसी इंसान के आभामण्डल में नीले रंग की छाया नज़र आए तो यह सबसे अच्छा रंग माना जाता है।

ऐसे व्यक्ति बेहद उत्साहित एवं कुशल स्वभाव के होते हैं। लेकिन बाकी रंगों की तरह ही यदि इस रंग पर भी काला या मटमैला रंग आ जाए, तो यह व्यक्ति को चिंता में डाल देता है। उसका उत्साह अति उत्साह बनकर उसी के जीवन को ग्रस्त करने में लग जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं क्कि यदि आपका आभामण्डल आपको बुरा प्रतीत होता है तो आप स्वयं उसका हल भी निकाल सकते हैं।

किसी भी सदस्य को अपनी औरा चेक करवानी हो तो अपनी फ़ोटो भेज कर पूछ सकते हैं ।

*विकास नागपाल*
_ज्योतिष एवं वास्तु सलाहकार_
🎄 *सुकृति एस्ट्रो वास्तु रिसर्च सेंटर*🎄
_समस्या आपकी समाधान हमारे_
करनाल ।
9215588984

Thursday, February 14, 2019

ज्योतिष से कैसे पता करें किसने की है आपके घर में चोरी और कहां रखा है सामान

ज्योतिष से कैसे पता करें किसने की है आपके घर में चोरी और कहां रखा है सामान कभी-कभी घरों में छोटी मोटी चोरी की घटना घट जाती है। तब एक छटपटाहट सी रहती है, चोर कौन हो सकता है। ज्योतिष द्वारा इसका सटीक पता प्रश्न कुंडली से लगाया जाता है। जब भी चोरी का पता लगता है, उस समय को नोट कर लीजिये, प्रश्न कुंडली बनायें।

मेष या वृषभ लग्न- पूर्व दिशा
मिथुन लग्न- अग्नि कोण
कर्क लग्न- दक्षिण
सिंह लग्न- नैरित्य कोण
कन्या लग्न- उत्तर दिशा
तुला और वृश्चिक लग्न- पश्चिम दिशा
धनु लग्न- वायव्य कोण
मकर और कुम्भ लग्न- उत्तर दिशा
मीन लग्न- इशान कोण

उपरोक्त लग्नों में खोयी वस्तु, उसके दिखाए गए लग्नो के सामने की दिशा में गयी है। चोरी करने वाला कौन हो सकता है ? नीचे लिखे लग्नों के आधार पर पता लगाया जा सकता है।

मेष लग्न- ब्राह्मण या सम्मानीय भद्र पुरुष
वृषभ लग्न- क्षत्रिय
मिथुन लग्न- वेश्य
कर्क लग्न- शुद्र या सेवक वर्ग
सिंह लग्न- स्वजन या आत्मीय व्यक्ति
कन्या लग्न- कुलीन स्त्री ,घर की बहू -बेटी या बहन
तुला लग्न- पुत्र ,भाई या जमाता
वृश्चिक लग्न- इतर जाति का व्यक्ति
धनु लग्न- स्त्री
मकर लग्न- वेश्य या व्यापारी
कुम्भ लग्न- चूहा
मीन लग्न- खोयी घर में ही पड़ी है कहीं

चोरी हुई वस्तु कहां छिपाई गयी?

-लग्नेश और सप्तमेश का आपस में परिवर्तन या दोनों एक ही भाव में हो तो वस्तु घर में ही कहीं छुपी या छुपाई गयी है।

-चंद्रमा अगर लग्न में हो तो वस्तु पूर्व दिशा में होगी और अगर सप्तम में हो तो वस्तु पश्चिम में मिलेगी। चंद्रमा अगर दशम ने हो तो दक्षिण और चतुर्थ में हो तो वस्तु उत्तर दिशा में मिलेगी।

-अगर लग्न में अग्नितत्व राशि ( मेष, सिंह, धनु ) हो तो वस्तु घर के पूर्व, अग्नि -स्थान, रसोई घर में ही मिल जाती है।

-लग्न में अगर पृथ्वी -तत्व राशि ( वृषभ, कन्या, मकर ) हो तो वस्तु दक्षिण दिशा में भूमि में दबी मिलेगी।

-अगर लग्न में वायु -तत्व राशि ( मिथुन, तुला, कुम्भ ) हो तो वस्तु पश्चिम दिशा में हवा में लटकाई गयी है।

-लग्न में जल-तत्व राशि ( कर्क, वृश्चिक, कुम्भ ) हो तो वस्तु जलाशय के पास या उसके आस-पास उत्तर दिशा में मिलेगी।

खोई हुई वस्तु का ज्ञान

खोई हुई वस्तु का ज्ञान

क्या आपकी कोई बस्तु चोरी हो गयी है या खो गयी है? तो आप भी पता कर सकते हैl या कोई आप की दी हुई चीज समान या पैसा वापिस आप को वापिस नही कर रहा? या आप अपनी गुम
वस्तु का पता करना चाहते है?तो ईस मंत्र के प्रयोग से आप भी सफल हो सकते हैl
कोई भी सामान खोना/चोरी होना आज
के समय मे सामान्य बात है।
अंक विद्या में गुम हुई वस्तु के बारे में प्रश्र किया जाए तो उसका जवाब
बहुत हद तक सच साबित होता है।
जैसे
सर्व प्रथम आप 1 से 108 के बीच का एक अंक मन मे सोचे।
और उस अंक को 9 से भाग दें। शेष जो अंक आये तो आगे लिखे अनुसार उसका
उत्तर होगा।
शेष अंक 1 ( सूर्य का अंक है )
पूर्व में मिलने की आशा है।
शेष अंक 2 ( चंद्र का अंक है )
वस्तु किसी स्त्री के पास होने की
आशा है पर वापस नहीं मिलेगी।
शेष अंक 3 ( गुरु का अंक है )
वस्तु वापिस मिल जायेगी। मित्रों और परिवार के लोगों से पूछें।
शेष अंक 4 ( राहु का अंक है )
ढूढ़ने का प्रयास व्यर्थ है। वस्तु आप की
लापरवाही से खोई है।
शेष अंक 5 ( बुध का अंक है )
आप धैर्य रख्खें वस्तु वापस मिलने की आशा है।
शेष अंक 6 ( शुक्र का अंक है )
वस्तु आप किसी को देकर भूल गए हैं।
घर के दक्षिण पूर्व या
रसोई घर में ढूंढने की कोशिश करें।
शेष अंक 7 ( केतु का अंक है )
चिंता न करें खोई वस्तु मिल जायेगी।
शेष अंक 8 ( शनि का अंक है )
खोई वस्तु मिलने की आशा नहीं है। वस्तु को भूल
जाएँ तो अच्छा है।
शेष अंक 9 या 0 ( मंगल का अंक है )
यदि खोई वस्तु आज मिल गई तो ठीक अन्यथा मिलने
की कोई आशा नहीं है।
उदाहरण :- के लिए अगर प्रश्नकर्ता ने 83 अंक कहा है तो
83 को 9 से भाग दें
83÷9 = 2
शेष आया 2 जो चंन्द्र का अंक है।
वस्तु किसी स्त्री के पास है पर वापस प्राप्त नही होगीl
खोये सामान की जानकारी मिलेगी अथवा नहीं मिलेगी?
इसके लिए सभी नक्षत्रों को चार बराबर भागों में बाँट दिया गया है. एक भाग में सात नक्षत्र आते हैं. उन्हें अंध, मंद, मध्य तथा सुलोचन नाम दिया गया है. इन नक्षत्रों के अनुसार चोरी की वस्तु का दिशा ज्ञान तथा फल ज्ञान के विषय में जो जानकारी प्राप्त होती है वह एकदम सटीक होती है.
नक्षत्रों का लोचन ज्ञान |
अंध लोचन नक्षत्र
रेवती, रोहिणी, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, पूर्वाषाढा़, धनिष्ठा.
मंद लोचन नक्षत्र
अश्विनी, मृगशिरा, आश्लेषा, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढा़, शतभिषा.
मध्य लोचन नक्षत्र
भरणी, आर्द्रा, मघा, चित्रा, ज्येष्ठा, अभिजित, पूर्वाभाद्रपद.
सुलोचन नक्षत्र नक्षत्र
कृतिका, पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, मूल, श्रवण, उत्तराभाद्रपद.
यदि वस्तु अंध लोचन में खोई है तो वह पूर्व दिशा में शीघ्र मिल जाती है.
👉 यदि वस्तु मंद लोचन में गुम हुई है तो वह दक्षिण दिशा में होती है और गुम होने के 3-4 दिन बाद कष्ट से मिलती है.
👉यदि वस्तु मध्य लोचन में खोई है तो वह पश्चिम दिशा की ओर होती है और एक गुम होने के एक माह बाद उस वस्तु की जानकारी मिलती है. ढा़ई माह बाद उस वस्तु के मिलने की संभावना बनती है.
👉यदि वस्तु सुलोचन नक्षत्र में गुम हुई है तो वह उत्तर दिशा की ओर होती है. वस्तु की ना तो मिलती है ।
गुम वस्तु की प्राप्ति हेतु दिव्य मंत्र-
👇💐👇💐👇💐👇💐👇
जीवन में भूलना, गुमना, चले जाना, बलात ले लेना अथवा लेने के बाद कोई भी वस्तु वापस नहीं मिलना ऐसी घटनाएं स्वाभाविक रूप से घटित होती रहती है।
यदि आप का कोई भी सामान खो गया है या मिल नही रहा तो अपने पूजाघर मे
एक देशी घी का दीपक लगाकर पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठें। अपनी गुम वस्तु की कामना को उच्चारण कर भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्रधारी रूप का ध्यान करें इस मंत्र का विश्वासपूर्वक जप 1008 बार करें।इससे
गुम हुई चीज या अपना फसा धन प्राप्ति होने की सम्भावना प्रबल हो जाती हैl
मंत्र :-👉 ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान।
यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।

धन-नाश योग:

धन-नाश योग: —

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल ग्रह को कर्ज का कारक ग्रह माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार मंगलवार को कर्ज लेना निषेध माना गया है। वहीं  बुधवार को कर्ज देना अशुभ है क्योंकि बुधवार को दिया गया कर्ज कभी नही मिलता। मंगलवार को कर्ज लेने वाला जीवनभर कर्ज नहीं चुका पाता तथा उस व्यक्ति की संतान भी इस वजह परेशानियां उठाती हैं।जन्म कुंडली के छठे भाव से रोग, ऋण, शत्रु, ननिहाल पक्ष, दुर्घटना का अध्ययन किया जाता है| ऋणग्रस्तता के लिए इस भाव के आलावा दूसरा भाव जो धन का है, दशम-भाव जो कर्म व रोजगार का है, एकादश भाव जो आय का है एवं द्वादश भाव जो व्यय भाव है, का भी अध्ययन किया जाता है| इसके आलावा ऋण के लिए कुंडली में मौजूद कुछ योग जैसे सर्प दोष व वास्तु दोष भी इसके कारण बनते हैं| इस भाव के कारक ग्रह शनि व मंगल हैं|
दूसरे भाव का स्वामी बुध यदि गुरु के साथ अष्टम भाव में हो तो यह योग बनता है| जातक पिता के कमाए धन से आधा जीवन काटता है या फिर ऋण लेकर अपना जीवन यापन करता है| सूर्य लग्न में शनि के साथ हो तो जातक मुकदमों में उलझा रहता है और कर्ज लेकर जीवनयापन व मुकदमेबाजी करता रहता है| 12 वें भाव का सूर्य व्ययों में वृद्धि कर व्यक्ति को ऋणी रखता है| अष्टम भाव का राहू दशम भाव के माध्यम से दूसरे भाव पर विष-वमन कर धन का नाश करता है और इंसान को ऋणी होने के लिए मजबूर कर देता है| इनके आलावा कुछ और योग हैं जो व्यक्ति को ऋणग्रस्त बनाते हैं|

— उपर बताएं पाप ग्रह अगर मंगल को देख रहे हों तो भी कर्जा होता है।
—- कुंडली में खराब फल देने वाले घरों (छठे, आठवें या बारहवें) घर में कर्क राशि के साथ हो तो व्यक्ति का कर्ज लंबे समय तक बना रहता है।
—– षष्ठेश पाप ग्रह हो व 8 वें या 12 वें भाव में स्थित हो तो व्यक्ति ऋणग्रस्त रहता है|
—छठे भाव का स्वामी हीन-बली होकर पापकर्तरी में हो या पाप ग्रहों से देखा जा रहा हो|
—-अगर कुंडली में मंगल कमजोर हो यानि कम अंश का हो तो ऋण लेने की स्थिति बनती है।
—- अगर मंगल कुंडली में शनि, सूर्य या बुध आदि पापग्रहों के साथ हो तो व्यक्ति को जीवन में एक बार ऋण तो लेना ही पड़ता है।
— दूसरा व दशम भाव कमजोर हो, एकादश भाव में पाप ग्रह हो या दशम भाव में सिंह राशि हो, ऐसे लोग कर्म के     प्रति अनिच्छुक होते हैं|
— यदि व्यक्ति का 12 वां भाव प्रबल हो व दूसरा तथा दशम कमजोर तो जातक उच्च स्तरीय व्यय वाला होता है और 5. निरंतर ऋण लेकर अपनी जरूरतों की पूर्ति करता है|
— आवास में वास्तु-दोष-पूर्वोत्तर कोण में निर्माण हो या उत्तर दिशा का निर्माण भारी व दक्षिण दिशा का निर्माण हल्का हो तो व्यक्ति के व्यय अधिक होते हैं और ऋण लेना ही पड़ता है|

कर्ज और वार का संबंध —-
-सोमवार- सोमवार की अधिष्ठाता देवी पार्वती हैं। यह चर संज्ञक और शुभ वार है। इस वार को किसी भी प्रकार का कर्ज लेने-देने में हानि नहीं होती है।
-मंगलवार- मंगलवार के देवता कार्तिकेय हैं। यह उग्र एवं क्रूर वार है। इस वार को कर्ज लेना शास्त्रों में निषेध बताया गया है। इस दिन कर्ज लेने के बजाए पुराना कर्ज हो तो चुका देना चाहिए।
-बुधवार- बुधवार के देवता विष्णुहैं। यह मिश्र संज्ञक शुभ वार है, मगर ज्योतिष की भाषा में इसे नपुंसक वार माना गया है। यह गणेशजी का वार है। इस दिन कर्ज देने से बचना चाहिए।
– गुरुवार- गुरुवार के देवता ब्रह्माहैं। यह लघु संज्ञक शुभ वार है। गुरुवार को किसी को भी कर्ज नहीं देना चाहिए, लेकिन इस दिन कर्ज लेने से कर्ज जल्दी उतरता है।
-शुक्रवार- शुक्रवार के देवता इन्द्र हैं। यह मृदु संज्ञक और सौम्य वार है। कर्ज लेने-देने दोनों दृष्टि से अच्छा वार है।
-शनिवार- शनिवार के देवता काल हैं। यह दारुण संज्ञक क्रूर वार है। स्थिर कार्य करने के लिए ठीक है, परंतु कर्ज लेन-देने के लिए ठीक नहीं है। कर्ज विलंब से चुकता है।
– रविवार- रविवार के देवता शिव हैं। यह स्थिर संज्ञक और क्रूर वार है। रविवार को न तो कर्ज दें और न ही कर्ज लें।
कर्ज के पिंड से छुटकारा नहीं हो रहा हो तो प्रत्येक बुधवार को गणेशजी के सम्मुख तीन बार ‘ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र’ का पाठ करें और यथाशक्ति पूजन करें।

धनहीनता के ज्योतिष योग—

ज्योतिष में फलित करते समय योगों का विशेष योगदान होता है। योग एक से अधिक ग्रह जब युति, दृष्टि, स्थिति वश संबंध बनाते हैं तो योग बनता है। योग कारक ग्रहों की महादशा, अन्तर्दशा व प्रत्यन्तर दशादि में योगों का फल मिलता है। योग को समझे बिना फलित व्यर्थ है। योग में योगकारक ग्रह का महत्वपूर्ण भूमिका होती है। योगकाकर ग्रह के बलाबल से योग का फल प्रभावित होता है। अब यहां ज्योतिष योगों कि चर्चा करेंगे जो इस प्रकार हैं।धनहानि किसी को भी अच्छी नहीं लगती है। आज उन ज्योतिष योगों की चर्चा करेंगे जो धनहानि या धनहीनता कराते हैं। कुछ योग इस प्रकार हैं-

-धनेश  छठे, आठवें एवं बारहवें भाव में हो या भाग्येश बारहवें भाव में हो तो जातक करोड़ों कमाकर भी निर्धन रहता है। ऐसे जातक को धन के लिए अत्यन्त संघर्ष करना पड़ता है। उसके पास धन एकत्रा नहीं होता है अर्थात्‌ दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि धन रुकता नहीं है।
– जातक की कुंडली में धनेश अस्त या नीच राशि में स्थित हो तथा द्वितीय व आठवें भाव में पापग्रह हो तो जातक सदैव कर्जदार रहता है।
– जातक की कुंडली में धन भाव में पापग्रह स्थित हों। लग्नेश द्वादश भाव में स्थित हो एवं लग्नेश नवमेश एवं लाभेश(एकादश का स्वामी) से युत हो या दृष्ट हो तो जातक के ऊपर कोई न कोई कर्ज अवश्य रहता है।
-किसी की कुंडली में लाभेश छठे, आठवें एवं बारहवें भाव में हो तो जातक निर्धन होता है। ऐसा जातक कर्जदार, संकीर्ण मन वाला एवं कंजूस होता है। यदि लग्नेश भी निर्बल हो तो जातक अत्यन्त निर्धन होता है।
-षष्ठेश एवं लाभेश का संबंध दूसरे भाव से हो तो जातक सदैव ऋणी रहता है। उसका पहला ऋण उतरता नहीं कि दूसरा चढ़ जाता है। यह योग वृष, वृश्चिक, मीन लग्न में पूर्णतः सत्य सिद्ध होते देखा गया है।
-धन भाव में पाप ग्रह हों तथा धनेश भी पापग्रह हो तो ऐसा जातक दूसरों से ऋण लेता है। अब चाहे वह किसी करोड़पति के घर ही क्यों न जन्मा हो।
-किसी जातक की कुंडली में चन्द्रमा किसी ग्रह से युत न हो तथा शुभग्रह भी चन्द्र को न देखते हों व चन्द्र से द्वितीय एवं बारहवें भाव में कोई ग्रह न हो तो जातक दरिद्र होता है। यदि चन्द्र निर्बल है तो जातक स्वयं धन का नाश करता है। व्यर्थ में देशाटन करता है और पुत्रा एवं स्त्राी संबंधी पीड़ा जातक को होती है।
– यदि कुंडली में गुरु से चन्द्र छठे, आठवें या बारहवें हो एवं चन्द्र केन्द्र में न हो तो जातक दुर्भाग्यशाली होता है और उसके पास धन का अभाव होता है। ऐसे जातक के अपने ही उसे धोखा देते हैं। संकट के समय उसकी सहायता नहीं करते हैं। अनेक उतार-चढ़ाव जातक के जीवन में आते हैं।
-यदि लाभेश नीच, अस्त य पापग्रह से पीड़ित होकर छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तथा धनेश व लग्नेश निर्बल हो तो ऐसा जातक महा दरिद्र होता है। उसके पास सदैव धन की कमी रहती है। सिंह एवं कुम्भ लग्न में यह योग घटित होते देखा गया है।
-यदि किसी जातक की कुण्डली में दशमेश, तृतीयेश एवं भाग्येश निर्बल, नीच या अस्त हो तो ऐसा जातक भिक्षुक, दूसरों से धन पाने की याचना करने वाला होता है।
– किसी कुण्डली में मेष में चन्द्र, कुम्भ में शनि, मकर में शुक्र एवं धनु में सूर्य हो तो ऐसे जातक के पिता एवं दादा द्वारा अर्जित धन की प्राप्ति नहीं होती है। ऐसा जातक निज भुजबल से ही धन अर्जित करता है और उन्नति करता है।
– यदि कुण्डली का लग्नेश निर्बल हो, धनेश सूर्य से युत होकर द्वादश भाव में हो तथा द्वादश भाव में नीच या पापग्रह से दृष्ट सूर्य हो तो ऐसा जातक राज्य से दण्ड स्वरूप धन का नाश करता है। ऐसा जातक मुकदमें धन हारता है। यदि सरकारी नौकरी में है तो अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित या नौकरी से निकाले जाने का भय रहता है। वृश्चिक लग्न में यह योग अत्यन्त सत्य सिद्ध होता देखा गया है।
-यदि धनेश एवं लाभेश छठे, आठवें, बारहवें भाव में हो एवं एकादश में मंगल एवं दूसरे राहु हो तो ऐसा जातक राजदण्ड के कारण धनहानि उठाता है। वह मुकदमे, कोर्ट व कचहरी में मुकदमा हारता है। अधिकारी उससे नाराज रहते हैं। उसे इनकम टैक्स से छापा लगने का भय भी रहता है।

मूलतः धनेश, लाभेश, दशमेश, लग्नेश एवं भाग्येश निर्बल हो तो धनहीनता का योग बनता है।
उक्त धनहीनता के योग योगकारक ग्रहों की दशान्तर्दशा में फल देते हैं। फल कहते समय दशा एवं गोचर का विचार भी कर लेना चाहिए।

धनवान बनने का योग

🏵️ ।।धनवान बनने का योग ।।🏵️

यदि आप धनवान बनने का सपना देखते हैं, तो अपनी जन्म कुण्डली में इन ग्रह योगों को देखकर उसी अनुसार अपने प्रयासों को गति दें।

१ यदि लग्र का स्वामी दसवें भाव में आ जाता है तब जातक अपने माता-पिता से भी अधिक धनी होता है।

२ मेष या कर्क राशि में स्थित बुध व्यक्ति को धनवान बनाता है।

३ जब गुरु नवे और ग्यारहवें और सूर्य पांचवे भाव में बैठा हो तब व्यक्ति धनवान होता है।

४ शनि ग्रह को छोड़कर जब दूसरे और नवे भाव के स्वामी एक दूसरे के घर में बैठे होते हैं तब व्यक्ति को धनवान बना देते हैं।

५ जब चंद्रमा और गुरु या चंद्रमा और शुक्र पांचवे भाव में बैठ जाए तो व्यक्ति को अमीर बना देते हैं।

६ दूसरे भाव का स्वामी यदि ८ वें भाव में चला जाए तो व्यक्ति को स्वयं के परिश्रम और प्रयासों से धन पाता है।

७ यदि दसवें भाव का स्वामी लग्र में आ जाए तो जातक धनवान होता है।

८ सूर्य का छठे और ग्यारहवें भाव में होने पर व्यक्ति अपार धन पाता है। विशेषकर जब सूर्य और राहू के ग्रहयोग बने।

९ छठे, आठवे और बारहवें भाव के स्वामी यदि छठे, आठवे, बारहवें या ग्यारहवे भाव में चले जाए तो व्यक्ति को अचानक धनपति बन जाता है।

१० यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हों और ग्यारहवें भाव में शनि या मंगल या राहू बैठा हो तो व्यक्ति खेल, जुंए, दलाली या वकालात आदि के द्वारा धन पाता है।

११ मंगल चौथे भाव, सूर्य पांचवे भाव में और गुरु ग्यारहवे या पांचवे भाव में होने पर व्यक्ति को पैतृक संपत्ति से, खेती से या भवन से आय प्राप्त होती है, जो निरंतर बढ़ती है।

१२ गुरु जब कर्क, धनु या मीन राशि का और पांचवे भाव का स्वामी दसवें भाव में हो तो व्यक्ति पुत्र और पुत्रियों के द्वारा धन लाभ पाता है।

१३ राहू, शनि या मंगल और सूर्य ग्यारहवें भाव में हों तब व्यक्ति धीरे-धीरे धनपति हो जाता है।

१४ बुध, शुक और शनि जिस भाव में एक साथ हो वह व्यक्ति को व्यापार में बहुत ऊंचाई देकर धनकुबेर बनाता है

१५ दसवें भाव का स्वामी वृषभ राशि या तुला राशि में और शुक्र या सातवें भाव का स्वामी दसवें भाव में हो तो व्यक्ति को विवाह के द्वारा और पत्नी की कमाई से बहुत धन लाभ होता है।

१६ शनि जब तुला, मकर या कुंभ राशि में होता है, तब आंकिक योग्यता जैसे अकाउण्टेट, गणितज्ञ आदि बनकर धन अर्जित करता है।

१७ बुध, शुक्र और गुरु किसी भी ग्रह में एक साथ हो तब व्यक्ति धार्मिक कार्यों द्वारा धनवान होता है। जिनमें पुरोहित, पंडित, ज्योतिष, प्रवचनकार और धर्म संस्था का प्रमुख बनकर धनवान हो जाता है।

१८ कुण्डली के त्रिकोण घरों या चतुष्कोण घरों में यदि गुरु, शुक्र, चंद्र और बुध बैठे हो या फिर ३, ६ और ग्यारहवें भाव में सूर्य, राहू, शनि, मंगल आदि ग्रह बैठे हो तब व्यक्ति राहू या शनि या शुक या बुध की दशा में अपार धन प्राप्त करता है।

१९ गुरु जब दसर्वे या ग्यारहवें भाव में और सूर्य और मंगल चौथे और पांचवे भाव में हो या ग्रह इसकी विपरीत स्थिति में हो व्यक्ति को प्रशासनिक क्षमताओं के द्वारा धन अर्जित करता है।

२० यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हों और ग्यारहवें भाव में केतु को छोड़कर अन्य कोई ग्रह बैठा हो, तब व्यक्ति व्यापार-व्यवसार द्वारा अपार धन प्राप्त करता है। यदि केतु ग्यारहवें भाव में बैठा हो तब व्यक्ति विदेशी व्यापार से धन प्राप्त करता है।

*विकास नागपाल*
_ज्योतिष एवं वास्तु सलाहकार_
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_समस्या आपकी समाधान हमारे_
करनाल ।
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